Sunday, April 28, 2024
Homeविविध विषयविज्ञान और प्रौद्योगिकीISRO में नहीं होता लैंगिक भेदभाव, सीनियर्स ने हमेशा सपोर्ट किया : Aditya L-1...

ISRO में नहीं होता लैंगिक भेदभाव, सीनियर्स ने हमेशा सपोर्ट किया : Aditya L-1 मिशन को जिस महिला ने किया कामयाब, जानें उनकी कहानी

ISRO ने आदित्य एल-1 (Aditya L-1) मिशन को पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर ‘लैग्रेंज प्वाइंट 1’ पर सफलतापूर्वक पहुँचाकर नया इतिहास रचा। इस अभियान के कामयाब होते ही एक बार फिर एक महिला साइंटिस्ट चर्चा में आ गईं। इस बार इसरो को गौरवान्वित करने वाली महिला का नाम है- निगार शाजी।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने आदित्य एल-1 (Aditya L-1) मिशन को पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर ‘लैग्रेंज प्वाइंट 1’ पर सफलतापूर्वक पहुँचाकर नया इतिहास रचा। इस अभियान के कामयाब होते ही एक बार फिर एक महिला साइंटिस्ट चर्चा में आ गईं।

इस बार इसरो को गौरवान्वित करने वाली महिला का नाम है- निगार शाजी। उन्होंने ही इस पूरे प्रोजेक्ट को लीड किया और 8 साल तक इस पर काम करके इसकी सफलता सुनिश्चित की। अब उनके मुस्कुराते चेहरे से इस कामयाबी की खुशी का अंदाजा लगाया जा सकता है।

आइए आज इन्हीं निगार शाजी के बारे में जानें

तमिलनाडु के तेनकासी जिले के सेनगोट्टई में निगार का जन्म हुआ था। स्कूली शिक्षा उन्होंने सेनगोट्टई से ली। बाद में मदुरै कामराज विश्वविद्यालय के तहत तिरुनेलवेली के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लिया। यहाँ से उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन में इंजीनियरिंग की डिग्री ली। और फिर, बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा से इलेक्ट्रॉनिक्स में मास्टर डिग्री हासिल की।

आज उनकी उम्र करीबन 59 वर्ष है। साल 1987 में उन्होंने इसरो ज्वाइन किया था। शुरू में वह आंध्र प्रदेश के पास श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष बंदरगाह पर काम कर रही थीं। बाद में उन्हें बेंगलुरु के यू आर राव सैटेलाइट सेंटर भेजा गया। इसरो में रहते हुए वह कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स से जुड़ीं। जानकारी के मुताबिक आदित्य एल-1 से पहले वह रिसोर्ससैट-2 ए के सहयोगी परियोजना निदेशक थीं। इसके अलावा निचली कक्षा और ग्रहीय मिशनों के कार्यक्रम की निदेशक भी हैं।

पारिवारिक बैकग्राउंड की बात करें तो शाजी एक किसान परिवार से आती हैं। उनके पिता शेख मीरान भी किसान हैं। हाल में उन्होंने कहा था- “मेरे माता-पिता दोनों ने मेरे पूरे बचपन में मेरा बहुत सहयोग किया। उनके निरंतर समर्थन के कारण ही मैं इतनी ऊँचाई तक पहुँचीं।”

उन्होंने इसरो में होने वाले किसी भी प्रकार के लैंगिक भेदभाव को नकारा और कहा कि इतने सालों में उन्हें कभी भेदभाव नहीं झेलना पड़ा। उलटा वो तो अपने सीनियर्स को उनकी कामयाबी का श्रेय देती हैं। उन्होंने हाल में कहा था, “टीम लीडर होने के नाते मेरे अंडर में कई लोग काम करते हैं। मैं भी उन्हें उसी तरह से तैयार करती हूँ जैसे मेरे वरिष्ठों ने मुझे तैयार किया था।”

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘पहले दलालों के लिए सालों साल बुक रहते थे दिल्ली के होटल, हमने चला दिया स्वच्छता अभियान’: PM मोदी ने कर्नाटक में उठाया फयाज...

पीएम मोदी ने कहा कि जो लोग पड़ोस से आतंकवाद एक्सपोर्ट करते थे, आज उनको आटा इंपोर्ट करने में लाले पड़ रहे हैं - वोट से आया ये परिवर्तन।

IIT से इंजीनियरिंग, स्विटरजरलैंड से MBA, ‘जागृति’ से युवाओं को बना रहे उद्यमी… BJP ने देवरिया में यूँ ही नहीं शशांक मणि त्रिपाठी को...

RC कुशवाहा की कंपनी महिलाओं के लिए सैनिटरी नैपकिंस बनाती है। उन्होंने बताया कि इस कारोबार की स्थापना और इसे आगे बढ़ाने में उन्हें शशांक मणि त्रिपाठी की खासी मदद मिली है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe