Wednesday, November 13, 2024
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कतर ने दिया नाम, बंगाल की खाड़ी से उठा ‘दाना’: ओडिशा-बंगाल में अलर्ट, उड़ानों पर रोक-500+ ट्रेन कैंसिल… स्कूल-कॉलेज बंद, 10 लाख लोग सुरक्षित जगहों पर भेजे गए

इन तूफ़ानों के नाम को लेकर उठता रहता है कि आखिर इन तूफ़ानों के नाम किस प्रकार निर्धारित किए जाते हैं? विभिन्न देशों के द्वारा विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की देखरेख में इन तूफ़ानों को नाम प्रदान किया जाता है। इनके नामकरण की शुरुआत साल 2000 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO)/एशिया और प्रशांत के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग के तहत हुई थी।

बंगाल की खाड़ी से उठा चक्रवाती तूफान ‘दाना’ गुरुवार (24 अक्टूबर) की देर रात ओडिशा के तट से टकराएगा। इसका असर पश्चिम बंगाल में भी दिखाई देगा। दोनों राज्यों में अलर्ट जारी कर दिया गया है और विभिन्न एजेंसियों को सतर्क कर दिया गया है। दोनों राज्यों में 16 घंटों के लिए उड़ानों पर रोक लगा दी गई है। 500 से ज्यादा ट्रेनों को रद्द कर दिया गया है।

ओडिशा और बंगाल के लोगों को ‘डेंजर जोन’ छोड़ने के लिए कहा गया है। चक्रवात दाना की वजह से तटीय इलाकों में इस वक्त 70 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएँ चल रही हैं। मौसम विभाग के अनुसार, दाना 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ओडिशा के उत्तरी हिस्से से गुजरेगा। इलाकों में 30 सेंटीमीटर तक बारिश हो सकती है।

स्थिति को देखते हुए ओडिशा के 14 जिलों से 10 लाख लोगों को एक से दूसरी जगह भेजा गया है। दाना का असर सिर्फ ओडिशा और पश्चिम बंगाल तक ही सीमित नहीं रहेगा। इसका असर छत्तीसगढ़ के मध्य, दक्षिण और उत्तरी हिस्से में भी देखने को मिलेगा। कई इलाकों में तेज हवाएँ चलेंगी और जमकर बारिश होगी।

दाना के विकराल रूप को देखते हुए ओडिशा डिजास्टर रिलीफ फोर्स (ODRF), नेशनल डिजास्टर रिलीफ फोर्स (NDRF) और फायर ब्रिगेड की 288 टीमों की तैनाती की गई हैं। राज्य के 14 जिलों में 25 अक्टूबर को स्कूल-कॉलेज बंद रहेंगे। ओडिशा हाईकोर्ट भी 25 अक्टूबर भी बंद रहेगा। इस बीच सरकारी कर्मचारियों की छुट्टियाँ रद्द कर दी गई हैं।

चक्रवात (Cyclone) के प्रकार

दुनिया भर में चक्रवातों को प्रमुख रूप से दो भागों में विभाजित किया गया है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात और शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात। उष्णकटिबंधीय चक्रवात कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच के क्षेत्र में आते हैं अर्थात भूमध्य रेखा के आस-पास के क्षेत्रों में। शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में आने वाले चक्रवात शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात होते हैं। शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों को फ्रन्टल या वेव साइक्लोन भी कहा जाता है।

अक्सर लोगों में यह भ्रम रहता है कि साइक्लोन, हैरीकेन और टाईफून में भी क्या कोई अंतर है, तो आपको बता दें कि ये सभी उष्णकटिबंधीय चक्रवाती तूफान ही हैं। दुनिया में अलग-अलग जगह पर इन्हें इस प्रकार विभिन्न नामों से जाना जाता है। जैसे हिन्द महासागर और दक्षिणी प्रशांत क्षेत्र में आने वाले तूफ़ानों को ‘ट्रॉपिकल साइक्लोन (Tropical Cyclone)’ या सिर्फ साइक्लोन कहा जाता है।

उत्तर अटलांटिक, कैरेबियन और पूर्वोत्तर प्रशांत क्षेत्र में उठने वाले तूफ़ानों को हैरीकेन कहा जाता है। उत्तर-पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र के तूफान टाईफून कहे जाते हैं। यह क्षेत्र इस प्रकार के तूफ़ानों के लिए सबसे सुभेद्य क्षेत्र हैं। इसके अलावा पश्चिमी अफ्रीका और संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी भागों में आने वाले तूफानों को टॉरनेडो कहा जाता है।

इन चक्रवाती तूफ़ानों में हवा की गति और तीव्रता के आधार पर भी इन्हें विभाजित किया जाता है। इन तूफ़ानों का सबसे न्यूनतम स्तर ‘डिप्रेशन (Depression)’ कहा जाता है, जहाँ हवा की गति लगभग 50 किमी या उससे भी कम होती है। इन चक्रवाती तूफ़ानों का सबसे भयानक और विनाशकारी रूप ‘सुपर साइक्लोनिक स्टॉर्म (Super Cyclonic Storm)’ कहा जाता है। इसमें हवा की गति 222 किमी से भी अधिक हो जाती है।

उष्णकटिबंधीय चक्रवाती तूफ़ानों के बनने के लिए कुछ आवश्यक शर्तें भी होती हैं। ये शर्तें पूरी होने पर ही समुद्री क्षेत्रों में किसी चक्रवाती तूफान का निर्माण हो पाता है। सबसे पहली आवश्यकता है कि समुद्र की एक विशाल सतह का तापमान 27° C से अधिक होना चाहिए। इससे होता यह है कि इस सतह के संपर्क में आने वाली हवा गर्म होती है और ऊपर उठती है।

गर्म हवा के ऊपर उठने के कारण बाहरी ठंडी हवा उस खाली स्थान को तेजी से भरने के लिए आती है। यहाँ पृथ्वी की घूर्णन गति से उत्पन्न कोरियॉलिस बल के कारण बाहर से आने वाली ठंडी हवा तेज गति से एक सर्पिलाकार पथ पर घूमने लगती है। इस हवा के घूर्णन की दिशा इस बात पर निर्भर करती है कि तूफान किस गोलार्ध में उत्पन्न हुआ है।

यदि तूफान उत्तरी गोलार्ध में है तो इसका घूर्णन घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में अर्थात एंटी-क्लॉकवाइज होगा, लेकिन यदि यही तूफान दक्षिणी गोलार्ध में है तो इसकी घूर्णन की दिशा उत्तरी गोलार्ध के विपरीत अर्थात घड़ी की सुई की दिशा (क्लॉकवाइज) होगी। समुद्र की सतह पर पहले से बना हुआ कम दबाव का क्षेत्र भी इन चक्रवाती तूफ़ानों के निर्माण में सहायक होता है।

इसके अलावा ऊर्ध्वाधर पवनों की गति में भिन्नता को भी तूफ़ानों के निर्माण में सहायक माना जा सकता है। अब समझते हैं कि एक चक्रवात का निर्माण कैसे होता है और वो कौन से कारक होते हैं जिनसे एक तूफान की गति, उसके द्वारा प्रभावित क्षेत्र और स्थानीय मौसम में परिवर्तन निर्धारित होता है। किसी भी चक्रवात के निर्माण या प्रारम्भिक अवस्था में समुद्र से वाष्पीकृत जलवाष्प और अपेक्षाकृत अधिक तापमान ऊपरी हवा में स्थानांतरित होता है।

आप यह मान सकते हैं कि एक चक्रवात को भी ईंधन की आवश्यकता होती है और उसका यह ईंधन होती है गर्म जलवाष्प। इसके कारण समुद्र की सतह से ऊपर उठने वाली संघनित हवा के संवहन के कारण बड़े पैमाने पर क्यूमलस बादलों का निर्माण होता है। उष्णकटिबंधीय चक्रवाती तूफान का दूसरा चरण उसका सबसे खतरनाक स्तर होता है।

इस चरण में ऊपर उठने वाली हवा क्षोभमंडल (ट्रोपोपॉज) पर क्षैतिज रूप से फैल जाती है। ऊपरी क्षेत्र में हवा के फैलने के कारण एक उच्च दबाव का क्षेत्र बन जाता है। इससे संवहन क्रिया प्रारंभ होती है और उच्च दबाव से निम्न दबाव क्षेत्र की ओर हवा का तेजी से संचालन होता है जो आँधी-तूफान का कारण बनता है।

हिन्द महासागर या ऐसे ही उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले चक्रवाती तूफ़ानों का तीसरा और अंतिम चरण तब होता है, जब तूफान किसी ठंडे जल क्षेत्र अथवा जमीन से होकर गुजरते हैं। ठंडे क्षेत्र से गुजरने के कारण तूफ़ानों को जलवाष्प नहीं मिल पाती जो कि इनका मुख्य ईंधन है। ऐसा ही कुछ तब होता है जब ये तूफान तटीय क्षेत्रों से टकराते हैं।

स्थल भाग पर पहुँचने के कारण भी इन्हें जलवाष्प नहीं मिलती जिसके कारण ये कमजोर हो जाते हैं और एक समय के बाद समाप्त हो जाते हैं। तूफ़ानों के समाप्त होने में एक बड़ा कारक उनमें समाहित हवा की गति भी है। अक्सर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले चक्रवाती तूफान समुद्री पवनों के संपर्क में आने के कारण गतिमान हो जाते हैं, जो तटीय क्षेत्रों की ओर बढ़ जाते हैं और उन क्षेत्रों में वर्षा के माध्यम से अपना जल निष्कासित करते हैं।  

तूफानों के नामों का कैसे होता है निर्धारण

इन तूफ़ानों के नाम को लेकर उठता रहता है कि आखिर इन तूफ़ानों के नाम किस प्रकार निर्धारित किए जाते हैं? विभिन्न देशों के द्वारा विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की देखरेख में इन तूफ़ानों को नाम प्रदान किया जाता है। इनके नामकरण की शुरुआत साल 2000 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO)/एशिया और प्रशांत के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग के तहत हुई थी।

इस समझौते के तहत हिन्द महासागर क्षेत्र के आठ देशों- बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका और थाईलैंड तूफ़ानों के लिए नामों का एक समूह देंगे। इसमें से बारी-बारी से तूफान का नामकरण होगा। हालाँकि, अब इस समझौते में देशों की संख्या 8 से बढ़कर 13 हो गई है। साल 2018 में पाँच देश- ईरान, क़तर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यमन को इसमें शामिल किया गया।

WMO ने देशों द्वारा दिए गए नामों की सूची बना रखी है। यही वजह है कि तूफान आने से पहले तय हो जाता है कि उसका नाम क्या होगा। इस सूची को हर छह साल में बदला जाता है। वर्तमान में जिस चक्रवाती तूफान ‘दाना’ की चर्चा है, इस शब्द को अरबी भाषा से लिया गया है। इसका मतलब होता है ‘उदारता’। यह नाम कतर की तरफ से दिया गया है।


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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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