रवीश जी को कौन नहीं जानता! पत्रकारिता की जगत का चमचमाता सितारा हैं, या कहिए कि सूर्य हैं। आप उन्हीं से पूछिए, वो बता देंगे आपको कि पत्रकारिता में उनको छोड़ कर अब कोई बचा नहीं है। ऐसा वो बार-बार कहते हैं, क्योंकि मूढ़ जनता मानने को तैयार ही नहीं होती है कि वो अंतिम पैगम्बर हैं पत्रकारिता के।
रवीश जी एक निर्मोही व्यक्ति हैं, कहते हैं कि टीवी फोड़ दो, स्क्रीन मत देखो। ऐसा संन्यासी व्यक्तित्व आखिर कहाँ मिलेगा जो हर रोज मनमोहक मुस्कान के साथ आपसे कहता है कि टीवी मत देखिए, और स्वयं हर रात्रि टीवी पर आ जाता है। बहुत लोग उपहास करते हैं इस बात का, लेकिन ‘खिचड़ी सम्मेलन’ में जुटने वाले नवोदित और ‘पके चावल’ टाइप पत्रकारों ने शोध में यह पाया है कि एनडीटीवी की माया इतनी विशिष्ट है कि हर दिन कोई नया व्यक्ति रवीश जी के नयनाभिराम मुखारविन्दों से प्रस्फुटित होने वाले विलक्षण शब्दपुष्पों की अलौकिक महक सूँघता बरबस रिमोट उठा कर टीवी चला ही देता है। और रवीश जी, बस अपना लोकधर्म निभाते हुए, उसे ही बताने आते हैं कि तात्, आज तो आप आ गए, भविष्य में मत आना, टीवी पर बस कूड़ा-करकट होता है।
रवीश जी को मैंने संन्यासी क्यों कहा? क्योंकि महर्षि रवीशानंद मोह-माय से परे, निष्पाप हो कर, इस धरातल से ऊपर, परमहंस की अवस्था पा चुके हैं क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना करने की जगह उन्होंने कहा कि अंतरात्मा से पूछिए कि बोझ डाल गया या मुक्त कर गया। देखिए, आपको लगेगा कि ये व्यक्ति संतुष्ट नहीं है फैसले से, लेकिन रवीशानंद जी महाराज को समझते हेतु, आपको विवेकशील होना पड़ेगा, उन्हीं के स्तर तक उठना पड़ेगा जहाँ आपको समझ में आएगा कि जब न्यायालय आपके अनुरूप निर्णय देती है, तो ठीक है, वरना अंतरात्मा की आवाज तो है ही!
अंतारत्मा की बात करते हुए रवीश जी आध्यात्म की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। अब आप कहेंगे कि ‘अंतरात्मा’ लिख देने भर से कोई आध्यात्मिक कैसे हो जाएगा! फिर तो आप यह भी कह देंगे कि ‘अफगान जलेबी’ सूफी गीत नहीं है, जबकि उसमें ‘ख्वाजा जी के पास तेरी चुगली करूँगा’ का प्रयोग हुआ है। आप यह भी कह देंगे कि सुश्री सनी लियोनी जी ‘बेबी डॉल मैं सोणे दी’ एक दार्शनिक भाव वाला गीत नहीं है। एक स्त्री सोने के पिंजड़े में बंद हो कर, पितृसत्तात्मकता के पिंजड़े में बंद हो कर दुनिया को पीतल की तरह नकली कहते हुए, स्वयं को कुंदन सदृश पवित्र कहती है, और आप कहेंगे इसमें दर्शन कहाँ है!
ख़ैर, रवीश जी के मित्रों से जब हमने बात की तो पता चला कि सेक्स रैकेट पांडे की बात पर उनकी अतंरात्मा गरीब ‘जे सुशील’ के चंदा वाले बुलेट पर बैठ कर खिचड़ी खाने जाती है। अंतरात्मा को भी तो ब्रेक चाहिए होता होगा, है कि नहीं। रवीश जी की अंतरात्मा न तो प्राइवेट जेट पर उनके साथ होती है, न ही मायावती वाले मंच पर। ऐसे खास मौकों पर श्रीयुत रवीश जी महाराज अंतरात्मा की आवाज को म्यूट मोड डाल देते हैं क्योंकि मैंने सुना है बोलती बहुत है!
रवीश जी और सर्वोच्च न्यायालय का प्रेम प्रसंग
रवीश जी को भारतीय सर्वोच्च न्यायालय से लड़कपन में ही प्यार हो गया था। तब वो उसे पुष्प भेंट किया करते थे, और नई दुल्हन की तरह ‘सेलिब्रेटिंग हनीमून विद हबी एंड पिछत्तीस अदर्स’ वाले ब्लॉग लिखा करते थे कि उनकी सहगामिनी ने लोकतंत्र की रक्षा कर दी है। एक समय था जब रवीश जी सुप्रीम कोर्ट के लिए इतने चिंतित होते थे कि ‘मेले बाबू ने थाना थाया’ भी पूछा करते थे क्योंकि जब लोकतंत्र को बचा दिया जाता होगा, तो कितनी मेहनत लगती होगी, इस पर वार्तालाप तो आवश्यक कार्य है!
फिर समय बदला और रवीश जी ने महबूबा को ‘तुम कितने बदल गए हो’ कहना शुरू कर दिया। जस्टिस लोया की मौत हो, या फिर अमित शाह के पुत्र जय शाह वाला मामला, अजित डोभाल के पुत्र शौर्य डोभाल वाला मसला, राफ़ेल, सबरीमाला और राम जन्मभूमि तक प्रेमिका ने रवीश कुमार के साथ धोखे के बाद धोखा किया। अगर एकता कपूर प्राइम टाइम की निर्देशक होतीं तो नाटकीय संगीत के साथ हर धोखे पर तीन बार गर्दन मुड़वाते हुए जूम इन-जूम आउट करते हुए, रवीश की गर्दन तुड़वा देतीं!
एक ही जीवन में इतने धोखे! ‘याकूब’ को भी फाँसी दे दी! हा-हा प्रियतमे! ऐसा तुम्हारे बारे में तो न सोचा था। कहाँ अपने दोस्त यारों से कैबिनेट के मंत्री तय करवाते थे, और कहाँ तुमने मुझे ‘जाँच कराने में क्या जाता है’ की रट लगाने पर मजबूर कर दिया! और जब जाँच किया भी तो फैसला रकीबों के पक्ष में! ऐसी हालत में श्री रवीश जी के मनोमस्तिष्क पर सुकोमल उँगलियों जैसी मालिश का सुख तो सिर्फ और सिर्फ श्री अगम कुमार निगम जी की ‘फिर बेवफाई’ की स्वरलहरियों से ही हो सकता है जहाँ वो कहते हैं कि ‘वो किसी और, किसी और से मिल के आ रहे हैं, फिर भी यारों हम इंतजार कर रहे हैं, एक बेवफा से हम, कितना प्यार कर रहे हैं…’
रवीश कुमार ने चाहा था कि वो अपनी इस प्रेमिका की गोद में सर डाल कर कहते, “बेबी, रामजन्मभूमि शांतिप्रियों को दे दो न, बेचारों में डर का माहौल है,” और सुप्रीम कोर्ट कहती, “अहो! अहो! प्रिये! पूरी अयोध्या ही दे देती हूँ, मुझे तो बस तुम्हारी खुशी चाहिए!” मगर ये हो न सका और आज ये आलम है… कि अंतरात्मा को बुलाना पड़ रहा है इस खेल में। प्रेमिका पर सीधा लांछन भी नहीं लगा सकते, जगहँसाई का भय है, इसलिए हर व्यक्ति को रवीश जी ने परोक्ष रूप से कहा है कि सत्तर साल से चल रहे मामले के निपटारे के बाद आप इस निर्णय को न मानें, आप अपने मन में बैठे जज को पुकारें और देखें कि वो क्या कहता है।
रवीश जी की इस पोस्ट पर आने वाले कमेंट को पढ़ कर सही प्रतीत हुआ कि बेवफा ने सही फैसला दिया था क्योंकि रवीश की अंतरात्मा को छोड़ कर किसी पर कोई भार नहीं पड़ता दिखा। कहाँ रवीश जी ‘चिगी-विगी’ करना चाह रहे थे, और कहाँ ये कोमल अंगों पर दुलत्ती मार कर भागती दिख रही है। गोगोई जी जालिम आदमी हैं, बेंच पर जगह नहीं थी, तो नीचे ही बिठा लेते, लेकिन लोकतंत्र में रवीश जी की भी आवाज सुन लेते तो क्या जाता! यही तो संविधान में लिखा है कि भारत प्रजातांत्रिक राष्ट्र है और यहाँ जज लोग फैसला सुना रहे हैं।
राफेल, राहुल और रवीश का रिरियाना
पाँच साल के शासन में बेदाग मोदी सरकार पर जब कॉन्ग्रेस ने जनेऊधारी, रामभक्त, शिवभक्त, रामावतार, कृष्णावतार, गंगापुत्री के भ्राता, दूरद्रष्टा, त्रिकालदर्शी राहुल गाँधी नामक प्रक्षेपास्त्र के प्रयोग से राफेल में घोटाला बताना शुरू किया तो रवीश जी भी हरमुनिया ले कर स्टूडियो में आने लगे। हर प्राइम टाइम और फेसबुक पोस्ट में ‘गाइए राफेल जगवंदन’ की धुन बजने लगी, राग मालकौंस में बजने लगा कि ‘मन तड़पत राफेल जाँच को आज…’, और उसी राग में राहुल वंदना करते हुए रवीश जी गा देते थे कि ‘राहुल रे! हे सोनियानंदन, हे दुखभंजन, परमनिरंजन… राहुले रे…’
राहुल गाँधी में अचानक उम्मीद का इंजेक्शन लगा दिया गया जिसमें कॉन्ग्रेसियों की उम्मीद का अंश कम और उनके चाटुकारों की उम्मीद ज्यादा थी। राहुल जी के व्यक्तित्व को देख कर सबको पता है कि राहुल जी किस तरह का इंजेक्शन लेना पसंद करते हैं, लेकिन राष्ट्र सेवा का भार क्या नहीं करवा देता है! इंजेक्शन दे दिया गया और फिर फील्डिंग सजा कर चरणवंदना करते हुए उनके झूठों को तथ्य मान कर प्रपंच की पैदावार होने लगी।
रवीश जी ने पुराना कैसेट निकाला, जो कि जस्टिस लोया वाले टाइम से ही पिछले पॉकेट में लिए घूमते थे, जिसको आप बिना टेप के भी चलाइए तो आवाज आएगी, “जाँच करा लीजिए, जाँच कराने में क्या जाता है।” जाता तो कुछ नहीं है रवीश जी, लेकिन आपको अब तक समझ में आ जाना चाहिए कि क्रश की फोटो देख कर फैमिली प्लानिंग और स्कूल के पास घर नहीं खरीदा जाता। सुप्रीम कोर्ट आपकी क्रश थी, अनुरक्त प्रेमिका नहीं कि आप ब्लैकमेल करके कुछ भी करवा लें।
आज राफेल पर पुनर्विचार याचिका खारिज हो गई और रवीश जी के लिए उम्मीद की किरण, राहुल गाँधी को, न्यायालय ने शरारती अल्पवयस्क बालक समझ कर सिर्फ डाँटते हुए छोड़ दिया कि उनके पास और भी काम हैं। हो सकता है रवीश जी रात वाले शो में बताएँ कि सुप्रीम कोर्ट बेवफा तो है ही, बल्कि ऐसा प्रतीत होता है कि ‘जैगुआर वाले लौंडे के साथ ‘जिन्नी मर्जी उतना पियार लैने’ चली गई।
लोकतंत्र बर्बाद हो चुका है, खम्भे बिक गए हैं
रवीश रिरियाते रहे, क्रश ने बेरहमी से क्रश कर दिया, लेकिन रवीश जी ऐसे हारने वाले प्रेमी नहीं हैं। अंग्रेजी के अखबारों में शीर्षक आते हैं कि ‘जिल्टेड लवर थ्रोज़ एसिड ऑन गर्ल’। रवीश जी की एसिड आप फेसबुक पर हर दिन फैलते देखेंगे, जब वो कहेंगे कि कैसे तर्क के मानदंडों पर सुप्रीम कोर्ट का कोई फैसला सही नहीं लगता।
हो सकता है कि वो ‘हें हें हें’ की चिरपरिचित हँसी के साथ, कार्यक्रम के अंत में यह भी कह दें कि ‘आज कल तो रिटायर होने के बाद भी सरकारें जजों को पद-प्रतिष्ठा देती है। मने, कह रहे हैं!’ ऐसा कहने की कला सिर्फ रवीश में ही है जहाँ वो ‘मने कह रहे हैं’ के नाम पर अपनी कातिल मुस्कान के साथ अपने भक्तों के सीने में ‘मजा तो तब है कि सीने के आर-पार चले’ वाला तीर मार देते हैं। रवीश के चेले उस तीर-ए-पुर-सितम को ‘जो दिल निकले तो दम निकले’ स्टाइल में लिए सोशल मीडिया के दीवारों पर विचरते हुए छाती पीटते रहते हैं कि ‘ये दुख साला खतम क्यों नहीं होता बे!’
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई जी ने तीन फैसले ऐसे दिए हैं जिससे वामपंथियों और पत्रकारिता के समुदाय विशेष और पाक अकुपाइड पत्रकारों के कई एजेंडे धाराशायी हो गए हैं। इतिहास 1528 से पीछे का भी देखा गया कि अयोध्या में मंदिर था, जहाँ बाबरी बना दी गई। राफेल पर राष्ट्र की सुरक्षा से समझौता नहीं हुआ। सबरीमाला में सात जजों की बेंच को निर्णय करने के लिए आगे बढ़ाने से यही साबित होता है कि जो फैसला आया था, उस पर सहमति नहीं है।
इस कारण, आने वाले दिनों में विषवमन ज्यादा होगा, रवीश जी ज्यादा लिखेंगे, ज्यादा बोलेंगे और अंतरात्मा को बार-बार बुलाएँगे। जब कुछ साबित नहीं हो पाएगा तो लोकसभा चुनावों के परिणाम वाले दिन की तरह, कंधे झुका कर, फीकी हँसी हँसते हुए, ‘देश के लोगों ने भाजपा में विश्वास दिखाया है’ की तर्ज पर कहेंगे कि ‘शीर्ष अदालत तो यही मानती है कि घोटाला नहीं हुआ, हम-आप क्या चीज हैं’। शास्त्रों में इसे काइयाँपन कहा गया है।
अब वायर, क्विंट, स्क्रॉल, बीबीसी, एनडीटीवी आदि गिरोह एकजुट हो कर ऐसे लेख लिखेगा, और स्वतंत्र पत्रकारों से लिखवाएगा जिसमें ऐसा बताया जाएगा कि न्यायपालिका अब सरकार की गोद में बैठ गई है। अब शायद ब्यूरोक्रेसी को भड़काने की कोशिश होगी क्योंकि मीडिया में इनके प्रपंच उस तरह से नहीं चल रहे कि ज्यादा लोग इकट्ठे हों। लगातार लहर बनाई जाएगी कि मोदी ने जजों के मन में भय बैठा दिया है कि रिटायर होने के बाद तो यहीं रहना है।
लेकिन, आप इन धूर्तों को टीवी पर देखा कीजिए, इनके लेख पढ़ा कीजिए ताकि आपको पता चलता रहे कि नैरेटिव बनता कैसे है, उसे कैसे बढ़ाया जाता है, उसे कैसे सोशल मीडिया के जरिए आप तक ढकेला जाता है।
अंत में रवीश जी के लिए कुछ गीतों के मुखड़े छोड़े जा रहा हूँ, जो सुन कर उन्हें चैन आएगा:
दिल मेरा तोड़ दिया उसने, बुरा क्यों मानूँ
अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का
मोरा पिया मो से बोलत नाहीं, द्वार जिया के खोलत नाहीं
ऐतबार नहीं करना, इंतजार नहीं करना, हद से भी ज्यादा तुम किसी से प्यार नहीं करना
एक ऐसी लड़की थी जिसे मैं प्यार करता था
टूटा हो दिल किसी का तो हैरत की बात क्या
वो किसी और, किसी और, से मिल के आ रहे हैं
इश्क न करना, इश्क न करना, इश्क न करना, इश्क न करना
ऐ मेरे दिल बता क्या बुरा कह दिया, बेवफा को अगर बेवफा कह दिया