Friday, April 26, 2024
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जब ट्रेन में बाथरूम के पास सोने को मजबूर थीं महिला क्रिकेटर: डायना एडुल्जी ने बताया कल और आज का फर्क, पहले ही मैच मैं टूट गए थे चार दाँत

"हमें अपने किट, अपने हवाई किराए के पैसे देने पड़ते थे। इन सबकी वजह से ऐसा भी होता था कि जो अच्छी खिलाड़ी थीं वो पैसे की कमी के कारण टीम में नहीं शामिल हो पाती थीं।"

भारत की महिला क्रिकेटरों को जो ख्याति, प्रशंसकों का प्रेम, सुविधा आज मिल रही है वह हमेशा से ऐसी नहीं रही। पुरुषों के मुकाबले आज भी उनका भुगतान कमतर ही है। एक वक्त ऐसा भी था जब महिला क्रिकेट को न कोई आर्थिक सहायता थी और न ही बीसीसीआई का सहारा। इस सफर की एक चश्मदीद डायना एडुल्जी भी हैं। भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान से विभिन्न मुद्दों पर ऑपइंडिया के लिए जयंती मिश्रा ने विस्तार से बात की।

1956 में पैदा हुईं डायना एडुल्जी ने 1976 से 1993 तक क्रिकेट के मैदान पर अपने हुनर दिखाए। फिर अलग अलग भूमिकाओं में इस खेल को नया रूप प्रदान किया। महिला क्रिकेट को लेकर धारणाएँ बदली। बातचीत के दौरान उन्होंने इस यात्रा के विभिन्न पड़ावों को भी याद किया।

कभी टिकट के पैसे भी खुद देने पड़ते थे

उन्होंने बताया, “इतने सालों में बहुत चीजें बदल गई है। जमीन से आसमान का फर्क़ आ चुका है। हमने जब शुरू किया तो हमारे पास कुछ नहीं था। हम बिना रिजर्वेशन के ट्रेन में जाते थे। डॉर्मेट्री में रहते थे। वेटिंग रूम्स में रूकते थे। ट्रेन में बाथरूम के पास सोते थे। बहुत कष्ट उठाया है। लेकिन हमें मजा भी आता था चाहे वो फील्ड में हो या ऑफ द फील्ड हो। जैसे-जैसे वक्त गुजरा, हम अपने पैसे से इंडिया के लिए खेले। हमें अपने किट, अपने हवाई किराए के पैसे देने पड़ते थे। इन सबकी वजह से ऐसा भी होता था कि जो अच्छी खिलाड़ी थीं वो पैसे की कमी के कारण टीम में नहीं शामिल हो पाती थीं। उस समय स्पॉन्सरशिप का कोई रोल नहीं हुआ करता था।”

सहयोग के लिए करनी पड़ी मिन्नत

अपने क्रिकेट करियर के दौरान ऑस्ट्रेलिया में हुए वर्ल्ड कप को याद करते हुए एडुल्जी ने बताया, “उस समय हर लड़की को 10 हजार रुपए देने थे। हम चार लोग महाराष्ट्र से थे। इनमें तीन बॉम्बे के थे और एक पुणे से थी। तो हमारी बिल्डिंग में एक डेली न्यूज पेपर का एडिटर रहता था। तब मैं उसके पास गई और कहा कि आप हमें थोड़ी पब्लिसिटी दीजिए ताकि कोई हमें स्पॉन्सर करे। मेरी बात सुन उन्होंने हमारी फोटो ली और तस्वीर उस अखबार के फ्रंट पेज पर छपी। तब महाराष्ट्र के सीएम एआर अंतुले थे। हमें शाम को फोन आया कि हम एयरपोर्ट पर आ जाएँ क्योंकि अंतुले साहब को अपने होम डिस्ट्रिक्ट में जाना था। आप चारों को मिलना चाहते हैं। हम वहाँ गए। उनसे मिले। उन्होंने पूछा कि आपको क्या परेशानी है। हमने कहा कि हमें पैसे की समस्या है। उन्होंने फौरन अपने असिस्टेंट से चेक देने को कहा। ऐसे हम लोग वहाँ वर्ल्ड कप गए।”

वह कहती हैं, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया टूर के समय उन्हें कोई होटल वगैरह की सुविधा नहीं थी। डॉर्मेट्री में रहना पड़ता था। सभी लोग एक साथ नहीं रहते थे। इंडियन फैमिली के साथ दो-दो लोग रहते थे। कई बार परेशानी आती थी। गाड़ी समय पर नहीं आती थी। लेकिन टीम ने जो खेला वो मजे लेके खेला।

एक ट्रॉफी जरूरी है

उन्होंने कहा, “हमने वो नींव डाली जिसके कारण आज भारतीय महिला क्रिकेट टीम को उसका फायदा मिल रहा है। मैं बहुत खुश हुई थी जब सुप्रीम कोर्ट की सीओए की सदस्य बनी तब मैंने महिला क्रिकेट को बढ़ावा दिया और बीसीसीआई की मदद से भी महिला क्रिकेट टीम को बहुत ज्यादा फायदा मिला। 2017 में हम वर्ल्ड कप में 8-9 रन से रह गए थे, तब हमारे पास एक बहुत अच्छा मौका मिला। मुझे लगता है कि आज महिला क्रिकेट जिस स्तर पर है। वहाँ अगर वो एक वर्ल्ड कप ट्रॉफी जीत जाते है जो हमारे लिए ये अच्छा रहेगा और हम बना बनाया रिकॉर्ड भी तोड़ पाएँगे। ताकि दिखा सकें कि हम भी वर्ल्ड कप चैंपियन हैं चाहे वो वर्ल्ड कप 50 ओवरों का हो या फिर 20 ओवरों।”

पुरुष खिलाड़ियों से मिला समर्थन

आमतौर पर भारतीय महिला क्रिकेट टीम को मुहैया कराई जाने वाली सुविधाओं और पुरुष क्रिकेट टीम को मिलने वाली सुविधाओं में फर्क़ पर सवाल होते रहते हैं। इस संबंध में डायना एडुल्जी ने बताया कि महिला क्रिकेट टीम पहले  बीसीसीआई का हिस्सा नहीं थी। वे लोग महिला क्रिकेट एसोसिएशन के अंतर्गत आते थे। इसलिए कभी भी ये तुलना करना ठीक नहीं है कि आखिर जो उन्हें मिला वो भारतीय महिला टीम को क्यों नहीं मिला। पुरुषों से मिलने वाले समर्थन और हिम्मत के कुछ वाकयों को याद करते हुए ऑपइंडिया को बताया, “साल 1986 में जब हम इंगलैंड गए तो पुरुष खिलाड़ी हमारी टीम को चीयर अप करने आते थे। हमे प्रोत्साहित करते थे। ये बहुत अच्छी चीज थी।” उन्होंने अपने खेल पर बात करते हुए बताया कि उन्हें ग्राउंड पर बॉलिंग के लिए जाना जाता था। बकौल डायना, “मैं प्रैक्टिस के दौरान तीन-चार घंटे भी बॉलिंग करती थी वो भी मेन्स टीम के साथ। इस तरह मैंने अपने खेल को बेहतर बनाया था।”

आमतौर पर महिला सशक्तिकरण पर बात करते हुए हम सबसे पहला काम पुरुषों को कोसने का करते हैं या फिर उन्हें मिलने वाली सुविधाओं पर प्रश्न चिह्न लगाकर करते हैं, लेकिन भारतीय महिला क्रिकेट टीम की ये खिलाड़ी न तो पुरुष टीम को मिलने वाली किसी सुविधा से द्वेष रखती हैं और न ही उनसे मिले समर्थन, प्रोत्साहन को नकारती हैं। डायना कहती हैं कि जो सपोर्ट मेन्स टीम की ओर से वीमन्स टीम को मिला, वो वाकई बहुत हिम्मत देने वाला था।

भीड़ का समर्थन मिलता था पर, मीडिया का…

इसके अलावा जो धारणा शुरुआत से चली आई है कि ऑडियंस का झुकाव कहीं न कहीं महिला क्रिकेट टीम की ओर नहीं था और पिछले कुछ सालों में उन्हें पहचान मिली है, तो इस पर डायना बताती हैं कि वो 1976 का दौर था उन लोगों के भारत में पटना जमशेदपुर में मैच हुए तो 25-25 हजार में भीड़ उन लोगों को देखने आई थी। उनके मुताबिक, ग्राउंड पर पहुँचने के बाद उन लोगों को भीड़ का पूरा समर्थन मिलता था, जोश मिलता था। लेकिन वो इस बात को स्वीकारती हैं तब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तो था नहीं और प्रिंट की ओर से उन्हें इतना समर्थन नहीं मिलता था। सिर्फ जहाँ मैच होते थे वहीं पर उनका सपोर्ट मिलता था लेकिन ऑल इंडिया लेवल पर ऐसा कुछ नहीं था। वह कहती हैं, “जैसा आज का माहौल है। वैसा तब नहीं था। लेकिन मैं खुश हूँ कि अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया बहुत मदद कर रही है। वो लाइव मैच दिखाते हैं, लोगों की रूचि बढ़ती है, लगातार वर्ल्ड कप पर कवरेज हो रही है।”

टीम को करना होगा खुद को साबित

पूर्व कप्तान कहती हैं कि बीसीसीआई ने बहुत कुछ किया है महिला क्रिकेट टीम को आगे बढ़ाने के लिए और उन्हें आगे भी बहुत कुछ करना है। लेकिन उससे पहले हमारी टीम को भी बीसीसीआई को कुछ दिलाना चाहिए जैसे वर्ल्ड कप ट्रॉफी। इससे हर चीज सही हो जाएगी। लोगों में जागरूकता आएगी। घरेलू क्रिकेट की तादाद बढ़ जाएगी। कुल मिलाकर अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीजें सहीं हुई तो स्थानीय स्तर पर भी ठीक होता जाएगा।

‘लड़किया क्रिकेट नहीं किचन संभालती हैं’

डायना ने बतौर महिला जो क्रिकेट टीम से जुड़ने के बाद संघर्ष का सामना किया उसमें सामाजिक संघर्ष भी एक बिंदु था। एक ओर उनमें व उनकी साथी खिलाड़ियों में खुद को साबित करने का जोश था। दूसरी ओर उन लोगों को कहा जाता था कि वो लड़की हो खेलना नहीं चाहिए, तुमको किचन में ही रहना चाहिए। डायना बिन किसी का नाम लिए बताती हैं कि ये सब कहने वालों में कुछ नामी खिलाड़ी भी थे जो महिला क्रिकेट टीम पर इस तरह की टिप्पणी करते थे। लेकिन वो साथ में ये भी साफ करती है कि जब इन्हीं पुरुषों में से एक ने महिला टीम का जज्बा देखा, उनकी गंभीरता देखी, उन परिस्थितियों को देखा तो एक कार्यक्रम में उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अपने विचारों के लिए डायना के सामने लिए माफी भी माँगी। वह कहती हैं कि ये बातें पुरानी हो गई हैं इसलिए नाम नहीं लेना चाहती। बस लोगों को एहसास हुआ कि उनकी टीम भी कुछ है, उसे भी बढ़ाना चाहिए, इतना काफी है।

रेलवे कर रहा खिलाड़ियों को समर्थन

खेल जगत में महिलाओं के योगदान पर बात करते हुए डायना ने उन तमाम खिलाड़ियों की तारीफ की जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रौशन करती हैं। डायना ने बताया कि वेस्टर्न रेलवे में स्पोर्ट्स ऑफिसर बनने के बाद उन्होंने कई खिलाड़ियों को नियुक्त किया। सबके अपने-अपने संघर्ष हैं। सिर्फ महिलाओं के ही नहीं पुरुषों के भी। लेकिन एक जुनून है आपको सपना साकार करने में मदद करता है, इसके लिए परिवार का समर्थन और उस संगठन का समर्थन बहुत जरूरी होता है जहाँ आप काम कर रहे हो। रेलवे इस मामले में बहुत साथ देता है। खासकर महिला खिलाड़ियों को। शुरू में कोई संस्थान महिला क्रिकेटरों को नौकरी नहीं देती थी। बाद में ये शुरू हुआ और इसके लिए वो माधवराव सिंधिया को आभार व्यक्त करती हैं जिन्होंने रेलेवे में नौकरी निकाली।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय महिला टीम के स्वरूप में हुए बदलाव पर वह कहती है कि साल 2006 में बीसीसीआई में शामिल होने के बाद महिला क्रिकेट टीम को अधिक सपोर्ट मिलना शुरू हुआ और हर कोई इसमें रूचि ले रहे हैं। आज पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी एनसीसी क्लब की हेड हैं। ये एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। ये दिखाता है कि वो रास्ते खुले हैं जहाँ पहले केवल पुरुषों को ही जगह मिलती थी।

IPL से मिलेगी महिला टीम को पहचान

दर्शकों को महिला क्रिकेट टीम में रूचि लेनी की बात पूछे जाने पर डायना कहती हैं कि इस काम के लिए आपको ट्रॉफी जीतनी होगी। उन्होंने बताया कि महिला क्रिकेट टीम अपना आईपीएल खेले इस पर भी बीसीसीआई का विचार है। जल्द ही इस पर फैसला भी होगा। पहले इसे लेकर सोचा जा रहा था लेकिन कोविड परिस्थितियों के कारण ये काम रुक गया। उन्होंने महिला क्रिकेट को ख्याति दिलाने के लिए आईपीएल को एक बेहद जरूरी चीज बताया। उन्होंने कहा सिर्फ इंडिया में पहचान बनाने में ही नहीं, ये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारतीय टीम की मदद करेगा।

लड़कियाँ लें खेल में दिलचस्पी

पाकिस्तान-भारत के पिछले मैच और होने वाले सभी मैचों को लेकर डायना कहती है कि किसी टीम को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, हमेशा चौकन्ना रहना ही होगा। भारतीय टीम को जब जब प्रदर्शन का अवसर मिले तो 200 फीसद प्रदर्शन देना चाहिए। उन्होंने बाकी भारतीय लड़कियों के लिए भी कहा कि लड़कियों को अब खुलकर खेल में करियर बनाने के बारे में सोचना चाहिए। अब कोई दिक्कत नहीं है। इसके जरिए जॉब के अवसर भी आपको मिलते हैं। उन्होंने खेल जगत में आगे बढ़ने का मूल मंत्र बताया और कहा कि दृढ़ निश्चय (Determination), लगन (Dedication) और अनुशासन (Discipline)  आगे बढ़ने के लिए बहुत ज्यादा जरूरी है। सिर्फ कुछ पाने की इच्छा मत करो। उस काबिल बनो। आज हर खेल में लड़कियाँ अपना नाम कमा रही हैं। जिस खेल में कभी सोचा भी नहीं होगा वहाँ भी लड़कियाँ कमाल दिखा रही हैं। 

डायना कहती हैं, “हमने अपने संघर्ष से सुनिश्चित किया कि हमारे बाद की टीम इसे न देखें, इसलिए हमने उनके लिए काम किया। मेरी खुद की बहन भी 5 साल क्रिकेट (1976-1981) खेल चुकी है। हम साथ में खेलते थे हमें परिवारा का समर्थन था। लेकिन जो चीज हमने खेलते हुए फेस की उन्हे लेकर तब फैसले लिए जब हम उस पद पर पहुँचे। ये सुनिश्चित किया कि हर खिलाड़ी की जरूरत समय से पूरी हो। आज भी मैं ऐसी किसी भी काम के लिए तत्पर हूँ।” उन्होंने बताया कि उसके स्पोर्ट्स ऑफिसर रहते हुए वेस्टर्न रेलवे स्पोर्ट में सबसे सर्वश्रेष्ठ रहा। उन्हें ये देखकर अच्छा लगता है कि तमाम खिलाड़ी आज भी उन लोगों को सम्मान देते हैं और जब कौन बनेगा करोड़पति जैसे शो में उनका नाम लिया जाता है तो ये बेहद गौरवान्वित करने वाला क्षण होता है।

डायना एडुल्जी का सफर

डायना इडुल्जी का जन्म 26 जनवरी 1956 को बॉम्बे में हुआ था। उन्होंने 1976 में क्रिकेट खेलना शुरू किया। फिर टीम की कप्तान भी बनीं। भारतीय क्रिकेट टीम की खिलाड़ी होने के दौरान उन्हें स्लो लेफ्ट आर्म ऑर्थोडॉक्स बॉलिंग स्टाइल के लिए और राइट हैंड बैटिंग के लिए चलते पहचान मिली। इसके बाद उन्होंने रेलवे में अपना स्पोर्ट्स ऑफिसर का पद संभाला और बाद बीसीसीआई में प्रशासनिक पद भी रहीं। उन्होंने अपना आखिरी एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच 29 जुलाई 1993 में खेला था, जबकि उनका आखिरी टेस्ट ऑस्ट्रेलिया के साथ मेलबर्न में 1991 में हुआ था। भारतीय टीम के लिए 20 टेस्ट और 34 वनडे खेलने वाली डायना एडुल्जी पहले ही मैच में गंभीर चोट लगी थी। उनके आगे के चार दाँत टूट गए थे। लेकिन वे इससे डरी नहीं। चोट से उबरीं और वापस मैदान पर अपने जलवे बिखेरे। वह मैदान पर अपनी चुस्ती और दमखम के लिए भी जानी जाती थीं।

2022 महिला वर्ल्ड कप

आज जब भारतीय क्रिकेट टीम एक बार फिर से वर्ल्ड कप के लिए मैदान में है और जगह जगह उन्हें लेकर चर्चाएँ हो रही हैं। उस समय डायना जैसी तमाम पूर्व खिलाड़ियों के अनुभव, उनके संघर्ष और भी प्रासंगिक हो जाते हैं। डायना की तरह ही तमाम देशवासी भारत की महिला क्रिकेट टीम से ट्रॉफी की उम्मीद लगाए बैठे हैं। इससे पहले साल 2005 और 2017 में भारतीय क्रिकेट टीम फाइनल्स में गई थी। लेकिन बाद में उन्हें बिन ट्रॉफी लौटना पड़ा था। साल 2020 के टी-20 मैच में भी ‘टीम का प्रदर्शन उल्लेखनीय था मगर उस बार फिर ट्रॉफी हाथ नहीं आई। इस बार उम्मीद है कि भारतीय टीम ने पाकिस्तान को पहले मैच में धूल चटा कर सबको चौंकाया वैसे ही वो फाइनल्स जीतकर साबित कर दें कि महिला क्रिकेट टीम को खड़ा करने में जो सफर तय किया गया वो व्यर्थ नहीं है।

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