Friday, March 29, 2024
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मुख्तार अंसारी पर हत्या का केस… 30-40 पुलिस वालों से भरे कोर्ट में गाली सुनने वाले जज की कहानी, 5 करोड़ रुपए लेकर लिखा गया था फैसला?

अशोक सिंह के सहयोगी और मऊ जिला न्यायालय में वकील सुनील सिंह ने ऑपइंडिया से बात की। उन्होंने बताया कि जब मन्ना सिंह हत्याकांड में जज आदिल आफताब ने मुख़्तार अंसारी को बरी किया तब सजा पाए एक अन्य मुल्जिम ने उन पर भरी कोर्ट में रिश्वत लेने का आरोप लगाया।

उत्तर प्रदेश में दशकों तक अपराध जगह की रीढ़ रहे माफिया मुख़्तार अंसारी के आपराधिक इतिहास की पड़ताल में ऑपइंडिया की टीम अप्रैल व मई माह में पूर्वांचल के अलग-अलग जिलों में गई। इस दौरान हमें मुख़्तार द्वारा प्रताड़ित किए गए तमाम पीड़ितों ने अपने अलग-अलग अनुभव बताए। हत्या, हत्या के प्रयास, जमीन कब्ज़ाने, गुंडा टैक्स उगाही के अलावा मुख़्तार अंसारी पर अपने खिलाफ दर्ज केस की फाईलें भी गायब करवा देने का आरोप है।

इस दौरान कुछ पीड़ितों ने यह भी आरोप लगाया कि मुख़्तार अंसारी का दबाव न्यायपालिका पर भी था। पीड़ितों और वकील ने जजों पर मुख़्तार के खिलाफ फैसले से पहले छुट्टी पर चले जाने और अनुचित फैसला सुनाने का भी आरोप लगाया।

4 वर्षों तक कोर्ट में पेश ही नहीं हुआ मुख़्तार

जिन अजय सिंह उर्फ़ मन्ना की हत्या का आरोप 2009 में मुख़्तार अंसारी पर लगा था, उनके भाई अशोक सिंह ने ऑपइंडिया से बात की। अशोक सिंह ने हमें बताया कि 2009 में उनके भाई मन्ना की हत्या के बाद 2010 में इसी केस के गवाह राम सिंह मौर्य और उनके सरकारी गनर को भी मार डाला गया था। अशोक सिंह ने आगे बताया कि 4 साल तक मुख़्तार अंसारी इस केस में मऊ कोर्ट में हाजिर ही नहीं हुआ था।

उन्होंने कहा कि मुख़्तार दूसरे मामलों में अपनी गैर-हाजिरी लगवा लेता था। ऐसा करते हुए मुख़्तार ने 4 साल बिता दिए और साल 2014 आ गया। अशोक ने बताया कि इन 4 सालों तक मुख़्तार केस में जजों से अपनी सेटिंग भिड़ाता रहा।

फैसले के दिन ही केस से हट गए थे जिला जज

अशोक सिंह ने आगे बताया कि 4 साल तक मुख़्तार अंसारी ने उनके भाई के हत्याकांड केस को लगातार गैर-हाजिर रह कर टाला। अशोक ने आगे बताया, “4 साल बाद 2014 में केस की सुनवाई हुई और इसी साल मऊ के तत्कालीन जिला जज अनिरुद्ध सिंह की कोर्ट में मुख़्तार अंसारी को सजा सुनाने का दिन आया।” उस दिन का जिक्र करते हुए अशोक सिंह ने कहा, “फैसले की डेट पड़ी। शाम के समय केस से वास्ता रखने या न रखने वाले कचेरी के तमाम लोग वहीं थे। सारे मुल्जिम बुला लिए गए। हथकड़ियाँ मँगा ली गईं। ये लगा कि जज साहब फैसला सुनाने जा रहे हैं।”

अशोक सिंह ने कहा कि इसी दिन मुख़्तार अंसारी ने जिला जज अनिरुद्ध सिंह की कोर्ट से अपना केस हटवाने की हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी, लेकिन वो ख़ारिज हो गई थी। घटनाक्रम बताते हुए अशोक ने कहा, “थोड़ी देर बाद अंदर जब जज साहब अंदर गए तो वहाँ से निकले ही नहीं। अंदर से ही इन्होंने फाइल ADJ के यहाँ ट्रांसफर कर दी। ये दबाव मुख़्तार अंसारी का रहा।” अशोक सिंह ने बताया कि उन्हें कहीं से सुनाई दिया था कि जज अनिरुद्ध सिंह पर कोई बड़ा दबाव आया था।

जज आदिल आफताब का न्याय संदिग्ध: पीड़ित

अशोक सिंह ने बताया कि साल 2014 में जिला जज ने जब उनके भाई मन्ना के हत्याकांड केस में फैसले के दिन खुद को अलग कर लिया तब वह केस सेशन जज आदिल आफ़ताब की कोर्ट में गया। उन्होंने कहा कि साल 2014 से 2017 तक आदिल आफ़ताब ने इस केस की सुनवाई की। साल 2017 में आदिल आफ़ताब ने मुख़्तार अंसारी को मन्ना सिंह हत्याकांड में बरी कर दिया।

फैसले के दिन का जिक्र करते हुए अशोक सिंह ने कहा, “हमारे वकील आदिल आफ़ताब की कोर्ट से केस ट्रांसफर करवाने जिला जज के यहाँ प्रार्थना पत्र देने जा रहे थे। कोर्ट में उस दिन न मुल्जिम आए थे और न ही विपक्ष वाले लेकिन आदिल आफ़ताब ने फैसला सुना दिया।”

जज आदिल आफ़ताब की शिकायत हाईकोर्ट में

सेशन जज आदिल आफ़ताब के फैसले से अशोक सिंह ने खुद को असंतुष्ट बताया। उन्होंने कहा कि उनके द्वारा इसकी शिकायत हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और रजिस्टार को लिखित तौर पर की गई है। इस शिकायत में जज आदिल आफ़ताब के सुनाए गए फैसले की पूरी जाँच की माँग की गई है। अशोक सिंह ने कहा कि अगर उनके भाई मन्ना सिंह के हत्यारों को भाड़े का शूटर बता कर मुख़्तार को बरी किया गया है तो ये भी बताया जाए कि उन कातिलों को खरीदा किसने था? अशोक सिंह ने सवाल किया कि फैसला सुनाते समय इस गहराई तक कोर्ट क्यों नहीं गई ?

हालाँकि, अशोक सिंह को जज आदिल आफ़ताब के खिलाफ भेजी शिकायत पर हुई जाँच के निष्कर्ष के बारे में कुछ नहीं पता। उन्होंने कहा कि 2 बार उन्होंने शिकायत की है लेकिन संभवतः जजों की जाँच गोपनीय होती है इसलिए क्या हुआ इसकी जानकारी उन्हें नहीं है।

भरी कोर्ट में जज पर लगा था रिश्वत का आरोप

अशोक सिंह के सहयोगी और मऊ जिला न्यायालय में वकील सुनील सिंह ने ऑपइंडिया से बात की। उन्होंने बताया कि जब मन्ना सिंह हत्याकांड में जज आदिल आफताब ने मुख़्तार अंसारी को बरी किया तब सजा पाए एक अन्य मुल्जिम ने उन पर भरी कोर्ट में रिश्वत लेने का आरोप लगाया। एडवोकेट सुनील सिंह ने कहा, “जब फैसला हो गया तो उसमें एक अभियुक्त राजू कनौजिया जिसे सजा हो गया उसने भरी अदालत में कहा कि जब 5 करोड़ लिए थे फैसला करने के लिए, तो हम लोगों को क्यों सज़ा कर दिए?”

अधिवक्ता सुनील सिंह सिंह का दावा है कि राजू कन्नौजिया ने ये बातें 30 से 40 पुलिस वालों के आगे भरी कोर्ट में कही।

मुल्जिम ने जज को दी थी गाली

एडवोकेट सुनील सिंह का यह भी दावा है कि सजा पाए राजू कनौजिया ने कोर्ट में जज को गाली भी दी। अधिवक्ता सुनील सिंह ने आगे कहा, “यहाँ एक जिले में जज 3 साल से ज्यादा नहीं रहता है लेकिन किस कारण से उन्हें 5 साल यहाँ फैमिली कोर्ट में रखा गया? फिर आदिल आफ़ताब को फैमिली कोर्ट अम्बेडकरनगर ट्रांसफर हुआ जबकि उन्हें सीनियारिटी के आधार पर जिला जज बनना चाहिए था।” सुनील सिंह ने भी सेशन जज आदिल आफ़ताब की शिकायत हाईकोर्ट में किए जाने की बात दोहराई।

मारे जाते रहे गवाह, कोर्ट ने नहीं लिया संज्ञान

अधिवक्ता सुनील सिंह मन्ना सिंह हत्याकांड में वादी मुकदमा हरेंद्र सिंह के वकील हैं। उन्होंने कहा कि मन्ना सिंह के बाद इस केस के गवाह की भी उनके गनर सहित कत्ल हो गया था लेकिन, इसका संज्ञान कभी अदालत ने नहीं लिया।

अशोक सिंह और उनके वकील सुनील सिंह ने बताया कि मन्ना सिंह हत्याकाण्ड में मुख़्तार अंसारी को बरी किए जाने के सेशन जज आदिल आफताब फैसले को उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने यह भी बताया कि इस फैसले के खिलाफ न सिर्फ वो बल्कि प्रदेश सरकार भी हाईकोर्ट गई है। बकौल अशोक सिंह हाईकोर्ट में दोनों अपीलों को स्वीकार कर लिया गया है और उस पर सुनवाई लंबित है।

मन्ना सिंह हत्याकांड के बारे में विस्तार से जानने के लिए यहाँ पढ़ें।

मुख़्तार ही तय करता था जिले के DM और SP

मऊ के जिला पंचायत सदस्य प्रिंस यादव ने समाजवादी पार्टी की सरकार के समय का जिक्र करते हुए बताया कि तब मुख़्तार अंसारी का असर जजों पर भी हुआ करता था। प्रिंस ने कहा, “जब अन्य पार्टियों की सरकारें हुआ करती थीं तब इनके (मुख़्तार) के डर से जज फैसला नहीं सुनाते थे। जब फैसला आने को होता था उस दिन जज छुट्टी पर चले जाते थे।” योगी सरकार में हुए बदलाव का जिक्र करते हुए प्रिंस यादव ने कहा कि आज वही जज खुल कर मुख़्तार के खिलाफ फैसला सुना रहे हैं।

प्रिंस यादव ने आगे बताया कि मुख़्तार अंसारी ही जिसे चाहता था वही DM और SP बन कर आता था। उन्होंने बताया, “जिस DM या SP को उनका (मुख़्तार) का फोन चला जाता था वो किसी और की सुनता ही नहीं था।” प्रिंस यादव ने माँग की है कि मुख़्तार अंसारी के उस समय में तैनात रहे सभी जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षकों की जाँच करवाई जाए।

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राहुल पाण्डेय
राहुल पाण्डेयhttp://www.opindia.com
धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।

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1951 में उन्हें जनसंघ ने राजस्थान में संगठन की जिम्मेदारी सौंपी और 6 वर्षों तक घूम-घूम कर उन्होंने जनता से संवाद बनाया। 1967 में दिल्ली महानगरपालिका परिषद का अध्यक्ष बने।

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