वे खाना खा घर से निकले। रास्ते में पत्थर आकर सिर पर लगा। सड़क पर ही गिर पड़े। सिर से खून बह रहा था। उनके मोबाइल से पत्नी को कॉल आया। आवाज किसी अनजान शख्स की थी। पत्नी घर से दौड़े-दौड़े पहुॅंची तो देखा कि पति लहूलुहान पड़े हैं। सॉंसे चल रही है। मदद के लिए गुहार लगाती रही। लेकिन कोई न आया। एंबुलेंस भी नहीं पहुॅंचा। आखिर में एक बाइक सवार की मदद से वह पति को अस्पताल ले गई, लेकिन अपना सुहाग नहीं बचा पाई।
ये कहानी है आलोक तिवारी की। उस आलोक तिवारी की जो एक गत्ते की फैक्ट्री में मजदूरी करते थे। उनकी जान उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़के हिंदू विरोधी दंगों के दौरान चली गई। उन्हें उन्हीं दंगाइयों ने मारा जो शिव विहार में फैसल फ़ारूक़ के राजधानी स्कूल से हिंदुओं को निशाना बना रहे थे। जिस स्कूल की छत पर गुलेल सेट किया गया था। इतना बड़ा गुलेल की दूर तक हिंदुओं को निशाना बनाया जा सके। दंगों में राजधानी स्कूल को तो मामूली नुकसान हुआ है लेकिन उससे सटा एक स्कूल जो पंकज शर्मा का है जिसे भारी नुकसान पहुँचा है।
आलोक की पत्नी कविता तिवारी को जब पति के बारे में सूचना मिली तो उनके होश ही उड़ गए। उन्हें बताया जाता है कि उनके पति पर धारदार हथियार से वार किया गया है और तुरंत अस्पताल पहुँचाए जाने की ज़रूरत है। घर में रुपए-पैसे नहीं थे। कोई मददगार भी नहीं था। मोहल्ले में कोई मदद को तैयार नहीं था, क्योंकि मुस्लिम दंगाई भीड़ हिंसा पर उतारू थी। हर कोई अपनी जान बचने में लगा था। ऐसे समय में सोचिए कविता ने क्या किया होगा? आइए, पूरा मामला आपको समझाते हैं।
राजधानी स्कूल में जमा दंगाइयों के शिकार हुए लोगों में दिनेश कुमार खटीक और आलोक तिवारी शामिल हैं। दलित समुदाय से आने वाले दिनेश अपने बच्चों के लिए दूध लेने निकले थे, वहीं आलोक खाना खा कर बाहर टहल रहे थे। इन दोनों की तो न तो दंगाइयों से कोई मुठभेड़ हुई थी और न ही उन्होंने उनसे झड़प किया था, लेकिन फिर भी उनकी हत्या कर दी गई।
ऑपइंडिया की टीम मृतक आलोक तिवारी के घर पर पहुँची, जहाँ उनकी पत्नी कविता, सास और साले से हमारी बातचीत हुई। हमारी नज़रें आलोक तिवारी के माँ-बाप को ढूँढ रही थी लेकिन स्थानीय लोगों ने बताया कि अपने बेटे का दाह-संस्कार करने के बाद वो घर भी नहीं आए और सीधा कानपुर स्थित अपने गाँव चले गए। स्थानीय लोग बताते हैं कि मजहबी दंगाइयों के डर के कारण आलोक तिवारी के माता-पिता श्मशान घाट से घर आने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। आर्थिक रूप से भी उनकी पत्नी और उनके परिवार की स्थिति बिलकुल ही दयनीय है। अंतिम संस्कार भी चंदा जुटाकर ही किया गया था।
जब ऑपइंडिया की टीम वहाँ पर पहुँची, तब आलोक तिवारी के साले मुआवजा सम्बन्धी फॉर्म वगैरह भरने में व्यस्त थे और वहाँ कुछ पुलिसकर्मी इस काम में उनकी मदद कर रहे थे। उनकी पत्नी बात करने की अवस्था में नहीं थी, लेकिन हमारे अनुरोध के बाद उन्होंने अपनी बात रखी। मृतक की पत्नी ने बताया कि 26 फरवरी के दिन आलोक तिवारी रात का भोजन करने के बाद बाहर टहलने निकले थे। जब उन्हें लौटने में देर हुई तो उनकी पत्नी को चिंता सताने लगी। इसके थोड़ी ही देर बाद फोन आया कि उनके पति गंभीर रूप से घायल हो गए हैं और वो जल्दी से उन्हें लेने आ जाएँ।
उनकी पत्नी ने बताया कि जब आलोक तिवारी टहलने निकले थे, तब उनकी पत्नी ने उन्हें रोका था लेकिन वो नहीं माने। जब उनके घायल होने का समाचार आया, तब उनकी पत्नी अपने मोहल्ले में घर-घर जाकर लोगों से गुहार लगाती रही कि वो उनकी मदद करें लेकिन कोई भी आगे नहीं आया। घायल आलोक तिवारी की देखभाल कुछ हिन्दू कर रहे थे लेकिन उन्हें तुरंत अस्पताल पहुँचाए जाने की ज़रूरत थी। इसके बाद एक स्थानीय व्यापारी ने आलोक तिवारी की पत्नी की मदद की और उन्हें अपनी बाइक दी। उसी बाइक पर एक व्यक्ति के साथ पीछे बैठ कर वह अपने घायल पति को लेने गईं।
जब आलोक तिवारी की पत्नी वहाँ पहुँचीं तब उन्होंने देखा कि उनके पति के सिर से लगातार ख़ून निकल रहा था। उन्होंने एम्बुलेंस बुलाया लेकिन एम्बुलेंस वाले ने भी आने से मना कर दिया क्योंकि उस क्षेत्र में स्थिति काफ़ी तनावपूर्ण थी। इसके बाद उन्हें घर लाया गया। बाइक पर व्यक्ति ड्राइविंग कर रहा था और आलोक तिवारी की पत्नी पीछे बैठी थीं। घायल आलोक तिवारी को बीच में बिठाया गया था। उन्हीं 250 रुपयों के साथ उनकी पत्नी अपने घायल पति को अस्पताल लेकर गईं। सोचिए, उस वक़्त उस महिला ने ऐसे माहौल में भी कितने साहस से काम लिया।
इसके बाद बाकी के परिजन आए। ऐसा नहीं है कि कविता तिवारी की हालत बहुत अच्छी थी। वो ख़ुद काफ़ी दिनों से बीमार थीं और उनके सिर पर आलमीरा गिर जाने के कारण गहरी चोट लगी थी। ऐसी अवस्था में भी घर में रुपए-पैसे न होने के बावजूद उन्होंने इतना सब कुछ किया। ऑपइंडिया की टीम से कविता तिवारी की माँ ने बताया कि कविता बार-बार बेहोश हो रही हैं।
जहाँ तक आलोक तिवारी के बच्चों की बात है, उनकी एक 8 साल की बेटी सोनाक्षी है। एक 4 साल का लड़का भी है, जिसका नाम आरुष है। आरुष को अपने पिता की मौत के बारे में कुछ पता नहीं था, वो वहीं पर हँस-खेल रहा था। पत्नी गुमसुम से ज़मीन पर चादर बिठा कर बैठी हुई थी। आलोक तिवारी की सास ने बताया कि अगर मुस्लिम दंगाई भीड़ थोड़ा आगे आ जाती तो उनके घरों में घुस जाती। स्थानीय महिलाओं ने भी इस बात की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि अगर दंगाई भीड़ आगे आती तो उनकी इज्जत-आबरू पर बन आती।
स्थिति ये है कि आलोक तिवारी की पत्नी के पास ये उनके घर में उनकी कोई फोटो तक नहीं है। वो बताती हैं कि यात्रा के दौरान एक स्टेशन पर उनका सामान चोरी हो गया था, जिसमें शादी वाला एल्बम भी चला गया। फोटो के नाम पर कविता के पास अपने पति का आधार कार्ड है जो वो दिखाती हैं।