1947 में 15 अगस्त को भारत को सिर्फ आजादी ही नहीं मिली थी, बल्कि विभाजन का एक ऐसा दंश भी मिला था जिससे देश अब तक उबर नहीं पाया है। एक कहानी बेअंत सिंह की भी है, जो मेरठ की गलियों में आपको रिक्शा चलाते दिख जाएँगे। 84 साल के बेअंत सिंह मेरठ के सबसे बुजुर्ग रिक्शा चालक हैं। अब उनके पाँवों ने जवाब देना शुरू कर दिया है, लेकिन वो अभी भी जीविका के लिए रिक्शा चलाते हैं।
‘न्यूज 18’ की खबर के अनुसार, बेअंत सिंह का ब्लड प्रेशर सही नहीं रहता है, उनके फेफड़े अब पहले की तरह नहीं रहे और उनकी आँखों पर सफेद रंग के धब्बे नजर आते हैं। लेकिन, 7 दशक पहले का वो दृश्य उनके सामने ज्यों का त्यों कौंध जाता है, जब उनकी माँ और भाई को उनके सामने ही जला डाला गया था। वह पल आज भी उनकी जेहन में इस तरह कैद है जैसे कल की ही बात हो। उस घटना के बारे में बाते करते हुए वे रो पड़ते हैं।
रिक्शा चालक बेअंत सिंह ने विभाजन को न सिर्फ देखा है. बल्कि उन्होंने और उनके परिवार ने इस त्रासदी को झेला भी था। उनका मानना है कि भारत ने विभाजन की त्रासदी को भुला दिया है। 22 जनवरी 1936 को जन्मे बेअंत सिंह ने जम्मू-कश्मीर में राजा हरि सिंह के राज में अपनी शुरुआती ज़िंदगी बिताई थी। लेकिन आर्थिक संकट और सिखों पर अत्याचार के कारण उनके परिवार को रावलपिंडी शिफ्ट होना पड़ा था।
उस समय के स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल के प्रशंसक रहे छोटे बेअंत अक्सर रेडियो पर इन नेताओं को सुन कर स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में अधिक से अधिक जानकारी लेना चाहते थे। आजादी तो आई लेकिन इसके लिए न सिर्फ भारत, बल्कि सिंह को भी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। जब नेहरू आजादी के बाद अपना ऐतिहासिक भाषण दे रहे थे, तब बेअंत सिंह मात्र 11 साल के थे।
जब उनके परिवार पर हमला हुआ था तब वो किसी तरह वहाँ से भागने में कामयाब हुए। इस दौरान उनकी मुलाकात एक सैन्य अधिकारी से हुई जिसने उन्हें अमृतसर की ट्रेन पर बिठा दिया। पाकिस्तान से प्रताड़ित कर भगाए गए शरणार्थियों को अमृतसर में ही रखा जा रहा था। इसके बाद एक भारतीय के रूप में बेअंत सिंह की दूसरी ज़िंदगी शुरू हुई। जब वो दिल्ली पहुँचे तो उन्होंने अजीब ही नजारा देखा।
“It’s as if everyone wants to forget the partition because it makes them uncomfortable.”
— News18.com (@news18dotcom) August 14, 2020
Beant Singh, the oldest rickshaw puller in Meerut has been a survivor of the horrors of 1947.@1947Partition #IndiaAt74
Reports @theotherbose https://t.co/FZtppg7Kh1
उन्होंने देखा कि दिल्ली में विभाजन के बाद काफी बुरी स्थिति थी और लोग नई ज़िंदगी व रोजगार के लिए तरस रहे थे। विभाजन का दंश झेलने वालों का कोई माई-बाप नहीं था। वो कहते हैं कि वहाँ भीड़ ही भीड़ थी, लेकिन करने को कोई काम नहीं था, जिससे जीविका चल पाए। इसके बाद वो रावलपिंडी के अपने पुराने दोस्तों से मिले, जो विभाजन के बाद उत्तर प्रदेश में बस गए थे। उन्होंने ही बेअंत को भोजन और छत दिया, जीविका के लिए रिक्शा दिया।
आज 84 साल के बेअंत सिंह रिक्शा चला कर बचाए गए धन से ही अपना गुजारा चलाते हैं। वो बताते हैं कि शुरुआत में उनके पास लाइसेंस नहीं था तो उन्हें रात के अँधेरे में रिक्शा चलाना पड़ता था। वो कहते हैं कि अगर उनके पास रिक्शा नहीं होता तो पता नहीं आज उनकी क्या स्थिति होती। मेरठ में रहने वाले बेअंत सिंह आजकल की खबरों पर भी नजर रखते हैं और हालिया आपराधिक घटनाओं से नाराज भी हैं।
ज्ञात हो कि भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान अगस्त 1947 से अगले नौ महीनों में 1 करोड़ 40 लाख लोगों की विस्थापन हुआ था। इस दौरान करीब 6,00,000 लोगों की हत्या कर दी गई। बच्चों को पैरों से उठाकर उनके सिर दीवार से फोड़ दिए गए, बच्चियों का बलात्कार किया गया, बलात्कार कर लड़कियों के स्तन काट दिए गए और गर्भवती महिलाओं के आतंरिक अंगों को बाहर निकाल दिया गया।