वीर सावरकर ने लेनिन को लंदन में 3 दिनों तक शरण दी थी। इसके बारे में शायद ही कभी बात की जाती है। कारण यह है कि आज के नव-कम्युनिस्ट यह स्वीकार नहीं करना चाहते कि राष्ट्रवादी सावरकर को लेनिन सहित कई प्रमुख वामपंथियों ने महान और वीर कहने का साहस किया था।
वीर सावरकर की आज 137वीं जयंती मनाई जा रही है। मई 28, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले में उनका जन्म हुआ था। उनका व्यक्तित्व और जीवन दोनों ही साधारण नहीं कहे जा सकते।
सावरकर के जीवन का प्रत्येक क्षण राष्ट्र के गौरव के लिए समर्पित रहा है। वीर सावरकर का मानना था कि भारत को अंग्रेजी साम्राज्य से स्वतंत्रत कराने के लिए युवाओं को सशस्त्र क्रान्ति में बढ़-चढ़कर योगदान देना चाहिए। यह बात शायद ही बहुत लोग जानते होंगे कि वह एक महान क्रांतिकारी होने के साथ-साथ साहित्यकार, कवि, इतिहासकार और समाजसुधारक भी थे।
वर्ष 1906 में लोकमान्य तिलक ने श्यामजी कृष्ण वर्मा से सावरकर को छात्रवृत्ति देने की सिफ़ारिश की थी। फलस्वरुप सावरकर ‘शिवाजी छात्रवृत्ति’ प्राप्त कर जुलाई 03, 1906 को कानून की पढ़ाई करने इंग्लैंड पहुँचे। यहाँ सावरकर का निवास ‘इंडिया हाउस’ में था, जिसे श्यामजी कृष्ण वर्मा संचालन करते थे।
अगले तीन वर्षों तक इंडिया हाउस क्रांतिकारी कार्यों का केंद्र बना रहा। केवल भारत के क्रन्तिकारी ही नहीं अपितु मिस्र, तुर्की, आयरलैंड, रूस आदि के क्रांतिकारी भी इंडिया हाउस की सभाओं और बैठकों में शामिल होते थे। इन्हीं क्रांतिकारियों में एक थे रूसी कम्युनिस्ट क्रांतिकारी ‘व्लादिमीर लेनिन’ (Vladimir Lenin)!
वर्ष 1909 मार्च माह के मध्य में वीर सावरकर के कट्टर समर्थक व उनके मित्र गाए ऐ एल्ड्रेड (Guy.A. Aldred) जो खुद को खुलकर कम्युनिस्ट बताते थे, वह इंडिया हाउस में रूसी कम्युनिस्ट क्रन्तिकारी ‘लेनिन’ को लेकर आए थे।
सावरकर और लेनिन की बैठक हुई जिसमे मदनलाल ढींगरा भी शामिल थे। उनके बीच क्या वार्ता हुई, यह किसी नहीं पता। लेनिन-सावरकर के बीच और भी बैठकें हुई थी, परन्तु उनकी जानकारी उपलब्ध नहीं है। हालाँकि, सावरकर-लेनिन वार्ता का एक किस्सा हमें ‘श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी’ जी की पुस्तक ‘कम्युनिज्म अपनी ही कसौटी पर’ से जरूर मिलता है। इसमें ठेंगड़ी जी बताते हैं कि उनके कॉलेज के दिनों में वीर सावरकर अरवी के पास उनके गाँव गए थे।
वीर सावरकर पर प्रतिबन्ध हटने के बाद यह उनका पहला दौरा था। इस गाँव में एक हाईस्कूल था, वहाँ के 9वीं-10वीं के छात्रों ने कम्युनिस्ट मास्टरों के भड़काने पर वीर सावरकर के विरुद्ध प्रदर्शन आयोजित किया था। जब सावरकर को इसकी जानकारी मिली तो उन्होने उन बच्चों को ऐसे ही जाने न दिया। सभी बाल प्रदर्शनकारियों को बुलवाया गया। उन बच्चों को अपने सामने बिठाकर वीर सावरकर ने उनसे विरोध का कारण पूछा।
एक 9वीं का छात्र खड़ा हुआ और वीर सावरकर से प्रश्न किया, “आप हिन्दू-राष्ट्र की बात करते हो, तो हिन्दू-राष्ट्र की रूपरेखा क्या है? कैसे रचना होगी?”
वीर सावरकर ने अपने उत्तर में एक संस्मरण सुनाया। उन्होंने कहा कि जब वे लंदन में कानून की पढ़ाई कर रहे थे, उस समय आयरलैंड के ईमान डी वैलेरा (Eamon de Valera) और रूस के व्लादिमीर लेनिन दोनों लंदन में थे।
तब लेनिन के पीछे रूस के गुप्तचर लगे हुए थे। उनसे बचने के लिये वह फ़रार थे। यही वो समय था जब सावरकर ने लेनिन को ‘इंडिया हाऊस‘ में तीन दिन तक शरण दी थी। दिनभर सावरकर अपने काम में व्यस्त रहते, पर रात भोजन उनका लेनिन के साथ होता था। एक बार लेनिन इधर-उधर की बातें करते, तो सावरकर ने उनसे कहा –
“यह आपका ‘इज्म’ आदि क्या है मुझे इससे मतलब नहीं, पर यह बताइए की यदि रूस का शासन आप लोगों के हाथ में आता है तो आपके ‘इज्म’ के अनुसार रूस में समाजिक-आर्थिक रचना क्या होगी?”
इस प्रश्न पर लेनिन हँसे और कहा, “देखो मेरे पास इस तरह की कोई रूपरेखा नहीं है और हो भी नहीं सकती क्यूँकि जब तक हम शासन में नहीं आते और परिस्थितियाँ दिखाई नहीं देती तब तक हम सारा खाका कैसे तैयार करेंगे।”
इस प्रसंग को सुनाने के बाद वीर सावरकर उन बाल प्रदर्शनकारियों से बोले, “आपके नेता लेनिन हैं, वे कम्युनिस्ट समाज की रूपरेखा नहीं दे सके और आप मुझसे हिन्दू-राष्ट्र की रूपरेखा माँग रहे हैं? यदि आज लेनिन आपका ही प्रश्न मुझसे करते हैं तो मैं उन्हें उन्हीं का उत्तर याद दिलाता। तो बच्चों मै तुम्हारा उत्तर नहीं दे सकता, तुम जीते और मैं हारा।”
यह बात उल्लेखनीय है कि वीर सावरकर विश्व के पहले क्रांतिकारी हैं, जिनका मुकदमा अंतरराष्ट्रीय अदालत में लड़ा गया था। लंदन में हुई उनकी गिरफ्तारी के बाद भारत ले जाते समय जहाज के सीवर होल से भागने की घटना का समाचार पूरे यूरोप में आग की तरह फ़ैला था।
सावरकर के समर्थन में यूरोप के कई दल सामने आए थे। कार्ल मार्क्स के पौत्र जीन लोंगयट (Jean Longuet) ने खुलकर सावरकर का समर्थन किया था। इटली का वाम-दल इटालियन रिपब्लिकन कॉन्ग्रेस (IPR) ने भी सावरकर के समर्थन में प्रदर्शन किया था।
वर्ष 1910 अगस्त, अंतरराष्ट्रीय सोशलिस्ट कॉन्ग्रेस (International Socialist Congress) में वीर सावरकर की रिहाई का प्रस्ताव पारित हुआ था। रूस के महान लेखक जिन्हें सोवियत साहित्य का पितामह भी कहा जाता है, ‘मैक्सिम गोर्की’ ने वीर सावरकर को अपने देश के क्रांतिकारी ‘निकोलाई चेर्नशेवेस्की’ के बराबर माना है।
भारत में भी कुछ गिने-चुने साहसी कम्युनिस्टों ने सावरकर को वीर और महान माना है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के संस्थापक मानवेंद्रनाथ राय (M N Roy) जो लेनिन-स्टालिन के साथ सोवियत रूस में कार्य कर चुके थे उन्होंने सावरकर को अपना ‘हीरो और प्रेरणास्त्रोत’ माना है।
एमपीटी आचार्य (M.P.T Acharya) ने तो वीर सावरकर के क्रांतिकारी व्यक्तित्व पर लेख भी लिखा था। यही नहीं, बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने ‘पार्टी डॉक्यूमेंट’ में ‘वीर सावरकर और तिलक को अंग्रेजी साम्राज्य का सबसे बड़ा शत्रु’ बताया।
हालाँकि, प्रखर राष्ट्रवादी वीर सावरकर के बहुआयामी चरित्र और क्रांतिकारी व्यक्तित्व को किसी कम्युनिस्ट के प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। लेकिन आवश्यक यह है कि आज के नव-कॉमरेड यह बात जान लें। वो पढ़ेंगे, इस बात पर संदेह है।
(यह लेख हार्दिक सिंह नेगी द्वारा लिखा गया है, जो कि वर्तमान में JNU में अध्ययनरत हैं)