Monday, November 18, 2024
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फैज थे कट्टर पाकिस्तानी, हजारों साल पुराना इतिहास बताते थे Pak का: हरिशंकर परसाई की किताब से खुली पोल

"पाकिस्तान का इतिहास 1947 से शुरू नहीं होता है बल्कि ये तो हज़ारों वर्ष पुराना है।" - फैज़ के इस कुतर्क पर भारतीय लेखक ने उन्हें 1947 और आजादी के संदर्भ में समझाना चाहा तो फैज़ तमतमा गए। फिर फैज़ ने कहा- "नहीं। यह हरगिज़ नहीं हो सकता।"

फैज़ अहमद फैज़ की कविता ‘हम देखेंगे’ को लेकर आजकल देश में एक नई जंग छिड़ी हुई है। आईआईटी कानपुर ने एक समिति बना कर कैम्पस में इस कविता के पाठ, यूनिवर्सिटी के नियम-कायदे और कविता पाठ के बाद सोशल मीडिया पर देश-विरोधी बातों संबंधी जाँच करने का फ़ैसला लिया। जाँच की बात आने के बाद से ही वामपंथियों ने फैज़ को ‘भारत का राष्ट्रभक्त’ साबित करने के लिए पूरा जोर लगा दिया। ट्विटर पर जावेद अख्तर सरीखे लोगों ने फैज़ के गुणगान में ट्वीट्स किए। फैज़ की कविताएँ शेयर की जाने लगीं।

ऐसे में, दैनिक जागरण के पत्रकार अनंत विजय ने हरिशंकर परसाई की एक रचना का जिक्र किया, जिससे साफ़ पता चलता है कि फैज़ किस सोच वाले व्यक्ति थे और कैसे वो भारत के प्रति घृणा से भरे हुए थे। ‘मार्क्सवाद का अर्धसत्य’ के लेखक अनंत विजय ने ‘हरिशंकर परसाई: चुनी हुई रचनाएँ’ नामक पुस्तक से उद्धरण लेकर फैज़ की सोच के बारे में बताया। उन्होंने लिखा कि फैज़ को ‘भारत-भक्त’ मानने वालों को ये ज़रूर देखना चाहिए। परसाई की इस रचनावली में एक घटना का जिक्र है, जो ताशकंद की है।

दरअसल, इस घटना का अनुभव मलयाली लेखक तकषि शिवशंकर पिल्लई ने साझा की थी। दर्जनों उपन्यास और 600 से भी अधिक कहानियाँ लिख चुके पिल्लई एक लोकप्रिय साहित्यकार थे, जिन्हें साहित्य कदमी अवॉर्ड से भी नवाज़ा गया था। पिल्लई के हवाले से महान व्यंगकार परसाई ने लिखा है कि ताशकंद में एफ्रो-एशियाई लेखकों का एक सम्मलेन हुआ था। इस सम्मलेन में पिल्लई ने प्रस्ताव दिया था कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के लेखकों को मिल कर एक संयुक्त वक्तव्य जारी करना चाहिए। उस वक्तव्य में ये होगा कि तीनों ही देश साझा संस्कृति, इतिहास और साहित्य-परंपरा का निर्वहन करते हैं।

बकौल हरिशंकर परसाई, पिल्लई के इस प्रस्ताव को पाकिस्तानी फैज़ अहमद फैज़ ने तुरंत नकार दिया। जबकि वहाँ मौजूद बांग्लादेश के लेखक ने कुछ भी टिप्पणी नहीं की थी। तब फैज़ ने स्पष्ट कहा था कि पाकिस्तान का इतिहास 1947 से शुरू नहीं होता है बल्कि ये तो हज़ारों वर्ष पुराना है। दरअसल, पिल्लई ने जब उन्हें याद दिलाया कि पाकिस्तान तो 1947 में भारत से विभाजित होकर अलग हुआ था, तो फैज़ तमतमा गए। पिल्लई ने कहा कि हदें भले ही बन गई हों लेकिन दोनों देशों की संस्कृति तो वही है। पिल्लई के प्रस्ताव पर फैज़ ने कहा- “नहीं। यह हरगिज़ नहीं हो सकता।

इसके बाद फैज़ ने अपने फ़ैसले के पक्ष में जो तर्क दिया, उसे आप भी जानिए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की हज़ारों वर्ष पुरानी संस्कृति का भारत से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का इतिहास भी अपना है, जो हज़ारों साल पहले जाता है। फैज़ ने कहा कि पाकिस्तान की संस्कृति या इतिहास का भारत से कोई भी संबंध नहीं है। इसके बाद पिल्लई और फैज़ के बीच जोरदार बहस हुई थी।

दरअसल, उस समय पिल्लई भी नहीं जानते थे कि फैज़ अहमद फैज़ कौन हैं, क्योंकि वो दक्षिण भारतीय थे। बाद में उन्होंने अपने कुछ उत्तर भारतीय मित्रों से बातचीत की तो उन्हें पता चला कि उनके साथ बहस करने वाले फैज़ ही थे। इस संस्मरण को पिल्लई ने लिखा है और हरिशंकर परसाई ने ‘इकबाल की बेइज्जती’ में इसका जिक्र किया है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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