सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (18 अक्टूबर) को अपने एक फ़ैसले में कहा कि किसी महिला को ‘कॉल-गर्ल’ कहकर मौखिक रूप से गाली देना आत्महत्या के लिए उकसाने के प्रयास के तहत नहीं आएगा। यह फैसला जस्टिस इंदु मल्होत्रा और आर सुभाष रेड्डी की खंडपीठ ने सुनाया। इस मामले के संबंध में कलकत्ता हाईकोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई थी।
दरअसल, यह मामला 2004 का है। तब एक लड़की ने आत्महत्या करने से पहले दो सुसाइड नोट लिखे थे, जिसमें उसने आत्महत्या के लिए अपने बॉयफ्रेंड और उसके माता-पिता को दोषी ठहराया था। दोषी ठहराने के पीछे वजह थी कि बॉयफ्रेंड के माता-पिता ने उनकी शादी का विरोध किया था और कथित तौर पर पीड़िता को ‘कॉल-गर्ल’ कहकर गाली दी थी, जिससे आहत होकर उसने आत्महत्या कर ली थी।
इसके बाद मृतका के पिता ने पुलिस में शिक़ायत दर्ज कराई। शिक़ायत में पूरे घटनाक्रम की जानकारी देते हुए मृतका के पिता ने बताया कि दोनों शादी करना चाहते थे, इसलिए उनकी बेटी लड़के के माता-पिता से बात करने के लिए उनके घर पहुँची, जहाँ लड़के के माता-पिता ने उसे कॉल-गर्ल कहकर गाली दी और कहा, “तुम एक कॉल-गर्ल हो, मेरा बेटा तुमसे शादी नहीं करेगा, हम अपने बेटे की शादी दूसरी जगह करेंगे।” इसके अगले ही दिन पीड़िता ने आत्महत्या कर ली। आत्महत्या करने से पहले पीड़िता ने सुसाइड नोट में घटना का विस्तृत वर्णन किया था। इस सुसाइड नोट के आधार पर IPC की धारा-34 के साथ 306 के तहत आरोप तय किए गए थे।
इसके बाद, आरोपित ने अपने ख़िलाफ़ आत्महत्या के लिए उकसाने की धारा को रद्द करने के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। मामले की सुनवाई जब ट्रायल कोर्ट में चली थी तो आरोपितों को तलब किया गया था लेकिन हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। हाईकोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि मौखिक रूप से गाली देने को आत्महत्या के लिए उकसाए जाने के दायरे में नहीं रखा जा सकता। कल के फैसले में सुप्रीम कोर्ट भी हाईकोर्ट के इस विचार से सहमत रहा।