केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने जानकारी दी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार (28 मई, 2023) को संसद के नए भवन के लोकार्पण के शुभ अवसर पर भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर पवित्र ‘सेंगोल’ को ग्रहण कर नए भवन में इसकी स्थापना करेंगे। साथ ही उन्होंने ‘सेंगोल’ को न्याय और निष्पक्षता का प्रतीक बताते हुए एक वीडियो भी शेयर किया। आप ज़रूर सोच रहे होंगे कि ये ‘सेंगोल’ क्या है और भारत सरकार से इसका क्या संबंध है।
‘सेंगोल’ का इतिहास जानने के लिए हमें सबसे पहले स्वतंत्रता के समय जाना होगा, जब भारत आज़ादी की लड़ाई जीत चुका था और सत्ता के हस्तांतरण के लिए कार्यक्रम होने वाला था। उस समय तमिलनाडु ‘मद्रास प्रेसिडेंसी’ के अंतर्गत आता था। पीयूष गोयल ने जो वीडियो शेयर किया, उसमें उस समय कुछ कलाकारों को दिल्ली के लिए कूच करने की तैयारी करते हुए देखा जा सकता है। उन्हें एक महत्वपूर्ण कार्य के लिए बुलाया गया था।
सत्ता के हस्तांतरण को पवित्रता प्रदान करते और उसकी वैधता स्थापित करने के लिए इन लोगों को बुलाया गया था। सत्ता एक शासक से दूसरे के पास जा रही थी, विदेशियों से स्वदेशियों के पास। भारत के अंतिम वायसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन को अंग्रेजी सरकार की तरफ से सत्ता हस्तांतरण का कार्य पूरा करने के लिए भेजा गया था। इस दौरान उनके मन में सवाल था कि इस कार्यक्रम, या इस क्षण को कैसे प्रदर्शित किया जाना चाहिए?
हाथ मिलाने से भी काम चल सकता था, लेकिन वो इसे एक विशेष प्रतीकात्मकता देना चाहते थे। इस दौरान उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी ये सवाल पूछा। जवाहरलाल नेहरू खुद को सेक्युलर दिखाने में विश्वास रखते थे और शायद यही कारण रहा होगा कि जब लॉर्ड माउंटबेटन ने उनसे पूछा कि सत्ता हस्तांतरण की भारतीय परंपरा क्या है, तो उन्हें कोई जवाब नहीं सूझा। उन्होंने चक्रवर्ती राजगोपालचारी से इस संबंध में प्रश्न किया, जो भारतीय इतिहास और संस्कृति की गहरी समझ रखते थे।
राजाजी तमिलनाडु से ताल्लुक रखते थे और भारतीय संस्कृति-सभ्यता को लेकर उनके ज्ञान का सभी सम्मान करते थे। उन्होंने सत्ता हस्तांतरण की प्रतीकात्मकता की समस्या का हल भी इतिहास में निकाला। चोल राजवंश में, जो भारत के सबसे प्राचीन और सबसे लंबे समय तक चलने वाला शासन था। उस समय एक चोल राजा से दूसरे चोल राजा को ‘सेंगोल’ देकर सत्ता हस्तांतरण की रीति निभाई जाती थी। ये एक तरह से राजदंड था, शासन में न्यायप्रियता का प्रतीक।
चोल राजवंश भगवान शिव को अपना आराध्य मानता था। इस ‘सेंगोल’ को राजपुरोहित द्वारा सौंपा जाता था, भगवान शिव के आशीर्वाद के रूप में। इस पर शिव की सवारी नंदी की प्रतिमा भी है। इसी तरह के समारोह और रिवाज की सलाह राजाजी ने दी, जिस पर नेहरू तैयार हो गए। इसके बाद राजाजी ने मयिलाडुतुरै स्थित ‘थिरुवावादुठुरै आथीनम’ से संपर्क किया, जिसकी स्थापना आज़ादी से 500 वर्ष पूर्व हुई थी। मठ के तत्कालीन महंत अम्बालवाना देशिका स्वामी उस समय बीमार थे, लेकिन उन्होंने ये कार्य अपने हाथ में लिया।
उन्होंने ‘सेंगोल’ के निर्माण के लिए ‘वुम्मिडी बंगारू चेट्टी’ के आभूषण निर्माताओं को दिया। ‘सेंगोल’ के ऊपर नंदी का होना शक्ति, न्यायप्रियता और सत्य का प्रतीक है। वुम्मिडी एथिराजुलू ने ‘सेंगोल’ के निर्माण के बारे में जानकारी देते हुए बताया था कि उनके पास ‘सेंगोल’ की ड्रॉइंग लाई गई थी। ये गोल था और साथ में एक पोल का आकार था। उन्हें काफी सावधानी और उच्च गुणवत्ता के साथ इसे बनाने को कहा गया और बताया गया कि ये बहुत ही महत्वपूर्ण जगह जाने वाला है।
न्याय और निष्पक्षता का प्रतीक ऐतिहासिक सेंगोल।
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) May 24, 2023
28 मई को संसद के नए भवन के लोकार्पण के शुभ अवसर पर PM @NarendraModi जी, भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर पवित्र 'सेंगोल' को ग्रहण कर नए भवन में इसकी स्थापना करेंगे। आइए इस पुण्य अवसर के हम सभी साक्षी बनें।#SengolAtNewParliament pic.twitter.com/IIb3j6kN2r
उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता के समय वो लोग इसका निर्माण करने में काफी खुश थे। समारोह के आयोजन के लिए महंत ने अपने शिष्य कुमारस्वामी, एक बड़े गायक और ‘नादसुर’ विशेषज्ञ को दिल्ली भेजा। 14 अगस्त, 1947 की रात को कुमारस्वामी श्रीला श्री कुमारस्वामी तम्बीरान ने ‘सेंगोल’ लॉर्ड माउंटबेटन को दिया। इसे जल से पवित्र किया गया था। इस दौरान तमिल संत ‘कोलारु पथिगम’ का गान किया गया, जो शैव कविता ‘थेवारम’ का हिस्सा है।
इसकी रचना तमिल कवि तिरुगन संबंदर ने की थी। संयासियों ने नेहरू को पीतांबर ओढ़ाया और मंत्रोच्चारण किया गया। इस दौरान जो पंक्ति पढ़ी गई, उसका अर्थ है – ‘हमारा आदेश है कि भगवान के अनुयायी राजा उसी तरह से शासन करेंगे, जैसे स्वर्ग के शासक।’ ये समारोह भारत के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से के संगम का भी प्रतीक बना। डॉ राजेंद्र प्रसाद भी उस सामरोह में मौजूद थे। अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘Time’ ने भी इस संबंध में खबर प्रकाशित की थी।