केरल का मालाबार क्षेत्र एक बार फिर चर्चा में है। इस्लामी संगठन इसे एक अलग राज्य बनाने की माँग करने में लगे हैं। इन संगठनों की नजर इस क्षेत्र पर इसलिए इतनी है क्योंकि यहाँ मुस्लिमों की संख्या अन्य क्षेत्रों के मुकाबले अधिक है और संगठन जानते हैं कि उन्हें यहाँ पैठ बनाने में मुश्किल नहीं आएगी। उनकी इस तरह की मानसिकता भले ही मुस्लिमों को एक बार को जायज लगे, लेकिन हिंदुओं के लिए ये कितना बड़ा खतरा हो सकता है इसे जानने के लिए एक सदी पहले हुए मोपला हिंदू नरसंहार को याद करने की जरूरत है।
मोपला हिंदू नरंसहार के बारे में इतिहास की किताबों में कम जिक्र है। कारण वामपंथी लेखक हैं। उनके द्वारा लिखे गए इतिहास में इसे ‘किसान विद्रोह और मोपला दंगे’ जैसे शीर्षक के साथ समेटा गया है जबकि हकीकत यह है कि यह एक हिंदू नरसंहार था जहाँ मोपला के मुस्लिमों ने हिंदुओं को पकड़-पकड़कर निर्मम ढंग से मारा था। पुरानी रिपोर्ट्स बताती हैं कि 1921 में दक्षिण मालाबार में कई जिलों में मुस्लिमों की जनसंख्या सबसे ज्यादा थी। कुल जनसंख्या का वो 60% थे।
आज जिस तरीके से मुस्लिम बहुलता के कारण मालाबार को लेकर इस्लामी संगठन अपनी अलग राज्य की माँग उठाते हैं, उस समय भी इस्लामी कट्टरपंथियों की कुछ की यही मानसिकता थी। 1921 में जब असहयोग आंदोलन के बदले कॉन्ग्रेस खिलाफत आंदोलन को समर्थन कर रही थी और हिंदुओं को उनके साथ मिलकर रहने को कहा जा रहा था उस वक्त मालाबार के मोपला मुस्लिमों को लगा था कि वो लोग खुद से अंग्रेजों को भगा देंगे और मालाबार क्षेत्र में अपना इस्लामी राज्य स्थापित कर लेंगे, लेकिन उससे पहले उनका मकसद था कि वो जमीन से हिंदुओं को भगाकर उसे पवित्र करें।
वैसे तो क्षेत्र में मोपला मुस्लिमों ने 1896 से मालाबार क्षेत्र में ‘काफिरों’ की हत्या की तमाम घटनाओं को अंजाम दिया था। मगर, 1921 में हालात ये कर दिए गए थे कि उस साल बताया जाता है कि इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा 10,000 से अधिक हिंदू उस इलाके में मौत के घाट उतारा जा चुका था। उस समय मुस्लिमों ने अपने जिहाद की शुरुआत ‘नारा-ए-तकबीर’ और ‘अल्लाहु अकबर’ के साथ की थी और उसके बाद हिंदुओं को पकड़कर कहीं गोली मारी गई थी। कहीं जल्लाद से हिंदुओं की गर्दन कटवाकर उनकी खोपड़ियों को एक-एक करके कुएँ में फेंका गया था।
Mophla riots. This is what Annie Besant wrote. A 7 month pregnant women was cut open & baby removed from it killing both mother & baby.
— Niratanka 🇮🇳 (@Niratanka_) October 10, 2023
Why all your fighting oppressions result in killing infants? pic.twitter.com/FZ8isZbpth
कुछ कहानियाँ तो ऐसी हैं जिन्हें सुन आत्मा सिहर जाए। जैसे मोपला में इस्लामी दंगाइयों ने एक 7 महीने गर्भवती महिला को मारने के लिए पहले उसका पेट फाड़ा था, फिर उसके से बच्चा निकालकर दोनों को मौत के घाट उतारा था। इसके अलावा इन मोपला दंगाई जिन्हें विद्रोही कहकर सम्मान देने का प्रयास होता है इन्होंने एक हिंदू महिला को उसके पति और भाई के आगे नंगा करके उसका रेप किया था। एक महिला मारकर फेंक दी गई थी जिसकी भूखी बच्ची उसके शव के आगे बैठ उसके स्तन से एक दो बूंद दूध के लिए तरस रही थी।
आरएसएस विचारक जे नंदकुमार ने साल 2021 में इस संबंध में जानकारी देते हुए बताया था कि टीपू सुल्तान की हार के बाद मालाबार में हिंदुओं की वापसी हुई थी। वहाँ वो आकर बसने लगे थे, अपनी जमीनें वापस लेने लगे थे। इसी के बाद वहाँ नरसंहार होने शुरू हुए थे। 1792 से लेकर 1921 कर वहाँ कई बड़े नरसंहार हुए जिनमें मुस्लिमों द्वारा हिंदुओं पर हमले किए गए मगर इतिहास में इसे सिर्फ किसान आंदोलन आदि कहा जाता रहा और हिंदुओं की हत्या करने वालों को स्वतंत्रता संग्रामी।
जे नंनदकुमार ने ऑपइंडिया से बातचीच में हैरान करने वाला खुलासा किया था। उन्होंने बताया था कि मोपला हिन्दू नरसंहार में जिन मुस्लिम आक्रांताओं ने हिंदुओं के साथ रक्तपात किया, बर्बरता की, हत्याएँ कीं… उन्हीं के परिवार वालों (वंशजों) को अभी भी पेंशन इस नाम पर दी जा रही है कि वो तो स्वतंत्रता सेनानी थे।
आरएसएस विचारक ने इतिहास में दिए गए गरीब-कुचले मुस्लिमों वाले एंगल को खारिज कर बताते हैं कि मोपला हिंदू नरसंहार में जिन हिंदुओं को मारा गया, उनमें एक भी जमींदार ऐसे नहीं थे, जो बड़े जमींदार थे। कत्लेआम में सामान्य मजदूरों को मारा गया। पिछड़े जाति के लोगों को मारा गया। सही में जो उस वक्त जमींदार थे, वो मुस्लिम जमींदार थे और उन लोगों ने ही मोपला हिंदू नरसंहार का प्लान किया था।
आज उसी मालाबार इलाके में फिर से मुस्लिम तुष्टिकरण का खेल खेला जा रहा है जहाँ एक सदी पहले खिलाफत आंदोलन का समर्थन करने के चक्कर में महात्मा गाँधी तक ने हिंदुओं के मोपला में हो रहे कत्लेआम पर अपनी आँख बंद कर ली थी। कोई इस मुद्दे पर बोलने को तैयार नहीं था क्योंकि खिलाफत आंदोलन को समर्थन देने के बाद ये डर था कि मुस्लिम नाराज हो जाएँगे। एक सदी पहले जो डर कॉन्ग्रेस के नेताओं में था। आज वही डर वामपंथी नेताओं में देखने को मिल रहा है। केरल को तोड़ने की माँग सरेआम हो रही है मगर फिर भी कोई इस पर कुछ बोलने को तैयार नहीं है। भाजपा प्रमुख ने तो इस रवैये को देखते हुए ये भी कहा है कि केरल में कॉन्ग्रेस हो या वामपंथियों की सरकार, हर कोई अपनी तुष्टिकरण की राजनीति के लिए इस समुदाय के आगे घुटनों में आ जाता है।
बता दें कि केरल के ‘मालाबार’ को अलग राज्य बनाने की माँग को हवा देने का काम हाल में सुन्नी युवाजन संगम के नेता मुस्तफा मुंडुपारा ने किया है। उनका कहना है कि मालाबार के लोग अन्य लोगों के बराबर टैक्स देते हैं, लेकिन उन्हें सुविधाएँ सबके बराबर नहीं मिलतीं। मालाबार को केरल से निकालकर अलग राज्य बनाने की माँग पहली दफा नहीं है। साल 2021 में यही माँग अन्य मुस्लिम संगठन ‘सुन्नी स्टूडेंट फेडरेशन’ के मुखपत्र सत्यधारा के संपादक अनवर सादिक फैसी ने उठाई थी। उस संगठन का कहना था कि मालाबार क्षेत्रों में मुस्लिम बहुल इलाकों को अलग करके एक अलग राज्य बनाना चाहिए। मालूम हो कि इस्लामी संगठन समय समय पर केरल के मालाबार को अलग करने की माँग सिर्फ इसलिए करते हैं क्योंकि वहाँ मुस्लिमों की आबादी अच्छी-खासी है और ये संगठन जानते हैं कि अगर इस क्षेत्र पर कब्जा हो गया तो वो अपनी मनमानियाँ कर पाएँगे।
नोट: साल 2021 में मोपला नरसंहार के 100 साल पूरे होने पर ऑपइंडिया ने ‘मोपला दंगा नहीं हिंदू नरसंहार’ पर विस्तृत रिपोर्टें की थी। आप इन्हें लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।