Saturday, November 16, 2024
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सावरकर के सहयोगी कॉन्ग्रेसी अध्यक्ष से लेकर मुस्लिम नेता तक… भगत सिंह के साथी और फिल्म डायरेक्टर भी: इतिहास जो भुला दिया गया

सावरकर के कई साथी-सहयोगी बाद के वर्षों तक कॉन्ग्रेस से जुड़े तो कुछ वामपंथी दलों के साथ चले गए। खास बात यह थी कि वर्तमान कॉन्ग्रेस और वामपंथियों को छोड़ कर इनमें से किसी ने भी कभी सावरकर के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान पर प्रश्न नहीं उठाया।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की चर्चा बिना वीर सावरकर के संभव ही नहीं है। 1900 के बाद, ऐसा कोई क्रांतिकारी अथवा राजनेता नहीं था जोकि सावरकर के संपर्क में आकर, उनसे प्रभावित न हुआ हो। वास्तव में, उनका वह प्रभाव सिर्फ सांकेतिक नहीं बल्कि किसी के भी जीवन की दिशा बदलने वाला था। दुर्भाग्यवश, भारत विभाजन और स्वतंत्रता के पश्चात बदले राजनैतिक हालातों और तुष्टिकरण के चलते उनका वह योगदान जबरन भुला दिया गया। एक विशेष और लगातार हुए प्रचार के माध्यम से सावरकर को बदनाम करने के षडयंत्र किए गए।

इस लेख के माध्यम से हम सावरकर के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को उनके संपर्क में आए अथवा सहयोगी रहे, उन सभी क्रांतिकारियों और राजनेताओं के माध्यम से समझने की कोशिश करेंगे। हालाँकि, उनमें से कई नाम सावरकर की भाँति ही भुलाए दिए गए हैं।

पांडुरंग महादेव सेनापति – 1904 के आसपास लन्दन के इंडिया हाउस में इन्होंने सावरकर से मुलाकात की। वहीं से यह अभिनव भारत के सदस्य बन गए। सावरकर के निर्देश पर रूस जाकर बम बनाने का तरीका सिखा। 1908 में भारत वापस लौट आए।

हेमचन्द्र दास – सावरकर ने हेमचन्द्र दास को पांडुरंग महादेव सेनापति के साथ रूस में बम बनाने की प्रक्रिया सिखने के लिए भेजा था। 1908 में भारत आकर इन दोनों ने बंगाल के क्रांतिकारियों को बम बनाने का रुसी तरीका समझाया था। बंगाल के क्रांतिकारियों में बरिंदर घोस, प्रफुल्ल चक्रवर्ती और नरेन्द्र गुसाई जैसे नाम शामिल थे।

निरंजन पाल – भारतीय फिल्म उद्योग के सबसे शुरुआती निर्देशकों में से एक रहे पाल अपने जीवन के शुरुआती दिनों में सावरकर के साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी शामिल रहे।

भीकाजी कामा – भारत की स्वतंत्रता के लिए 1908 में सावरकर से मुलाकात की। जब सावरकर को फ्रांस में गिरफ्तार किया गया तो कामा ने ही उनकी रिहाई के लिए हरसंभव प्रयास किए थे। दोनों ने मिलकर कई क्रांतिकारियों को भारत की स्वाधीनता के लिए तैयार किया था।

बीजी खेर – 1935 के एक्ट के बाद, खरे बम्बई प्रान्त के मुख्यमंत्री बने थे। वे अपने जीवन के शुरुआती दिनों में सावरकर की अभिनव भारत सोसाइटी के सदस्य भी रहे।

जेबी कृपलानी – भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष रहे कृपलानी भी डेक्कन कॉलेज में पढ़ाई के दिनों में अभिनव भारत से जुड़े थे।

वीरेन्द्रनाथ चटर्जी – सरोजिनी नायडू के भाई, वीरेन्द्रनाथ को उनकी क्रन्तिकारी गतिविधियों के कारण 1910 में लन्दन के एक कॉलेज से निष्काषित कर दिया था। वे सावरकर के संपर्क में रहा करते थे और उनके अनुसार इन मुलाकातें ने उनके जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला था।

राम नारायण चौधरी – राजपूताना में 1914 से 1948 के दौरान, चौधरी राजनैतिक रूप से बेहद सक्रिय रहे। वे हार्डिंग बम केस और बनारस षड्यंत्र से भी अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े रहे। सावरकर द्वारा लिखित ‘वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस’ से वे बहुत प्रभावित थे।

गोपालराव विनायकराव देशमुख – तिलक के अनुयायी और 1885 से 1915 तक कॉन्ग्रेस के अधिवेशनों में हिस्सा लेते रहे। अपने लन्दन दौरे में इन्होंने ‘लन्दन इंडियन सोसायटी’ की चर्चाओं में हिस्सा लिया। वहीं देशमुख, सावरकर के संपर्क में आए। वे होम रुल लीग से 1916 से 1920 तक जुड़े रहे। इन्होंने 1937 में सावरकर की रिहाई के कई प्रयास किए। देशमुख का नाम इसलिए भी याद किया जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने 1934 से 1937 तक सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली में हिन्दू महिलाओं को संपत्ति में अधिकार और हिन्दू मेरिज डिसेबिलिटी एक्ट पारित करवाने में योगदान दिया था।

सरदारसिंह रावाजी राणा – मई 1905 में पेरिस में इंडियन होम रूल की स्थापना की। सावरकर के लगातार संपर्क में थे। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण सहित सुभास चंद्र बोस को जर्मनी से संबोधन में भी सहयोग दिया।

मदनलाल धींगरा – लन्दन में धींगरा सावरकर के संपर्क में थे और वहीं से क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि सावरकर ने एक दिन धींगरा के हाथ में एक कील ठोंक दी। धींगरा का खून बहने लगा, लेकिन उन्होंने अपना हाथ नहीं हिलाया और मुस्कुराते रहे। धींगरा के इस समर्पण और दृढ़ संकल्प से सावरकर बेहद प्रभावित हुए। धींगरा ने ही विलियम हट कर्जन वायली नामक एक ब्रिटिश अधिकारी की गोली मारकर हत्या की थी।

एनवी गाडगीळ – कॉन्ग्रेस के सदस्य रहे, गाडगीळ को सावरकार द्वारा लिखित क्रांतिकारी साहित्य पढ़ने का शौक था।

लाला हरदयाल – लन्दन में सावरकर के संपर्क में आए थे। 1908 में भारत लौटे और उसके बाद अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के चलते विदेशी जमीन पर कई बार गिरफ्तार किए गए। उन्होंने अमेरिका में जाकर गदर पार्टी की स्थापना कर प्रवासी भारतीयों के बीच देशभक्ति की भावना जागृत की।

वीवी सुब्रमण्य अय्यर – लन्दन में अय्यर, सावरकर के निकटतम सहयोगियों में से एक थे। वहां वे ‘फ्री इंडिया क्लब’ में शामिल रहे। वकालत की पढ़ाई के दौरान, अय्यर ने महारानी के नाम से शपथ लेने से इनकार कर दिया था। 1910 में भारत लौटने पर वे कई गुप्त क्रांतिकारी संस्थाओं से भी जुड़े रहे।

एमपीटी आचार्य – राजनैतिक रूप से सक्रिय रहे और लन्दन में सावरकर के संपर्क में थे।

डब्लूवी फडके – पढ़ाई करने लन्दन गए लेकिन वहाँ क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ गए। इसी दौरान उनका संपर्क सावरकर से हुआ। देश की स्वतंत्रता के लिए वे आगे अपनी पढ़ाई पूरी न कर सके।

अनन्त लक्ष्मण कान्हेरे – 1891 में जन्मे कान्हेरे का निधन 1910 में मात्र 19 साल की आयु में हो गया। वे सावरकार से बेहद प्रभावित थे और अपनी मात्रभूमि की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध थे। वे नासिक में सावरकर द्वारा संचालित अभिनव मित्र और मित्र मेला जैसे संगठनों से जुड़े रहे। 21 दिसंबर 1909 को उन्होंने एक डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, जैक्सन की गोली मारकर हत्या कर दी। जिसके कारण अंग्रेजों द्वारा 11 अप्रैल 1910 को उन्हें और कृष्णा गणेश कर्वे को फाँसी पर चढ़ा दिया गया। इसी केस में सावरकर को भी अंडमान की सजा सुनाई गई थी।

दुर्गादास खन्ना – भगत सिंह और सुखदेव के साथ काम कर चुके, दुर्गादास को सावरकर द्वारा लिखित ‘वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस’ ने प्रभावित किया था।

डॉ सुमंत मेहता – पेशेवर डॉक्टर, मेहता ने गुजरात में बारडोली सत्याग्रह और नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया था। लन्दन में वे श्यामजी कृष्ण वर्मा और कामा के संपर्क में थे। मेहता पहले व्यक्ति थे, जो सावरकर की प्रतिबंधित पुस्तक ‘वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस’ की पहली प्रति भारत लाने में सफल रहे।

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी – 1937 में जब सावरकर ने कॉन्ग्रेस से जुड़ने के लिए मना कर दिया तो डॉ. मुखर्जी उनके संपर्क में आए और हिन्दू महासभा से जुड़ गए।

शिवराम महादेव परांजपे – पेशे से पत्रकार रहे परांजपे ने लोकमान्य तिलक और महात्मा गाँधी दोनों के साथ काम किया था। विदेशी कपड़ों को जलाने के सावरकर के अभियान की अध्यक्षता परांजपे ने ही की थी।

श्रीपाद दामोदर सातवलेकर – वैदिक साहित्य के शोधार्थी, सातवलेकर ने महात्मा गाँधी के अहयोग आन्दोलन में हिस्सा लिया था। उन्होंने अस्पृश्यता को समाप्त करने के भी आन्दोलनों में प्रमुख भूमिका निभाई थी। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी जुड़े रहे। लाला लाजपत राय, लोकमान्य तिलक सहित वीर सावरकर का इनके जीवन पर गहरा प्रभाव था।

सत्यनारायण वेंनेती – ब्राह्मो समाज से जुड़े। सत्यनारायण को सावरकर की पुस्तक ‘वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस’ ने प्रभावित किया था।

पीएम थेवर – भारत के दक्षिणी राज्यों में राजनैतिक रूप से सक्रिय रहे। थेवर नेताजी सुभासचन्द्र बोस और वीर सावरकर से राजनैतिक रूप से प्रभावित रहे।

हरभाई त्रिवेदी – महात्मा गाँधी के खादी और हरिजन उत्थान में सहयोगी त्रिवेदी को लोकमान्य तिलक और सावरकर दोनों से विशेष लगाव था।

अय्याकी वेंकटरामानैय्या – स्वदेशी आन्दोलन से जुड़े रहे अय्याकी को सावरकर की पुस्तक ‘वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस’ ने प्रभावित किया था।

महात्मा गाँधी – जब वीर सावरकर के भाई गणेश दामोदर सावरकर का निधन 16 मार्च 1945 को हुआ, तो शोक संवेदनाओं वाले पत्रों में से एक पत्र महात्मा गाँधी का भी शामिल था। उन्होंने वह पत्र सेवाग्राम से 22 मार्च को वीर सावरकर को संबोधित करते हुए लिखा, “आपके भाई के निधन का समाचार सुनकर यह पत्र लिख रहा हूँ। उनकी रिहाई के बारे में मैंने कुछ किया था, तब से उनके बारे में मेरी रूचि बनी हुई है।”

मौलाना मोहम्मद अली – साल 1923 में मौलाना कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष बने तो उन्होंने अधिवेशन के दौरान सावरकर की रिहाई के लिए स्वयं एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसे पूरी कॉन्ग्रेस ने सर्वसम्मति से पारित किया। उन्होंने कहा था, “विनायक दामोदर सावरकर को सबसे अधिक तिरस्कारपूर्वक जेल में रखा जा रहा है, जबकि वे रिहा होने के हकदार हैं।”

अप्पासाहेब पटवर्धन – सावरकर के जीवनीकार, धनंजय कीर लिखते हैं कि अप्पासाहेब जोकि गाँधी के अनुयायी थे लेकिन सावरकर को अपनी प्रेरणा मानते थे। वे आगे लिखते हैं कि गाँधी ने कभी अप्पासाहेब को सावरकर के साथ काम करने पर ऐतराज नहीं जताया।

आसफ अली – इंडिया हाउस में सावरकर के संपर्क में थे। उनकी यह राष्ट्रवादी गतिविधि कट्टरपंथी मुसलमानों को रास नहीं आई। अतः उन्होंने 1909 में श्यामजी कृष्ण वर्मा को पत्र लिखा, “मेरे कुछ सहयोगी मुसलमानों को मेरा आपसे जुड़ना पसंद नहीं है। इसलिए मैं अब उन्हें ज्यादा नाराज नहीं करना चाहता हूँ।”

इन नामों के अलावा ऐसे कई नाम – ज्ञानचंद वर्मा एमपीटी आचार्य, अब्दुल्ला सुहरावर्दी, सिकंदर हयात खान, उल्लास्कर दत्ता, और कान्ह सिंह नाभा भी अपने जीवन में कभी-न-कभी सावरकर के संपर्क में आए थे। इनमें से कई लोग बाद में वैचारिक रूप से कॉन्ग्रेस से जुड़े और कुछ वामपंथी दलों के साथ चले गए। खास बात यह थी कि वर्तमान कॉन्ग्रेस और वामपंथियों को छोड़ कर इनमें से किसी ने भी कभी सावरकर के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान पर प्रश्न नहीं उठाया।

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Devesh Khandelwal
Devesh Khandelwal
Devesh Khandelwal is an alumnus of Indian Institute of Mass Communication. He has worked with various think-tanks such as Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation, Research & Development Foundation for Integral Humanism and Jammu-Kashmir Study Centre.

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