Saturday, April 27, 2024
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‘पहिले से तो अब बहुत अच्छा हो गया है, इस समय बनारस स्वर्ग हो गया है’: हिंदू गौरव का नया प्रतीक श्रीकाशी विश्वनाथ कॉरिडोर

हमें यह भी याद रखना चाहिए कि अयोध्या के साथ ही काशी और मथुरा की मुक्ति की रणनीति बनी थी। यह कार्य जब तक पूरा नहीं होता हर हिंदू को खुद से पूछते रहना चाहिए- काशी की मुक्ति कब?

काश्यां हि काशते काशी, काशी सर्वप्रकाशिका।
सा काशी विदिता येन, तेन प्राप्ताहि काशिका।।

आत्मज्ञान के प्रकाश से काशी जगमगाती है। काशी सब वस्तुओं को आलोकित करती है। जो इस सत्य को जान गया वह काशी में एकरूप हो जाता है।

जिस श्रीकाशी विश्वनाथ कॉरिडोर (Shri Kashi Vishwanath Corridor) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार (13 दिसंबर 2021) को देश को समर्पित करेंगे, वहाँ उत्सव का वातावरण है। दिव्यता है, भव्यता है और काशी की वह जीवंत आध्यात्मिकता भी। दूर से ही अब उस मंदिर (Shri Kashi Vishwanath Temple) का कॉरिडोर दिखता है, जिसे 1669 में इस्लामी शासक औरंगजेब के आदेश पर ध्वस्त कर दिया गया था। जिसे उस मस्जिद से ढक दिया गया था, जिसे आज हम ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) के नाम से जानते हैं। जिस मंदिर के आसपास अतिक्रमण और अराजकता थी, अब उस बाबा विश्वनाथ के मंदिर में सब कुछ व्यवस्थित है। काशी कॉरिडोर में दक्षिण भारत से आए श्रद्धालुओं के इस दल का वीडियो (नीचे) देखिए।

जिन्होंने भी इससे पहले काशी विश्वनाथ का दर्शन किया हो, वहाँ की ठेलमठेल देखी हो, उनके लिए यह दृश्य स्वप्न जैसा ही होगा। लेकिन, काशी के सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकल्पों से 33 महीने में इस स्वप्न ने मूर्त रूप लिया है। प्रधानमंत्री ने 8 मार्च 2019 को इस कॉरिडोर की आधारशिला रखी थी। साबरमती रिवर फ्रंट को आकार देने वाले बिमल पटेल इसके आर्किटेक्ट हैं। वे सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट से भी जुड़े हुए हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को काल भैरव की पूजा करने के बाद गंगा में जलमार्ग से होते हुए मंदिर पहुँचकर बाबा विश्वनाथ का पूजन-अर्चन और जलाभिषेक करेंगे। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री जिस ‘ललिता घाट’ से प्रवेश करेंगे वहाँ से एक सीढ़ी तैयार की जा रही है जो श्रद्धालुओं को सीधे विश्वनाथ मंदिर तक लेकर जाएगी। 9 दिसंबर को जब ऑपइंडिया की टीम कॉरिडोर में पहुँची तो इसका निर्माण कार्य चल रहा था। 5.2 लाख वर्ग फीट में फैले इस कॉरिडोर को अंतिम टच दिया जा रहा था।

अब ललिता घाट से गंगा स्नान कर श्रद्धालु सीधे बाबा का जलाभिषेक कर सकेंगे। निर्माण कार्य अंतिम चरण में है।

कैसा है कॉरिडोर?

ललिता घाट और विश्वनाथ मंदिर परिसर के बीच वाले कॉरिडोर के हिस्से को ‘मंदिर चौक’ का नाम दिया गया है। श्रीकाशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर के सूचना जनसंपर्क अधिकारी पीयूष तिवारी ने ऑपइंडिया को बताया, “प्रधानमंत्री यहीं से कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे। ये कॉरिडोर का सबसे बड़ा हिस्सा है। ज्यादा भीड़ होने पर हम इस हिस्से में श्रद्धालुओं को रोक भी सकते हैं ताकि मंदिर में अव्यवस्था न हो। इसी हिस्से में एम्पोरियम बनाए गए हैं।”

बाबा विश्वनाथ के परिसर का द्वार। परिसर के चारों दिशा में द्वारा बनाए गए हैं।

5.2 लाख वर्ग फीट में फैला है कॉरिडोर

कॉरिडोर 5.2 लाख वर्ग फीट में फैला हुआ है। इसमें 33,075 वर्ग फीट में काशी विश्वनाथ मंदिर का परिसर है। इस कॉरिडोर में एक साथ 02 लाख लोग जमा हो सकते हैं। निर्माण में मकराना, चुनार के लाल बलुआ पत्थर समेत 7 विशेष पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। विश्राम गृह, संग्रहालय, सुरक्षा कक्ष और पुस्तकालय भी कॉरिडोर का हिस्सा हैं। पूरे कॉरिडोर में वृक्षारोपण के लिए जगह बनाई गई है। इनमें परिजात, रुद्राक्ष, अशोक, बेल इत्यादि पेड़ लगेंगे ताकि पूरा परिसर हरा-भरा रहे।

पूरे कॉरिडोर में वृक्षारोपण के लिए इसी तरह से जगह छोड़ी गई है

तिवारी ने बताया, “पहले जो मंदिर का परिसर था, वह केवल 3500 स्क्वायर फीट था। कॉरिडोर के लिए जब हमने घरों की खरीद शुरू की तो पहले ड्रोन सर्वे करवाया। इसमें कई पुराने मंदिर दिखे। जब हमने निर्माण शुरू किया तो इस बात का ध्यान रखा कि परिसर में अगर कोई श्रद्धालु बाहर से आए तो उसे वह हर सुविधा दी जाए जो एक धार्मिक स्थल में उसे मिलना चाहिए।” वे बताते हैं, “मेन गेट के बगल में यात्री सुविधा केंद्र बनाया गया है। सुरक्षा जाँच के बाद श्रद्धालु मंदिर परिसर में प्रवेश करेंगे। इसमें चार द्वार बनाए गए हैं, जो चारों दिशाओं में हैं। यह परिसर चुनार के लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है और इसका फर्श मकराना के सफेद संगमरमर से बना है। इस परिसर में अभी वृक्षारोपण होना है। इसी तरह गंगा की तरफ से भी प्रवेश की सुविधा है।”

बाबा का दर्शन करने के लिए कतारबद्ध श्रद्धालु

सुविधा केंद्र से लेकर वैदिक केंद्र तक

तिवारी ने बताया कि पूरे कॉरिडोर में तीन यात्री सुविधा केंद्र बनाए गए हैं। इसके अलावा गेस्ट हाउस, धार्मिक पुस्तकों की बिक्री का केंद्र, जलपान केंद्र, सिटी म्यूजियम, वाराणसी गैलरी, मुमुक्षु भवन इत्यादि भी हैं। योग साधना के लिए वैदिक केंद्र है। सिटी म्यूजियम और वाराणसी भवन दोनों संग्रहालय हैं और तिवारी के अनुसार अलग-अलग उद्देश्यों से बनाए गए हैं। कॉरिडोर में कैफे बिल्डिंग है। गंगा व्यू गैलरी है, जहाँ बैठकर गंगा का पूरा दृश्य देखा जा सकता है। इसके अलावा एम्पोरियम है। उन्होंने बताया, “एम्पोरियम वाले हिस्से में जीआई उत्पादों के बड़े-बड़े शोरूम होंगे।” वे कहते हैं, “इस परियोजना को बनाने का जो मुख्य उद्देश्य था वह यह है कि सावन के सोमवार और शिवरात्रि पर करीब ढाई से तीन लाख लोग आते हैं। उस दौरान पूरा शहर, पूरी गलियाँ ठसाठस भरी होती हैं। मंदिर तक पहुँचने के लिए लोगों को कम से कम तीन से चार किमी की दूरी तय करनी पड़ती थी। अब गंगा स्नान कर श्रद्धालु सीधे कॉरिडोर में प्रवेश करेंगे। बाबा का जलाभिषेक करेंगे और शहर में निकल जाएँगे। मंदिर परिसर वाले ही हिस्से में एक वक्त में कम से कम 10 हजार लोग अब आ सकते हैं।”

40 ऐसे मंदिर मिले जो घरों में दब गए थे

वाराणसी के आयुक्त दीपक अग्रवाल बताते हैं कि इस कॉरिडोर के लिए जिस बोर्ड का गठन किया गया था, उसने कुल 314 घरों की खरीद की थी। जब कॉरिडोर निर्माण के लिए इन घरों को तोड़ने का काम शुरू किया गया तो करीब 40 ऐसे प्राचीन मंदिर मिले जो अतिक्रमण की वजह से लुप्त हो चुके थे। उन्होंने बताया कि सबसे बड़ी चुनौती कॉरिडोर वाले हिस्से में जिनलोगों की संपत्ति आ रही थी उन्हें अपनी जगह छोड़ने के लिए तैयार करना था। लेकिन लोग इसके लिए तैयार हुए, क्योंकि इस परियोजना में उनकी आस्था थी। हमने पारदर्शी और आकर्षक वित्तीय प्रस्ताव मुहैया कराया। कई परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति देखते हुए उन्हें कम जगह के एवज में भी अच्छा-खासा मुआवजा प्रदान किया गया। जिन्होंने अतिक्रमण कर रखा था उनके भी हितों का ध्यान रखा गया। अग्रवाल ने बताया कि जो प्राचीन मंदिर इस दौरान मिले उन्हें संरक्षित किया गया है और जल्द ही श्रदालु इनमें दर्शन कर सकेंगे। उल्लेखनीय है कि मंदिर परिसर में मुख्य मंदिरों के अलावा कई छोटे मंदिर बनाए गए हैं। इनमें से कुछ में देवताओं की पुर्नस्थापना हो चुकी है। कई ऐसे मंदिर श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खुल भी गए हैं। शेष में काम अंतिम दौर में है।

2019 में जब कॉरिडोर का निर्माण कार्य शुरू हुआ था

प्रोपेगेंडा बनाम हकीकत

जब से काशी कॉरिडोर की बात शुरू हुई कॉन्ग्रेस सहित तमाम विपक्षी दल, उसकी पालतू मीडिया और लिबरल-सेकुलर गैंग इस दुष्प्रचार में जुटा है कि काशी के मूल स्वरूप के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। मंदिरों को ध्वस्त किया जा रहा है। यह दुष्प्रचार अब भी जारी है। राम के अस्तित्व को नहीं मानने वाले लोगों की जलन समझी जा सकती है। उन्हें भला कैसे कबूल हो कि जो मंदिर कल तक दृष्टिगोचर नहीं था, वह अब भव्य दिखे। हिंदू गौरव की पुर्नस्थापना हो। हमसे बातचीत में स्थानीय लोगों के भाव भी कुछ इसी तरह प्रकट हुए।

‘विपक्ष को पच नहीं रहा’

पंकज दुबे बनारस की सड़कों पर 25 साल से ऑटो चला रहे हैं। वे कहते हैं, “काशी कॉरिडोर अति सुंदर है। जो हुआ है, अच्छा हुआ है। सही है। ऐसा बहुत पहले हो जाना चाहिए। बाहर से भी जो लोग आ रहे हैं उनको यह आकर्षित करता है। इससे यह भी संदेश जा रहा है कि बनारस विकास कर रहा है।” वे कहते हैं, “इससे टूरिस्ट बढ़ेंगे। धंधा बढ़ेगा।” निर्माण के दौरान मंदिरों को तोड़ने की बात पर वे कहते हैं, “यह सब विपक्ष चिल्ला रहा है। उनको पच नहीं रहा है। बजट तो उनके पास भी था, लेकिन काम नहीं किए। अब काम दिख रहा है तो वे झूठा प्रचार कर रहे हैं।”

‘मोदी-योगी राज में धरोहरों का विकास’

रोशनी वर्मा काशी की दुर्लभ शिल्पकला ‘गुलाबी मीनाकारी’ का प्रशिक्षण ले रही हैं। वे काशी के गायघाट की रहने वाली हैं और युवा हैं। उनका कहना है, “हमारे काशी के हर गली में मंदिर हैं। पहले बहुत सारे मंदिरों का हमें पता नहीं था। कॉरिडोर के निर्माण से हमें उनके बारे में पता चला है। पहले मंदिर के बिल्कुल पास में घर थे, जिससे मंदिर का पता ही नहीं चलता था। अब मंदिर के बास बहुत स्पेस है। कितने भी लोग जुट जाए भीड़भाड़ नहीं होती। दर्शन करने में भी सहूलियत रहती है।” वे कहती हैं, “मोदी-योगी सरकार में हमारी मिट्टी से जुड़ी चीजों, धरोहरों और क्राफ्ट को संरक्षण दिया जा रहा है। उनका विकास हो रहा। उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा। अब लोग उनके बारे में जान रहे हैं और रोजगार के नए अवसर पैदा हो रहे हैं।”

गंगा आरती

‘जो 70 साल में न हुआ, मोदी ने 7 साल में कर दिया’

बुजुर्ग विमलेश ओझा कहते हैं, “पहिले से तो अब बहुत अच्छा हो गया है। इस समय तो बनारस स्वर्ग हो गया है। मोदी जी, योगी जी जो बाबा की सेवा कर रहे हैं वे बेमिसाल है।” कॉरिडोर निर्माण पर दुष्प्रचार को लेकर पूछे जाने पर उनका कहना था, “विरोध का तो ऐसा है कि ये राजनीति है। आप अच्छा भी करेंगे तो उसमें बुराई निकालेंगे। मेरे हिसाब से जो 70 साल में नहीं हुआ है, वह मोदी जी ने 7 साल में कर दिया है। अभी काम हो ही रहा है। आप गलियों में भी जाइए तो लगेगा कितना बदलाव हुआ है।”

‘यह काशी ही नहीं, पूरे देश की धरोहर’

आचार्य सुबोध शास्त्री 2007 से काशी विश्वनाथ मंदिर में पुजारी हैं। उनका कहना है, “मंदिर के साथ बिना कोई छेड़छाड़ के बदलाव हुआ है। स्पेस बढ़ने से मंदिर की व्यवस्था चाक-चौबंद हो गई। हमलोगों ने कभी सोचा भी नहीं था कि बाबा मंदिर का इस तरह कायाकल्प होगा। परिसर इतना भव्य हो जाएगा। लेकिन बाबा विश्वनाथ ने ऐसे आदमी को चुना जिसने यह सब कर दिया।” वे कहते हैं, “यह काशी ही नहीं पूरे देश की गरिमा, धरोहर बन गया है। अब देश-विदेश से लोग हँसते हुए आएँगे और हँसते हुए जाएँगे। उन्हें कोई तकलीफ नहीं होगी।”

‘कॉरिडोर से टूरिज्म डेवलप होगा’

ट्रैवल ब्लॉगर हर्षित पल्लव भी काशी के ही रहने वाले हैं। वे बताते हैं, “बचपन से हम इन गलियों में घूमते रहे हैं। बाबा का दर्शन करते रहे हैं। 2019 तक बाबा मंदिर से सटे हुए घर बने थे। यह पता ही नहीं चलता था कि रास्ता किधर से है। अब सब कुछ व्यवस्थित है। इस कॉरिडोर से टूरिज्म डेवलप होगा।” वे कहते हैं, “यदि बदलाव से बेहतरी आती है तो उसमें कुछ गलत नहीं है।”

‘जो दिख रहा उसकी कल्पना नहीं थी’

रोहित कुमार त्रिपाठी भी बनारस के ही हैं। वे कहते हैं, “पहले जो लोग दर्शन के लिए आते थे, उन्हें काफी परेशानी होती थी। मंदिर के आसपास पूरा अतिक्रमण था। आज जो दिख रहा है उसकी हमने कभी कल्पना नहीं की थी। ये सब होना जरूरी था। यह विकास काशी का मान-सम्मान बढ़ा रहा है।”

मंदिर परिसर से सटा ज्ञानवापी मस्जिद

ज्ञानवापी मस्जिद… काशी की मुक्ति कब?

पत्रकार व्यालोक पाठक कहते हैं, “कौन नहीं जानता है कि गायों को हरावल दस्ते में आगे रखकर हिंदुओं को जीतने वाले कायर रेगिस्तानी बर्बरों ने हिंदुओं की चेतना को खत्म करने के लिए मंदिरों को अपवित्र किया, मूर्तियाँ तोड़ीं और बलात्कार किए।” पाठक जो कह रहे उसका ही प्रतीक है, औरंगजेब का 18 अप्रैल 1669 को काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का जारी किया गया फरमान। 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी। मंदिर ध्वस्त कर खड़ी की गई ज्ञानवापी मस्जिद भले एक कोने में सिमट गई हो, काशी कॉरिडोर में बाहर से भले लुप्त दिखती हो पर हकीकत यही है कि मंदिर परिसर से ही वह सटी है। यह उस इस्लामिक बर्बरता की याद दिलाती है, जिसे हिंदुओं ने भोगा है। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि अयोध्या के साथ ही काशी और मथुरा की मुक्ति की रणनीति बनी थी। यह कार्य जब तक पूरा नहीं होता हर हिंदू को खुद से पूछते रहना चाहिए- काशी की मुक्ति कब?

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अजीत झा
अजीत झा
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