दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों में यूएपीए के तहत आरोपित बनाए गए जेएनयू के पूर्व छात्र शरजील इमाम को दिल्ली कोर्ट ने सोमवार (11 अप्रैल 2022) को बेल देने से मना कर दिया। दिल्ली कोर्ट के विशेष न्यायाधीश अभिताभ रावत ने इमाम की बेल याचिका खारिज करते हुए कहा कि शरजील के खिलाफ जो आरोप लगाए गए हैं उन्हें सच मानने के लिए उनके पास उचित आधार हैं। वहीं इस फैसले से पहले सुनवाई के दौरान इमाम के वकील ने कहा कि उनके मुअक्किल की गिरफ्तारी दंगों से पहले हुई थी इसलिए उसका दंगों की साजिश रचने में कोई हाथ नहीं है।
शरजील इमाम के पक्ष और विरोध में दी गई दलीलें
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, शरजील इमाम के वकील तनवीर अहमद मीर ने इमाम के लिए दलील देते हुए कहा कि उस पर लगाए गए साजिश के इल्जाम गलत हैं क्योंकि उसकी गिरफ्तारी हिंसा से पहले ही हो गई थी और हिंसा बाद में हुई। मीर ने इमाम को छुड़वाने के लिए कोर्ट में कहा, “हम ऐसी व्यवस्था को बर्दाश्त नहीं कर सकते जहाँ साजिशें अंतहीन हो जाती हैं और अनंत काल तक चलती ही रहती हैं।” मीर ने कोर्ट में इमाम के ऊपर लगे इल्जामों पर सवाल उठाए और पूछा क्या पूरे मामले में शरजील इमाम को जिम्मेदार ठहराने के लिए कोई सबूत है जो बताता है कि दंगों के दौरान हत्या करने की साजिश रची गई।
इस सुनवाई के वक्त इमाम की बेल याचिका के विरोध में राज्य की ओर से पेश हुए पब्लिक प्रॉजियक्यूटर अमित प्रसाद ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने कोर्ट को साफ किया कि जैसा कि साजिश की बात बार-बार तनवीर दोहरा रहे हैं, हकीकत में कि इमाम की गिरफ्तारी पहले साजिश के लिए नहीं बल्कि देशद्रोह वाले भाषण के लिए हुई है। इसलिए इमाम के वकील बार-बार ‘साजिश’ कहकर बहस को गुमराह न करें। प्रसाद ने कहा अगर किसी तरह की साजिश की गई और जाँच एजेंसियों ने उसे पहचान कर दंगे होने से रोक भी लिए तो भी वो साजिश ही हलाती है।
कोर्ट ने माना- अभी बेल देना ठीक नहीं
दलीलों को सुनने के बाद अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने माना कि मामले की मौजूदा हालत इमाम को जमानत पर रिहा करने के लिए अनुकूल नहीं हैं। इससे पहले दिल्ली पुलिस ने भी दलील दी थी कि मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए शरजील इमाम को जमानत न दी जाए, क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो आरोपित कानून की प्रक्रिया से बच सकता है और गवाहों को धमका सकता है।
शरजील के ख़िलाफ़ 24 जनवरी 2022 को पूर्वी दिल्ली की अदालत ने देशद्रोह समेत आईपीसी की संगीन धाराओं में आरोप तय किए थे। कोर्ट ने कहा था कि इमाम ने 2019 में जो भड़काऊ बयानबाजी करके असम को देश से काटने की बात की थी उसके लिए उन्हें ट्रायल का सामना करना होगा। इसके अलावा उसके चक्का जाम करने वाले भाषण के ऊपर उसके विरुद्ध यूएपीए के तहत भी केस दर्ज हुआ था।