Friday, May 3, 2024
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‘पुलिस नहीं, मुझ पर मुन्नन खाँ के वर्दी वाले गुर्गों ने चलाई थी गोली’: कारसेवक नरसंहार में जीवित बचे महंत ने बताया- मरा समझ सरयू में फेंकने जा रहे थे

सन 1990 में घायल हुए कारसेवक रामस्वरूप दास का दावा है कि अयोध्या में उन्हें व उनके साथियों को गोली पुलिस ने नहीं, बल्कि मुन्नन खाँ के गुर्गों ने मारी थी। नीम के पेड़ को सीढ़ी बनाकर गुंबद पर चढ़ रहे थे कारसेवक। पुलिस का व्यवहार काफी मिलनसार था। उन्होंने बताया कि मिलिट्री वालों ने उन्हें खाना आदि खिलाया था।

अयोध्या में जन्मभूमि पर 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न हर्षोउल्लास के साथ संपन्न हो गई। विधि-विधान से हुए इस आयोजन के बाद दुनिया भर के श्रद्धालुओं का रामजन्मभूमि पर दर्शन के लिए तांता लगा हुआ है। श्रद्धालुओं के मन में जहाँ राम मंदिर के लिए 500 वर्षों तक चले संघर्ष में प्राण गँवाने वाले रामभक्तों के लिए श्रद्धा है तो दूसरी तरफ पवित्र धर्मनगरी में नरसंहार करवाने वालों के प्रति आक्रोश भी।

ऑपइंडिया की पड़ताल में साल 1990 में कारसेवकों के हुए नरसंहार में मुन्नन खाँ का भी नाम सामने आया था। बलिदानियों के परिजनों ने नरसंहार में मुन्नन खाँ को आरोपित किया था। इस बीच हमने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में एक जीवित कारसेवक खोज निकाला है, जिनका दावा है कि उन पर लगी गोली पुलिस नहीं, बल्कि मुन्नन खाँ के गुर्गों द्वारा चलाई गई थी। हालाँकि, इस नरसंहार में वे बचने में कामयाब रहे।

रामजन्मभूमि संघर्ष के तमाम पहलुओं की पड़ताल करते हुए हम गोंडा जिले में पहुँचे। गोंडा में हमें लखनऊ रोड पर कमिश्नर आवास के पास दीवानी चौराहे पर बने माँ दुर्गा के मंदिर में गए। यह मंदिर आसपास के श्रद्धालुओं की आस्था का मुख्य केंद्र है। मंदिर के महंत 68 वर्षीय रामस्वरूप दास हैं, जो कि मूलतः गोंडा जिले के ही निवासी हैं। ऑपइंडिया से बातचीत में रामस्वरूप ने दावा किया कि मुलायम यादव की सरकार के दौरान 1990 की कारसेवा में वे सक्रिय रूप से शामिल थे।

पुलिस में फॉलोवर की नौकरी छोड़कर निकले पड़े थे अयोध्या

सन 1990 में रामस्वरूप दास उत्तर प्रदेश पुलिस की PAC विंग में फॉलोवर की नौकरी करते थे। गोंडा स्थित उनके गाँव से होकर कई राज्यों के कारसेवक निकलते थे। इस दौरान वे ग्रामीणों के साथ मिलकर इन कारसेवकों के लिए खाना-पीना और रहने आदि का इंतजाम करते थे। बचपन से ही रामभक्ति में लीन रहने वाले रामस्वरूप दास ने बताया कि उन्होंने महीनों तक कारसेवकों की सेवा की।

इस बीच उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव द्वारा ‘अयोध्या में परिंदा भी पर न मार पाने’ वाला चैलेन्ज दिया गया। रामस्वरूप ने बताया कि अपने ही धर्मस्थल के लिए सरकार द्वारा दी गई ये चुनौती उन्हें अखर गई। इसके बाद वे कारसेवा के लिए अपने गाँव और आसपास के लोगों का जत्था बनाकर अयोध्या की ओर कूच कर गए।

पुलिस पहरे से बचकर पहुँचे अयोध्या

रामस्वरूप जब अयोध्या की तरफ कूच किए तब उनके साथ राजस्थान से आए रामभक्तों का भी एक जत्था जुड़ गया था। इन सभी को गाँव के अलग-अलग रास्तों से निकाल कर खेतों में रात्रि विश्राम आदि करवाते हुए आखिरकार रामस्वरूप 29 अक्टूबर 1990 में अयोध्या की सीमा पर पहुँच गए। अब अयोध्या में घुसने के लिए नदी पार करनी थी। दूसरी तरफ गुप्तार घाट था, जहाँ उन्हें अपने जत्थे सहित पुलिस से पहरे से बच कर उतरना था।

PAC और मिलिट्री वालों ने दिया खाना और दी सुरक्षित रहने की सलाह

रामस्वरूप का दावा है कि जब उन्होंने अपने साथियों सहित नदी पार की, तब उनको गुप्तार घाट पर यूपी PAC के जवान मिले। उन्होंने कारसेवकों से किसी भी प्रकार की अभद्रता नहीं की, बल्कि वे उनसे सम्मानित ढंग से पेश आए। PAC के जवानों की रामस्वरूप इस बात के लिए भी तारीफ कर रहे थे कि अगर वो बल प्रयोग करते तो इसकी भी आशंका थी कि नाव नदी में ही पलट जाती और सभी कारसेवक डूब जाते।

महंत रामस्वरूप ने आगे बताया कि नदी के पार उतरते ही कारसेवक भारतीय सेना की डोगरा रेजिमेंट सेंटर के रास्ते से निकलने लगे। तब सेना के जवानों ने उन सभी कारसेवकों को अपने हिस्से का खाना खिलाया। रामस्वरूप का दावा है कि इन्हीं सैनिकों ने कारसेवकों को वो जगह भी बताई थी, जहाँ वो रात भर चैन से सो सकते थे।

विवादित ढाँचे तक पहुँचा था रामभक्तों का जत्था

रामस्वरूप ने बताया कि 29 अक्टूबर की रात में नींद लेने के बाद 30 अक्टूबर 1990 की सुबह 4 बचे भोर में ही उनका जत्था वहाँ से महज 5 से 6 किलोमीटर स्थित रामजन्मभूमि की तरफ कूच कर गया। इसी दिन सुबह लगभग 9 बजे तक यह जत्था छिपते-छिपाते विवादित ढाँचे तक पहुँच गया।

रामस्वरूप के मुताबिक, तब तक अयोध्या में इतने रामभक्त जुट चुके थे कि हर तरफ भगवा रंग और जय श्रीराम की ही गूँज ही सुनाई दे रही थी। हर कारसेवक जल्द से जल्द विवादित ढाँचे तक पहुँचना चाहता था। इसी जनसैलाब ने अयोध्या में पुलिस द्वारा लगाई गई पहली बैरिकेड को पार कर लिया।उस समय तक किसी भी रामभक्त को जीने-मरने की चिंता नहीं थी।

ढाँचे पर झंडा लगाने बढ़े तो पीछे से ललकारा गया

रामस्वरूप बताते हैं कि वे उन गिने-चुने लोगों में शामिल थे, जो विवादित ढाँचे तक पहुँच गए थे। यहाँ गुंबद से सटा हुआ एक नीम का पेड़ था, जिसने रामभक्तों के लिए सीढ़ी का काम किया। उसी पर चढ़कर कई लोग गुंबद पर पहुँच गए। ये लोग वहाँ भगवा ध्वज फहराना चाहते थे। तभी पीछे से एक चेतावनी आई, “नीचे उतर जाओ, वरना गोली मार दी जाएगी”। हालाँकि, रामभक्त झंडा लगाना कोई ऐसा अपराध नहीं मान रहे थे, जिसके लिए उन्हें गोली मार दी जाएगी।

गोली लगते ही बेहोश हो गए रामस्वरूप दास

रामस्वरूप दास हमें आगे बताते हैं कि नीम के पेड़ से ढाँचे पर चढ़ने वालों में वो खुद भी शामिल थे। एक आवाज के बाद किसी को उस पर अमल नहीं करने दिया गया और गोलियाँ चलनी शुरू हो गईं। रामस्वरूप के आगे ही उनके कई साथी गोली लगते ही बलिदान हो गए। मौके पर अफरा-तफरी मच गई। इसी बीच एक गोली रामस्वरूप की कमर के निचले हिस्से में लगी। गोली लगते ही रामस्वरूप काफी ऊँचाई पर बने गुंबद से नीचे गिर पड़े और बेहोश हो गए। इसके बाद क्या हुआ उनको पता नहीं चला।

जिन्दा ही थी नदी में फेंकने की तैयारी पर पहचान गए PAC वाले

रामस्वरूप का कहना है कि उनको जिन्दा ही नदी में फेंकने के लिए तत्कालीन प्रशासन तैयारी कर चुका था। बेहोशी की हालत में उनको एक ट्रक में कई बलिदानियों के साथ लाद लिया गया था। इन सभी को सरयू नदी के घाट पर ले जाकर एक-एक करके नदी में फेंका जा रहा था। रामस्वरूप PAC में फॉलोवर थे, जिसकी वजह से उनको कई PAC वाले पहचानते थे।

उनका दावा है कि इसी दौरान उनका नंबर आते ही एक जवान ने उन्हें पहचान लिया। उसे साथी जवानों को बुलाया, तब तक रामस्वरूप की साँसे चल रही थीं। आनन-फानन में रामस्वरूप को अयोध्या के श्रीराम अस्पताल में भर्ती करवाया गया। कई दिनों तक चले इलाज के बाद रामस्वरूप को जीवित बचाया जा सका।

रामस्वरूप को लगी गोली डोगरा मिलिट्री हॉस्पिटल में निकाली गई थी। आज भी रामस्वरूप गोली के कुप्रभाव से उबर नहीं पाए हैं। वो अभी भी दौड़ नहीं पाते हैं। रामस्वरूप का यह भी दावा है कि तब ऐसे कई घायल रामभक्त भी थे, जिनको जिन्दा ही नदी में फेंक दिया गया था। बाद में उनका कुछ भी अता-पता नहीं चल पाया।

पुलिस ने नहीं बल्कि मुन्नन खाँ के गुर्गों ने चलाई थी गोली

रामस्वरूप ने बड़े विश्वास के साथ दावा किया कि उनको गोली मारकर घायल करने और उनके जत्थे वाले साथियों की जान लेने वाली हरकत पुलिस ने नहीं, बल्कि गोंडा के माफिया और तत्कालीन सांसद मुन्नन खाँ के साथियों ने की थी। रामस्वरूप ने बताया कि रामजन्मभूमि परिसर तक मुन्नन खाँ के अपराधी गुर्गे पुलिस की वर्दी पहनकर हथियारों से लैस खड़े थे।

बकौल रामस्वरूप दास, गोंडा में जहाँ का रहने वाला मुन्नन खाँ भी रहने वाला था, उस जगह के रहने वाले कई लोग उनके जत्थे में शामिल थे। जब गोलियाँ चलने लगीं तब गोंडा के कारसेवकों ने पहचान लिया कि पुलिस की वर्दी में गोली चलाने वाला असल में यूपी पुलिस के सिपाही नहीं, बल्कि मुन्नन खाँ के गुर्गे थे।

जब रामस्वरूप दास काफी दिनों बाद ठीक हुए तब भी उनके साथी कारसेवकों ने इस बात पर चर्चा की थी कि मुन्नन खाँ के लोगों ने रामभक्तों की हत्या की है। हालाँकि, मुन्नन खाँ पर कोई कार्रवाई नहीं करवाई जा सकी। रामस्वरूप के मुताबिक, तब मुलायम यादव की सरकार में मुन्नन खाँ का बहुत बड़ा रुतबा हुआ करता था।

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राहुल पाण्डेय
राहुल पाण्डेयhttp://www.opindia.com
धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।

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