Saturday, April 20, 2024
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नेताजी बोस के हमउम्र ‘पद्म श्री’ शिवानंद बाबा, भूख से चल बसे थे माता-पिता और बहन: सुबह 3 बजे योग और पूजा, कर रहे अध्यात्म का प्रसार

बाबा चार वर्ष की उम्र में अपने परिवार से अलग हो गए थे। उनके माता-पिता भीख माँगकर गुजारा करते थे। चार साल की उम्र में माता-पिता ने बेहतर भविष्य के लिए उन्हें नवद्वीप निवासी बाबा ओंकारनंद गोस्वामी को समर्पित कर दिया।

राष्ट्रपति भवन में सोमवार (21 मार्च, 2022) को पद्म पुरस्कार से हस्तियों को सम्मानित करने के दौरान ऐसा कुछ हुआ कि हर कोई भावुक हो गया। वाराणसी के 126 वर्षीय स्वामी शिवानंद नंगे पैर पद्मश्री लेने पहुँचे और सम्मानित होने से पहले वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नमस्कार करने घुटनों के बल बैठ गए। शिवानंद बाबा की यह मुद्रा देख पीएम मोदी भी अपनी कुर्सी से उठकर उनके सम्मान में झुक गए। इस दौरान पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।

उनका यह वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। रविवार (27 मार्च, 2022) को ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री ने भी उनका जिक्र किया। इसके बाद से लोग उनके बारे में जानने के लिए उत्सुक हैं।

बता दें कि 126 साल की उम्र के शिवानंद बाबा वाराणसी के कबीर नगर इलाके में रहते हैं और इस उम्र में भी एकदम स्वस्थ हैं। बाबा शिवानंद की फुर्ती ऐसी कि देखने वाले दंग रह जाएँ। वाराणसी के दुर्गाकुंड इलाके में स्थित आश्रम में तीसरी मंजिल पर स्थित कमरे में निवास करने वाले बाबा शिवानंद दिन में तीन से चार बार बिना किसी सहारे के सीढ़ियाँ चढ़ते और उतरते हैं।

बंगाल में जन्मे बाबा शिवानंद के हमउम्र थे सुभाष चंद्र बोस

शिवानंद बाबा का जन्म बंगाल के श्रीहट्टी जिले में 8 अगस्त 1896 में हुआ था। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक वह स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस के काफी करीब रहे हैं। दोनों के बीच बेहद ही अच्छा रिश्ता था। बताया जाता है कि दोनों हमउम्र थे और एक ही एरिया में रहते थे। इसके अलावा यह भी दावा किया जाता है कि उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को काफी करीब से देखा है।

भूख से हो गई थी माता-पिता और बहन की मौत

बाबा चार वर्ष की उम्र में अपने परिवार से अलग हो गए थे। उनके माता-पिता भीख माँगकर गुजारा करते थे। चार साल की उम्र में माता-पिता ने बेहतर भविष्य के लिए उन्हें नवद्वीप निवासी बाबा ओंकारनंद गोस्वामी को समर्पित कर दिया। शिवानंद छह साल के थे, तभी उनके माता-पिता और बहन का भूख के चलते निधन हो गया। तब से लेकर बाबा ने केवल आधा पेट भोजन करने का संकल्प लिया, जिसे वे अब तक निभा रहे हैं। इसके बाद उन्होंने काशी में गुरु के सानिध्य में आध्यात्म की दीक्षा लेनी शुरू की और योग को अपने जीवन का अहम हिस्सा बना लिया। 1925 में अपने गुरु के आदेश पर वह दुनिया के भ्रमण पर चले गए थे। करीब 34 साल तक देश-विदेश को उन्होंने नाप डाला।

1979 से वाराणसी में बसेरा, करते हैं माँ चंडी और श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ 

आश्रम में दीक्षा लेने के बाद 1977 में वृंदावन चले गए। दो साल वृंदावन में रहने के बाद 1979 में वाराणसी आ गए। तब से यहीं रह रहे हैं। बाबा कई देशों की यात्रा कर चुके हैं। एयरपोर्ट पर भी इतनी उम्र में बिना किसी सपोर्ट उन्हें देख लोग हैरान भी होते हैं। बाबा प्रतिदिन तड़के तीन बजे उठ जाते हैं और एक घंटे योग का अभ्यास करते हैं। इसके बाद पूजा-पाठ करने के बाद वो अपने दिन की शुरुआत करते हैं। वे कृष्ण मंत्र साधना, माँ चंडी और श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करते हैं। भोजन को लेकर वे बार-बार कहते हैं कि शुद्ध और शाकाहारी भोजन करने के कारण ही वो पूरी तरह से निरोगी हैं। इसके अलावा वह सेक्स और मसालों से दूरी को अपनी लंबी आयु का राज बताते हैं।

आश्रम में आने वाले को खुद परोसते हैं खाना

वहीं बाबा के आश्रम एक खास बातों को लेकर भी चर्चा में रहता है। जानकारी के मुताबिक यहाँ पर आपको खाली हाथ ही जाना होगा, लेकिन आप वहाँ से खाली हाथ लौट नहीं सकते हैं। वहाँ से आपको खाना खिलाने के बाद ही विदा किया जाएगा। बताया जाता है कि यहाँ आने वाले हर शख्स को बाबा खुद अपने हाथों से खाना परोस कर खिलाते हैं। यही वजह है कि उनकी विनम्रता का हर कोई कायल हो जाता है।

वैक्सीनेशन के समय भी रहे चर्चा में

शिवानंद बाबा कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके हैं. पिछले दिनों वाराणसी में ही जब वैक्सीन लगवाने बाबा पहुंचे थे तो रजिस्ट्रेशन के लिए उनसे आधार मांगा गया। आधार कार्ड पर उनका जन्म आठ अगस्त 1896 देख सभी चौंक गए थे। उन्हें देखकर मेडिकल स्टाफ भी काफी उत्साहित हुए थे। बाबा ने टीका लगवाने के बाद स्वास्थ्यकर्मियों को आशीर्वाद भी दिया था।

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