Thursday, November 14, 2024
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500 नक्सली JNU में घुस आए थे, जान बचा कर जंगलों से भागा: BPSC अफसर की आपबीती

"मैंने अपनी आँखों से JNUSU अध्यक्ष आईशी घोष को पेरियार हॉस्टल के हमारे विंग में भाग कर आते देखा। उस समय तक वो दुरुस्त थीं, मुझे नहीं पता फिर उसे चोट कब आई। करीब एक घंटे तक पेरियार के गेट पर पत्थरबाजी चलती रही।"

नोट: जिनकी आपबीती आप पढ़ने वाले हैं, उनकी समस्या यह है कि वो अब सरकारी अधिकारी बनने वाले हैं। ऐसे किसी राजनीतिक पोस्ट के प्रतिकूल असर को देखते हुए उन्होंने अपना नाम और पद गोपनीय रखने की शर्त रखी है।

BPSC में चयन के बाद से मैंने सोचा था कि अब राजनैतिक विषयों पर पोस्ट नहीं लिखूँगा, लेकिन कल JNU में जो कुछ हुआ उससे अभी तक उबर नही पाया हूँ, इसलिए लोगों के बीच कल के घटना की सच्चाई बताना अपना कर्तव्य समझता हूँ। कल रात 8 बजे मैं किसी तरह जंगलों के रास्ते कैम्पस से बाहर निकला। अभी किसी मित्र के घर शरण लिया हूँ क्योंकि कैम्पस में यदि रात को रुकता तो पता नहीं हमारे साथ क्या होता, मेरे बेहद करीबी मित्र “ब” का माथा फोड़ दिया गया। वह कावेरी छात्रावास से पेरियार छात्रावास यह देखने आ रहा था कि मैं सुरक्षित हूँ या नहीं और इसी दरम्यान उसे नक्सल गुंडों ने पीट-पीट कर अधमरा कर दिया।

मैं तीन रात से ठीक से सो नहीं पाया था क्योंकि बैंग्लोर में कई सारे मित्रों से मिलना हुआ था। कल दिन में 12 बजे के आसपास मैं बंगलोर से वापस पेरियार हॉस्टल पहुँचा। विंटर सेमेस्टर के रजिस्ट्रेशन का कल आखिरी दिन था, लेकिन नक्सलियों ने 2 दिन पहले ही पूरे कैम्पस का WiFi बंद कर दिया था, नकाबपोश गुंडों ने WiFi के सारे केबल काट दिए थे ताकि किसी भी सेंटर में रेजिस्ट्रेशन ना हो सके। तकरीबन 3 महीने से इन नक्सलियों ने JNU के सारे केंद्रों को जबरदस्ती बंद कर रखा था। जो छात्र रेजिस्ट्रेशन करवा रहे थे नक्सली उनकी लिस्ट तैयार कर रहे थे ताकि उन पर नक्सल कारवाई की जा सके। कल की घटना इसी नक्सल हमला के संदर्भ में हुई।

मित्र “क” और “ख” चार बजे दिन तक मेरे कमरे पर बैठ कर बातें कर रहे थे। जब मैंने बोला कि बहुत नींद आ रही है, मैं कुछ देर सोता हूँ, तो वे लोग चले गए। उनके गए हुए आधा घंटा भी नहीं हुआ था कि अचानक पेरियार हॉस्टल के नीचे काफी शोर होने लगा, मैं इतना थका हुआ था कि उठ कर देखने का साहस नहीं हो रहा था कि क्या हुआ है, लेकिन 5 मिनट के अंदर ही ऐसा लगा कि हॉस्टल के शीशे टूट रहे हैं, मैं फटाफट उठ कर लॉबी में गया, देखा लगभग 200 नकाबपोश लोग हाथों में लोहे का रॉड तथा डंडे लिए पेरियार हॉस्टल के हरेक कमरे में घुसते चले जा रहे हैं, और डंडों से बेतरतीब प्रहार करके दरवाजे और खिड़कियों को तोड़ रहे हैं।

जैसे ही इन नकाबपोश नक्सलियों की नजर मेरे पर पड़ी उन्होंने मुझे गालियाँ दीं और मेरे कमरे की ओर झपटे। किसी तरह मैं कमरे में घुसकर, दरवाजा के पीछे लकड़ी का अलमीरा, टेबल तथा कुर्सियाँ लगाकर दरवाजा को ब्लॉक किया। वे दरवाजा पर आकर इतनी तेज लाठियाँ बरसा रहे थे जैसे मॉब लिंचिंग करने आए हों। 3-4 मिनट ऐसा करने के बाद वो दूसरी तरफ गए और हॉस्टल से चीखने चिल्लाने की आवाज़ आती रही।

उनके जाने के बाद मैं अपने कमरे के बालकनी में गया, मेरा बालकनी हॉस्टल के मुख्य गेट की तरफ खुलता है। मैंने वहाँ देखा करीब 500 लोग नकाब पहने हाथों में डंडे लिए गोदावरी छात्रावास में छात्रों को पीट रहे हैं, नकाबपोश लड़कियाँ पत्थरबाजी कर रही थीं। यह बहुत ही सिहरा देने वाला दृश्य था, मैं यकीन नहीं कर पा रहा था कि यह क्या हो रहा है मेरे JNU में। लगभग आधे घंटे में सारे नक्सली पेरियार से यह कहते हुए निकल गए कि चलो अब माही मांडवी हॉस्टल चलकर पीटते हैं। मुझे लगा अब शांत हो गया।

उसके 20-25 मिनट के अंदर एक बार फिर से पेरियार हॉस्टल में 500 की संख्या में नकाबपोश नक्सली दौड़ते हुए आए, इस बार पेरियार हॉस्टल के गेट पर ही उन्होंने पेरियार के छात्रों को बेतहाशा पीटा, मैं बालकनी से सब देख रहा था। मुझे वे नीचे से इशारा कर रहे थे कि रुको छोड़ूँगा नहीं। इसी बीच 50 लोगों की एक टुकड़ी फिर से हॉस्टल के अंदर दौड़े, फिर से दरवाजे खिड़कियों को तोड़ने का क्रम शुरू, इस बार मैं काफी डर गया था, मैंने पुलिस को फोन किया कि हम बेहद खराब स्थिति में फँसे हुए हैं, कृपया हमें बचाया जाए। मैंने अपनी आँखों से JNUSU अध्यक्ष आईशी घोष को पेरियार हॉस्टल के हमारे विंग में भाग कर आते देखा। उस समय तक वो दुरुस्त थीं, मुझे नहीं पता फिर उसे चोट कब आई। करीब एक घंटे तक पेरियार के गेट पर पत्थरबाजी चलती रही।

लगभग एक घंटे के बाद मेरे मोबाइल पर एक शिक्षक “द” का बहुत सारा कॉल आया कि मेरा मित्र “ब” फोर्टिस अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में है, मुझे हॉस्टल छोड़ कर निकल जाना चाहिए। हॉस्टल का कार्यकारी अध्यक्ष मेरे कमरे पर आया। उसने बताया कि हॉस्टल मेस में भी तोड़-फोड़ की गई है। उसने बताया कि आज खाना नहीं मिलेगा और रात को और भी गहरा नक्सली अटैक होने की संभावना है, यदि निकल सकते हैं तो निकल जाइए। मैंने सपनों में भी नहीं सोचा था कि ऐसे किसी दिन JNU छोड़कर जाना होगा, जिस JNU पर हम सबसे सुरक्षित होने का अभिमान करते थे। मेरे लॉबी में अब तक सारे कमरों में ताला लग चुका था।

जैकेट में मुँँह ढककर मैं जंगलों के रास्ते 8:30 के करीब कैम्पस से बाहर निकल गया। बाहर आते ही मुझे मित्रों से पता चला कि मीडिया में लोग बता रहे हैं कि ABVP वालों ने पिटाई की है, मेरे पास सफ़ाई में बोलने के लिए कुछ नहीं है। मैं कुशल हूँ, आप सबके कॉल और मेसेज आ रहे हैं, चिंता की कोई बात नहीं है। दुख की बात बस इतनी सी है कि JNU के अपने अंतिम दिनों में मैंने वामपंथ का चरमपंथी आतंकी स्वरूप अपने आँखों से देखा।

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