सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (23 फरवरी) को एससी/एसटी समुदाय की एक हिंदू महिला को इस्लाम में जबरन धर्मांतरित करने के मामले में गुजरात के भूरे खान को जमानत दे दी। इसके पहले गुजरात उच्च न्यायालय ने आरोपित को जमानत देने से इनकार कर दिया था। हाई कोर्ट ने प्रथम दृष्ट्या भूरे खान को इस मामले में संलिप्त पाया था और उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत पाया था। इसके आधार पर उसकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। आरोपित भूरे खान की जमानत पहले भी दो बार खारिज हो चुकी है।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अभय एस ओका और जस्टिस उजल्ल भुइयां की बेंच ने कहा कि इस मामले में आरोपियों के खिलाफ कई एफआईआर दर्ज हैं। अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि तीसरी एफआईआर में आरोपित की पत्नी होने का दावा करने वाली शिकायतकर्ता महिला ने भूरे खान के परिवार के सदस्यों के खिलाफ भी शिकायत की है।
Two earlier orders of the High Court and Trial Court, had denied bail to the man, Bhurekhan who allegedly married the woman belonging to SC/ST & compelled her to follow Islam @LegalTalwar https://t.co/G8WALqiWIN
— LawBeat (@LawBeatInd) February 24, 2024
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने आदेश में कहा, “प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) उस महिला की शिकायत के आधार पर दर्ज की गई है, जो अपीलकर्ता की पत्नी होने का दावा कर रही है। अपीलकर्ता के खिलाफ लगातार तीन एफआईआर दर्ज हैं। मौजूदा एफआईआर में उनके पूरे परिवार को फँसाया गया है।”
अदालत ने कहा, “मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अपीलकर्ता को जमानत दी जानी चाहिए। उस उद्देश्य के लिए अपीलकर्ता को आज से एक सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश किया जाएगा। ट्रायल कोर्ट अपीलकर्ता को उचित नियमों और शर्तों पर जमानत पर रिहा करेगा।”
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय 13 सितंबर 2023 को गुजरात उच्च न्यायालय के उस आदेश के जवाब में आया, जिसमें कहा गया था कि आरोपित को जमानत नहीं दी जाएगी। यह फैसला जस्टिस हसमुख डी सुथार ने सुनाया था। गुजरात उच्च न्यायालय के अनुसार, इस मामले की जाँच में भूरे खान को जमानत देने से इनकार करने के लिए उसके खिलाफ ‘पर्याप्त सबूत’ बताया गया था।
गुजरात उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि कथित अपराध में आरोपित की प्रथम दृष्टया स्पष्ट संलिप्तता है और अगर उसे जमानत पर रिहा किया जाता है तो आरोपित सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है। गुजरात उच्च न्यायालय ने कहा था, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि शिकायत दर्ज करने के बाद जाँच के दौरान वर्तमान आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सामग्री है।”
उच्च न्यायालय ने आगे कहा था, “इस न्यायालय की राय है कि यदि वर्तमान अभियुक्त को जमानत पर रिहा कर दिया जाता है तो इस संभावना से इनकार किया जा सकता है कि अभियुक्त अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करेगा और अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों के गवाहों के साथ छेड़छाड़ करेगा। अपीलकर्ता का आपराधिक इतिहास है और उसके खिलाफ दो अपराध भी दर्ज हैं।”
इस मामले में अपराध पहली बार 2023 में अहमदाबाद के गोमतीपुर पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 354, 323, 294 (बी), 506 (2), 143, 147 और 114 और धारा 3 (2) के तहत दर्ज किया गया था। इसके अलावा, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 की धाराएँ भी जोड़ी गई थीं। इस आधार पर अहमदाबाद की विशेष अदालत ने भी आरोपित भूरे खान को जमानत देने से भी इनकार कर दिया था।