स्वतंत्र भारत के के इतिहास में 5 अगस्त वह तारीख है जब नामुमकिन से लगने वाले एक काम को मोदी सरकार ने 2019 में हकीकत बना दिया। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटना कोई आसान काम नहीं था, लेकिन 5 अगस्त 2019 को जब गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा, ‘संविधान के अनुच्छेद 370 के सभी खंड अब से जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होंगे’, उस क्षण ने सारी तस्वीर को बदल दिया। भारत में जहाँ मोदी-मोदी गूँज रहा था। वहीं विदेश में बैठे निर्वासित कश्मीरी पंडितों के आँसू रोके नहीं रुक रहे थे।
उस दिन से पहले वीर रस के कवि हरिओम पंवार अपनी कविता में लिखते थे:
“वे घाटी से खेल रहे हैं गैरों के बलबूते पर
जिनकी नाक टिकी रहती है पाकिस्तानी जूतों पर
काश्मीर को बँटवारे का धंधा बना रहे हैं वो
जुगनू को बैसाखी देकर चंदा बना रहे हैं वो
फिर भी खून-सने हाथों को न्योता है दरबारों का
जैसे सूरज की किरणों पर कर्जा हो अँधियारों का।”
कश्मीर की पूर्व स्थिति को बयां करने वाली हरिओम पंवार की कविता से ली गई यह पंक्तियाँ उन लोगों के बारे में बताती हैं जिन्होंने अपनी राजनीति साधने के लिए कश्मीर को हमेशा विवाद का कारण बनाए रखा और जब मोदी सरकार ने 5 अगस्त को एक नई उम्मीद दी तो भी यही लोग जगह-जगह बिलबिला उठे। उस फैसले को 2 साल हो गए हैं। इनका सवाल रहता है कि बदलाव क्या आया। आज हम इस लेख में आपको उन्हीं सवालों का जवाब देंगे। बताएँगे कि आर्टिकल 370 के हटने के बाद घाटी में बदलाव की बयार चलने के लिए दो साल का समय नहीं लगा, बल्कि कई काम तो वहाँ साल 2020 के शुरुआती महीनों और दिनों में ही दिख गए थे।
तिरंगे की बढ़ी शान
राष्ट्रभक्ति के लिहाज से देखें तो जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद वहाँ सबसे महत्वपूर्ण काम तिरंगा को सम्मान दिलाने का हुआ। 25 अगस्त 2019 यानी ऐतिहासिक फैसले के मात्र 20 दिन बाद श्रीनगर सचिवालय में आजादी के बाद पहली बार तिरंगा शान से लहराया और घोषणा हुई कि अब कश्मीर की अन्य इमारतों से कोई भी दूसरा झंडा हटाकर सिर्फ भारत का झंडा लहराया जाएगा।
2021 तक वहाँ कई बार तिरंगा यात्राएँ भी कई बार देखी गईं, लोगों के मन में राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान देखा गया।
आज जब देश स्वतंत्रता के 75 साल पूरे करने जा रहा है तो कश्मीर में फैसला लिया गया है कि प्रदेश के 3300 गाँवों में तिरंगे लगाए जाएँगे और सबसे ऊँचा तिरंगा लहराएगा गुलमर्ग में।
आतंक की टूटी कमर
अनुच्छेद 370 के हटने से घाटी में आतंक में जो कमी आई है उसे नजरअंदाज शायद ही कोई कर सके। इसी वर्ष मार्च में केंद्रीय गृह राज्य जीके रेड्डी ने लिखित जवाब में बताया था कि अनुच्छेद 370 हटने से वहाँ आतंकी घटनाओंं में कमी आई। आँकड़े देते हुए उन्होंने बताया कि 2019 में जहाँ आतंकी घटनाओं की संख्या 594 थी। वहीं 2020 में ये गिनती 244 रह गई और फिर 2021 के मार्च तक मात्र 21 घटनाएँ दर्ज की गईं।
इसी तरह कश्मीर में 1 जुलाई से 15 जुलाई 2019 तक जहाँ 51 ग्रेनेड अटैक हुए थे वहीं 2020 में ये संख्या 21 हो गई। 2019 में 1 जुनवरी से 15 जुलाई के बीच में 75 सुरक्षाबल की जान गई थी। मगर, आर्टिकल 370 के हटने के एक साल बाद इसी समय में ये संख्या घटकर 35 जवानों की रह गई।
स्थानीय नेताओं का घटा कद
अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद जिस तरह फारुक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे राजनेताओं का कद प्रदेश में घटा, उसका पता इस बात से चलता है कि उन्हें वहाँ चुनाव लड़ने के लिए (गुपकार) गठबंधन तक करने की जरूरत पड़ गई, जिसमें कई राजनीतिक प्रतिद्वंदी एक साथ आए और मिलकर चुनाव लड़ते दिखे, तब जाकर उन्हें 280 में से 110 सीटें मिली थीं।
आतंक के रास्ते जाने वाले घटे
साल 2020 की रिपोर्ट्स के मुताबिक, केंद्र सरकार के इस फैसले और सुरक्षाबलों की कड़ी निगरानी के कारण आतंकवादी संगठनों में स्थानीय युवाओं की भागीदारी में एक ही साल में 40% की कमी आ गई और 2020 में केवल 67 ऐसे युवा मिले जिनका ब्रेनवॉश करके आतंकी संगठन उनसे भारत के ख़िलाफ़ बंदूक उठवा पाए।
डोमिसाइल सर्टिफिकेट
अनुच्छेद 370 समाप्त करने के बाद जब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में डोमिसाइल व्यवस्था शुरू की तो उसमें यह व्यवस्था रखी गई थी कि केवल 15 वर्ष तक जम्मू-कश्मीर में रहने, निर्धारित अवधि तक प्रदेश में सेवाएँ देने और विद्यार्थियों के लिए निर्धारित नियमों के अधीन आने वाले लाभार्थी ही डोमिसाइल सर्टिफिकेट के हकदार होंगे। इसके बाद प्रदेश में अब तक 4 लाख से ज्यादा लोगों को डोमिसाइल सर्टिफिकेट मिल गया। इनमें 3, 68, 500 जम्मू में और कश्मीर घाटी में 79, 300 सर्टिफिकेट जारी हुए हैं।
लड़कियों को अधिकार
केंद्र सरकार के इस फैसले ने प्रदेश की कई लड़कियों को वह अधिकार और सम्मान दिलाया जिसे आर्टिकल 370 के कारण नकारा जाता था। पहले पुरुषों को तो कई अधिकार थे कि वह किसी से भी शादी करें और अपना हक बनाए रखें, लेकिन महिलाओं के पास विकल्प नहीं था। डोमिसाइल सर्टिफिकेट के लिए रखी गई शर्तों में ऐसे परिवारों को राहत मिली है, जिनकी बेटियों ने बाहरी युवक से शादी की थी और अपने अधिकार खो दिए थे। उनसे शादी करने वाले युवकों पर भी यह अधिकार नहीं था कि वह प्रदेश में सरकारी नौकरी के लिए आवेदन कर सकें या अपने नाम से संपत्ति ही खरीद सकें।
जॉब के अवसर
अनुच्छेद 370 के हटने के बाद वहाँ नौकरी के अवसरों में भी बढ़ौतरी हुई। हाल में प्रदेश के प्रधान सचिव रोहित कंसल ने कहा था कि पहले चरण में विभिन्न विभागों में भर्ती के लिए सभी स्तरों पर 10,000 से अधिक रिक्तियों की पहचान की गई है। विशेष रूप से, प्रशासनिक परिषद ने चतुर्थ श्रेणी के रिक्त पदों को भरने के लिए एक सरल और कुशल प्रक्रिया को मंजूरी दी है।
कश्मीरी पंडितों की वापसी
प्रदेश में कश्मीर पंडितों की वापसी के लिए भी केंद्र सरकार लगातार प्रयास कर रही है। अभी हाल में उनके पुनर्वास के क्रम में केंद्र ने बड़ा फैसला लेते हुए उन्हें जॉब के अवसर दिए थे। मार्च 2021 में घोषणा हुई थी कि अब तक 3,800 माइग्रेंट कैंडिडेट्स कश्मीर में जॉब पाने के बाद वापसी कर चुके हैं। इसमें से 520 आर्टिकल 370 हटने के बाद ही लौट आए थे।
मालूम हो कि जम्मू और कश्मीर में उपराज्यपाल का प्रशासन कश्मीर में 6,000 पारगमन आवासों पर काम में तेजी ला रहा है और देश के विभिन्न हिस्सों से घाटी में प्रवासी समुदाय की वापसी को प्रोत्साहन देने के प्रयास में कश्मीरी पंडितों को पंजीकृत कर रहा है।
आरक्षण का दायरा बढ़ा
केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन ने पहाड़ी भाषी लोगों (चार फीसदी) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (10 फीसदी) को आरक्षण देने का फैसला किया। अभी तक केवल नियंत्रण रेखा पर गाँवों में रहने वाले लोगों के लिए आरक्षण उपलब्ध था, लेकिन इसे अंतरराष्ट्रीय सीमा पर रहने वालों के लिए बढ़ा दिया गया है, जिससे लगभग 70,000 परिवारों को लाभ हुआ है।
7वें पे कमीशन और अन्य योजनाओं का फायदा
जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद वहाँ 3 लाख सरकारी कर्मचारियों को 7वें वेतन आयोग के तहत फायदा मिला। इसके अलावा केंद्र ने वहाँ कई विकास योजनाएँ लॉन्च की, जिसमें पीएम किसान, पीएम किसान पेंशन, प्रधानमंत्री जनधन योजना आदि शामिल हैं। कई विकास योजनाओं की आधारशिला भी प्रदेश में रखी जा चुकी है।
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में अन्य काम
उल्लेखनीय है कि उक्त बिंदु केवल कुछ चुनिंदा बदलाव हैं जिन्हें मीडिया में कवरेज मिली। इसके अलावा वहाँ पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी, पुलिस पर हमले, शांत वातावरण में चुनाव संपन्न होना, लोगों के मन से आंतक का भय खत्म होना, कुछ ऐसे मामले हैं जिन पर निश्चित तौर पर आर्टिकल 370 के हटने से कमी आई है।
केंद्र सरकार का फोकस वहाँ के विकास पर है। सितंबर 2019 में 15 पावर प्रोजेक्ट का उद्घाटन हुआ था वहीं 10,000 करोड़ रुपए की 20 अन्य परियोजनाओं की आधारशिला रखी गई थी। कश्मीर पंडित जिन्हें 30 साल तक नकारा जाता रहा था। उनके लिए प्रदेश में 3000 नौकरियाँ निकाली गईं और 1781 पोस्ट पर 604 अभ्यार्थियों ने विभिन्न विभागों को ज्वाइन भी किया।
इसके अलावा मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 निरस्त करने के साथ कश्मीर के किसानों का भी ख्याल रखा। पिछले साल की बात करें तो बताया गया था कि जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में किसानों को सिंचाई के लिए निर्बाध पानी उपलब्ध कराने और बिजली उत्पादन के लिए फरवरी 2020 में लगभग 6,000 करोड़ रुपए की बहुउद्देश्यीय परियोजना को मंजूरी दी है। ऐसे ही एक समय जहाँ अलगाववादी नेता सत्ता पर काबिज हुए रहते थे। वहाँ भाजपा सदस्यों की गिनती में बढ़ौतरी हुई और लोग भयमुक्त होकर अपना समर्थन भारत को दिखाते नजर आए।
इसी तरह यदि लद्दाख की बात करें तो जम्मू कश्मीर से अलग एक नया केंद्र शासित प्रदेश बनने पर वहाँ खुशी थी। उनकी यह माँग बहुत पहले से थी कि उन्हें अलग किया जाए। लेकिन यह माँग पूरी हुई 5 अगस्त 2019 को। केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने इस बाबत कहा भी था कि जो भी विकास के रास्ते में स्पीड ब्रेकर थे वे अब दूर हो गए हैं। अब विकास का काम चल रहा है।
अलग केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद वहाँ नई सुरंगों और सड़कों का निर्माण हुआ। वहाँ टेलीफोन की सुविधा सुधरी, फाइबर इंटरनेट कनेक्टिविटी पहुँच पाई। इसके अलावा वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए लद्दाख के विकास के लिए 60 अरब रुपए निर्धारित किए गए। साथ ही 214 अरब रुपए की परियोजनाओं को केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में स्थानांतरित किया गया है। ऐसे ही लद्दाख में अन्य कई योजनाओं पर काम हो रहा है। जम्मू-कश्मीर की तरह आरक्षण के लिहाज से भी यहाँ कई बदलाव हुए हैं। स्थानीयों को नौकरियों में रूप से आरक्षित किया गया है। शिक्षा की बात करें तो लद्दाख को अपना पहला विश्वविद्यालय और एक बौद्ध अध्य्यन केंद्र मिल गया है। टूरिज्म को बढ़ावा देने पर भी सरकार विशेष ध्यान दे रही है।
स्थानीय लोगों की बात करें तो एएनआई की 2020 की एक रिपोर्ट बताती है कि कैसे लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद वहाँ विकास कार्यों को तेजी मिली और हर नागरिक को समानता का अधिकार मिला। लेह में शिया समुदाय के अध्यक्ष अशरफ अली बच्चा ने खुद कहा था कि भारतीय संविधान ने उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की है। यही चीज लद्दाख में भी है। उन्हें स्वतंत्रता महसूस हो रही है और कोई दिक्कत नहीं है। वह अपना मजहब मानते हैं और सारे त्योहार भी मनाते हैं। बता दें कि लद्दाख में लेह के बाद कारगिल सबसे बड़ा नगर है जहाँ 80 फीसद शिया रहते हैं।