Sunday, September 1, 2024
Homeविविध विषयमनोरंजन'जब कोई जलता है तो मवाद निकलता है' - The Kashmir Files यही पूछता...

‘जब कोई जलता है तो मवाद निकलता है’ – The Kashmir Files यही पूछता है – सच को स्वीकार करोगे या पर्दा डालने की राजनीति?

यह स्वतंत्र भारत की सबसे गहरी मानवीय त्रासदी के घावों को कुरेदती ही नहीं बल्कि उन्हें उघाड़ कर हमारे सामने रख कर पूछती है - 'क्या अब भी तुम कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार को भुलाने की राजनीति करोगे या सच को स्वीकार करोगे?'

कश्मीर फाइल्स (The Kashmir Files) – दमदार, उद्देश्यपूर्ण और एक सशक्त फिल्म।

आज ही सिनेमा के परदे पर रिलीज़ हुई इस फिल्म को देखने हम और सीमा वसंत कुंज के पीवीआर पहुँच गए। बुक माई शो पर रात आठ बजे की टिकट आज ही बुक कराई। उससे पहले के शो खाली नहीं थे। हमने सोचा था कि आठ बजे का शो है तो फिल्म साढ़े दस बजे तक तो ख़त्म हो ही जाएगी। उसके बाद वहीं किसी रेस्टोरेन्ट में पेट-पूजा करके घर लौटेंगे। इसलिए घर पर खाना नहीं बनवाया।

लेकिन फिल्म 11 बजे के बाद ख़त्म हुई। सारे रेस्टोरेन्ट बंद हो चुके थे। वो तो भला हो प्रोमिनाड और एम्बिएंस मॉल के बीच बेल्जियमफ्राई नाम के फ़ूड ट्रक के मैनेजर नीरज का कि उन्होंने शायद तरस खाकर हमें दो बर्गर मुहैया करवा दिए। नहीं तो आज पेट पर चुन्नी बाँध कर सोने की नौबत आ सकती थी।

जो फिल्म दर्शकों के दिल को छू जाए फिर उसके लिए किसी और तारीफ की ज़रुरत नहीं होती। इसने दिलों को छुआ, ये हम कैसे कह सकते हैं? हुआ यूँ कि पीवीआर के ऑडी-7 की जिस दीर्घा में हम थे, उसके पीछे कई लड़के बैठे हुए थे। कद-काठी से कॉलेज जाने की उम्र के लगते थे। बीच में आपस में बतिया भी रहे थे। वैसे भी सिनेमा हॉल में अधिकतर दर्शक युवा ही थे। उनमें से एक-दो कह भी रहे थे कि फिल्म थोड़ी लम्बी है। फिल्म नादिमार्ग नरसंहार के अत्यंत मार्मिक दृश्य पर ख़त्म होती है। इसमें एक-एक करके 24 कश्मीरी पंडितों को लाइन में खड़ा करके आतंकवादी सरगना सीधे माथे में गोली मारता है। मरने वाला अंतिम कश्मीरी पंडित कम उम्र का एक बच्चा है।

नरसंहार की इस दिल दहलाने वाली सत्य घटना में असल में 23 मार्च 2003 को लश्करे तैयबा के आतंकियों ने 11 महिलाओं और दो बच्चों समेत 24 पंडितों को मार डाला था। फिल्म के हीरो कृष्णा पंडित (दर्शन कुमार) का भाई शिवा उनमें से ही एक बच्चा है। फिल्म के अंतिम दृश्य में जैसे ही ये बच्चा गोली खाकर खाई में पड़ी अन्य लाशों के ढेर पर गिरता है तो पहले तो एक गहरी खामोशी हॉल में छा जाती है। उसके बाद ज्यों ही टाइटल की पहली प्लेट आती है तो अनायास ही हमारे पीछे वाली दर्शक दीर्घा से एक लड़का उस गंभीर ख़ामोशी को तोड़ पहली ताली बजाता है। फिर तो पूरे हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट गूँजने लगती है।

तालियों के साथ ही फिल्म समाप्ति की सूचना के तौर पर हॉल की बत्तियाँ जलने पर जो दृश्य मैंने देखा, वह असाधारण था। नेटफ्लिक्स के इस दौर में दर्शक अपने घर के टीवी पर 10-15 सेकण्ड के टाइटल को झेलने को तैयार नहीं हैं। उसे स्किप करना जैसे अपना परम धर्म समझते हैं। ऐसे समय में फिल्म समाप्ति पर बिना किसी के कहे अपने आप दर्शक तालियाँ बजाएँ यह तो अद्धभुत ही हुआ न! नई दिल्ली के एक संपन्न इलाके के एक सिनेमा हॉल में शुक्रवार की रात मनोरंजन की तलाश में अपना पैसा खर्च करके आए दर्शक ताली बजाएँ, इससे बड़ा सैल्यूट फिल्मकार के लिए क्या हो सकता है?

किसी निर्देशक और फिल्मकार के लिए इससे बड़ा और कोई इनाम नहीं हो सकता। डाइरेक्टर विवेक अग्निहोत्री ने कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार की कहानी को पूरी फिल्म में पकड़ के रखा है। उसे कहीं ढीला नहीं होने दिया। अनुपम खेर, पल्लवी जोशी, दर्शन कुमार और मिथुन चक्रवर्ती का अभिनय जोरदार है। फिल्म के डायलॉग कई बार आपको सुन्न कर जाते हैं। फिल्म के कई दृश्य विचलित भी कर जाते हैं। खून और हिंसा के कुछेक दृश्य कई बार वीभत्स लगते हैं। कुछ दृश्यों पर दर्शकों को ये कहते भी हमने सुना – “अब बहुत हो गया”।

कश्मीरी पंडितों के नरसंहार, उन पर हुए मज़हबी अत्याचार, जिहादी धर्मांध पाशविकता यथार्थ में तो और भी अधिक अमानुषिक रही होगी। उसके ऊपर से सेकुलरवाद जनित उपेक्षा भी तो अपने ही घर और देश में निर्वासित कश्मीरी हिन्दुओं ने झेली है। इन दृश्यों की कड़वाहट और उससे उत्पन्न जुगुप्सा एक कसमसाहट पैदा करती है। यह विवेक अग्निहोत्री की सफलता है।

मुझे ध्यान है कि कोई तीन-एक साल पहले विवेक अग्निहोत्री से दिल्ली-मुंबई की फ्लाइट के दौरान इस फिल्म के कथानक पर लम्बी चर्चा हुई थी। तब उनकी फिल्म ‘ताशकंद फाइल्स’ प्रदर्शित हो चुकी थी। मुझे उनकी उस फिल्म में डॉक्यूमेंट्री का तत्व अधिक लगा था। उस समय वे कश्मीर फाइल्स पर रिसर्च पूरी करने के बाद प्रोड्यूसर की तलाश में थे।

कहना पड़ेगा कि कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्म बनाना एक जिगरे का काम है। पुष्करनाथ पंडित और उनके जैसे लाखों कश्मीरी पंडितों की जीवंत गाथा है ये फिल्म, जिन्हें एक रात में अपना सब कुछ छोड़ कर घाटी से भागना पडा, क्योंकि इस्लामिक जिहादियों ने उन्हें केवल तीन ही विकल्प दिए थे – रालिव, त्सालिव या गालिव अर्थात, धर्मपरिवर्तन करो, भाग जाओ, या मर जाओ | राजनीतिक समझौतों से भावशून्य हो चुके बाकी भारतीय समाज की पाषाण हो गई संवेदना पर भी एक तीखी टिप्पणी है कश्मीर फाइल्स (The Kashmir Files)।

यह एक ज़बरदस्त फिल्म है जो स्वतंत्र भारत की सबसे गहरी मानवीय त्रासदी के घावों को कुरेदती ही नहीं बल्कि उन्हें उघाड़ कर हमारे सामने रख कर हमसे पूछती है – ‘क्या अब भी तुम कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार को भुलाने की राजनीति करोगे या सच को स्वीकार करोगे?’

फिल्म में एक डायलॉग है। ‘जब कोई जलता है तो मवाद निकलता है।’ धर्मांध जिहादी आतंक के शिकार कश्मीरी हिन्दुओं के सीनों में दशकों से जमे उस अवसाद को बाहर लाने के लिए साधुवाद विवेक रंजन अग्निहोत्री!

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

जनता की समस्याएँ सुन रहे थे गिरिराज सिंह, AAP पार्षद शहज़ादुम्मा सैफी ने कर दिया हमला: दाढ़ी-टोपी का नाम ले बोले केंद्रीय मंत्री –...

शहजादुम्मा मूल रूप से बेगूसराय के लखमिनिया का रहने वाला है। वह आम आदमी पार्टी का कार्यकर्ता है जो वर्तमान में लखमिनिया से वार्ड पार्षद भी है।

चुनाव आयोग ने मानी बिश्नोई समाज की माँग, आगे बढ़ाई मतदान और काउंटिंग की तारीखें: जानिए क्यों राजस्थान में हर वर्ष जमा होते हैं...

बिश्नोई समाज के लोग हर वर्ष गुरु जम्भेश्वर को याद करते हुए आसोज अमावस्या मनाते है। राजस्थान के बीकानेर में वार्षिक उत्सव में भाग लेते हैं।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -