Saturday, July 27, 2024
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J&K पर फेक रिपोर्ट्स बनाने के लिए एमनेस्टी इंडिया को विदेश से मिले करोड़ों रुपए: डाक्यूमेंट्स से ख़ुलासा

लगभग 5.3 करोड़ रुपए एमनेस्टी इंडिया को बाहर से मिले। ख़ुद को 'एक्सपोर्ट्स एन्ड गुड्स सर्विसेज' बता कर एमनेस्टी इंडिया ने जम्मू कश्मीर पर नकारात्मक, नकली और झूठे रिपोर्ट्स प्रकाशित किए। एमनेस्टी इंडिया को जम्मू कश्मीर पर अधकचरे झूठ का पुलिंदा प्रकाशित करने के लिए......

एमनेस्टी इंडिया ख़ुद को मानवाधिकार के लिए कार्य करने वाला संगठन बताता है लेकिन ताज़ा ख़ुलासे से पता चला है कि वह एक प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी है, जो कमर्शियल रूप में कार्य करता है। उसे यूनाइटेड किंगडम स्थित एमनेस्टी इंटरनेशनल से फंड्स मिलते हैं। इन फंड्स का इस्तेमाल जम्मू कश्मीर पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए किया जाता है, जिसे मीडिया लपक कर भारत के प्रति नकारात्मक माहौल बनाती है। एमनेस्टी इंडिया ऐसे रिपोर्ट्स तैयार करता है, जिसमें सारा कंटेंट पहले से साज़िश के तहत तैयार रखा जाता है।

रिपब्लिक टीवी द्वारा एक्सेस किए गए डॉक्युमेंट्स के अनुसार, एमनेस्टी इंडिया को पिछले कुछ वर्षों में एमनेस्टी इंटरनेशनल से 5,29,87,663 रुपए मिले हैं। यानी लगभग 5.3 करोड़ रुपयों का इस्तेमाल सिर्फ़ जम्मू कश्मीर के बारे में रिपोर्ट्स तैयार करने के लिए किया गया। 2010 में यह ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया फाउंडेशन ट्रस्ट’ के नाम से शुरू हुआ था लेकिन उन्हें ‘विदेशी योगदान नियंत्रण अधिनियम (FCRA, 2010)’ के तहत गृह मंत्रालय से इजाजत नहीं मिली।

इसके बाद उन्होंने ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड’ नामक एक व्यापारिक अधिष्ठान (कमर्शियल एंटिटी) बनाया ताकि FCRA को बाईपास किया जा सके। ऐसा इसीलिए भी किया गया क्योंकि एक एनजीओ बन कर लाभ नहीं कमाया जा सकता। इसके बाद एमनेस्टी इंडिया को कमर्शियल रास्तों से तरह-तरह के फंड्स मिलने लगे। रिपब्लिक टीवी के अनुसार, आंतरिक लेनदेन की जो प्रक्रिया एमनेस्टी इंडिया द्वारा आजमाई गई, वह एफडीआई के नियमों का सीधा-सीधा उल्लंघन है।

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, उसने ख़ुद को एक कंसल्टेंसी सर्विस का जामा पहना कर रुपयों के लेनदेन किया है। ये रुपए एमनेस्टी इंडिया को बाहर से मिले। ख़ुद को ‘एक्सपोर्ट्स एन्ड गुड्स सर्विसेज’ बता कर एमनेस्टी इंडिया ने जम्मू कश्मीर पर नकारात्मक, नकली और झूठे रिपोर्ट्स प्रकाशित किए। एमनेस्टी इंडिया को जम्मू कश्मीर पर अधकचरे झूठ का पुलिंदा प्रकाशित करने के लिए कुख्यात रहा है। एमनेस्टी इंडिया से जुड़े जो दस्तावेज सामने आए हैं, उसमें साफ़ दिख रहा है कि जम्मू कश्मीर पर रिपोर्ट तैयार करते समय क्या-क्या लिखना है और क्या करना है, यह सब पहले से तैयार कर लिया जाता है।

एमनेस्टी इंडिया को 2015 में 65,000 पाउंड्स मिले। इसका इस्तेमाल ‘जम्मू कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा पीड़ित लोगों को न्याय नहीं मिला’ जैसे नकारात्मक और भारत-विरोधी टॉपिक पर रिपोर्ट लिखने के लिए किया गया। ऐसा डॉक्यूमेंट के ‘Deliveries’ वाले सेक्शन में किया गया। रिपोर्ट में कौन सी चीजें हाइलाइट करनी है और क्या नहीं, यह सब बिना ग्राउंड रिपोर्ट जाने किया जाता है, जो सच्चाई से बिलकुल भी मेल नहीं खाता। नीचे दिए गए डाक्यूमेंट्स में आप और भी ऐसे पहले से तैयार किए गए टॉपिक्स और उसके बदले हुए पेमेंट्स का विवरण देख सकते हैं:

डॉक्युमेंट का पेज-1 (फोटो साभार: रिपब्लिक टीवी)

जैसे ऊपर डॉक्यूमेंट के अमाउंट वाले सेक्शन में आप देख सकते हैं कि एमनेस्टी इंडिया को 46,868 पाउंड्स का पेमेंट किया गया है। यह पेमेंट क्यों किया गया? इसके लिए आपको ‘Deliverables’ वाले सेक्शन में देखना पड़ेगा। इसमें 10 ऐसे व्यक्तिगत मामलों को निकालने की बात कही गई है, जहाँ लोगों को न्याय नहीं मिल पाया। क्यों नहीं मिल पाया, इसका कारण ढूँढने को कहा गया है। साथ ही यह मान लिया गया है कि जम्मू कश्मीर में मानवाधिकार हनन (भारत की तरफ़ से) होता है।

इसमें एक फ्रेमवर्क बनाने का टास्क दिया गया है। इस फ्रेमवर्क में विस्तृत तरीके से यह बताया जाएगा कि भारत का सुप्रीम कोर्ट जम्मू कश्मीर में ‘मानवाधिकार हनन’ के ख़िलाफ़ क्या-क्या कर सकता है?

डॉक्यूमेंट का पेज-2 (फोटो साभार: रिपब्लिक टीवी)

इसी तरह ऊपर दिए गए डॉक्यूमेंट के दूसरे पेज में 90,000 डॉलर का पेमेंट देकर कोल रिसर्च प्रोजेक्ट के बारे में नकारात्मकता फैलाने का टास्क दिया गया है।

डॉक्यूमेंट का 11वाँ पेज

इस डॉक्यूमेंट के 11वें पेज पर जम्मू कश्मीर में ‘लोगों पर भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा अत्याचार’ की बात कही गई है, जो पाकिस्तान का वर्षों पुराना प्रोपेगेंडा रहा है। इसमें ऐसे महिलाओं को ढूँढ कर लाने और उनका अनुभव प्रकाशित करने को कहा गया है, जिन्हें यौन शोषण का सामना करना पड़ा। इसके अलावा ऐसे परिवारों के बारे में पता करने को कहा गया है, जिसका कोई सदस्य गायब हो गया। इसी तरह प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए विभिन्न तरीकों की बात की गई है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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