काशी विश्वनाथ परिसर में स्थित ज्ञानवापी विवादित ढाँचे में अदालत द्वारा नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर के नेतृत्व में और पुलिस-प्रशासन की मौजूदगी में सर्वे और वीडियोग्राफ़ी का कार्य जारी है। किस तरह औरंगजेब ने एक मंदिर को ध्वस्त कर के इसके ऊपर मस्जिद का निर्माण करवाया, ये किसी से छिपा नहीं है। हिन्दुओं के संघर्ष के बाद अब सच्चाई सामने आ रही है। आइए, हम यहाँ काशी विश्वनाथ मंदिर के इतिहास और इस्लामी आक्रांताओं की क्रूरता की चर्चा करते हैं और बताते हैं कैसे मुहम्मद गोरी और कुतुबुद्दीन ऐबक ने यहाँ तबाही मचाई।
काशी में 10वीं और 11वीं शताब्दी में गहड़वाल वंश का शासन था, जो उस समय भारतीय उपमहाद्वीप की बड़ी राजपूत शक्तियों में से एक हुआ करते थे। एक समय उनका शासन कन्नौज तक फैला हुआ था। आज के उत्तर प्रदेश और बिहार के कई जिलों पर ये राजवंश वाराणसी को राजधानी बना कर शासन करता था। इसके संस्थापक राजा चंद्रदेव/चन्द्रादित्य (1189-1103) थे (हालाँकि, उनके पुरखों का भी जिक्र मिलता है), जिन्होंने कमजोर होते गजनवी आक्रमणों के बीच एक अच्छी शासन व्यवस्था चलाई।
तभी उस समय के शिलालेखों में उन्हें ‘धरती का रक्षक’ भी कहा गया। तुर्कों के आक्रमण से उन्होंने साम्राज्य को सुरक्षित रखा। उस समय के दस्तावेजों की मानें तो राजा भोज और कर्ण की मृत्यु के बाद जब वेदों की वाणी गायब हो रही थी, ऐसे समय में चंद्रदेव ने वाराणसी, अयोध्या और दिल्ली की रक्षा की। इसी राजवंश में प्रतापी राजा गोविंदचंद्र (शासनकाल – 1114-1155) भी हुए, जिन्होंने 40 वर्षों से भी अधिक समय तक शासन किया।
ये वही राजा हैं, जिन्होंने राम मंदिर वाले स्थल पर एक मंदिर का निर्माण करवाया था। ‘विष्णु-हरि शिलालेख’ में इसका विवरण मिलता है, जो बाबरी विवादित ढाँचे के मलबे में पाया गया था। तब का मुस्लिम इतिहासकार सलमान दावा करता है कि कान्यकुब्ज (कन्नौज) पर सालार मसूद ने कब्ज़ा कर लिया था। हालाँकि, गोविंदचंद्र से हार के कारण इस्लामी आक्रांताओं को वहाँ से भागना पड़ा। तुर्क से वाराणसी को बचाने का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है।
उन्होंने एक विदेशी इस्लामी हमलावर को बुरी तरह हराया था। इस तरह हिन्दू राजा अपनी जान पर खेल कर हिन्दू धरोहरों की रक्षा करते रहे, लेकिन मुहम्मद गोरी ने 12वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत में एक के बाद एक लूट और विध्वंस की घटनाओं को अंजाम दिया। सन् 1193 में कन्नौज के राजा जयचंद और कुतुबुद्दीन ऐबक के बीच यमुना नदी के किनारे चंदावर (अभी फिरोजाबाद) में एक भीषण युद्ध हुआ, जिसमें जयचंद की मृत्यु हो गई।
पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी के बीच हुए युद्ध में इस्लामी सेना की जबरदस्त हार हुई थी, लेकिन अगले एक वर्ष में ही वो दोबारा लौटा और पृथ्वीराज चौहान की हार के साथ ही दिल्ली में इस्लामी सत्ता की स्थापना हो गई। जयचंद के खिलाफ युद्ध में खुद मुहम्मद गोरी और कुतुबुद्दीक ऐबक अपनी-अपनी फ़ौज के साथ था। जयचंद का कटा हुए सिर इन दोनों इस्लामी शासकों के सामने लाया गया। इसके बाद, मुहम्मद गोरी वाराणसी की तरफ बढ़ा।
पृथ्वीराज चौहान और जयचंद जैसे हिन्दू राजाओं की मृत्यु के बाद वाराणसी को बचाने वाला शायद ही कोई था। वाराणसी में लूटपाट का भयंकर मंजर देखने को मिला। मंदिर के मंदिर तोड़ डाले गए। वाराणसी न सिर्फ एक धार्मिक नगरी थी, बल्कि व्यापार और वित्त का भी बड़ा केंद्र था ये स्थल। ऐसे में मुहम्मद गोरी ने मनमाने ढंग से लूटपाट मचाई। कहते हैं, यहाँ से लूटे हुए माल को ले जाने के लिए उसे 1400 ऊँटों की ज़रूरत पड़ी थी।
कन्नौज जैसा बड़ा महत्वपूर्ण शहर भी इसके बाद प्रभावहीन हो गया और इल्तुतमिश के आक्रमण के बाद इसका बचा-खुचा प्रभाव भी समाप्त हो गया। काशी विश्वनाथ मंदिर को भी इसी दौरान ध्वस्त किया गया। इसके बाद स्थानीय लोगों ने काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी उठाई। राजा जयचंद के पुत्र हरीशचंद्र इस दौरान कन्नौज को फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे। जबकि कुतुबुद्दीन ऐबक सैयद जमालुद्दीन को नियुक्त कर वहाँ से निकल गया था।
Kashi Viswanath mandir’s history of vandalism :
— Monidipa Bose – Dey (মণিদীপা) (@monidipadey) April 9, 2021
1. Aibak as commander of Ghori -1192,
2. Either by Hussain Shah Sharqi (1447–1458), or Sikandar Lodhi (1489–1517)
3. Shahjahan wanted to destroy it in 1632, but failed owing to Hindu opposition, and finally
4. Aurangzeb in 1669. pic.twitter.com/XxQc1H1GgX
हरीशचंद्र और आम लोगों ने जब मंदिर का निर्माण पुनः शुरू कर दिया, तब कुतुबुद्दीन ऐबक ने 4 वर्षों बाद फिर से अपनी फ़ौज के साथ हमला किया और भारी तबाही मचाई। कुतुबुद्दीक ऐबक ने विश्वेश्वर, अविमुक्तेश्वर, कृतिवासेश्वर, काल भैरव, आदि महादेव, सिद्धेश्वर, बाणेश्वर, कपालेश्वर और बालीश्वर समेत सैकड़ों शिवालयों को तबाह कर दिया। इस तबाही के कारण अगले पाँच-छः दशकों तक ये मंदिर इसी अवस्था में रहे।
तुर्कों का शासन था और दिल्ली में उनकी अवस्था और मजबूत ही होती जा रही थी, ऐसे में कुछेक साधु-संतों के अलावा धर्म की मशाल को ज़िंदा रखने वाले लोग कम ही बचे थे। काशी वही है, जिसके बारे में 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेन सांग ने वर्णन किया है कि उसने यहाँ सैकड़ों शिव मंदिर देखे और हजारों साधु-श्रद्धालु भी अपने शरीर पर भस्म मल कर घूमते हुए उसे दिखे। उसने एक 30 मीटर ऊँची शिव प्रतिमा का भी जिक्र किया है।
People who put ban on reconstruction of temple –
— Aneesh Gokhale (@authorAneesh) April 9, 2021
Sikandar Lodhi in 1494
Aurangzeb in 1669
Congress in 1991
हालाँकि, 13वीं शताब्दी के मध्य में ही मुहम्मद गोरी की मौत हो गई और कुतुबुद्दीन ऐबक भी इस दशक के अंत तक मर गया। लेकिन, दिल्ली सल्तनत का काशी पर कब्ज़ा जारी रहा। इसके बाद इल्तुतमिश और फिर उसकी बेटी रजिया सुल्तान का शासन हुआ। इल्तुतमिश के समय ही एक जिक्र मिलता है कि जैन व्यापारी वास्तुपाल ने काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए 1 लाख रुपए भेजे थे। स्थानीय स्तर पे हिन्दुओं ने फिर से दबदबा बना लिया था।
वास्तुपाल का नाम जब आया तो उनके बारे में बता दें कि वो गुजरात में वाघेला राजा वीरधवल और फिर उनके बेटे विशालदेव के प्रधानमंत्री हुआ करते थे। उन्होंने न जाने कितने ही मंदिरों का निर्माण करवाया। तब के लोकप्रिय जैन साधु हेमचन्द्र के अनुयायी वास्तुपाल ने काशी और प्रयाग में मंदिरों के निर्माण करवाए। एक अंदाज़ा है कि उन्होंने उस समय 300 करोड़ रुपए मंदिरों के निर्माण पर खर्च कर दिए। हालाँकि, इस दौरान वाघेला राजाओं का सेना पर खर्च कम हो गया और अल्लाउद्दीन खिलजी से अंतिम राजा कर्ण को हार का सामना करना पड़ा।