BHU के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में डॉ. फिरोज खान की नियुक्ति के विरोध में छात्रों का धरना पिछले लगभग एक पखवाड़े से जारी है। आज भी विरोध स्वरुप हनुमान चालीसा का पाठ किया गया लेकिन अभी तक विश्विद्यालय प्रशासन और वाईसचांसलर की तरफ से कोई ठोस आश्वाशन नहीं मिला है। छात्र अभी भी शांतिपूर्वक सनातन धर्म, मालवीय मूल्यों और उनके आदर्शों की रक्षार्थ संघर्ष कर रहे हैं।
छात्रों की पिछले दिनों हुई JNU के प्रोफ़ेसर VC राकेश भटनागर से बातचीत भी बेनतीजा रही। छात्रों के प्रतिनिधि जब कुलपति से मिलने गए तो वो ‘देश के संविधान’ का हवाला देकर जहाँ के वो VC हैं उस BHU के ‘संविधान’ को मानने से इनकार कर दिया। ये कहकर कि मालवीय जी एक इंसान हैं इंसान गलत हो सकता है लेकिन लिखित संविधान नहीं और उनके लिए ‘मालवीय मूल्यों’ और ‘आदर्शों’ की कोई कीमत नहीं है। जो छात्र BHU में पढ़ते हैं मालवीय जी और उनकी बातें आज भी उनके लिए जीवंत हैं और उनके जीने का आधार भी। दीवारों पर लिखी जिन इबारतों, संदेशों को मानने से वाईसचांसलर इनकार कर रहे हैं और BHU के उस संविधान को भी जिसकी हालिया रीप्रिंट किताब के पहले पन्ने पर खुद उन्हीं का सन्देश है और उन्होंने ने ही इस प्रिंट को रिलांच भी किया लेकिन अब कहना है कि हमने पढ़ा नहीं, परम्परा है इसलिए लॉन्च किया।
एक तरफ SVDV के छात्र अपनी परम्पराओं, अपने पठन-पाठन की संरक्षित गुरुकुल की प्रक्रियाओं-विधियों के रक्षार्थ संघर्षशील हैं। तो दूसरी तरफ बीबीसी, वायर, प्रिंट जैसे मीडिया का एक धड़ा इस आंदोलन की धार कुंद करने में लगा है ये झूठ प्रसारित कर फिरोज खान की नियुक्ति का मसला महज ‘संस्कृत भाषा’ का है। इसे लेकर वो तरह-तरह के लेख लिख रहे हैं कि फला-जगह एक संस्कृत स्कूल है जहाँ 80% मुस्लिम बच्चे पढ़ते हैं। पहले भी स्पष्ट कर चूका हूँ कि ये मामला भाषा का है नहीं BHU में ‘संस्कृत भाषा’ और साहित्य के लिए अलग से एक पूरा विभाग है कला संकाय के अंतर्गत जबकि फिरोज खान की नियुक्ति ‘संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय” में हुई है जिसकी स्थापना महामना मदन मोहन मालवीय जी ने ‘हिन्दू सनातन धर्म’ की रक्षार्थ और हिन्दू धर्म की ‘वैज्ञानिक व्याख्या’ और इसके संरक्षण के लिए किया था। जहाँ आज भी वैदिक गुरुकुल रीति से ही विद्या अर्जन होता है।
तमाम मीडिया गिरोहों के दुष्प्रचार के बाद ऑपइंडिया ने SVDV के छात्रों से पुनः बात की वहाँ क्या पढ़ाया जाता है। इस संकाय की स्थापना का उद्देश्य क्या था? इसके पीछे मालवीय जी का क्या विज़न रहा है? वहाँ किन विषयों की पढ़ाई होती है? छात्रों की दिनचर्या कैसी होती है? और वहाँ वे क्यों अध्यनरत हैं? उनका उद्देश्य क्या है? साथ ही इस बात पर भी की वहाँ अध्ययन के बाद किस तरह का फ्यूचर वे अपने लिए देखते हैं और अंततः इस पर भी कि उन्हें फिरोज खान की नियुक्ति से आपत्ति क्यों है?
SVDV के स्थापना का उद्देश्य
तो चलिए सबसे पहले आप संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान की स्थापना का उद्देश्य क्या है जिसका जिक्र BHU की वेबसाइट पर भी है वही जान लीजिए जिससे बहुत कुछ स्पष्ट हो जाएगा- “SVDV की स्थापना 1918 में महामना द्वारा इस उद्देश्य से की गई थी कि प्राचीन भारतीय शास्त्रों, संस्कृत भाषा और साहित्य के अध्ययन को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए, इस संकाय का प्रमुख उद्देश्य समाज में धर्म, अध्यात्म, ज्योतिष और तंत्र के बारे में व्याप्त भ्रांतियों को दूर करना है और विशेषरूप से समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए नैतिकता और धर्म के सर्वोपरि मूल्यों को बहाल करना है। यहाँ परंपरागत तरीकों के साथ-साथ मौखिक-सह-लिखित परंपरा को ध्यान में रखते हुए शास्त्रीय ग्रंथों की ‘स्ट्रिक्टली’ पढ़ाई होती है।”
संकाय की खुद उद्घोषणा है कि हम ग्रंथो के प्रत्येक शब्द की व्याख्या पर जोर देते हैं ताकि उनके ‘आवश्यक’ निहितार्थ को समझा जा सके। और यहीं से छात्रों की उस आशंका को भी बल मिल रहा है कि जैसे ही इस संकाय में वर्णाश्रम धर्म से अलग किसी विधर्मी अर्थात मुस्लिम या ईसाई की नियुक्ति होगी तो हमारे शास्त्रीय वैदिक और प्राचीन ग्रन्थ इस्लामी और ईसाई प्रभाव से नहीं बचेंगे। पूरे विश्व में आज यही एक संस्थान बचा है जहाँ मालवीय जी के प्रयासों के फलस्वरूप हमारी अतिप्राचीन सनातन परंपरा अपने मूलरूप में सुरक्षित है और यहाँ शास्त्री, आचार्य, कर्मकांड आदि में डिप्लोमा से लेकर शोध तक में भी गुरुकुल की परम्पराओं का पालन होता है।
यहाँ के छात्रों का कहना है कि हम वेद पढ़ने से पहले यज्ञोपवीत धारण करते हैं, हमारे अध्यापक प्रोफ़ेसर भी संकाय में प्रवेश से पहले काशी के आराध्य शिव हैं तो शिव और पार्वती सहित जिन भी देवी-देवताओं की तस्वीरें और प्रतिमाएँ यहाँ हैं उन्हें प्रणाम करते हुए, उनकी प्रदक्षिणा करते हुए प्रवेश करते हैं और हम किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति से ऐसी आशा नहीं रखते। यह पूरा मामला हमारी आस्था, विश्वास और धर्म से जुड़ा है और हम नहीं चाहते कि इसमें किसी तरह की कोई मिलावट हो। ऐसा होते ही यहाँ के संस्थापक मालवीय जी की भावना को गहरा आघात लगेगा। हम-आप आज हैं कल नहीं रहेंगे पर हमारी परम्परा और सनातन धर्म अक्षुण्य है, ये सतत प्रवाहमान है। इसे अपनी पूरी शुद्धता में प्रवाहित होने देना आज हम सभी के कर्तव्य के साथ हिन्दू धर्म के मूल्यों से गहराई से जुड़ाव होने के कारण जिम्मेदारी भी है।
SVDV में किन विषयों की पढ़ाई होती है? वहाँ विभाग कौन से हैं?
वेद, व्याकरण, ज्योतिष, वैदिक दर्शन, धर्मागम, धर्मशास्त्र मीमांसा, जैन-बौद्ध दर्शन के साथ-साथ इन सबसे जुड़ा साहित्य। क्या ये विषय महज साहित्य हैं? क्या आप चाहेंगें कि इन विषयों को वो लोग पढ़ाएँ जिनका इनके मर्म और मूल्यों से कोई वास्ता ही न हो? क्या आप चाहेंगे कि इनकी इस्लामी और ईसाइयत मिश्रित व्याख्या हो या बाद के हिंसक आंदोलनों से उपजे सामी मजहबों से घालमेल कर कोई प्राचीन सनातन ज्ञान-विज्ञान की परंपरा में इतना घालमेल कर दे कि मूल को ढूँढना ही मुश्किल हो जाए?
उम्मीद है आप भी नहीं चाहेंगे यदि आप हिन्दू होंगे और सनातन धर्म, अध्यात्म और इसके मूल्यों में आपकी आस्था होगी तो फिर उन छात्रों से हम ये उम्मीद क्यों पाले बैठे हैं कि वो डॉ. फिरोज खान को स्वीकार लें, होने दे वो सारा अनर्थ अपने आँखों के सामने जो बेशक आज के वामपंथी विचारों वाले नास्तिक JNU के प्रोफ़ेसर और वर्तमान में BHU के वाईसचांसलर राकेश भटनागर बेशक तैयार हों जिनके बारे में BHU के छात्र ही कहते हैं कि मालवीय भवन में होने वाले गीता पाठ में भी वो नहीं जाते। लेकिन, ये छात्र हरगिज तैयार नहीं हैं। इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि वो सनातन परम्परा को पढ़ते नहीं बल्कि जीते हैं। चाहे वो वेश-भूषा, तिलक, चोटी और यज्ञोपवीत के स्तर पर हो या ब्रह्ममुहर्त में उठने से लेकर संध्यावंदन और धर्म ग्रंथो के परायण तक यही सब उनका जीवन है और उनके जीने का उद्देश्य भी।
क्या कहना है SVDV के छात्रों का
अब अगली कड़ी में हमने वहाँ के शास्त्री, आचार्य, कर्मकाण्ड आदि में डिप्लोमा और विद्यारिद्धि (पीएचडी) के कई वर्तमान और पुराने छात्रों से हुई बातचीत का जिक्र करना चाहूँगा। प्रशांत, शिवम, शशिकांत, कृष्णा जैसे कई छात्रों ने बताया कि मन्त्र, श्लोक, यज्ञ, वैदिक अनुष्ठान, पुरोहित कर्म, कथावाचन, भागवत पाठ से लेकर ज्योतिष और कर्मकांड तक में SVDV के छात्र समान रूप से शामिल होते हैं यही उनकी जीविका का साधन भी है। वहाँ पढ़ने वाले सभी छात्र सरकारी नौकरी के लिए अध्ययनरत नहीं हैं। हालाँकि, कुछ अध्ययन-अध्यापन के विधिवत प्रणाली में जाकर प्रोफ़ेसर-आचार्य आदि बनते भी हैं पर अधिकांश जीवन भर पुरोहित कर्म, वेद-वेदांगों और प्राचीन शास्त्रों की शिक्षा देते हुए, हिन्दू धर्म और सनातन परंपरा की रक्षा करते हुए अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं।
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आज SVDV के वे सभी छात्र डॉ. फिरोज खान की नियुक्ति से आशंकित हैं, उनकी आशंका निर्मूल नहीं है क्योंकि वे सिर्फ आज की नहीं बल्कि आने वाले समय की सोच रहे हैं अगर आज उन लोगों ने हार मान ली तो आने वाले दौर में वहाँ ईसाईयों की भी नियुक्ति होगी और हो सकता है कि आज से 15-20 साल बाद जब यही फिरोज खान वहाँ HOD, डीन होंगे और विभाग में कई अन्य मुस्लिम और ईसाई प्राध्यापक-प्रोफ़ेसर तो प्राचीन शास्त्रों की जो व्याख्या होगी वो आप समझ ही सकते हैं कि क्या-क्या हो सकती है।
शास्त्री के एक छात्र अभिनायक मिश्रा से बातचीत हो रही थी तो उन्होंने कहा, “पहले भी मुस्लिमों और ईसाईयों ने सनातन धर्म को कम नुकसान नहीं पहुँचाया है और आज विश्व के एक मात्र संस्थान जहाँ सनातन की पताका अपने मूलरूप में आज भी सुरक्षित है उसे हम नष्ट नहीं होने देंगे।”
अमन कुमार ने कहा, “हम SVDV में अध्ययन के साथ भी अपनी आजीविका के लिए न सिर्फ बनारस में बल्कि कहीं भी पौरोहित कर्म करते हुए पूजा-पाठ, यज्ञ-अनुष्ठान करवाते हैं। कल जब हम एक मुस्लिम से इस्लाम मिश्रित धर्म ज्ञान लेंगे तो क्या समाज को हमारे ज्ञान पर, हमारी व्याख्याओं पर उतनी आस्था और विश्वास रह जाएगा। उससे भी बड़ी बात ये कि हम किसी मुस्लिम को वैदिक सनातन धर्म और शास्त्रों की शिक्षा और उसकी व्याख्या के योग्य ही नहीं मानते। हमें कभी भी कोई मुस्लिम व्यक्ति अपने गुरु के रूप में धर्म विज्ञान पढ़ाता हुआ स्वीकार्य नहीं होगा।”
आचार्य के छात्र रौशन ने कहा, “मीडिया में मैंने पढ़ा कि लोग ये चला रहे हैं कि फिरोज खान भजन अच्छा गाते हैं उनको श्लोक और मन्त्र याद है, हो सकता है कि उनको संस्कृत साहित्य का ज्ञान हो पर यहाँ बात सिर्फ साहित्य की है ही नहीं, हमारे यहाँ ‘धर्म विज्ञान’ सर्वोपरि है और चूँकि ग्रन्थ संस्कृत में हैं इसलिए संस्कृत भाषा एक माध्यम तो क्या हम संस्कृत भाषा के एक जानकार को धर्म की शिक्षा देने का उत्तराधिकारी मान लें। जो साहित्य में हमें वेद और वेदांग आदि पढ़ाए। आप ही बताइए क्या कल को कोई इस्लाम के बारे में थोड़ा जानकर इस्लाम के आलिम के रूप में वो इस्लाम धर्म की शिक्षा के योग्य माना जाएगा। अगर ऐसा कहीं होने वाला भी होगा तो यही मीडिया जो आज हमें रूढ़िवादी, पिछड़ा कह रहा है। यही लिखता फिरेगा कि हिन्दू को इस्लाम और ईसाई धर्म की शिक्षा देने की ज़रूरत ही क्या है। और तब भी दोषी हिन्दू होंगे, ये वामपंथी और सनातन धर्म विरोधी लोगों ने ही हिन्दू धर्म को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया है।”
इन सभी मुद्दों पर एक बार फिर हमने BHU के पूर्व शोधछात्र और वर्तमान में सहायक प्रोफ़ेसर सौरभ द्विवेदी से भी बात की जिन्होंने इस बात पर पुनः जोर दिया, “मैं उन्हीं उमाकांत चतुर्वेदी का छात्र हूँ जिनके विभाग में डॉ. फिरोज खान की नियुक्ति हुई है और मैं उन्हें अच्छी तरह से जानता हूँ। मैंने ऑपइंडिया से बात करते हुए पहले भी कहा था और अब भी दोहराता हूँ कि SVDV में फिरोज खान की नियुक्ति पैसों के बल पर हुई है। फिरोज खान उन्हीं के पाँच साल पहले पढ़ाए हुए छात्र हैं।”
सौरभ ने कहा, “अगर उनकी जगह कोई और हिन्दू होता और पैसे पर भी नियुक्ति होती तो इसका विरोध नहीं होता। आज विरोध की सबसे बड़ी वजह यही है कि हम अपने ग्रंथो और सनातन परम्पराओं की इस्लामी व्याख्या नहीं चाहते, इन लोगों ने पहले भी हिंसा के बल पर हमारे मंदिरों और सनातन हिन्दू धर्म को कम नुकसान नहीं पहुँचाया अब एक बार और नहीं और उस जगह तो बिलकुल नहीं जहाँ महामना की आत्मा बसती है।”
मालवीय जी के उद्देश्यों पर सवाल पूछने पर सौरभ द्विवेदी ने कहा, “बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के नाम में मालवीय जी ‘हिन्दू’ शब्द रखकर ही अपना दृष्टिकोण प्रकट कर दिया था और ‘संस्कृत विभाग’ के होते हुए भी एक पृथक से संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय की स्थापना और वहाँ पर ‘वर्णाश्रम धर्म’ के नियमों से प्रवेश की बात वह खुद शिलालेख पर अंकित करवा कर गए हैं। कोई भी संस्था उसके संस्थापक के उद्देश्यों को ख़ारिज नहीं कर सकती और उस महामानव ‘महामना’ को तो बिलकुल भी नहीं जिन्होंने उस समय इस संस्था का भीख माँगकर निर्माण किया जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था। आज बेशक वाईसचांसलर के लिए मालवीय मूल्यों और BHU के संविधान की कोई क़द्र न हो लेकिन यहाँ के संस्थापक की सम्पूर्ण भावना उस किताब में दर्ज है जिसके आधार पर BHU का निर्माण हुआ और अब तक वह संचालित होता रहा।”
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VC के बारे में बोलते हुए सौरभ द्विवेदी ने कहा, “हमें किसी नास्तिक VC से सेक्युलरिज्म का पाठ नहीं पढ़ना। BHU अपने स्थापना के समय से ही सेक्युलर है। यहाँ किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं है बस आज जिस संविधान की आड़ लेकर ‘धर्म विज्ञान’ को भ्रष्ट करने की साजिश रची गई है। हम उसके खिलाफ हैं और इसका विरोध करते रहेंगे, हमारी हार सिर्फ छात्रों की हार नहीं है बल्कि आने वाले समय में यहाँ पूरी सनातन परम्परा की हार होने वाली है और इसके दोषी वो सभी होंगे जो आज मौन हैं।”
SVDV के ही एक पुराने छात्र राहुल दुबे (जो अब पुरोहित के रूप में कार्य कर रहे है, साथ ही संस्कृत भारती कार्यक्रम भी चलाते हैं) और उनके साथ आचार्य, शास्त्री और शोध के अधिकांश छात्रों का कहना है, “हम किसी मुस्लिम के खिलाफ नहीं हैं और न ही BHU से फिरोज खान के निष्काषन की भी माँग नहीं कर रहे हैं। हमारी माँग सिर्फ इतनी है कि संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में कोई मुस्लिम या ईसाई का प्रवेश न हो। वहाँ वही हो जो सनातन परंपरा और हिन्दू धर्म को मानने वाले और जीने वाले हों। वाईसचांसलर चाहें तो कहीं और कला संकाय या मंच कला संकाय के नाट्यशास्त्र विभाग में संस्कृत भाषा पढ़ाने के लिए स्थान्तरित कर सकते हैं लेकिन उनका संविधान की आड़ लेकर अपने जिद पर अड़े रहना कहीं न कहीं धर्म की सनातन परंपरा को बाधित करने की साजिश है। और हम इसके खिलाफ हैं आने वाले समय में ये सरकार की भी जिम्मेदारी है कि जब भी कभी काशी हिन्दू विश्विद्यालय के लिए किसी कुलपति का चुनाव हो तो कम से कम उसकी हिन्दू धर्म में आस्था हो, वह सनातन और मालवीय मूल्यों को आगे बढ़ाने वाला हो।”