Tuesday, October 8, 2024
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जब डूबेगा सूरज, तब चंद्रमा पर होगा भारत का उदय: चंद्रयान 3 की सफल लैंडिंग के लिए देश-विदेश में हवन-पूजन, दक्षिण अफ्रीका से जुड़ेंगे PM मोदी

इसरो का यह मिशन सफल रहा तो चंद्रमा के साउथ पोल पर उतरने वाला भारत पहला देश बन जाएगा।

23 अगस्त 2023 की शाम जब सूरज डूब रहा होगा, तब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था (ISRO) चंद्रमा पर इतिहास लिखने की ओर अग्रसर होगा। चंद्रयान-3 शाम के 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर लैंड करेगा। दुनिया भर की नजरें इस समय पर टिकी है और सफल लैंडिंग के लिए देश-विदेश में हवन-पूजन हो रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस पल का साक्षी बनने के लिए दक्षिण अफ्रीका से जुड़ेंगे।

इसरो का यह मिशन सफल रहा तो चंद्रमा के साउथ पोल पर उतरने वाला भारत पहला देश बन जाएगा। इसरो ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर बताया है, “मिशन तय समय पर है। बिना व्यवधान के आगे बढ़ रहा है। सिस्टम की नियमित जाँच चल रही है। MOX/ISTRAC पर लैंडिंग ऑपरेशन का सीधा प्रसारण 23 अगस्त की शाम 05:20 बजे शुरू होगा।”

इसरो ने शुभकामनाओं के लिए आभार जताते हुए कहा है कि इस ऐतिहासिक पल को दुनिया भर में इसरो की वेबसाइट (https://isro.gov.in), यूट्यूब (https://youtube.com/watch?v=DLA_64yz8Ss), फेसबुक (https://facebook.com/ISRO) और डीडी नेशनल टीवी पर देखा जा सकता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, इसरो के इस मिशन के लिए देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हवन और पूजा के दौर जारी है। चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के लिए उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में विशेष भस्म आरती की गई। अमेरिका के न्यू जर्सी के मॉनरो में ओम श्री साईं बालाजी मंदिर में भारतीय समुदाय के लोगों ने इस मिशन की कामयाबी के लिए पूजा की।

आखिरी 15 मिनट पर टिका लैंडिग का सारा आधार

आंध्र प्रदेश के श्री हरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से 14 जुलाई 2023 को दोपहर 2.35 बजे चंद्रयान-3 मून मिशन को लॉन्च किया गया था। 3.84 लाख किलोमीटर की दूरी नापकर बुधवार 23 अगस्त की शाम को यह चंद्रमा पर पहुँचेगा।

रिपोर्ट के मुताबिक, चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग कराई जा रही है। इसमें कम से कम 15 से 17 मिनट का वक्त लगना है, लेकिन यही वो मुश्किल भरा वक्त है जिस पर पूरा मिशन टिका हुआ है। इस ड्यूरेशन को ’15 मिनट्स ऑफ टेरर’ यानी डर के 15 मिनट्स’ कहा जा रहा है। लैंडिग के इस अहम वक्त में अगर विक्रम लैंडर चंद्रमा के साउथ पोल उतरने में कामयाब रहा तो भारत दुनिया में ऐसा करने वाला पहला देश बन जाएगा।

चंद्रमा पर उतरने से दो घंटे पहले, लैंडर मॉड्यूल और चंद्रमा की स्थितियों के आधार पर यह तय किया जाएगा कि उस वक्त इसे उतारना सही होगा या नहीं। यदि सब कुछ अनुकूल नहीं रहा तो लैंडिंग 27 अगस्त को कराई जाएगी।

चंद्रयान-3 का दूसरा और फाइनल डीबूस्टिंग ऑपरेशन रविवार ( 20 अगस्त) की रात 1 बजकर 50 मिनट पर पूरा किया गया था। इसके पूरा होने के बाद लैंडर की चंद्रमा से कम से कम दूरी 25 किलोमीटर और अधिकतम दूरी 134 किलोमीटर रह गई है। डीबूस्टिंग में स्पेसक्राफ्ट की रफ्तार को धीमा किया जाता है।

शाम को Chandrayaan-3 लैंडिंग का भी है राज

चंद्रयान-3 की शाम को दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग कराने की भी वजह है। उस वक्त धरती पर शाम का वक्त होगा, लेकिन चंद्रमा पर सूरज उदय होगा। इसरो चीफ डॉ एस सोमनाथ के मुताबिक, यह वक्त इसलिए चुना गया है कि ताकि लैंडर को 14 से 15 दिन सूरज की रोशनी मिल सके। इससे लैंडर के जरिए सारे साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट्स करने में आसानी होगी। तस्वीरें भी साफ आ सकेंगी।

उन्होंने बताया कि विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को इस तरह डिजाइन किया गया है कि वो सूरज की रोशनी से ऊर्जा लेकर चंद्रमा पर 1 दिन बिता सके। दरअसल चंद्रमा पर एक दिन धरती के 14 दिन के बराबर होता है। भारत 2026 से पहले चंद्रमा के अँधेरे वाले क्षेत्रों को खोजने के लिए जापान के साथ एक ज्वाइंट लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन (Lupex) मिशन भी प्लान कर रहा है।

साउथ पोल है खास

अगर भारत का चंद्रयान-3 मिशन कामयाब होता है तो इससे बर्फ के रूप में मौजूद पानी (lunar Water Ice) के बारे में जानकारी में इजाफा होने की उम्मीद है। चंद्रमा पर इसी जमे हुए पानी की मौजूदगी की वजह से अंतरिक्ष एजेंसियाँ और निजी कंपनियाँ इसे चंद्रमा कॉलोनी, चंद्रमा पर खनन और मंगल ग्रह पर संभावित मिशनों की तरह देखती हैं। सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन ही ऐसे तीन देश हैं जिन्होंने चंद्रमा पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग की है। अमेरिका ने 10 जनवरी 1968 में सर्वेयर-7 स्पेसक्राफ्ट को चंद्रमा के साउथ पोल के पास उतारा था। यह जगह चंद्रयान-3 के लैंडिंग स्पॉट से काफी दूर है।

इसरो चीफ डॉ एस सोमनाथ के मुताबिक, दक्षिणी ध्रुव के पास मैंजिनिस-यू (Manzinus-U) क्रेटर के पास चंद्रयान को उतारा जाएगा। चंद्रयान-3 के लिए एक चुनौती तापमान भी है। दक्षिणी ध्रुव पर तापमान माइनस 200 डिग्री सेल्यियस या उससे भी कम हो जाता है। इसरो से पहले साउथ पोल पर रूस का लूना-25 लैंड करने वाला था, लेकिन 20 अगस्त को वह हादसे का शिकार हो गया और मिशन फेल हो गया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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