Saturday, November 2, 2024
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अचानक नहीं भड़की हिंसा, सोची-समझी साजिश थी दिल्ली दंगा; CCTV तोड़ना भी उसी का हिस्सा: दिल्ली हाई कोर्ट की दो टूक

दिल्ली हिंदू विरोधी दंगों के दौरान मारे गए हेड कॉन्सटेबल रतन लाल के मर्डर केस में आरोपित की बेल याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पाया कि किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता इस प्रकार दुरुपयोग नहीं की जानी चाहिए कि समाज के ताने बाने को अस्थिर करके खतरा हो और दूसरों को चोट पहुँचे।

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों में हेड कॉन्सटेबल रतन लाल की हत्या मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने मोहम्मद इब्राहिम की बेल याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने बताया कि मौजूदा सबूत इस बात की पुष्टि करते हैं कि शहर में कानून व्यवस्था को बिगाड़ने के लिए एक पूर्व नियोजित साजिश रची गई थी।

मोहम्मद इब्राहिम की बेल याचिका को खारिज करने वाले कोर्ट के आदेश के अंश

कोर्ट ने कहा, “फरवरी 2020 में देश की राष्ट्रीय राजधानी को दहलाने वाले दंगे स्पष्ट तौर पर एकदम से नहीं हुए। वीडियो और फुटेज में दिखने वाला प्रदर्शनकारियों का बर्ताव जिसे अभियोजन पक्ष द्वारा रिकॉर्ड में रखा गया, साफ तौर पर दिखाता है कि यह सरकार के कामकाज को अस्त-व्यस्त करने के साथ-साथ शहर में लोगों के सामान्य जीवन को बाधित करने का एक सुनियोजित प्रयास था।”

अदालत ने यह भी कहा कि सीसीटीवी कैमरों को भी व्यवस्थित ढंग से नष्ट किया गया था जो शहर में कानून व्यवस्था को बिगाड़ने के लिए एक पूर्व नियोजित साजिश के अस्तित्व की पुष्टि करता है। अदालत ने कहा, “यह (पूर्व नियोजित साजिश) इस तथ्य से भी साफ होती है कि असंख्य दंगाइयों ने बेरहमी से पुलिस अधिकारियों पर लाठी, डंडे, बैट चलाए।”

दिल्ली हिंदू विरोधी दंगों के दौरान मारे गए हेड कॉन्सटेबल रतन लाल के मर्डर केस में आरोपित की बेल याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पाया कि किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता इस प्रकार दुरुपयोग नहीं की जानी चाहिए कि समाज के ताने बाने को अस्थिर करके खतरा हो और दूसरों को चोट पहुँचे।

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, “इस न्यायालय ने पहले एक लोकतांत्रिक राजनीति में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्व पर विचार किया है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का दुरुपयोग इस तरह से नहीं किया जा सकता है जिससे सभ्य समाज के ताने-बाने को अस्थिर करने का प्रयास किया जाता है। यह और अन्य व्यक्तियों को चोट पहुँचाता है।”

इब्राहिम के ख़िलाफ़ केस

सीसीटीवी फुटेज में मोहम्मद इब्राहिम को नेहरू जैकेट, सलवार कुर्ता, और इस्लामी टोपी पहने साफ देखा गया था। अभियोजन पक्ष ने तीन वीडियो सबूत के तौर पर पेश किए थे कि ताकि साबित हो कि हेड कॉन्सटेबल रतन लाल की मौत पूर्व-नियोजित थी। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली दंगे कुछ ऐसा नहीं थे जो अचानक भड़क गए हों।

कोर्ट ने बेल याचिका को नकारते हुए कहा, भले ही इब्राहिम क्राइम सीन पर न दिखा, लेकिन वह भीड़ का हिस्सा था। वह जानबूझकर अपने इलाके से  1.5 किलोमीटर दूर तक गया। उसके हाथ में तलवार थी जिसका इस्तेमाल किसी भी नुकसान के वक्त किया जा सकता था। कोर्ट ने कहा, “इसी प्रकाश में याचिकाकर्ता की तलवार के साथ वाली फुटेज काफी भयानक है जो याचिकाकर्ता को हिरासत में रखे रखने के लिए पर्याप्त है।”

बता दें कि आरोपितों की ओर से पेश हुए कई वकीलों की दलीलें सुनने के बाद इस संबंध में पिछले माह आदेश सुरक्षित रख लिया गया था। अभियोजन पक्ष की ओर से एएसजी एसवी राजू और विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद मामले में पेश हुए थे। इब्राहिम की जमानत याचिका 11 जमानत आवेदनों में सुरक्षित आदेशों का हिस्सा थी। गौरतलब है कि, अदालत ने मामले में शाहनवाज और मोहम्मद अय्यूब नाम के अन्य आरोपितों को जमानत दे दी, लेकिन सादिक और इरशाद अली के आवेदनों को खारिज कर दिया। 5 अन्य आरोपितों- मो. आरिफ, शादाब अहमद, फुरकान, सुवलीन और तबस्सुम को इस महीने की शुरुआत में जमानत मिली थी।

रतन लाल की हत्या 

24 फरवरी को दिल्ली दंगों के समय इस्लामी भीड़ डंडा, लाठी, बास्केट बैट, लोहे की रॉड और पत्थरों लेकर वजीराबाद रोड पर करीब 1 बजे इकट्ठा हुई। कुछ देर में ये हिंसक हो गए। स्थिति संभालने के लिए पुलिस को आंसू गैस छोड़ने पड़े। मौजूदा पुलिसकर्मी बताते हैं कि प्रदर्शनकारियों ने पुलिसकर्मियों को मारना शुरू कर दिया था। भीड़ ने डीसीपी शाहदरा, एसीपी गोकुलपुरी और हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल पर भी हमला किया। दोनों सड़क पर गिर गए और गंभीर रूप से घायल हो गए। उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहाँ हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल को मृत घोषित कर दिया गया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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