जैसा कि हम सबको पता है, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को कर दी थी। मई 19, 1910 को गोडसे का जन्म हुआ था। इस हिसाब से गोडसे के जन्म के अब तक 110 वर्ष हो गए।
मोहनदास करमचंद गाँधी की हत्या के बाद चले अभियोजन में गोडसे को दोषी पाया गया और उन्हें फाँसी की सज़ा सुनाई गई। नाथूराम गोडसे सहित कई लोगों पर उस मामले में मुकदमा चला था।
कहते हैं, महात्मा गाँधी की हत्या के बाद सिर्फ़ संदेह के आधार पर ही हज़ारों लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया था। इनमें से एक व्यक्ति ऐसे भी थे, जिनसे जवाहलाल नेहरू की पुरानी अदावत थी और उन्होंने उनसे बदला निकालने की भरसक कोशिश की।
जी हाँ, विनायक दामोदर सावरकर को भी महात्मा गाँधी की हत्या में जबरन घसीटा गया। मुंबई पुलिस ने सावरकर सदन पर छापा मारा और उनके घर से 143 फाइलें जब्त कर की गईं, जिनमें 10 हज़ार से भी अधिक पत्र इत्यादि थे।
जाहिर है, गोडसे के बहाने सावरकर को फँसाने की पूरी कोशिश की गई। सावरकर को ऑर्थर रोड जेल में बंद कर दिया गया। ये सब बावजूद इसके हुआ, कि सावरकर ने विज्ञप्ति जारी कर गाँधी की हत्या पर दुःख जताया था।
सावरकर ने महात्मा गाँधी की हत्या के 1 दिन बाद ही इसे वैश्विक महा-त्रासदी का क्षण करार देते हुए कहा था कि उन्हें इस ख़बर की सूचना से गहरा धक्का लगा है। उन्होंने जनता से सामाजिक सद्भाव बना कर रखते हुए केंद्र सरकार के सहयोग की अपील की थी।
वीर सावरकर ने महात्मा गाँधी को महान हस्ती बताया था और लोगों को तोड़फोड़ न मचाने की सलाह देते हुए ख़ुद को शोकग्रस्त बताया था। फ़रवरी के पहले हफ्ते में ही पुलिस की दबिश पड़ी और सावरकर को जेल में डाल दिया गया।
इस मामले में नाथूराम गोडसे का बयान भी जानने लायक है। उन्होंने साफ़ कहा था कि गाँधी की हत्या में सावरकर का कोई हाथ नहीं है। गोडसे ने अदालत में कहा था कि गाँधी की हत्या से सावरकर उतने ही अनभिज्ञ हैं, जितनी आकाश से पृथ्वी अलग है।
जहाँ एक तरफ हम गाँधी जी के बयानों की चर्चा करते हैं, उन्हें पढ़ते हैं, वहीं गोडसे की मानसिकता जानने के लिए उनके द्वारा अदालत में दिए गए बयान काफी उपयोगी सिद्ध होते हैं।
हरिंद्र श्रीवास्तव ने अपनी पुस्तक ‘सावरकर पर थोपे हुए चार अभियोग‘ में गोडसे के उस बयान का जिक्र किया है। गोडसे ने कहा था कि उन्होंने गाँधी जी को स्वर्ग पहुँचा कर यमदूत का धर्म निभाया है। अदालत में गोडसे ने कहा था:
“गाँधीजी के साथ जो भी किया गया, वो मैंने ही किया है। ये मेरी ही योजना थी। इसमें सावरकर को घसीटना भ्रामक, मिथ्यापूर्ण और शरारती होगा। गाँधीजी की आत्मा को परमात्मा तक मैंने पहुँचाया है, ऐसे में किसी और के सिर पर इसका सेहरा बाँधना मेरे यमदूतत्व की तौहीन होगी। गाँधीजी प्रभु श्रीराम के चरणदास थे, मैंने उन्हें श्रीराम के पास ही पहुँचा दिया। गाँधीजी जीवन भर ‘सत्य के प्रयोग’ करते रहे, मैंने उन्हें सत्य के देवता का दर्शन करा दिया। बेचारे जिंदगी भर अवसादग्रस्त रहे, मैंने उन्हें उनके अवसाद से मुक्ति दिला दी। मैंने गाँधीजी को ठिकाने पहुँचा कर राष्ट्र का कार्य किया है।”
सावरकर एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनसे तमाम आलोचनाओं के बावजूद महात्मा गाँधी भी प्रभावित रहते थे। नाथूराम गोडसे ने भी स्वीकार किया था कि वो सावरकर के विचारों से प्रभावित रहे हैं। गाँधीजी सावरकर द्वारा दलित-उद्धार के लिए किए जा रहे कार्यों के मुरीद थे लेकिन उनके हिंदुत्व की आलोचना करते थे।
सरकारी वकील का कोर्ट में कहना था कि गाँधी की हत्या से पहले सावरकर के घर में जाकर गोडसे ने आशीर्वाद लिया था।
गोडसे का मानना था कि महात्मा गाँधी की कार्यप्रणाली हिन्दू विरोधी और हिन्दू इतिहास के विपरीत है। गोडसे लगातार मजहबी घुसपैठियों द्वारा हिन्दुओं पर किए गए अत्याचार के कारण दुःखी रहते थे और इस बात को वो गाँधी जी को भी समझाना चाहते थे।
गोडसे का कहना था कि इस्लामी घुसपैठिए भारत को ‘दारुल हरब’ बनाना चाहते हैं। उनका मानना था कि लोग मर-कट रहे हैं लेकिन गाँधीजी ‘निर्लज्जता’ से हिन्दू विरोधी कार्यों में समुदाय विशेष का साथ दे रहे हैं।
नाथूराम गोडसे के भाई और गाँधीजी की हत्या में उम्रकैद की सज़ा भुगत चुके गोपाल गोडसे ने अपनी पुस्तक ‘गाँधी वध क्यों‘ में लिखा है कि नाथूराम ने कहा था कि उन्होंने देश की भलाई के लिए ये काम किया है और इंसानों के न्यायालय से ऊपर कोई और अदालत है तो वहाँ उनके इस कृत्य को पाप नहीं समझा जाएगा।
नाथूराम ने कहा था कि उन्होंने ऐसे व्यक्ति पर गोली चलाई है, जिसकी नीतियों से हिन्दुओं पर घोर संकट आए, हिन्दू नष्ट हुए।
गोपाल गोडसे को भी अपने अंतिम दिनों तक गाँधीजी की हत्या पर कोई अफ़सोस नहीं था और वो भारत के विभाजन के लिए उन्हें ही दोषी मानते रहे।
गोपाल गोडसे पुणे में रहते थे और बुढ़ापे तक दिए गए हर इंटरव्यू में उन्होंने गाँधीजी की हत्या के लिए ‘गाँधी वध’ शब्द का प्रयोग किया और साथ ही इसी नाम से एक पुस्तक भी लिखी। इस पुस्तक की शुरुआत में उन्होंने जस्टिस खोसला के एक बयान का जिक्र किया है।
जस्टिस खोसला महात्मा गाँधी की हत्या के बाद हो रही सुनवाई में शामिल थे। उनका कहना था कि अगर अगर जनता को जूरी बना दिया जाता और उन्हें फ़ैसला सुनाने का जिम्मा सौंप दिया जाता तो वो निश्चित ही नाथूराम गोडसे को निर्दोष करार देती और वो भी काफ़ी बड़े बहुमत से। ये बयान बताता है कि गोडसे के विचारों और उनके तर्कों से जनता का एक बड़ा भाग सहमत था। इसीलिए, आज उनके बयानों पर चर्चा तो होनी ही चाहिए।
नाथूराम गोडसे ने अदालत में स्पष्ट कहा था कि वो किसी भी प्रकार की दया नहीं चाहते हैं और न ही वो ये चाहते हैं कि कोई उनके लिए दया की अपील करे। उनका कहना था कि देश के लिए भले ही गाँधीजी ने अनगिनत कष्ट सहे हों लेकिन उन्हें राष्ट्र के विभाजन का अधिकार नहीं था।
उन्होंने अपने अंतिम पत्र में अनुजों को अपने बीमा के रुपयों के मिलने की बात लिखी थी। उनकी अंतिम इच्छा थी कि जब सिंधु नदी पूर्णरूपेण भारत में फिर से बहे, तो उनकी अस्थियाँ उसमें प्रवाहित की जाएँ।
नाथूराम गोडसे को अपने अंतिम दिनों में भी भारत और हिंदुत्व की चिंता खाए जा रही थी। तभी तो उन्हें जैसे ही पता चला कि सोमनाथ मंदिर के पुनरुद्धार का कार्य होने जा रहा है, उन्होंने 101 रुपए अपने बंधुओं को भिजवाए और उनसे कहा कि इस धनराशि को मंदिर के कलश के लिए भिजवाया जाए।
नाथूराम गोडसे इस बात के लिए भी दुःखी थे कि महात्मा गाँधी के अनशन के कारण भारत सरकार ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए न देने के फ़ैसला बदल लिया। कुछ और भी ऐसी बातें थीं, जिसके कारण नाथूराम गोडसे गाँधीजी से नाराज़ थे।
दिल्ली की बंगाली कॉलोनी में एक मंदिर में महात्मा गाँधी ने कुरान का पाठ किया था, जिससे गोडसे विचलित हो गए थे। गोडसे ने इसके विरोध में मार्च भी निकाला था। गोडसे का ये पूछना था कि क्या महात्मा गाँधी किसी मस्जिद में गीता पाठ कर सकते हैं क्या? नाथूराम गोडसे इन्हीं कारणों से गाँधी से खफा थे, जिसके बाद उन्होंने हत्या जैसा कदम उठाया।