Saturday, July 27, 2024
Homeविविध विषयअन्यअब झाड़ू ही नहीं लगाती राधिका... 15 मिनट की डॉक्यूमेंट्री को नेशनल अवॉर्ड: कहानी...

अब झाड़ू ही नहीं लगाती राधिका… 15 मिनट की डॉक्यूमेंट्री को नेशनल अवॉर्ड: कहानी उस 35-A/370 की जो दलितों को पैदा होते ही कश्मीर में बना देता था ‘सफाईकर्मी’

370 और 35ए हटाए जाने से पहले जब इस समुदाय में कोई बच्चा जन्म लेता था तो उसके माथे पर वैधानिक रूप से ‘दलित’ लिखा होता था। वह बड़ा होकर चाहे कितनी भी पढ़ाई कर ले उसे जम्मू-कश्मीर राज्य में सफ़ाई कर्मचारी की नौकरी ही मिल सकती थी।

15 मिनट की डाॅक्यूमेंट्री ‘जस्टिस डिलेड बट डिलिवर्ड (Justice Delayed But Delivered)’ को इस साल नेशनल अवॉर्ड मिला है। यह सम्मान गैर फीचर फिल्म की बेस्ट सोशल इश्यू कैटेगरी में मिला है। यह डाॅक्यूमेंट्री जम्मू-कश्मीर में 370 और 35ए पर केंद्रित है। डाॅक्यूूमेंट्री एक दलित लड़की राधिका गिल की कहानी से शुरू होती है, जो 35ए के कारण अपने मन का नहीं कर सकती थी। जो सफाईकर्मी बनने को ही अभिशप्त थी। साथ ही रश्मि शर्मा की कहानी है, जिन्होंने एक ऐसे पुरुष से शादी की जो जम्मू-कश्मीर का नहीं था। फिर 370 के कारण उनके अधिकार छीन लिए गए।

यह डाॅक्यूमेंट्री बीते कल की ही बात नहीं करती। बताती है कि 370 और 35ए हटाए जाने के बाद कैसे इनके जीवन में बदलाव आया। कैसे अब राधिका जैसी लड़की के लिए अपने मन का करना आसान हो गया है। उल्लेखनीय है कि केंद्र की मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को 370 और 35ए को निरस्त कर दिया था। इस कदम ने एक तरह से जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह से भारत में समाहित करने का काम किया। इससे वे सभी कानून जम्मू-कश्मीर में लागू करने का मार्ग प्रशस्त हुआ जो देश के अन्य हिस्सों में लागू हैं। इसने दलित समुदाय के नागरिकों को एक समान अधिकार मिलने का रास्ता खोला।

इस डॉक्यूमेंट्री के निर्देशक कामाख्या नारायण सिंह और प्रोड्यूसर मंदीप चौहान है। इस लिंक पर क्लिक कर आप इसे देख सकते हैं। डॉक्यूमेंट्री की कहानी जी राधिका गिल से शुरू होती है वह एक सफाईकर्मी की बेटी हैं। वह पढ़ना चाहती हैं। नौकरी करना चाहती हैं। लेकन Article 370 हटने से पहले उनसे कहा जाता था कि सफाईकर्मी का बच्चा सफाई ही करेगा। अनुच्छेद 35ए के राधिका जम्मू कश्मीर में केवल सफाई का काम ही कर सकती थीं।

राधिका ने अनुच्छेद 35ए को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी थी। ऐसे में 5 अगस्त 2019 के केंद्र सरकार के फैसले ने उन जैसे दलितों की जिंदगी ही बदल दी। 5 अगस्त 2019 के बाद न सिर्फ राधिका गिल को बराबरी का अधिकार मिला, बल्कि जम्मू-कश्मीर की आधी आबादी को भी पुरूषों के समान बराबरी का अधिकार मिला।

निर्देशक कामाख्या नारायण सिंह बताते हैं, “करीब 10 साल पहले मुझे जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 35A के पीड़ितों के बारे में पता चला। 2016 में मैंने इन पीड़ितों पर पहली डॉक्यूमेंट्री बनाई थी। उस समय मैं पहली बार राधिका गिल से मिला था। जब मेरी राधिका से बात हुई तो महसूस हुआ कि इस होनहार लड़की को कैसे 35A ने दोयम दर्जे का नागरिक बना रखा है। राधिका वाल्मिकी समाज से आती हैं, जिनको 1957 में जम्मू-कश्मीर की तत्कालीन सरकार पंजाब से सफाई का काम कराने के लिए राज्य में बसाया गया था, इस वायदे के साथ कि उनको भी राज्य के अन्य स्थायी नागरिक की तरह पीआरसी दे दी जाएगी। लेकिन आर्टिकल 35A के चलते ये कभी संभव ही नहीं हो सका। भारत का नागरिक होने के बावजूद भी राधिका गिल बीएसएफ ज्वाइन नहीं कर पायीं, क्योंकि उसके पास जम्मू-कश्मीर का परमानेंट रेज़िडेंट सर्टिफिकेट यानि पीआरसी नहीं थी।”

पैदा होते ही तय कर देते थे इकलौता काम

4 मई 1954 को एक ऐसा संवैधानिक आदेश भारत के राष्ट्रपति द्वारा जम्मू-कश्मीर राज्य में लागू करवाया गया, जिसने भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ दिया। इस अनुच्छेद को 35-A के नाम से जाना जाता था। इसी अनुच्छेद के कारण आज जम्मू-कश्मीर में वाल्मीकि समुदाय समेत कई समुदाय के लोग पीड़ित थे। अनुच्छेद 35-A जम्मू-कश्मीर राज्य को यह निर्णय लेने का अधिकार देता था कि राज्य के स्थायी निवासी कौन होंगे। अर्थात यह राज्य तय करता था कि स्थायी निवास प्रमाण-पत्र किसको देना है और किसे नहीं। जम्मू-कश्मीर राज्य को जब यह अधिकार दिया गया, तब तक राज्य का संविधान भी नहीं बना था। बाद में राज्य का संविधान बनते ही उसमें यह लिख दिया गया कि जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासी का दर्ज़ा उन्हें ही दिया जाएगा जो 1944 या उसके पहले से राज्य में रह रहे हैं।

वाल्मीकि समाज के लोग 1957 में पंजाब से लाकर बसाए गए थे, इसलिए उन्हें जम्मू-कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं माना गया और उन्हें स्थाई निवास प्रमाण पत्र- जिसे PRC कहा जाता है- नहीं दिया गया। राज्य सरकार ने वाल्मीकि समुदाय के लोगों को अपने यहाँ रोजगार देने के लिए नियमों में परिवर्तन कर यह लिख दिया कि इन्हें केवल ‘सफ़ाई कर्मचारी’ के रूप में ही अस्थायी रूप से रहने का अधिकार और नौकरी दी जाएगी। इस प्रकार जब इस समुदाय का कोई बच्चा जन्म लेता था तो उसके माथे पर वैधानिक रूप से ‘दलित’ लिखा होता था। वह बड़ा होकर चाहे कितनी भी पढ़ाई कर ले उसे जम्मू-कश्मीर राज्य में सफ़ाई कर्मचारी की नौकरी ही मिल सकती थी।

वाल्मीकि समुदाय के लोगों के पास स्थायी निवास प्रमाण-पत्र न होने से वे राज्य में स्थायी रूप से न तो बस सकते हैं न ही संपत्ति खरीद सकते थे। उनके बच्चों को राज्य सरकार द्वारा छात्रवृत्ति भी नहीं मिलती थी। यही नहीं PRC के अभाव में वाल्मीकि समुदाय के बच्चों को राज्य सरकार के इंजीनियरिंग, मेडिकल या किसी अन्य टेक्निकल कोर्स के कॉलेजों में दाख़िला भी नहीं दिया जाता था। वे वोट तक नहीं डाल सकते थे।

Justice Delayed But Delivered दलितों की इन्हीं पीड़ा पर प्रकाश डालती है। बताती है कि 370 और 35ए हटने के बाद कैसे उनकी जिंदगी बदली है।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

बांग्लादेशियों के खिलाफ प्रदर्शन करने पर झारखंड पुलिस ने हॉस्टल में घुसकर छात्रों को पीटा: BJP नेता बाबू लाल मरांडी का आरोप, साझा की...

भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ प्रदर्शन करने पर हेमंत सरकार की पुलिस ने उन्हें बुरी तरह पीटा।

प्राइवेट सेक्टर में भी दलितों एवं पिछड़ों को मिले आरक्षण: लोकसभा में MP चंद्रशेखर रावण ने उठाई माँग, जानिए आगे क्या होंगे इसके परिणाम

नगीना से निर्दलीय सांसद चंद्रशेखर आजाद ने निजी क्षेत्रों में दलितों एवं पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू करने के लिए एक निजी बिल पेश किया।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -