अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार (नवंबर 9, 2019) को अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने इस फैसले में विवादित जमीन रामलला को देने का फैसला किया है, जबकि मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही दूसरी जगह 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर लगातार 40 दिन तक रोजाना सुनवाई करने के बाद 9 नवंबर को फैसला सुनाया। 40 दिनों की मैराथन सुनवाई के दौरान हिन्दू और मुस्लिम पक्ष के वरिष्ठ वकीलों ने बेहतरीन तरीके से अपनी दलीलें पेश कीं। इन वरिष्ठ वकीलों में के परासरण, राजीव धवन, सीएस वैद्यनाथन, रंजीत कुमार, जफरयाब जिलानी, पीएस नरसिम्हा, पीएन मिश्रा और एजाज मकबूल का नाम शामिल है।
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बता दें कि इन वकीलों के बहतरीन परफॉर्मेंस के पीछे इनके कुछ जूनियर वकीलों का भी हाथ है। इस केस में उनका साथ देने के लिए किसी जूनियर वकील ने अपनी सारी कानूनी व्यस्तताओं को दरकिनार कर दिया तो किसी ने अपनी सगाई तक को रद कर दिया। उन्होंने अपने प्रोफेशनल माँग को निजी माँग से ज्यादा तरजीह दी।
इनमें से एक हैं 50 वर्षीय वकील पी वी योगेश्वरन। जिन्होंने इस मामले पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अन्य अदालती व्यस्तता से किनारा कर लिया। किथेई जिले में एक छोटे से गाँव उप्पुकोट्टई से आने वाले पी वी योगेश्वरन ने हिन्दू पक्ष के लिए काम किया। उन्होंने 1994 में कानून की पढ़ाई पूरी की थी और वरिष्ठ वकील एस बालकृष्णन और फिर लाला राम गुप्ता के जूनियर के रूप में सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की।
योगेश्वरन पिछले नौ साल से अयोध्या मामले पर काम कर रहे थे। जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 30 सितंबर, 2010 के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी, वो तभी से इस केस से जुड़े रहे। योगेश्वरन रोजाना स्वेच्छा से पाँच घंटे वकील भक्ति वर्धन सिंह के साथ मामले पर अध्ययन करने के लिए समर्पित थे। इसके बाद वे वरिष्ठ अधिवक्ता परासरन, वैद्यनाथन और रंजीत कुमार के साथ एक से दो घंटे तक चलने वाले ब्रीफिंग सत्र में भी शामिल होते थे।
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योगेश्वरन ने इस बारे में बात करते हुए टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि उन्हें इस मामले पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अदालत के सभी अन्य कामों को छोड़ना पड़ा। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले से जुड़ने के बाद उन्हें पता चला कि कैसे उनके जैसे एक साधारण वकील को सीखने के लिए पूरी ज़िंदगी लगानी होती है।
मुस्लिम पक्ष के वकील एजाज मकबूल की जूनियर वकील आकृति चौबे ने इस मामले को गहराई से जानने के लिए अपने निजी जीवन में बहुत बड़ा त्याग किया। चौबे को अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ सगाई करनी थी, लेकिन कोर्ट की सुनवाई 6 अगस्त से 16 अक्टूबर तक चलनी थी। और इस बीच उनके सगाई करने का मतलब था कि वो कोर्ट की सुनवाई में उपस्थित नहीं हो पातीं। फिर उन्होंने सोचा कि सगाई तो इंतजार कर सकती है, लेकिन कोर्ट नहीं।
बाद में उन्होंने अपने सगाई के कार्यक्रम को रद कर दिया। अब वो अपना ‘रोका’ समारोह न करके अगले साल फरवरी में सीधा शादी ही करने वाली हैं। आकृति का ब्वॉयफ्रेंड इंडियन एयरलाइंस में वकील हैं। आकृति का फैमिली बैकग्राउंड भी योगेश्वरन की तरह ही है। आकृति चौबे ने तभी अपने पिता को खो दिया था, जब वो पाँचवीं कक्षा में थीं।
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आकृति ने बताया कि उनकी माँ दिल्ली सरकार के साथ काम करती है और वो उनका काफी सपोर्ट करती हैं। चौबे ने कहा कि वो पिछले दो वर्षों से इस पर बिना किसी ब्रेक काम कर रहीं थी। आकृति ने बताया कि वो दलीलें शुरू होने के बाद रोजाना वकील राजीव धवन को ब्रीफ करती थीं।
मुस्लिम पक्ष की वकालत कर रहे धवन और जिलानी कई तथ्यों और रिकॉर्डों के लिए आकृति की मदद लिया करते थे। इसके साथ ही अन्य महिला वकील कुर्रातुलेन का भी सीनियर वकीलों का साथ देने में अहम योगदान रहा। योगेश्वर और आकृति जैसे और भी कई ऐसे जूनियर वकील हैं, जिन्होंने इस केस में काफी मेहनत की है।