इस लोकसभा चुनाव में सबसे रोचक बात ये रही कि चुनाव जीतने से ज्यादा सर फुटव्वल प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवारों के बीच देखने को मिली। इसका सबसे पहला कारण तो महागठबंधन जैसे संक्रामक रोगों की उत्पत्ति थी और दूसरा कारण ‘कनविनिएंट वामपंथन’ और किराए पर उपलब्ध प्रदर्शनकारी शेहला रशीद के ‘मन की बात’ है। चुनाव के रुझान अब लगभग यही बता रहे हैं कि लोकप्रिय नरेंद्र मोदी एक बार फिर प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते हुए देखना चाहते हैं।
इसी रुझान के साथ, तमाम EVM हैकिंग से लेकर डर के माहौल के बीच अन्य कई प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों के अरमानों का शीघ्रपतन देखने को मिला है। इस प्रकार बड़े ही दुःख के साथ यह सूचित करना पड़ रहा है कि देश ने एकसाथ आज लगभग 22 प्रधानमंत्री खो दिए हैं। हालाँकि, जो लोग अभी तक नेहरू-इंदिरा को ही अपना प्रधानमंत्री मानते आए हैं, वो अभी भी उन 22 चेहरों में अपना प्रधानमंत्री तलाशने के लिए स्वतंत्र हैं।
एक नजर उन सभी चेहरों पर जो ‘लगभग’ प्रधानमंत्री बनते-बनते रह जाएँगे
1 – गठबंधन भिक्षु सर अरविन्द केजरीवाल
पिछले 1 साल से गठबंधन की भीख माँग रहे अरविन्द केजरीवाल को कोई और प्रधानमंत्री बनते देखना चाहे या न चाहे लेकिन बलात्कार पीड़ितों के नाम पर चंदा इकठ्ठा कर के अकेले डकार जाने वाली हायब्रिड वामपंथ की डोमेस्टिक विचारक शेहला रशीद उन्हें प्रधानमंत्री बनते देखना चाहती थीं। हैरानी की बात ये है कि ये मन की बात उन्होंने 4 महीनों तक पटियाला हाउस कोर्ट के बाहर जमकर कूटे गए और बेगूसराय सीट से फिलहाल ‘लगभग’ एक लाख वोटों से पीछे चल रहे कम्युनिस्ट कामरेड नेता कन्हैया कुमार के लिए चुनाव प्रचार करते वक़्त कभी नहीं रखी। हालाँकि, रोडशो के दौरान लप्पड़ खाकर चंदा जुटाने में शायद वो जरूर कामयाब रहे होंगे, लेकिन प्रधानमंत्री तो वो नहीं बन रहे हैं। अरविन्द केजरीवाल का ये डर कि नरेंद्र मोदी उनकी हत्या करवा देंगे, हो सकता है अभी लम्बे समय तक चलता रहे।
2 – PM IN WAITING, डिम्पलधारी, चिरयुवा, अध्यक्ष श्री राहुल गाँधी जी
नेहरू के बाद एकमात्र लाखों-करोड़ों लोगों की एकमात्र पसंद कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को और 5 साल PM पद का सबसे योग्य उम्मीदवार बनने का सौभाग्य प्राप्त होने वाला है। उन्होंने रवीश कुमार को दिए गए गैर-राजनीतिक और निष्पक्ष इंटरव्यू में यह भी माना था कि 23 मई को जो भी नतीजे आएँगे, वो उसको ही मानेंगे। अब देखना ये है कि वो जनता के इस निर्णय को सर आँखों पर बिठाते हैं या फिरसे 5 साल तक जनता को जेब में एक ओर से हाथ डालकर दूसरी तरफ से निकालने और आलू से सोना बनाने का चमत्कार करते हुए नजर आते हैं। जो भी हो, जनता में चाहे राहुल गाँधी की लहर ना हो, लेकिन यह शत प्रतिशत तय है कि भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच में राहुल गाँधी का क्रेज पूरा है।
3 – टोंटीचोर अध्यक्ष अखिलेश यादव
अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव जी टोंटी, चिलम और पकौड़ों के स्वाद में इतना उलझे रहे कि उन्हें चुनाव में पूरी ताकत झोंकने का मौका ही नहीं मिल पाया। नेताजी श्री मुलायम सिंह यादव ने पहले ही कह दिया था कि उनकी आस्था नरेंद्र मोदी हैं, शायद यही बुजुर्गों का आशीर्वाद युवा अध्यक्ष जी को मिल नहीं पाया। हालाँकि, कुछ लोग तो ये भी कयास लगा रहे हैं कि चुनाव प्रचार के दौरान आखिरी समय पर कठिन सवाल पूछने की चॉइस रखने वाला एक निष्पक्ष पत्रकार का साया उनके प्राइवेट चॉपर में घुस आया था। वो निष्पक्ष पत्रकार कौन था, यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है।
4 – बहन मायावती
बसपा प्रमुख मायावती ने एग्जिट पोल के बाद तक भी मोदी विरोधियों को दिलासा दिया कि मोदी लहर कुछ नहीं होती है ये सब उनके मन का वहम है। NDTV जैसी निष्पक्ष मीडिया गिरोह को तो कल शाम को ये भी कहते देखा गया कि क्या भाजपा प्रधानमंत्री पद के लिए मायावती को अपना समर्थन देगी क्योंकि वो PM बनना चाहती हैं। यह बहुत बड़ी विडंबना है कि मायावती को गेस्ट हाउस प्रकरण के बाद भी समाजवादी पार्टी के साथ मंच पर बैठना पड़ा और उन्हें प्रधानमंत्री भी नहीं बनाया जा रहा है।
5 – ममता बनर्जी
सबसे पहले तो ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री ना बन पाने की हार्दिक ‘जय श्री राम’। जिस तरह से TMC के गुंडों ने चुनाव के पहले से लेकर चुनाव के दौरान भी गुंडागिर्दी के द्वारा मतदाताओं से लेकर भाजपा तक को आतंकित कर के रखा, उससे ममता बनर्जी के सपनों के लोकतंत्र की झलक अवश्य मिलती है। पश्चिम बंगाल में TMC के गुंडों द्वारा RSS कार्यकर्ताओं की हत्या से लेकर हिन्दुओं पर किए जा रहे अत्याचार के सामने नरेंद्र मोदी द्वारा लगातार जनता का विश्वास जीतते रहना लोकतंत्र की सबसे बड़ी हत्या ही है। खैर, जो भी है, जय श्री राम।
6 – के चंद्रशेखर राव यानी, केसीआर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘तुच्छ’ बताने वाले तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (केसीआर) भी इस लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के अग्रणी उम्मीदवारों में से एक थे। भले ही देश में ग़ैर-भाजपा और ग़ैर-कॉन्ग्रेसी फ्रंट बनाने का सपना देखने वाले केसीआर शायद अकेले नेता होंगे। इसके लिए उन्होंने वर्तमान समय में भारत के एकमात्र वामपंथी मुख्यमंत्री पी. विजयन तक से बातचीत का रास्ता अपनाया। लेकिन, रुझान बता रहा है कि जनता का मूड इस समय सिर्फ ‘राइट‘ ही है।
7 – चंद्रबाबू नायडू
आंध्र प्रदेश के CM (फिलहाल) चंद्र बाबू नायडू इनकम टैक्स की रेड के बाद ‘सेव इंडिया, सेव डेमोक्रेसी, की राह पकड़ने के बाद ‘गंभीर परिणामों’ की भी चेतावनी देते हुए देखे गए। एक समय पर ऐसा लग रहा था कि अगर मोदी विरोधी दल सत्ता में आता है, तो चंद्रबाबू नायडू प्रमुख भूमिका में नजर आएँगे, लेकिन उनकी पार्टी लोकसभा और विधानसभा दोनों ही में बुरी तरह से पिटी है। ईवीएम के मुद्दे पर विपक्ष की आवाज बुलंद करने वाले आंध्र प्रदेश के सीएम एन चंद्रबाबू नायडू राज्य के विधानसभा चुनावों में भी बुरी तरह पिछड़ने के बाद मुख्यमंत्री पद भी गँवा बैठे। 175 सीटों में से 152 सीटों पर वाईएसआरसीपी (YSRCP) के साथ, जगन मोहन रेड्डी राज्य अगले सीएम बनने के लिए तैयार हैं।