Thursday, April 25, 2024
Homeदेश-समाजSC ने फिर कहा- ग़रीबों को 10% आरक्षण वाले विधेयक पर रोक नहीं

SC ने फिर कहा- ग़रीबों को 10% आरक्षण वाले विधेयक पर रोक नहीं

आर्थिक आरक्षण विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा दो दिनों के भीतर पारित किया गया था। संसद द्वारा अनुमोदित किए जाने के तीन दिन बाद, राष्ट्रपति ने भी इस बिल पर हस्ताक्षर कर दिए थे।

सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य वर्ग के ग़रीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी विधेयक पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। आज (फरवरी , 2019) दूसरी बार है जब संविधान (103वें) संशोधन विधेयक पर उच्चतम न्यायालय ने रोक लगाने से इनकार कर दिया भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना की खंडपीठ ने तहसीन पूनावाला की उस याचिका पर सुनवाई करते हुए ऐसा कहा, जिसमे संविधान संशोधन अधिनियम को चुनौती दी गई थी।

बता दें कि याचिकाकर्ता तहसीन पूनावाला कॉन्ग्रेसी नेता हैं। पूनावाला की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने भारत सरकार के ख़िलाफ़ दायर की गई याचिका में आरक्षण के 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा को पार करने पर चिंता जताई। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने जल्द सुनवाई के लिए याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमति जताते हुए कोई भी अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया।

बता दें कि आर्थिक आरक्षण विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा दो दिनों के भीतर पारित किया गया था। संसद द्वारा अनुमोदित किए जाने के तीन दिन बाद, राष्ट्रपति ने भी इस बिल पर हस्ताक्षर कर दिए थे। हालाँकि, राष्ट्रपति की सहमति मिलने से पहले ही ग़ैर-सरकारी संगठन यूथ फॉर इक्वेलिटी ने सुप्रीम कोर्ट में इस क़ानून को चुनौती दे दी थी। 14 जनवरी से आर्थिक आरक्षण अधिनियम लागू हुआ।

यूथ फॉर इक्वलिटी’ और कौशल कान्त मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल कर विधेयक के ख़िलाफ़ दलील देते हुए कहा था कि अगर आर्थिक आधार पर आरक्षण मिलता भी है तो उसे केवल सामान्य वर्ग तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता है। बता दें कि इंदिरा साहनी वाले केस में अदालत ने ये फ़ैसला सुनाया था कि केवल आर्थिक स्थिति आरक्षण का आधार नहीं बन सकती।

इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट में इस विधेयक को चुनौती देते हुई कई याचिकाएँ दाख़िल की गई। सिर्फ़ सुप्रीम कोर्ट ही नहीं, बल्कि देश के अन्य न्यायालयों में भी इस विधेयक को चुनौती देती कई याचिकाएँ दाख़िल की गई। तमिलनाडु की राजनीतिक पार्टी डीएमके ने भी मद्रास उच्च न्यायालय में याचिका दाख़िल कर इस अधिनियम को चुनौती दी है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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