ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी में हिंदूफोबिया का शिकार हुई रश्मि सामंत के बाद अब लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (LSE) में करण कटारिया के साथ नस्लीय भेदभाव की घटना सामने आई है। इस भेदभाव के कारण उन्हें विश्वविद्यालय में स्टूडेंट यूनियन के चुनाव में डिसक्वालिफाई करा दिया गया। इसके पीछे कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी की करीबी मुकुलिका बनर्जी का नाम सामने आ रहा है।
फर्स्टपोस्ट की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट के मुताबिक, हिंदू दक्षिणपंथी संगठन आरएसएस के साथ संबंध होने के कारण मुकुलिका बनर्जी करण कटारिया के खिलाफ घृणा अभियान चला रही थीं। इस कारण उन्हें स्टूडेंट यूनियन के चुनाव के अयोग्य कर दिया गया। बनर्जी के इस हस्तक्षेप को पहले ही LSE प्रशासन के संज्ञान में लाया जा चुका है।
कौन हैं मुकुलिका बनर्जी?
मुकुलिका बनर्जी लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस (LSE) में मानव विज्ञान की प्रोफेसर हैं। वह यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशिया सेंटर की निदेशक भी हैं। मुकुलिका बनर्जी लंबे समय से पश्चिमी देशों की मीडिया में ‘मुस्लिम अंडर अटैक इन इंडिया’ करती रही है।
फर्स्टपोस्ट ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि बनर्जी लंदन में अकादमिक और नीतिगत हलकों में बहुत प्रभावशाली महिला हैं। वह वाम-उदारवादी और हिंदू-विरोधी प्रोपेगेंडा का प्रचार करती हैं। उन्हें आरएसएस, हिंदुत्व और नरेंद्र मोदी-विरोधी के रूप में जाना जाता है। जनवरी 2020 में उन्होंने ‘संडे टाइम्स’ में एक लेख लिखा, जिसका शीर्षक था, ‘मोदी मुसलमानों के प्रति अपनी नफरत खुलेआम दिखाते हैं और भारत के संविधान का मजाक बनाते हैं’।
मुकुलिका राहुल गाँधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में भी शामिल हुई थीं। इसके साथ ही उन्होंने राहुल गाँधी की लंदन में मेजबानी भी की थी। जब यात्रा समाप्त हुई तो वह राहुल गाँधी के लंदन दौरे के दौरान कई कार्यक्रमों की व्यवस्था करने में मदद की थीं। उन्होंने राहुल गाँधी की हाउस ऑफ कॉमन्स में कार्यक्रम आयोजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
यहीं पर राहुल गाँधी ने ‘भारतीय लोकतंत्र खतरे में’ भाषण दिया था, इसे ‘बचाने’ के लिए विदेशी मदद माँगी थी। इससे पहले भी कई मौकों पर मुकुलिका बनर्जी ने राहुल गाँधी को LSE साउथ एशिया सेंटर को संबोधित करने के लिए अपने कार्यालय का इस्तेमाल किया, जिसकी वह निदेशक हैं।
मुकुलिका ने कैसे फैलाई प्रोपेगेंडा
मुकुलिका का एक ह्वाट्सएप चैट भी सामने आया है, जिसके माध्यम से वह आरएसएस के साथ संबंध रखने के कारण करण कटारिया को वह बदनाम करने की हद तक आगे बढ़ जाती हैं। हालाँकि, एक प्रोफेसर के रूप में उनका काम शिक्षा देना और विद्यार्थियों की समस्याओं का समाधान करना होता है।
इतना ही नहीं, फर्स्टपोस्ट को एक कॉल रिकॉर्डिंग भी मिली है, जिसमें LSE के छात्रों में से एक को यह दावा करते हुए सुना जा सकता है कि मुकुलिका बनर्जी ने उसे यह बताने के लिए बुलाया था कि करण के आरएसएस और हिंदू संगठनों के साथ संबंध थे।
फोन कॉल पर छात्र आश्चर्य करता है कि क्या LSE करण को अयोग्य घोषित कर देगा। छात्र यह भी कहता है कि अयोग्यता ही करण को चुनावी दौड़ से बाहर करने का एकमात्र तरीका है, क्योंकि अगर वह जीत जाता है तो LSE प्रशासन उसे बाहर करने के लिए कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि छात्र संघ स्वायत्त है।
करण कटारिया के खिलाफ प्रोपेगेंडा में क्या गया था-
इसमें कहा गया था- ‼️ LSE के विद्यार्थियों ध्यान दो – फ़ासीवादी संगठनों को SU से बाहर रखें ‼️
अर्जेंट अपील: हमें पता चला है कि एक व्यक्ति, जो भारत में एक अति-दक्षिणपंथी, क्वेरोफोबिक और इस्लामोफोबिक संगठन का संभावित सदस्य है, LSESU चुनाव में खड़ा है। वोटिंग आज शाम 4 बजे बंद हो जाएगी! LSESU के महासचिव पद के उम्मीदवार करण कटारिया के संबंध फासीवादी संगठन आरएसएस से हैं। इस संगठन के समानांतर यूके में नेशनल फ्रंट और यूएसए में कू क्लक्स क्लान है। https://www.theguardian.com/world/2020/feb/20/hindu-supremacists-nationalismtearing-india-apart-modi-bjp-rss-jnu-attacks
करण की किताब ‘भारत’ इंडस स्क्रॉल प्रेस द्वारा प्रकाशित है, जो अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणित सामग्री प्रकाशित करती है। यह पुस्तक RSS नेता जे. नंदकुमार (https://indusscrolls.com/rss-is-thebiggest-open-university-in-the-world-j-nandakumar) द्वारा लॉन्च की गई थी। एलएसई के सूत्र, जो बैकलैश के डर से गुमनाम रहना चाहते हैं, ने आरएसएस के भीतर उनकी सदस्यता का उल्लेख किया है।
हमारा मानना है कि इसका खुलासा न करना LSESU के जवाबदेही और पारदर्शिता के सिद्धांतों का उल्लंघन है। आरएसएस और उसकी राजनीतिक शाखा बीजेपी ने भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खत्म करने के लिए ठोस प्रयास किए हैं और श्री कटारिया का BAME और Queer छात्रों का समर्थन करने का दावा मूवमेंट को देखते हुए संदिग्ध है।
हालाँकि, जब फर्स्ट पोस्ट ने इस संबंध में मुकुलिका बनर्जी से संपर्क किया तो उन्होंने इस अभियान में अपनी किसी भी संलिप्तता से इनकार कर दिया। उन्होंने आरएसएस सदस्यों के साथ करण कटारिया की किसी भी तस्वीर को प्रसारित करने या किसी अन्य तरह के मैसेज करने से साफ तौर पर इनकार कर दिया।
क्या कहा था करण ने?
LSE में हुई घटना का जिक्र करण ने किया था। करण ने कहा था, “दुर्भाग्य से कुछ लोग भारतीय-हिंदू को LSESU का नेतृत्व करता देखने के लिए तैयार नहीं हुए और उन्होंने मेरे चरित्र और मुझे बदनाम करना शुरू कर दिया। साफ दिख रहा था कि वो हमारी उस संस्कृति के खिलाफ हैं जिसके जहन में रखकर हमारा पालन हुआ।”
कटारिया कहते हैं कि छात्रों का समर्थन पाने के बावजूद उन्हें LSE स्टूडेंट यूनियन के जनरल सेक्रेट्री चुनाव से डिसक्वालिफाई कर दिया गया। उन्होंने आगे कहा था, “मुझ पर होमोफोबिक, इस्लामोफोबिक, क्विरफोबिक (Queerphobic) होने का इल्जाम लगा और मुझे हिंदू राष्ट्रवादी कहा गया। मेरे खिलाफ कई शिकायतें हुईं। कई झूठे आरोप लगने के बाद मेरी छवि और मेरे चरित्र पर कीचड़ उछाला गया जबकि मैंने तो हमेशा समाज में सकारात्मक बदलाव और सामाजिक सद्भाव रखने की पैरवी की है।”
रश्मि सामंत ने राहुल-मुकुलिका की साझा की तस्वीर
रश्मि सामंत ने एक ट्वीट करके मुकुलिका और राहुल गाँधी की तस्वीर साझा की। उन्होंने लिखा, “मुकुलिका बनर्जी, जो राहुल गाँधी की करीबी सहयोगी रही हैं, हो सकता है कि हिंदू दक्षिणपंथी, विशेष रूप से आरएसएस के साथ संबंध होने के कारण एलएसई में करण कटारिया के खिलाफ इस नफरत अभियान को चला रही हों।”
Mukulika Banerjee, who has been a close associate of Rahul Gandhi, could have been powering this hate campaign against Karan Kataria at LSE ostensibly for having links with the Hindu right, the RSS in particular. https://t.co/7u6KXoV8HR pic.twitter.com/ZqZEo8Bwbo
— Rashmi Samant (@RashmiDVS) April 4, 2023
बता दें कि मार्च 2021 में रश्मि सामंत को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के लिए बाध्य कर दिया गया था। हिंदू पहचान और उपनिवेशवाद विरोधी विचारों को लेकर उन्हें लगातार ऑनलाइन निशाना बनाया जा रहा था। यह मामला भारतीय संसद में भी उठा था।
कुछ पुराने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए सामंत को निशाना बनाते हुए उन्हें नस्ली और असंवेदनशील बताया गया। इन पोस्टों के जरिए उन्हें नस्लवादी, यहूदी विरोधी, इस्लामोफोबिक, ट्रांसफ़ोबिक बताने की कोशिश की गई। यहाँ तक कि उनके हिंदू होने को लेकर भी निशाना साधा गया। सामंत को 11 फरवरी 2021 को प्रतिष्ठित पद के लिए चुना गया था, लेकिन ऑनलाइन आलोचना और दुर्व्यवहार का सामना करने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
दरअसल रश्मि सामंत ने 2017 में जर्मनी में बर्लिन होलोकास्ट मेमोरियल की यात्रा के दौरान एक पोस्ट में कुछ तस्वीरें पोस्ट की थीं, जिसमें वह मलेशिया के बुद्ध मंदिर के बाहर खड़ी हैं। इसके कैप्शन में उन्होंने लिखा था- चिंग चांग। ऑक्सफोर्ड द्वारा प्रकाशित होने वाले एक साप्ताहिक स्टूडेंट अखबार ‘चेरवेल’ द्वारा इस खबर को प्रकाशित करने के बाद विवाद गहरा गया था।