Thursday, October 3, 2024
Homeदेश-समाज11 पाकिस्तानी हिंदू विस्थापितों की मौत: ISI का हाथ, इस्लाम कबूल करवाने की साजिश...

11 पाकिस्तानी हिंदू विस्थापितों की मौत: ISI का हाथ, इस्लाम कबूल करवाने की साजिश या लोकल माफिया?

"पाकिस्तान का ISI नहीं चाहता है कि वहाँ से हिन्दू भाग कर भारत आएँ। इसीलिए उनके मन में ये डर बिठाया जा रहा है कि वो भारत में भी सुरक्षित नहीं हैं। ऐसी ख़बरों से डर कर पाकिस्तान में कई पीड़ित हिन्दू इस्लाम अपना लेते हैं।"

जोधपुर में अगस्त 9, 2020 को एक पाकिस्तानी विस्थापित हिन्दू परिवार के 11 लोगों की लाश खेत से मिलने के बाद सनसनी मच गई थी। विस्थापितों की मौत के मामले में अब बड़ा खुलासा हुआ है, जिसमें तीन बहादुर बहनों के संघर्ष की कहानी छिपी है। जहरीले रसायन के सेवन के बाद उनकी मौत हुई थी। विस्थापतों की सामूहिक आत्महत्या के पीछे की जो कहानी, वो काफी चौंकाने वाली है।

जहाँ पाकिस्तान में हिन्दुओं की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है, वहीं अब जब वो भारत आकर शरण लेते हैं फिर भी उन्हें तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सिंधियानी तहरीक, सिंध फ्रीडम मूवमेंट सांगड़ इकाई की लक्ष्मी, प्रिया और सुमन की भी यही कहानी है, जो पाकिस्तान में हर अत्याचार को बर्दाश्त करते हुए लड़ती रहीं। उनके माता-पिता, भाई-भाभी और बच्चे, सब शरणार्थी बन कर भारत आ गए।

वो तीन बहनें हैं। तीनों ने पूरे परिवार को भारत भेजने के बाद खुद भी इधर का रुख किया। परिवार को 5 साल का स्थाईवास मिला, जिसके बाद वो राजस्थान के जोधपुर में रहने लगे। लेकिन, एजेंटों और गारंटरों का जंजाल यहाँ उनका इन्तजार कर रहा था, ताकि अपने जाल में फँसा सके। नियम है कि किसी भारतीय को गारंटर बनाया जाता है लेकिन विजिटर वीजा पर आए परिवार ने मज़बूरी में स्थानीय विस्थापितों के ही एक नेता को गारंटर बनाया।

फॉरेनर रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (FRO) बिना गारंटर के स्थाईवास की अनुमति नहीं देता है। इसके बाद परिवार आँगणवा में विस्थापितों की एक बस्ती में रहने लगा। ‘दैनिक भास्कर’ में प्रकाशित एक एक्सक्लूसिव ख़बर के अनुसार, यहाँ का मुखिया उनकी दोनों भाभियों की तरह इन तीनों बहनों को भी काबू में करना चाहता था। भाभियाँ अपने पतियों के साथ नहीं रहती थीं, इसीलिए उन्हें घर लाने की कवायद शुरू की गई।

तीनों जवान लड़कियों की गूँगे-बहरों के साथ जबरन शादी करा दी गई और उन्हें ऐसे ही रहने को मजबूर किया गया। वो लोग देचू के खेत में बस गए लेकिन वहाँ रहना गैर-क़ानूनी था और स्थाईवास जोधपुर का ही था। जून तक तीनों बहनों और उनके माता-पिता का वीजा भी ख़त्म हो गया। स्थाईवास के लिए फिर आवेदन दिया गया लेकिन गारंटर और मुखिया की नाराजगी के कारण स्थाईवास आगे नहीं बढ़ा।

आखिरकार सिंध की आजादी के लिए लड़ने वाली तीनों बहनों ने परिवार के साथ ही जान दे दी क्योंकि शायद उनके पास और कोई चारा नहीं था और उन्होंने पाकिस्तान लौटने की बजाए मौत को गले लगाना बेहतर समझा। भाभियों से झगड़े के कारण पारिवारिक कलह भी बढ़ गया था। यहाँ रहने पर उन्हें शोषण का शिकार बनाया जाता। भाभियों द्वारा पुलिस केस किए जाने के कारण उन्हें यहाँ की नागरिकता भी नहीं मिलती।

रिश्तेदार का कहना है कि केवलराम की पत्नी धांधीदेवी और रवि की पत्नी शरीफा यहाँ पहले आई थीं लेकिन जब केवलराम व रवि के वृद्ध माता-पिता और बच्चे यहाँ आ गए तो दोनों महिलाओं ने परिवार के साथ रहने से इनकार कर दिया। अंततः बच्चों की कस्टडी के लिए झगड़ा शुरू हो गया। दोनों की पत्नियाँ रिश्ते में मौसी-भांजी हैं। चेतन भील इस बस्ती का मुखिया है, जो 2012 में एक धार्मिक जत्थे के साथ यहाँ आया था।

उसने ही परिवार को पनाह दी थी लेकिन तीनों बहनें यहाँ आ गईं तो फिर विवाद शुरू हो गया। गंगाराम और भागचंद एजेंट्स हैं, जो पाकिस्तान से आए हैं। भागचंद 2000 विस्थापितों को वीजा दिलाने का दावा करता है। सुनील भाटी स्थानीय नेता है, जो गारंटर बना था। चेतन के नाराज होने के बाद वो भी धमकियाँ दे रहा था। आरोप है कि पुलिस ने लक्ष्मी को गिरफ्तार कर के परिवार के साथ दुर्व्यवहार किया।

स्थानीय डीएसपी पर आरोप है कि उन्होंने परिवार को वापस पाकिस्तान भेजने की धमकी दी थी। महिला कॉन्सटेबलों ने भी परिवार के साथ दुर्व्यवहार किया, ये भी आरोप लगे हैं। जोधपुर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक नवज्योति गोगोई ने स्वीकार किया है कि ये मामला संवेदनशील है और आत्महत्या का है। लक्ष्मी ने मौत से पहले वीडियो बनाया था और डायरी में कुछ बातें लिखी थीं, जिनकी जाँच चल रही है।

पुलिस ने बताया कि लक्ष्मी ने जिन-जिन से बात की थी, उनके रिकार्ड्स खँगाले जाने के साथ-साथ उसने जिन-जिन का नाम लिया है, उन सबसे पूछताछ जारी है। गोगोई ने कहा कि परिवार की पीड़ा के कई एंगल सामने आ रहे हैं। उन्होंने विस्तृत जाँच के बाद दोषियों को चिह्नित कर सजा दिलाने और सिस्टम में सुधार करने का भी आश्वासन दिया है। हालाँकि, उन्होंने कहा कि इस पूरी प्रक्रिया में समय लगेगा।

वहीं ऑपइंडिया ने जब दैनिक भास्कर की इस खबर को लेकर राजस्थान में पाकिस्तानी हिंदू विस्थापितों की मदद करने वाली संस्था ‘निमित्तेकम’ के ओमेंद्र रत्नू से बात की तो उन्होंने इस खबर को ही नकार दिया और कहा कि ये सब मीडिया में झूठ फैलाया जा रहा है। ओमेंद्र ने कहा कि सीएए के तहत भारत सरकार 31,000 विस्थापितों को कोरोना काल में नागरिकता देने वाली थी, ऐसे में ये खबर गलत है।

उन्होंने अपने बयान के पीछे कारण गिनाते हुए कहा कि पाकिस्तान का आईएसआई नहीं चाहता है कि वहाँ से हिन्दू भाग कर भारत आएँ। इसीलिए उनके मन में ये डर बिठाया जा रहा है कि वो भारत में भी सुरक्षित नहीं हैं। उन्होंने बताया कि ऐसी ख़बरों से डर कर पाकिस्तान में कई पीड़ित हिन्दू इस्लाम अपना लेते हैं, इसीलिए मीडिया में ये बातें चलाई जाती हैं। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत मामलों के कारण परिवार ने आत्महत्या की, जिसे लेकर डर बनाया जा रहा है।

ओमेंद्र ने कहा कि इस घटना का न तो कॉन्ग्रेस से कोई सम्बन्ध है और न ही इसका कोई जिहादी लिंक है। उन्होंने दावा किया कि लक्ष्मी नामक लड़की अपने परिवार को डोमिनेट करना चाहती थी, शिक्षित भी थी, इसीलिए परिवार को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने कहा कि परिवार का एक व्यक्ति ज़िंदा बचा है, जिसके बयान के आधार पर कुछ भी दावा किया जा सकता है। उन्होंने इसे आईएसआई की साजिश करार दिया।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन का केस अब सुप्रीम कोर्ट खुद देखेगा, हाई कोर्ट के आदेश पर रोक: तमिलनाडु पुलिस ने बटालियन भेज...

सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन की जाँच वाले मद्रास हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को भी ट्रांसफर कर दिया है।

इंतजार करते-करते माता-पिता, पत्नी-पुत्र सबकी हो गई मौत… 56 साल बाद घर आया बलिदानी जवान का शव: पौत्र ने दी मुखाग्नि, मजदूरी कर जीवनयापन...

1968 में इंडियन एयर फोर्स का AN-12 विमान क्रैश हो गया था। उसमें उस वक्त मलखान सिंह भी थे जिनका शव 56 साल बाद सियाचिन ग्लेशियर से बरामद हुआ है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -