आजाद भारत के इतिहास में आपातकाल का काला दौर आज भी लोगों की स्मृतियों से धुँधला नहीं हुआ है। यही वजह है कि 94 साल की विधवा वीरा सरीन 45 साल बाद इंसाफ माँगने सुप्रीम कोर्ट पहुँची हैं। इस विधवा की गुहार है कि साल 1975 में इंदिरा गाँधी के शासन के दौरान लागू किया गया आपातकाल असंवैधानिक घोषित किया जाए और उन्हें मुआवजे के तौर पर 25 करोड़ रुपए दिलवाए जाएँ।
94 साल की वीरा सरीन चाहती हैं कि चार दशक पहले उनका और उनके बच्चों का जो भी आपातकाल की वजह से नुकसान हुआ, उसकी अब भरपाई हो। सुप्रीम कोर्ट में डाली गई याचिका के अनुसार, तत्कालीन सरकार (इंदिरा सरकार) ने उनके पति और उन पर ‘अनुचित और मनमाने ढंग से डिटेंशन के आदेश’ जारी किए। इसके कारण उन्हें देश छोड़ना पड़ा। सरकार के आदेशों से उनका बिजनेस ठप्प हो गया। वहीं कई मूल्यवान वस्तुओं को अपने कब्जे में ले लिया।
याचिका में कहा गया है कि सरकार का यह अत्याचार याचिकाकर्ता के पति बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने दबाव में आकर दम तोड़ दिया। इसके बाद वह अकेले हर परेशानी को झेलती रहीं और उन कार्रवाइयों को खुद ही सामना किया जो उनके ख़िलाफ़ आपातकाल में शुरू हुई थीं।
साल 2014 में उस मामले से जुड़ी सारी प्रोसीडिंग को खत्म किया गया, लेकिन उनके पति की अचल संपत्ति उन्हें अब तक वापस नहीं मिली है जो उनसे आपातकाल के समय अवैध रूप से छीनी गई थी।। दुखद यह है कि कुछ समय पहले याचिकाकर्ता के बेटे ने अपनी माँ के जेवरों के कुछ चोरी हुए हिस्सों को नई दिल्ली की एक सेल में देखा था।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एस के कौल के समक्ष उनके मामले पर अब 7 दिसंबर को सुनवाई होगी। यहाँ बता दें कि वीरा की शादी 1957 में एचके सरीन से हुई थी। सरीन करोल बाग और कनॉट प्लेस में उत्कर्ष कला व रत्न का व्यवसाय करते थे। जब आपातकाल लागू हुआ तो सरीन की बेशुमार दौलत को सरकार ने जब्त कर लिया। लंबे समय तक उनके परिवार के लोग सरकार के अत्याचार का शिकार बने रहे।
अब वीरा कीमती रत्नों का व्यावसाय करने वाले अपने पति की दौलत की लूट को लेकर अधिकारियों पर सारी जिम्मेदारी तय करते हुए 25 करोड़ की हर्जाना माँग रही हैं। महिला फिलहाल देहरादून में अपने बेटे के साथ रहती हैं और उनके द्वारा दायर याचिका में गृह मंत्रालय को भी एक पक्षकार बनाया गया है। वह चाहती हैं कि उनकी माँग पर सुनवाई हो, ताकि जीवन भर वह जिस पीड़ा से गुजरीं और दुख उठाया, उन सब पर विराम लगे।