Sunday, October 13, 2024
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BHU में शुरू हुआ देश का पहला हिंदू अध्ययन कोर्स: सनातन धर्म की पुरातन परंपरा, युद्ध कौशल और धर्म-विज्ञान में किया जाएगा पारंगत

प्रो. राकेश उपाध्याय ने बताया कि हिन्दू अध्ययन केंद्र में 2 साल की पढ़ाई के बाद देश भर के आध्यात्मिक स्थलों पर सनातन धर्म विशेषज्ञ गाइड, विदेशों में प्रोफेसर, धर्म उपदेशक और विभिन्न धार्मिक और अध्यात्मिक संगठनों में हिंदू रिसर्च के क्षेत्र में बेहतर अवसर मिलेंगे।

बीएचयू के भारत अध्ययन केंद्र में हिंदू स्टडीज के नाम से पूर्णत: हिंदू धर्म व संस्कृति पर आधारित कोर्स की विधिवत शुरूआत इसी सत्र से हो रही है। आधुनिकता के साथ सनातन प्राचीन परंपरा की थाती संजोए BHU में छात्र अब वेद, पुराण, ब्राह्मण और श्रमण परंपरा के साथ रामायण, महाभारत, दर्शन, ज्ञान मीमांसा सहित हिंदू धर्म के वैशिष्ट्य और परंपरा पर आधारित पाठ्यक्रमों में पढ़ाई कर सकेंगे।

इसकी शुरुआत कला संकाय के अंतर्गत भारत अध्ययन केंद्र द्वारा की गई है। इसके तहत भारत सहित दुनिया भर के छात्रों को सनातन हिन्दू धर्म की पुरातन विद्या, परंपरा, युद्ध कौशल और धर्म-विज्ञान, वैदिक परंपरा में पारंगत किया जाएगा। 2 साल के इस कोर्स के लिए 40 सीटें निर्धारित हैं। ऑनलाइन फॉर्म भरने की आखिरी तारीख 7 सितंबर 2021 है। इंट्रेस एग्जाम 3 अक्टूबर को होगा, जिसमें हिंदू धर्म और शास्त्रों से संबंधित प्रश्न होंगे। विस्तृत विवरण आवेदन प्रॉस्पेक्टस में है।

बता दें कि इस वर्ष की शुरुआत में ही बीएचयू, जेएनयू, आइआइटी-कानपुर समेत देश भर के विद्वानों ने बैठक कर फैसला लिया था कि भारत में पहली बार बीएचयू में हिंदू अध्ययन की शिक्षा दी जाएगी। हिंदू स्टडीज नामक नए कोर्स को 2021-22 के इसी सत्र से शुरू करने का निर्णय लिया गया है। इसके तहत दो वर्षीय एम ए का कोर्स होगा, जिसकी शुरुआत इसी सत्र 2021-22 से आवेदन प्रक्रिया की शुरुआत के साथ आरम्भ हो चुका है।

विश्वविद्यालय में इसके लिए स्मार्ट क्लास बनाई गई है। इसमें गुरुकुल शिक्षा पद्धति भी दिखेगी और प्राचीन धर्म शास्त्र के व्यावहारिक पहलुओं पर गहन अध्ययन और प्रयोग भी होगा। प्रोफेसर राकेश उपाध्याय ने बताया कि अत्याधुनिक तकनीक के सहारे डिजिटल दुनिया के अन्य देशों के छात्र भी इस कोर्स में दाखिला ले सकेंगे।

हिन्दू अध्ययन कोर्स के लिए बना स्मार्ट क्लास (साभार -दैनिक भास्कर)

भारत अध्ययन केंद्र द्वारा स्नातकोत्तर की उपाधि देने वाले इस कोर्स का पाठ्यक्रम कला संकाय प्रमुख प्रो. विजय बहादुर सिंह की अध्यक्षता में बनारस और देश-विदेश के कई नामी-गिरामी आचार्याें द्वारा तैयार किया गया है, जिस पर इस वर्ष की शुरुआत में ही कला संकाय प्रमुख की अध्यक्षता वाली बोर्ड ऑफ स्टडीज की बैठक में सर्वसम्मति से मुहर लगा दी गई थी।

भारत में यह पहला मौका है जब इस कोर्स के तहत सनातन परंपरा, ज्ञान मीमांसा सहित तत्व विज्ञान लेकर सैन्य विज्ञान जैसे प्राचीन हिंदू शास्त्रों को एकेडमिक स्वरूप प्रदान किया गया है। इस कोर्स के अंतर्गत हिंदू धर्म के वैशिष्ट्य और परंपरा पर आधारित पाठ्यक्रम की रचना की गई है, जिसमें मुख्य रूप से तत्त्व, प्रमाण विमर्श, वाद परंपरा और शास्त्रों के अर्थ निर्धारण की पद्धति, पाश्चात्य ज्ञान मीमांसा, रामायण, महाभारत, स्थापत्य, लोकवार्ता, लोक-नाट्य कला, भाषा विज्ञान और प्राचीन सैन्य विज्ञान को विषय रूप में शामिल किया गया है।

इस कोर्स के संचालन में कला संकाय के ही भारत अध्ययन केंद्र के अलावा दर्शन शास्त्र विभाग हिन्दू धर्म का मर्म, उद्देश्य और रूपरेखा बताएगा। प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति विभाग सनातन काल से महान हिंदू सम्राटों द्वारा उपयोग किए जाने वाले उपकरणों, हथियारों, स्थापत्य कला और प्राचीन व्यापारिक गतिविधियों को पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर सिद्ध करेगा। संस्कृत विभाग श्लोकों के माध्यम से शास्त्रों और ग्रंथों के व्यावहारिक पक्षों को विद्यार्थियों के समक्ष व्यावहारिक रूप में रखेगा।

ऑपइंडिया ने BHU में शुरू हुए हिन्दू धर्म के अध्ययन की सम्पूर्ण परिकल्पना, कोर्स, इसकी आवश्यकता और उद्देश्यों को लेकर प्रोफ़ेसर राकेश उपाध्याय से विस्तृत बातचीत की थी। उन्हीं से हमें पता चला कि हिन्दू अध्ययन के इस डिज़ाइन के पीछे कौन सी प्रमुख हस्तियाँ शामिल हैं।

विशेष रूप से पाठ्यक्रम में निर्णय लेने के दौरान बोर्ड आफ स्टडीज की बैठक में कला संकाय प्रमुख प्रो. विजय बहादुर सिंह की अध्यक्षता में जेएनयू के प्रो. रामनाथ झा, आइआइटी-कानपुर के प्रो. नचिकेता तिवारी, प्रो. कमलेश दत्त त्रिपाठी, प्रो. ब्रजकिशोर स्वाई (ओडिशा), बीएचयू संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के प्रमुख प्रो. विंध्येश्वरी प्रसाद मिश्र, लोकगायिका प्रो. मालिनी अवस्थी, प्रो. प्रद्युम्न शाह, प्रो. विमलेंद्र कुमार, प्रो. सच्चिदानंद मिश्र, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र वाराणसी के निदेशक प्रो. विजय शंकर शुक्ल, प्रो. राकेश उपाध्याय, प्रो. केशव मिश्र, डा. अर्पिता चटर्जी, प्रो. सदा शिव कुमार द्विवेदी समेत कई अन्य प्रमुख आचार्य मौजूद थे, जिन्होंने लंबे विचार-विमर्श के बाद पाठ्यक्रम पर अपनी संस्तुति दी।

ऑपइंडिया ने इसी कोर्स से जुड़े और बोर्ड ऑफ़ स्टडीज में शामिल प्रोफ़ेसर राकेश उपाध्याय से बातचीत करके जानना चाहा इस कोर्स के उद्देश्यों के बारे में तो उनका साफ कहना था कि भारत में हिन्दू धर्म और शास्त्रों को लेकर मनमानी व्याख्या चल रही है। खासतौर से हमारे इतिहासकार जिनमें से अधिकांश ऐसे लोग हैं जिनको संस्कृत भाषा तक नहीं पता लेकिन वो व्याख्या कर रहे हैं हिन्दू धर्म, शास्त्र और सनातन परंपरा की, जिनके अध्ययन का स्रोत ही विकृत है तो क्या व्याख्या करेंगे यह कोई भी समझ सकता है।

प्रोफ़ेसर राकेश उपाध्याय का कहना था, “ज़्यादातर ऐसे विचारधारा के लोग हैं जिनका एकमात्र उद्देश्य हिन्दू धर्म और सनातन परंपरा से द्रोह के कारण अपने नैरेटिव के लिए हर जगह अनावश्यक डिबेट खड़ा करके उसे ख़ारिज करना है न कि उसे समझाना और उस पर वास्तविक विमर्श करना।”

उन्होंने कुछ इतिहासकारों की तरफ इशारा करते हुए कहा, “कई ऐसे प्राचीन इतिहास के विशेषज्ञ बने हुए हिन्दू धर्म पर व्याख्यान देते फिर रहे हैं। इन्हें खुद मूल ग्रंथों का ज्ञान नहीं है। जो परंपरा से ऋग्वेद पढ़ रहे हैं उन्हें उसमें गाय काटने का वर्णन नहीं मिलेगा लेकिन जिन्हें हिन्दू धर्म को सिर्फ बदनाम करना है वह ऐसा कोई भी क्षेपक-प्रक्षेपक के सहारे जो भारत का है, जो इस राष्ट्र का गौरवशाली तत्व है उसे विकृत और दुष्प्रचारित करने में लगे हैं।”

साथ ही उन्होंने यह जोड़ा कि इस सम्पूर्ण अध्ययन का उद्देश्य किसी के साथ विवाद करना नहीं बल्कि आगे आने वाले दिनों में सनातन और हिन्दू धर्म को केंद्र में रखकर प्राचीन शास्त्रों से लेकर, योग, ज्ञान, सैन्य और शास्त्र परम्पराओं का समावेशन करते हुए अपनी विशिष्टताओं को उभारना है। इस पर शोध और लेखन को बढ़ाना है ताकि आगे आने वाली पीढ़ी अपनी विशिष्टतता को जानकर गौरवान्वित हो न कि ऐसे किसी भी दुराग्रह के कारण खुद को हीन समझे। हमारे मूल शास्त्रों ग्रंथों में बहुत कुछ ऐसा विशिष्ट है जिससे आज भी वह सनातन परंपरा इतना कुछ झेलते हुए भी अक्षुण्य है।

ऑपइंडिया से बातचीत में बुद्ध और जैन साहित्य पर भी चर्चा करते हुए उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया कि बाद में जो भी धर्म, मत या विचारधारा निकले उनका भी मूल सनातन ही है। उन्होंने यह भी कहा कि इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए ब्राह्मण से लेकर श्रमण परम्पराओं का अध्ययन भी इस अध्ययन का प्रमुख हिस्सा है। कैसे इस प्राचीन भूमि पर सनातन से ही बाकी परम्पराएँ किस तरह से निकली, कहाँ तक यात्रा की, उनके मूल में क्या था, उनके ज्ञान मीमांसा का स्रोत क्या रहा है इन सबको लेकर न सिर्फ शास्त्रीय बल्कि व्यावहारिक और प्रयोगात्मक दृष्टि से भी अध्ययन पर जोर दिया जाएगा।

प्रोफ़ेसर राकेश उपाध्याय ने बताया कि कोर्स को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है ताकि इसकी लोकप्रियता के साथ आगे चलकर इसमें नेट-जेआरएफ के साथ शोध को भी बढ़ावा मिले और आने वाली पीढ़ियाँ अपने वैशिष्ट्य को उसके मूल रूम में जान और समझ सकें न कि उसके विकृत स्वरुप को ही सत्य मानकर भ्रमित हों। ऐसा इस दिशा में तमाम विद्वानों का मत है।

प्रो. राकेश उपाध्याय ने बताया कि हिन्दू अध्ययन केंद्र में 2 साल की पढ़ाई के बाद देश भर के आध्यात्मिक स्थलों पर सनातन धर्म विशेषज्ञ गाइड, विदेशों में प्रोफेसर, धर्म उपदेशक और विभिन्न धार्मिक और अध्यात्मिक संगठनों में हिंदू रिसर्च के क्षेत्र में बेहतर अवसर मिलेंगे।

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रवि अग्रहरि
रवि अग्रहरि
अपने बारे में का बताएँ गुरु, बस बनारसी हूँ, इसी में महादेव की कृपा है! बाकी राजनीति, कला, इतिहास, संस्कृति, फ़िल्म, मनोविज्ञान से लेकर ज्ञान-विज्ञान की किसी भी नामचीन परम्परा का विशेषज्ञ नहीं हूँ!

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