प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार (मई 19, 2019) को अपने आध्यात्मिक दौरे के तहत केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिर में जाकर दर्शन किए। इन प्राचीन मंदिरों के दर्शन करने के साथ ही मोदी ने हिमालय में एकांतवास में भी समय बिताया और गुफा में ध्यान धरा। प्रधानमंत्री की ध्यान की मुद्रा में तस्वीरें भी वायरल हुईं और इसके बाद मीडिया एवं लिबरल गिरोह में इसे लेकर हंगामा मच गया। नेताओं को मज़ारों पर चादर चढ़ाने और मुस्लिम वाली टोपी पहन कर इफ़्तार पार्टी करते देखने के आदि इन लिबरलों को प्रधानमंत्री का यह आध्यात्मिक दौरा पसंद नहीं आया। पीएम ने मीडिया से बात करते हुए ख़ुद कहा कि वे पहले भी मंदिरों के दर्शन करते रहे हैं लेकिन इस तरह से एकांतवास में समय बिताने का अवसर उनके लिए काफ़ी दिनों बाद आया है।
कैमरा, हैंगर etc अपनी जगह.. लेकिन चश्मा पहन कर ध्यान कौन करता है?
— Kunal Choudhary (@KunalChoudhary_) May 18, 2019
मोदी जी,
कम से कम इतना तो जानते ही होंगे आप! pic.twitter.com/s3PZzikqpM
प्रधानमंत्री की बात भी सही थी क्योंकि उन्होंने चुनाव प्रचार से लेकर आम दिनों में भी कई मंदिरों के दर्शन किए, समय-समय पर काशी जाकर गंगा आरती में भाग लिया और कुम्भ में भी स्नान किया। लेकिन, अब उनका यह कार्यकाल लगभग पूरा हो चुका है और एक व्यापक चुनाव प्रचार ख़त्म कर उन्होंने सरकार और पार्टी, दोनों के ही नेतृत्व का सफलतापूर्वक संचालन किया है। अब जब चुनाव परिणाम आने तक उनके पास थोड़ा-बहुत खाली समय है, जिसे उन्होंने सनातन परंपरा का पालन कर बिताया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे अवसरों पर या तो भगवा वस्त्र धारण करते हैं या फिर स्थानीय वेश-भूषा में होते हैं। इससे स्थानीय परंपरा को भी प्रचार का एक माध्यम मिलता है।
हिमाचल में पीएम ने पहाड़ी टोपी पहनते हैं, नागालैंड में उनकी वेशभूषा जनजातीय समूहों जैसी होती है और कश्मीर में वे कश्मीरी परिधान में नज़र आते हैं। सोशल मीडिया पर इसके लिए उनका ख़ूब मज़ाक उड़ता रहा है और लोगों ने उन्हें बहुरुपिया से लेकर मदारी तक की संज्ञा दी। लेकिन, जहाँ भारत में हज़ारों परम्पराओं का सामूहिक अस्तित्व है, ऐसे समय में कई ऐसी परम्पराएँ और संस्कृतियाँ हैं, जिनसे देश के ही लोग अवगत नहीं हैं। देश के एक कोने में प्रभावी परम्पराओं के बारे में देश के दूसरे कोने के लोगों को कुछ पता ही न हो, भारत जैसे विशाल देश में ऐसे बहुत से मामले देखने को मिलते हैं। अगर प्रधानमंत्री इन संस्कृतियों व परम्परों को अंतरराष्ट्रीय पहचान देते हैं, तो उनका स्वागत होना चाहिए।
मोदी पर आरोप है वो जहाँ जाते हैं कैमरा ले जाते हैं यानी वो जहाँ भी जाते हैं देश और उनके विरोधियों को पता होता है पर एक व्यक्ति बिना काम के ग़ायब हो जाता किसी को पता नहीं होता ! क्या बेहतर है बतायें ?
— Amish Devgan (@AMISHDEVGAN) May 19, 2019
ये रही वेशभूषा की बात, जिसकी चर्चा करनी इसीलिए ज़रूरी थी क्योंकि आप ट्विटर खंगालेंगे तो आपको कई ट्वीट उन्हें मदारी और बहुरुपिया कहते हुए मिल जाएँगे। अब आते हैं ऐसे लोगों पर, जिन्हें प्रधानमंत्री के चश्मे से दिक्कत है। जी हाँ, मोदी विरोध का आलम यह है कि अब वह अपना चश्मा कब उतरेंगे और कब नहीं, यह भी गिरोह विशेष के सदस्य तय करना चाह रहे हैं। चश्मा पहन कर ध्यान लगाने को लेकर गिरोह विशेष के निशाने पर आए मोदी को अपनी आध्यात्मिक साधना कैसे करनी चाहिए और क्या-क्या पहनना चाहिए, वे वामपंथी भी अब इस पर चर्चा कर रहे हैं, जिन्हें सनातन हिन्दू परंपरा पर कोई विश्वास ही नहीं। ऐसा पहली बार हो रहा है जब कई पत्रकार साधना एवं ध्यान एक्सपर्ट्स की तरह व्यवहार कर रहे हैं।
कुछ लोगों की समस्या इस बात को लेकर भी थी कि मोदी के लिए लाल दरी क्यों बिछाई गई। हो सकता है कि मंदिर में उनके जाने के लिए प्रशासन ने कुछ विशेष इंतजाम किए हों, क्योंकि वह प्रधानमंत्री हैं। और सबसे बड़ी बात, एक दरी भर बिछा देने से किसी को दिक्कत क्यों होनी चाहिए? लिबरल गिरोह के लोग आज साधना, अध्यात्म, सनातन परंपरा की पूजा पद्धतियों और ध्यान के तरीकों पर प्रकाश डाल रहे हैं, भले ही उन्होंने कभी पहले इस पर बात किया भी हो या नहीं। अगर मोदी ‘दिखावे’ के लिए योग करने से संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग दिवस की घोषणा कर देते हैं, तो अगर ये दिखावा भी है (जैसा कि गिरोह विशेष का मानना है) तो सही है।
हमें तो बताया था कि मोदी जी आज घुसेंगे तो फिर कल ही निकलेंगे और किसी को भी अंदर जाने की अनुमति नहीं है…फिर ये कैमरा बिना मोदी जी की अनुमति से अंदर कैसे गया इसकी जाँच होनी चाहिए…या फिर मोदी जी की ही अनुमति थी??? https://t.co/gi2gTJ95LK
— Tej Pratap Singh Yadav (@yadavteju) May 18, 2019
तो फिर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्या करना चाहिए? कैसे ध्यान धरना चाहिए? साधना करने का तरीका क्या होना चाहिए? उनके साथ कितने कैमरे जाने चाहिए? उन्हें कैसे वस्त्र पहनने चाहिए? लिबरल गिरोह को शायद तब शांति मिलती जब पीएम मोदी लाल लंगोट पहन कर किसी नागा साधु की तरह पेड़ से उलटा लटक कर पत्तियाँ चबाते हुए तपस्या कर रहे होते। लेकिन नहीं, हो सकता है कि तब लिबरल गिरोह यह कहता कि उन्होंने दधीचि की तरह अपनी हड्डियाँ क्यों नहीं बाहर निकालीं? गिरोह विशेष को ख़ुश करने के लिए मोदी को हिमालय पर नहीं बल्कि हिन्द महासागर में 12,000 फ़ीट नीचे गहरे पानी में पैठ कर साधना करनी चाहिए। लेकिन, यहाँ फिर से कैमरे वाली दिक्कत आ जाती है।
अगर पीएम मोदी कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी की तरह बिना बताए चोरी-छिपे निकल जाते हैं तो इस पर हज़ारों लेख लिखे जाएँगे कि मोदी कहाँ गए हैं और किस जगह पर छुट्टियाँ मना रहे हैं। अगर मोदी के किसी दौरे में कैमरों व प्रेस को अनुमति नहीं दी जाती है तो प्रेस की स्वतंत्रता से लेकर भारत में मीडिया के पतन तक, न जाने कितनी चर्चाएँ चालू हो जाएँगी। मीडिया में पूछा जाएगा कि आखिर मोदी ऐसा क्या कर रहे हैं कि उन्होंने प्रेस को रोक दिया है? क्या नरेंद्र मोदी ईवीएम में गड़बड़ी करने के लिए चुनाव आयोग के साथ गुप्त बैठक कर रहे हैं? कुल मिलाकर बात यह है कि मीडिया को कवरेज की अनुमति दे दी जाए तो यही मीडिया के लोग पूछते हैं कि कैमरा लेकर साधना करने गए थे क्या? जब अनुमति नहीं दी जाए, तब ये अपना रोना शुरू कर देते हैं।
The relief after you escape your first “press conference”. ? Now Modi ji will write a new book – Press Conference Warriors.
— Ruchira Chaturvedi | #NYAYforIndia (@RuchiraC) May 18, 2019
P.S. चश्मा तो उतार देते। pic.twitter.com/8iiHksUoY1
मोदी नागा साधु बन जाएँ, भरी दुपहरी में लंगोट पहन कर घर-घर भिक्षा माँगते हुए ज़मीन पर दण्डवत करते हुए आगे बढ़ें, तब शायद उनकी साधना को सच्ची मानी जाए। लेकिन नहीं, हो सकता है तब गिरोह विशेष की चर्चा का विषय यह हो कि मोदी भगवान शिव की तरह तांडव करते हुए डमरू क्यों नहीं बजा रहे हैं? ऐसे डिज़ाइनर पत्रकारों को समझना चाहिए कि वह देश के प्रधानमंत्री हैं, उनके घर का नौकर नहीं कि वे जैसा चाहें वैसा करवा सकें। पद की भी कुछ मर्यादाएँ होती हैं और कुछ चीजें व्यक्तिगत सोच पर निर्भर करती है, यही तो हिन्दू धर्म की विशेषता है। वरना, कल होकर यह भी पूछा जा सकता है कि जब तक मोदी ख़ुद को बेल्ट से पीटते हुए नहीं घूमेंगे, उनका आध्यात्मिक दौरा अधूरा रहेगा।