सीएए विरोध के नाम पर समुदाय विशेष की महिलाओं को धरने पर बिठाया जाता है। ताकी अपने समुदाय को शांति प्रिय समुदाय के तौर पर प्रदर्शित किया जा सके। लेकिन सिर्फ मुखौटा था। इस शांति पूर्वक धरने की आड़ में हिंदुओं के ख़िलाफ एक ऐसी रणनीति तैयार की जाती है, जिसकी भनक कानों-कान क्षेत्र में रहने वाले लोग और 24 घंटे पहरा देने का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस तो क्या किसी खुफिया विभाग को भी नहीं लग सकी। इसी का परिणाम रहा कि गहरी नींद में सोते हुए और कट्टरपंथियों की साजिश से कई अनजान हिंदू मौत के मुँह में चले गए। आप दंगे की शुरुआत देखिए… दोपहर की अजान में क्षेत्रीय विधायक शामिल होते हैं और इसके बाद मस्जिद में हजारों की संख्या में मौजूद इस्लामी भीड़ हाथों में हथियार लिए सीधे हिंदुओं पर धावा बोल देती है।
आश्चर्य इस बात का कि जिन लोगों ने महीनों तक हिंदुओं पर हमला करने की साजिश रची, आज वही खुद को पीड़ित साबित करने में लगे हुए हैं। जब बात पीड़ित बनने की आई तो दंगाइयों ने तनिक भी देर नहीं की और अपने ही घर में 24 घंटे से रखी लाश को निकालकर पोस्टमॉर्टम के लिए भिजवा दिया। क्यों? क्योंकि खुद को पीड़ित साबित करते हुए केजरीवाल सरकार से 10 लाख रुपए का मुआवजा जो लेना था। एक नहीं, ऐसी अनेक कहानियाँ हैं उस दंगा प्रभावित क्षेत्र से, जिन्हें दंगाइयों ने खुद ही बुना और खुद ही रच डाला।
एक ऐसी ही कहानी है दिल्ली के दंगा प्रभावित क्षेत्र जाफराबाद की। बीते सोमवार को सीएए विरोध के नाम पर चाँद बाग से शुरू हुई हिंसा के सातवें दिन हम दंगा पीड़ितों से बात करते हुए मृतक राहुल ठाकुर के घर पहुँचे। हम घटना के बारे में जानकारी ले ही रहे थे कि तभी मृत राहुल ठाकुर के परिजनों को सांत्वना देने आए पड़ोस में रहने वाले व्यक्ति ने दावा करते हुए बताया, “सोमवार को सुबह से ही चाँद बाग और करावल नगर क्षेत्र में हिंसा भड़क चुकी थी। इसके बाद दोपहर को मुस्तफाबाद इलाके में मौजूद मस्जिद में हजारों की संख्या में मुस्लिम अजान के नाम पर इकट्ठा होते हैं, जिसमें क्षेत्रीय विधायक हाजी यूनुस भी भाग लेते हैं। अजान होते ही विधायक तो अपनी गाड़ी लेकर मस्जिद से निकल जाते हैं। इसके बाद मस्जिद से निकलते ही हजारों की भीड़ पहले तो तेजाब की फैक्ट्री और शराब के ठेके को लूटती है और फ़िर हाथों में लाठी-डंडे, ईंट-पत्थर, सरिया, रॉड, तमंचे आदि हथियार लिए हिंदुओं को निशाना बनाते हुए उस हमला बोल देती है।”
चश्मदीद आगे बताते हुए कहते हैं, “हज़ारों दंगाइयों की भीड़ की चपेट में आकर एक मजहबी दंगाई की भी मौत हो जाती है। लेकिन आश्चर्य देखिए! दंगाई उसे उठाकर अस्पताल नहीं ले जाते बल्कि उसे अपने घर पर ले जाते हैं। 24 घंटे तक घर में दंगाई युवक का शव रखा रहता है। जैसे ही केजरीवाल सरकार ने दंगों में मारे गए लोगों को मुआवजा देने की घोषणा की, वैसे ही एंबुलेंस को बुलाकर घर में रखी लाश को अस्पताल भिजवा दिया। इसके बाद पोस्टमॉर्टम कराकर शव को दफन कर दिया जाता है।”
अब ऐसे में सवाल ये खड़ा होता है कि जब महीनों से हिंदुओं के ख़िलाफ साजिश रची जा रही थी, उसे अंजाम देने के लिए बड़े पैमाने पर तैयारी भी की गई तो आख़िर वही समुदाय दंगे का पीड़ित कैसे हो सकता है। इसके उलट दूसरी ओर हिंदू बाहुल्य इलाके बृजपुरी में स्थित एक मस्जिद को कोई खरोंच तक नहीं आई और वहीं उसी इलाके में मौजूद शिव मंदिर को दंगाइयों ने अपना निशाना ही नहीं बनाया बल्कि शिव मंदिर पर पथराव करते हुए उसमें तोड़फोड़ भी की। घटना के बाद हर रोज दंगाइयों की खुलती पोल से एक बात तो साफ़ हो गई है कि दंगाई इलाके से हिंदुओं को जड़ से खत्म करना चाहते थे। मतलब साफ है कि यह ‘जंग’ सीएए के खिलाफ कभी थी ही नहीं, बल्कि हिंदुओं के ख़िलाफ थी।
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