दिल्ली दंगों के मामले में पहला फैसला सुनाते हुए दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार (20 जुलाई, 2021) को सुरेश नाम के एक व्यक्ति को उसके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों से बरी कर दिया। 9 मार्च, 2021 को सुरेश उर्फ भटूरा पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 143 (गैरकानूनी सभा), 147 (दंगा करने) और 395 (डकैती) के तहत आरोप तय किए थे।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने सभी गवाहों के बयानों में विरोधाभास के आधार पर सुरेश को बरी कर दिया है। न्यायाधीश रावत ने कहा, “आरोपित को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया है। यह स्पष्ट रूप से बरी होने वाला मामला है।” सुरेश की ओर से वकील राजीव प्रताप सिंह के साथ-साथ अन्य वकील अक्षय सागर, हिमांशु कुमार, हितेश पांडे और आशीष प्रजापति पेश हुए।
आसिफ की शिकायत पर सुरेश के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। शिकायत में कहा गया था कि 25 फरवरी, 2020 को शाम करीब 4 बजे आरोपित सुरेश ने लोहे की रॉड और लाठियों से लैस दंगाइयों की भारी भीड़ के साथ दिल्ली के बाबरपुर रोड पर स्थित उनकी दुकान का ताला तोड़कर उसमें लूटपाट की थी। दुकान भगत सिंह की थी और आसिफ को किराए पर दी गई थी, जो इस मामले में शिकायतकर्ता है।
जाँच के दौरान सिंह ने पुलिस को बताया कि “दंगाई आक्रामक थे और उस दुकान को लूटना चाहते थे, क्योंकि यह एक मुस्लिम की थी। सिंह ने यह भी दावा किया कि उन्होंने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो सका।” दुकान के मालिक ने 7 अप्रैल 2020 को सुरेश की आरोपित के रूप में पहचान की थी।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने 21 अप्रैल 2021 को यह फैसला सुरक्षित रख लिया था। तब से सात बार इस फैसले को टाला जा चुका है। उस दौरान अदालत ने यह माना था कि आरोपित भीड़ का हिस्सा था, जिसने अपराध किया था। लेकिन आज दिल्ली दंगे मामले में अदालत ने अपना पहला फैसला सुनाते हुए पाया कि गवाहों के बयानों में विरोधाभास है। इसके चलते उन्होंने सुरेश को बरी कर दिया।