महाराष्ट्र के पालघर में हुई संतों की मॉब लिंचिंग और उसके पीछे ईसाई मिशनरी की भूमिका निरंतर संदेह के घेरे में है। इसी प्रकरण में सोनिया गाँधी की चुप्पी की भी चर्चा हुई जो कि एक अलग ही मामला बना हुआ है। आदिवासी बहुल जगहें ईसाई मिशनरियों के निशाने पर एक लंबे अरसे से रही हैं।
इसी के विरोध में हिन्दू संगठन अतीत में भी काफी संख्या में इन आदिवासियों को ‘घरवापसी’ कार्यक्रम के अंतर्गत वापस हिन्दू धर्म में लेकर आए थे। इन्हीं में से एक किस्सा है गुजरात के डांग जिले का जहाँ स्वामी असीमानंद ने करीब 150 आदिवासियों की घरवापसी करवाई थी, जिसके बाद कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने खुद वहाँ का दौरा किया था।
मशहूर स्टैंड अप कॉमेडियन नितिन गुप्ता ‘रिवाल्डो’ ने ट्विटर पर एक ऐसे ही किस्से को शेयर करते हुए बताया है कि ईसाई मिशनरियों द्वारा ‘आटा-चावल’ देकर किए गए आदिवासियों के धर्मांतरण को रोकने के लिए जब स्वामी असीमानंद ने प्रयास किए थे, तब किस तरह से इटली से लेकर कॉन्ग्रेस नेता सोनिया गाँधी तक विचलित हो गए थे।
आतिश तासीर की माँ तवलीन सिंह ने ट्विटर पर महाराष्ट्र में 2 साधुओं और उनके ड्राइवर की मॉब लिंचिंग के मुद्दे को महज ‘आदिवासियों द्वारा चोर समझ लेने की घटना’ साबित करने का प्रयास करते हुए ट्वीट किया –
“तुम वापस मुझ पर जहर थूक रहे हो!! लिंचिंग होती ही है आतंकित करने के लिए। साधुओं को एक आदिवासी भीड़ ने चोर समझकर गलतफहमी में मारा। गृह मंत्री ने इस पर ऐसे जोर देकर बोला है जैसा कि किसी वास्तविक लिंचिंग के बाद भी उन्होंने कभी कोई बयान नहीं दिया था।”
नितिन गुप्ता ने तवलीन सिंह के इस ट्वीट को रीट्वीट करते हुए लिखा –
“डांग हमेशा ही मिशनरियों का पसंदीदा जगह रही। 1988 में स्वामी असीमानंद ने 40 हजार आदिवासियों की घरवापसी करवाई। इस घटना ने इतनी हलचल पैदा की कि वेटिकन के ईसाई नेताओं से लेकर सोनिया गाँधी तक ने डांग का दौरा किया। इसके बाद 2007 में स्वामी असीमानंद का नाम समझौता ब्लास्ट में घसीटा गया। और 2019 में NIA कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया।”
अगले ट्वीट ने नितिन गुप्ता ने लिखा है-
“आदिवासियों के ईसाई धर्मांतरण में हिन्दू साधू-संत बहुत बड़ी दीवार हैं। पालघर में आरोपितों के नाम आपको वास्तविकता बताने के लिए काफी नहीं हैं। आदिवासी धर्मांतरण के बाद भी अपना नाम नहीं बदलते हैं। इस तरह वो अपने मूल नाम के साथ ही आरक्षण का लाभ भी उठाते रहते हैं।”
“मिशनरी आदिवासियों को धर्मांतरण के बदले खाना और दवाइयाँ उपलब्ध करवाते हैं। इस लिए देशव्यापी लॉकडाउन एक अच्छा मौका है। कुछ दिन पहले ही डॉ. वाल्वी की भी पालघर में पिटाई की गई। अन्य स्रोतों से की जा रही मदद से धर्मांतरण के टारगेट में समस्या आती?”
डॉक्टर विश्वास वाल्मीकि स्थानीय आदिवासियों के बीच एक जाना पहचाना चेहरा हैं, बावजूद इसके उनके साथ राशन बाँटते समय मारपीट की गई।
उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले की महाराष्ट्र के पालघर में 2 नागा साधुओं की स्थानीय आदिवासियों द्वारा मॉब लिंचिंग की गई। इसमें 2 साधुओं के अलावा उनके एक ड्राइवर को भी जान से मार दिया गया। मुख्यधारा की मीडिया के साथ ही तमाम राजनीतिक दलों के द्वारा भी इसे महज गलतफहमी के कारण की गई हत्या साबित करने का प्रयास किया जा रहा है।
हालाँकि इस मॉब लिंचिंग के मूल में क्या है, यह अभी तक भी सामने नहीं आ पाया है। यही वजह है कि सोशल मीडिया पर यह एक बड़ा विषय बनकर उभरा है जिसने ईसाई मिशनरियों द्वारा सदियों से किए जा रहे गुपचुप धर्मांतरण जैसे मुद्दों पर भी प्रकाश डाला है।