पॉलिटिकल टूरिज्म का दिन आ गया। नेत्री घटनास्थल पर पहुँच गई। घटनास्थल होते ही हैं पहुँचने के लिए। जहाँ न रहे वहाँ बनवा लिए जाते हैं। ऑर्डर देकर। टूलकिट के अनुसार। नेताजी और नेत्रीजी को पहुँचना है, एक ठो घटनास्थल तैयार करवा दो। क्या करें, थमी हुई राजनीतिक जीवन यात्रा को गति देनी है। तैयार हो गया तो नेत्री पहुँच गई। आस-पास सहायकों और लघु मानवों की फौज। ये साथ न रहे तो न जाने कितने लोगों को अपने जीवित रहने पर शंका होने लगे।
सब साँसें रोक खड़े हैं। किसी कोने से आवाज़ आई- नाक तो सही में मिलती है। दूसरी ओर से आवाज़ आई- एकदम्मै! बस करम मिल जाएँ तो नाक बचे। पहुँची तो सामने पुलिस को खड़े पाया। पुलिस ने पूछा- कैसे पधारीं?
वे बोली- फॉर्चूनर से। दरोगा बोला- वो तो ठीक देख रहे हैं कि फॉर्चूनर से आई हैं। मेरे कहने का मतलब था कारण क्या है आने का? प्रयोजन! प्रयोजन! वे बोलीं- संघर्ष करने। संघर्ष करने आई हूँ। आज देश में फ़ासिस्ट ताकतें बढ़ गई हैं। तुम्हारे मंत्री से नहीं डरती। पास खड़ा एक सहयोगी बोला- नाक चेक कर लो और जाने दो। समझ लो कौन हैं और क्या कर सकती हैं। दरोगा बोला- पर मैडम, आपको आगे जाने की इजाजत नहीं है। हमें ऑर्डर है आपको रोकने का।
पास खड़ा लघु मानव (इससे पहले कि कोई मानवाधिकार की बात कर दे, मैं स्पष्ट कर देता हूँ कि लघु मानव अंग्रेजी शब्द मिनियन का सीधा अनुवाद है) बोला- सन उन्नासी में भी एक दरोगा यही करने की कोशिश किया था। बाद में बहुत दुर्गति हुई थी उसकी। और सुनो, मैडम प्रदेश की भावी सीएम हैं।
मैडम तुरंत संघर्ष पर उतर आईं। दरोगा को हड़काते हुए कहा- मुझे जाने दो। रोकने की कोशिश की तो मैं तुम्हारे ऊपर किडनैपिंग, मोलेस्टेशन और अटैक का मुकदमा कर दूँगी। और हाँ, खबरदार जो महिला पुलिस को आगे किया तो।
वीडियो वायरल हो गया। संपादक ने कॉफ़ी पीते हुए वीडियो देखा और उछल पड़ा। अगले ही क्षण ट्वीट करते हुए लिखा- ये मैडम का बेलची मोमेंट है।
कॉफी ब्रेक में पास बैठा एक सह संपादक, जिसकी छवि राष्ट्रवादी की थी, बोला- फिर से! संपादक बोला- क्या फिर से? सह संपादक बोला- अरे, मेरा मतलब फिर से बेलची मोमेंट! कितनी बार होगा बेलची मोमेंट?
संपादक क्षण भर के लिए झेंप गया पर दूसरे ही उसके मन में आया कि झेंपने से अच्छा है कि लज्जा तज दे। तज कर बोला- जितनी बार मैं चाहूँगा उतनी बार आएगा बेलची मोमेंट। बार-बार आएगा बेलची मोमेंट क्योंकि दादी की नाक मैडम की नाक से मिलती है।
सह संपादक भी मजे लेने के मूड में था। बोला- लेकिन अभी तक जितने बेलची मोमेंट आपने बताए हैं उनमें हाथी एक बार भी दिखाई नहीं दिया। संपादक के मन में आया कह दे कि हाथी तो बहन जी के पास है, पर कह नहीं पाया। बोला- हाथी कैसे दिखाई देगा? दादी हाथी की सवारी इसलिए कर पाई थी क्योंकि उन्होंने सड़क बनने ही नहीं दिया था। जीनियस पॉलिटिकल माइंड ऐसे ही होते हैं। उन्हें पता रहता है कि कभी-कभी पिछड़ेपने की भी जरूरत पड़ जाती है।
सह संपादक बोला- यही अचीवमेंट था? संपादक बोला- अचीवमेंट ये नहीं था। अचीवमेंट था बेलची मोमेंट क्रिएट करके फिर से सत्ता में आना। वैसे भी जनता पर राज करना है तो कुछ मत बनवाओ। सह संपादक मुस्कुराते हुए बोले और यहाँ तो सेंटर और स्टेट, दोनों ने सड़क ही सड़क बनवा दी है ताकि बेलची मोमेंट तो आए पर बिना हाथी के।
संपादक बोला- बिलकुल। यही तो मैडम के खिलाफ साज़िश है। इन लोगों ने मैडम को सत्ता से रोकने के लिए सड़कें और हाई वे का जाल बिछा रखा है। इसलिए बेलची मोमेंट बार-बार आता तो है लेकिन अधूरा। सह संपादक ने कहा- झाड़ू वाला वीडियो भी बेलची मोमेंट की श्रेणी में आता है?
संपादक बोला- देखा जाए तो इट कैन टर्न आउट टू बी द रीयल बेलची मोमेंट। यू नेवर नो! इसीलिए मैं हर मोमेंट को बेलची मोमेंट बताता हूँ। किसे पता कौन सा सही निकल आये! सह संपादक हँसते हुए बोला- ये तो है। झाड़ू वाला मोमेंट भी बेलची मोमेंट हो सकता है। वैसे भी जादूगरी वाले किस्से कहानियों में जादूगरनी झाड़ू पर बैठकर उड़ती है। मैडम भी झाड़ू के सहारे उड़ना चाहती हैं। फिर भी हाथी होता तो बेलची मोमेंट एक बार के लिए कम्पलीट हो जाता।
संपादक चिंतित होते हुए बोला- वही, सड़क और हाईवे, यू सी! उसके बाद चुप हो गया। इस आशा के साथ कि अगला बेलची मोमेंट जल्दी ही आएगा।