दिल्ली में करीब तीन महीने पहले सीएए विरोध के नाम पर शुरू हुए धरना प्रदर्शन से एक नई माँग उठी है। वह यह कि दिल्ली दंगों में गिरफ्तार किए गए मुस्लिमों को रिहा किया जाए।
शाहीन बाग में प्रदर्शन कर रहे लोगों ने शुक्रवार देर रात एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अपनी एक नई माँग मीडिया के माध्यम से सरकार के सामने रख दी। प्रदर्शनकारियों ने पहले तो उसी पुरानी माँग को दोहराया और सरकार से CAA, NRC और NPR को वापस लेने की माँग की। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने इसकी आड़ में एक नई माँग और रख दी। वह ये कि हाल ही में हुए दिल्ली दंगों में जिन मुस्लिम लोगों को गिरफ्तार किया है, उन्हें रिहा किया जाए।
प्रदर्शनकारियों ने केंद्र सरकार पर यह आरोप भी लगाया कि सरकार के इशारे पर निर्दोष लोगों को भी दंगे का आरोपित बनाकर गिरफ्तार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अब तक दिल्ली हिंसा के नाम पर दो हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है, जबकि ये लोग दंगों में शामिल भी नहीं थे।
23 फरवरी को दिल्ली में शुरू हुई हिंसा के 19 दिन बाद शाहीन बाग से प्रदर्शनकारियों द्वारा गिरफ्तार आरोपित मुस्लिमों की रिहाई की माँग करना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। आरोपित की रिहाई कानूनी प्रक्रिया के तहत होती है, भीड़ की माँग पर नहीं। फिर आखिर क्या वजह है कि शाहीन बाग में धरने पर बैठी भीड़ आरोपितों को छोड़ने के लिए दबाव बना रही है?
इससे पहले हिंदू विरोधी दंगों में अंकित शर्मा की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किए गए AAP के निलंबित निगम पार्षद ताहिर हुसैन का भी शाहीन बाग से कनेक्शन सामने आया था। चॉंदबाग और खजुरी खास के लोगों का कहना था कि ताहिर लोगों को गाड़ियों में भरकर शाहीन बाग भेजता था। ‘TV9 भारतवर्ष’ के एक रिपोर्टर को एक चश्मदीद ने बताया था कि रात को उसने कई बार देखा था कि ताहिर हुसैन के घर के सामने टैक्सियों को हायर कर शाहीन बाग़ ले जाया जाता था। ये गाड़ियाँ हर रोज करीब 100 लोगों को और सामान को ताहिर हुसैन के घर से शाहीन बाग ले कर जाया करती थीं।
वहीं दिल्ली हिंसा के बाद शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने शाहीन बाग पर निशाना साधते हुए कहा था कि ये हिंसा शाहीन बाग में बैठी दादी और नानियों की जिहालत का नतीजा है। उन्होंने प्रदर्शनकारियों से हाथ जोड़कर अपील की थी कि कॉन्ग्रेसी जहर का प्याला लोग न पिएँ। आपस में लड़कर मरने वाले को कोई शहीद नहीं कहता। रिजवी ने इससे पहले यह भी कहा था कि शाहीन बाग का धरना हक माँगने की लड़ाई नहीं है, बल्कि हिंदुओं का हक छीनने की जिद है।