Friday, March 29, 2024
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‘बिहारशरीफ हिंसा की दोषी ही कर रहे जाँच, हिंदुओं को बदनाम करना मकसद’: जिन्होंने रखी राम मंदिर की पहली ईंट, उन्होंने बिहार पुलिस की थ्योरी पर उठाए सवाल

बिहार पुलिस का कहना है कि हिंसा का मास्टरमाइंड बजरंग दल का संयोजक है। इस दावे पर सवाल उठाते हुए विहिप के प्रांतीय अध्यक्ष कामेश्वर चौपाल का कहना है कि उन्हें पहले से आशंका थी कि हिंदुओं को फँसाया जाएगा, क्योंकि बिना जाँच के ही सरकार ने हिंदुवादी संगठनों पर दोष मढ़कर अपना एजेंडा बता दिया था।

बिहार के नालंदा जिले के बिहारशरीफ (Bihar Sharif Violence) में रामनवमी जुलूस पर हमला हुआ। इसके बाद भड़की हिंसा (Ram Navami Violence) के लिए अब बिहार पुलिस हिंदुवादी संगठनों को जिम्मेदार बता रही है। पुलिस का दावा है कि एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर दंगों की साजिश रची गई। बजरंग दल के स्थानीय संयोजक कुंदन कुमार को पुलिस इसका मास्टरमाइंड बता रही है। लेकिन विश्व हिंदू परिषद (दक्षिण बिहार) के प्रांतीय अध्यक्ष कामेश्वर चौपाल (Kameshwar Choupal) ने हिंसा को सुनियोजित साजिश और प्रशासनिक विफलता बताया है। उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार के इशारे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल जैसे हिंदुवादी संगठनों को बदनाम करने की नीयत से पुलिस मनगढ़ंत थ्योरी पेश कर रही है।

चौपाल श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य भी हैं। वे बिहार विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं। उन्होंने ही अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के नींव की पहली ईंट 9 नवंबर 1989 को रखी थी। चौपाल ने ऑपइंडिया से बातचीत में कहा, “हमलोगों को इसकी आशंका पहले ही हो चुकी थी। आज जो पुलिस कह रही है वही बात हिंसा के बाद बिना किसी जाँच के नीतीश कुमार से लेकर राबड़ी देवी तक ने कही थी।” उन्होंने बिहार सरकार की नीयत और पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि मामले की जाँच किसी केंद्रीय एजेंसी अथवा न्यायिक आयोग से करवाई जाए। सोमवार (10 अप्रैल 2023) को विहिप के एक प्रतिनिधिमंडल ने इस संबंध में बिहार के राज्यपाल से भी भेंट की। उनसे रोहतास, नालंदा, भागलपुर, गया सहित राज्य के अन्य जिलों में रामनवमी पर हुई हिंसा की उच्चस्तरीय और निष्पक्ष जाँच का आदेश देने की माँग की गई है।

बिहार में हुई हिंसा को लेकर चौपाल जो सवाल उठा रहे हैं, वही सवाल सोशल मीडिया में भी पूछे जा रहे हैं। लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि जिस हिंसा में हिंदुओं के त्योहार (रामनवमी जुलूस) को निशाना बनाया गया। हिंदू की मौत हुई। हिंदुओं की संपत्तियों को नुकसान पहुँचाया गया। उसकी साजिश हिंदू ही क्यों रचेंगे? यह दिलचस्प है कि जो पुलिस-प्रशासन हिंसा को तत्काल रोकने में असफल साबित हुई, जिसकी भूमिका को लेकर पीड़ित सवाल उठा रहे हैं, उसकी जाँच के निष्कर्ष वैसे ही हैं, जिस सुर में हिंसा के बाद से सत्ता पक्ष बोलता रहा है। आइए सिलसिलेवार तरीके से बिहारशरीफ में हुए घटनाक्रम को समझते हैं;

बिहारशरीफ में रामनवमी पर हिंसा

बिहारशरीफ में 31 मार्च 2023 को रामनवमी शोभा यात्रा निकाली गई। जब शोभा यात्रा दीवानगंज इलाके की एक मस्जिद के पास पहुँची, तब इस पर पथराव हुआ। आगजनी और फायरिंग भी हुई। 17 साल का गुलशन कुमार दंगाइयों की गोली का शिकार हो गया। 

बिहारशरीफ हिंसा के पीड़ितों के दावे

  • हिंसा में मारे गए गुलशन के भाई विकास ने एक मीडिया संस्थान को बताया था कि वे दोनों भाई राशन और दवाई लेने निकले थे। घर लौट रहे थे तो मस्जिद के पास से फायरिंग हुई। गुलशन को गोली लग गई और वह वहीं गिर गया। आसपास के लोगों ने उसे अस्पताल पहुँचाया, लेकिन उसकी जान नहीं बची। इसके बाद पोस्टमार्टम के नाम पर उसे बिहार पुलिस देर रात तक घुमाती रही। विकास के अनुसार बिहार पुलिस ने उसके साथ गाली-गलौज की। उसने पुलिस की करतूत कैमरे में कैद करने की कोशिश की तो मोबाइल छीन लिया। घर वालों से संपर्क नहीं करने दिया।
  • बिहारशरीफ के सोगरा कॉलेज के ठीक पीछे हुई कई हिंदुओं की दुकानों में आगजनी हुई। पीड़ितों ने एक मीडिया संस्थान को बताया कि पेट्रोल बम से लैस 50-60 लोगों की भीड़ ने इसे अंजाम दिया। दुकानों में घुसकर लूटपाट की। अधिकारियों से बार-बार मिन्नत करने के बावजूद फायर ब्रिगेड घंटों बाद पहुँचा, तब तक सब कुछ जलकर राख हो चुका था। पीड़ितों का यह भी दावा है कि बिहारशरीफ में जिस वक्त यह सब हो रहा था, उस वक्त पुलिस-प्रशासन मौके से नदारद था। वे मदद माँगने थाने भी गए, लेकिन सुनवाई नहीं हुई।
  • एक मीडिया संस्थान से बातचीत में महिलाओं ने हिंदुओं के गायब होने का दावा किया था। हालाँकि बिहार पुलिस ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उसे कोई शिकायत नहीं मिली है। इन महिलाओं ने दावा किया था कि हिंसा के बाद पुलिस उनके घरों में घुसकर पुरुषों को ले गई। महिलाएँ अपनी सुरक्षा को लेकर भी सशंकित थीं। पुलिस पर हिंदुओं को प्रताड़ित करने, गंदी-गंदी गालियाँ देने और थाने से भगाने का आरोप लगाया था।

ये कुछ चुनिंदा दावे हैं। पीड़ितों के कैमरों पर ऐसे दावे करने के कई वीडियो वायरल हैं। ये तमाम दावे न केवल पुलिस-प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठाते हैं, बल्कि इससे यह भी स्पष्ट है कि रामनवमी शोभा यात्रा पर हमला मुस्लिम बहुल इलाके में हुआ था।

बिहारशरीफ हिंसा पर बिहार पुलिस का दावा

बिहार पुलिस के एडीजी (हेडक्वार्टर) जितेंद्र सिंह गंगवार ने रविवार (9 अप्रैल 2023) बताया है कि बिहारशरीफ की हिंसा सुनियोजित थी। रामनवमी से पहले 457 लोगों का एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया था। इसके जरिए आपत्तिजनक संदेश फैलाकर लोगों की भावनाओं को भड़काया गया। उन्होंने बजरंग दल के स्थानीय संयोजक कुंदन कुमार को इसका मास्टरमाइंड बताया है। गंगवार ने बताया कि आर्थिक अपराध इकाई (EOU) ने इस संबंध में अलग से केस दर्ज किया है। इसके अलावा 140 लोगों की गिरफ्तारी होने की जानकारी दी थी।

बिहार पुलिस ने एक बयान जारी कर कहा है कि इस मामले में EOU ने सबूतों के आधार पर 15 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। कहा है कि सोची-समझी साजिश के तहत एक ‘विशेष संप्रदाय’ को लेकर भ्रामक संदेश प्रसारित किए गए। मनीष कुमार, तुषार कुमार, धर्मेंद्र मेहता, भूपेंद्र सिंह राणा और निरंजन पांडे को गिरफ्तार करने की जानकारी दी है। साथ ही बताया है कि इनके पास से 5 मोबाइल फ़ोन जब्त किए गए हैं, जिनका इस्तेमाल कंटेंट अपलोड करने को लेकर किया गया।

बिहार पुलिस द्वारा प्रेस को जारी किया गया बयान

बिहार पुलिस के दावों पर सवाल क्यों?

कामेश्वर चैपाल ने ऑपइंडिया को बताया, “रामनवमी, हनुमान जनमोत्सव, दुर्गापूजा पर जुलूस निकालने की परंपरा रही है। इसके लिए विधिवत प्रशासन से अनुमति भी ली जाती है। बिहारशरीफ के मामले में भी ऐसा हुआ था। डीएम, एसपी, एसडीएम के साथ बैठकें हुई थी। थानाध्यक्षों ने भी इसको लेकर बैठक की थी। शांति समितियों की बैठक हुई थी। बैठक के दौरान यह भी बताया गया था कि रूट में कौन-कौन सी जगह संवेदनशील है। जिस जगह हमला हुआ, वह भी संवेदनशील है। बैठक के दौरान प्रशासन ने जिस तरह की तैयारियों का भरोसा दिलाया था, वह शोभा यात्रा के दिन नहीं थी। कुछ महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती थी। हमला होने के बाद उन्होंने खुद बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के पीछे छिपकर अपनी जान बचाई। यदि यात्रा उस इलाके में गली से गुजर रही होती तो जिस तरीके से हमला किया गया आप कल्पना नहीं कर सकते कि कितने लोगों की उस दिन हत्या कर दी जाती।”

इन दावों पर यकीन किया जाए तो स्पष्ट है कि रामनवमी पर बिहार में हुई हिंसा पूरी तरह से पुलिस-प्रशासन की विफलता थी। लेकिन हिंसा के बाद ही सरकार की तरफ से दोष हिंदुओं पर मढ़ने और तुष्टिकरण की राजनीति को हवा देने की कोशिश शुरू हो गई। उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने 2 अप्रैल को ट्वीट कर इसके लिए संघ को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की। उन्होंने कहा, “बिहार में सद्भाव बिगाड़ने की संघी कोशिश पर बिहार सरकार की पैनी नजर है। जिन राज्यों में बीजेपी कमजोर है, वहाँ बौखलाई हुई है। एक-एक उपद्रवी को चिन्हित कर कठोरतम कारवाई की जा रही है। भाईचारे को तोड़ने के किसी भी भाजपाई ‘प्रयोग’ का हमने हमेशा माकूल जवाब दिया है और देते रहेंगे।” इसी तरह उनकी माँ और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने कहा, “भारतीय जनता पार्टी के लोग दंगा करवाते हैं। वे चाहते हैं कि दंगा हो। सरकार जाँच कराएगी, जिसके बाद सच सामने आएगा। दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।” इसी तरह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हिंसा को ‘षड्यंत्र’ बताते हुए इसके लिए बीजेपी और असदुद्दीन ओवैसी को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की थी। ध्यान रहे कि प्रशासनिक नाकामी को छिपाने और दोष मढ़ने का यह सिलसिला बिना किसी जाँच के नतीजों के आने के बगैर ही शुरू हो गया था और अब बिहार पुलिस की जाँच भी उसी लाइन पर बढ़ती दिख रही है।

चौपाल जिस तुष्टिकरण की राजनीति के तहत हिंदुओं को फँसाने का आरोप लगा रहे हैं, उसकी शुरुआत फुलवारीशरीफ में लाल किले की बैकग्राउंड वाली इफ्तार पार्टी में नीतीश कुमार के शिरकत करने से हुई। हिंसा के बीच इस आयोजन को लेकर आलोचनाओं के बावजूद उन्होंने इसके बाद अपने आधिकारिक आवास पर इफ्तार पार्टी रखी। इसके बाद उनके गठबंधन सहयोगी राजद की ओर से इफ्तार का आयोजन हुआ। दूसरी ओर हिंसा को लेकर विधानसभा में सवाल करने पर पूर्व मंत्री और बीजेपी विधायक जीवेश मिश्रा को मार्शलों की मदद से सदन से बाहर फिंकवा दिया गया। मिश्रा ने बताया कि बिहार में दंगों, हिन्दुओं पर अत्याचार, रामनवमी जुलूस पर पत्थरबाजी को लेकर जब उन्होंने सीएम नीतीश कुमार से सदन में आकर जवाब देने को कहा तो उनके साथ यह बर्ताव किया गया।

क्या हिंदुओं को फँसा रही है बिहार पुलिस

ऑपइंडिया ने जब कामेश्वर चौपाल से पूछा कि हिंसा भड़काने को लेकर पुलिस हिंदुओं के खिलाफ साक्ष्य होने की बात कह रही है तो उनका जवाब था, “पुलिस बिहार सरकार के अधीन ही है। जब बिना जाँच के सरकार ने हिंदुओं को दोषी घोषित कर दिया तो पुलिस उससे अलग बात कैसे कहेगी। पुलिस चाहे तो किसी को फँसा सकती है। खुद हथियार रखकर, आर्म्स एक्ट का केस कर सकती है।” बिहार पुलिस की क्षमता और निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि रामनवमी पर पूरे राज्य में हुई हिंसा की केंद्रीय एजेंसी अथवा हाई कोर्ट जज की अध्यक्षता में जाँच होनी चाहिए। रामनवमी शोभा यात्रा पर हमले पुलिस की नाकामी है। उसी पुलिस से जाँच करवाना तो दोषी से ही मामले की जाँच करवाने जैसा है।

चौपाल ने कहा, “देश भर में हुए आतंकी हमलों में बिहार से गिरफ्तारियाँ हुई हैं। 2013 में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली से पहले पटना में धमाके हुए थे। लेकिन बिहार पुलिस को राज्य में मौजूद आतंकियों की कभी भनक नहीं लगती। पर बिहारशरीफ में उसे झटके में साजिशकर्ता और सबूत मिल गए? फुलवारशरीफ और बिहारशरीफ के नाम में भले ‘शरीफ’ हो पर सबको पता है कि ये जगह इस्लामी कट्टरपंथ के हेडक्वार्टर हैं। फुलवारीशरीफ में पीएफआई की राष्ट्रविरोधी साजिश के खुलासे के बाद भी कट्टरपंथी इन जगहों पर सक्रिय हैं। क्या यह महज संयोग है कि इस खुलासे के बाद बिहार में सरकार बदल गई और अब हिंदुओं के त्योहारों पर हमले हुए हैं।”

जैसा OIC का प्रलाप, वैसे ही पुलिस के दावे

मुस्लिम देशों के संगठन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन यानी OIC ने भी बिहारशरीफ की हिंसा का ठीकरा हिंदुओं पर फोड़ा था। उसने एक बयान में कहा था, “OIC सचिवालय रामनवमी शोभा यात्रा के दौरान भारत के कई राज्यों में मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने वाली हिंसा और तोड़फोड़ की घटनाओं से चिंतित है। कट्टरपंथी हिंदुओं की भीड़ ने 31 मार्च को बिहारशरीफ में मदरसे और लाइब्रेरी को आग के हवाले कर दिया।” इस बयान पर भारत सरकार ने OIC को लताड़ लगाते हुए उसके बयान को मजहबी सोच और भारत विरोधी एजेंडे का नमूना बताया था। अब बिहार पुलिस जो दावे कर रही है, वह भी हिंदुओं को ‘कट्टरपंथी’ और मुस्लिमों को ‘विक्टिम’ बताने जैसा ही है।

यह भी अजीब संयोग है कि पश्चिम बंगाल में भी रामनवमी पर हिंसा के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हिंदुओं पर ही दोष मढ़ा था। अब पूर्व HC जज वाली एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने हिंसा को सुनियोजित बताते हुए इसके लिए पुलिस को दोषी बताया है। साथ ही हिंसा की NIA जाँच को जरूरी बताया है। दोनों राज्यों में यह भी समानता देखने को मिलती है कि हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में जाने से विपक्षी नेताओं को रोका जा रहा है। चौपाल की माने तो ऐसा जानबूझकर 2024 के लोकसभा चुनावों के पहले मुस्लिम वोट बैंक का भरोसा जीतने और हिंदुओं को बाँटने की नीयत से किया जा रहा है।

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अजीत झा
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