Sunday, October 13, 2024
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‘इसे सनसनीखेज न बनाएँ’: सुप्रीम कोर्ट ने बुर्का मामले की तुरंत सुनवाई से किया इनकार, कहा – इसका परीक्षाओं से कोई लेना-देना नहीं

हिजाब को लेकर परीक्षाओं का बहिष्कार करने वाली छात्राओं को लेकर कर्नाटक सरकार ने फैसला सुनाया था कि जिन 12वीं की छात्राओं की प्रैक्टिकल एग्जाम में अनुपस्थिति थी, उनका अलग से एग्जाम नहीं करवाया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (24 मार्च 2022) को बुर्का मामले में तत्काल सुनवाई से इनकार करते हुए कर्नाटक की मुस्लिम छात्राओं को फटकार लगाई है। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से अपील की थी कि परीक्षाएँ जल्द शुरू होने जा रही हैं, इसे देखते हुए इस मामले पर तत्काल सुनवाई की जाए। लेकिन अदालत ने याचिका को फिर से खारिज करते हुए साफ कर दिया कि इस मामले का परीक्षाओं से कोई लेना देना नहीं है।

दरअसल, कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को छात्राओं ने शीर्ष कोर्ट में चुनौती दी है। इसको लेकर आज सर्वोच्च न्यायालय में मुस्लिम छात्राओं के वकील देवदत्त कामथ ने सीजेआई एनवी रमना से कहा कि यह मामला अत्यंत जरूरी है। यदि शीर्ष न्यायालय ने जल्दी सुनवाई नहीं की तो छात्र परीक्षा नहीं दे पाएँगे, जिससे उनका साल खराब हो जाएगा। इस पर चीफ जस्टिस रमना ने वकील से कहा कि इस मामले का परीक्षाओं से कोई लेना-देना नहीं है, इस विषय को सनसनीखेज न बनाएँ। इस मामले पर अगली सुनवाई कब होगी, उस संबंध में अदालत की तरफ से कोई तारीख नहीं दी गई है।

मालूम हो कि बीते दिनों कर्नाटक में हिजाब पहनने के लिए किए विरोध प्रदर्शन में शामिल कई मुस्लिम छात्राओं ने स्वेच्छा से परीक्षाओं का बहिष्कार किया था। इन्हीं छात्राओं को लेकर कर्नाटक सरकार ने फैसला सुनाया था कि जिन 12वीं की छात्राओं की प्रैक्टिकल एग्जाम में अनुपस्थिति थी, उनका अलग से एग्जाम नहीं करवाया जाएगा

प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री बी सी नागेश ने अन्य छात्रों का हवाला देते हुए कहा था, “हम इसकी संभावना पर कैसे विचार करें। अगर हम उन छात्राओं के लिए दोबारा एग्जाम करवाते हैं, जिन्होंने हाईकोर्ट के अंतरिम आदेशों के बावजूद हिजाब के लिए प्रदर्शन किया, तो बाकी बच्चे किसी और कारण को लेकर दूसरा चांस माँगने लगेंगे। ये असंभव है।”

कर्नाटक हाईकोर्ट के जज को मिली थी जान से मारने की धमकी

इस साल 2 जनवरी से शुरू हुए हिजाब विवाद पर पिछले दिनों कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला आया था। कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि हिजाब पहनना इस्लामी प्रथा या आस्था का जरूरी हिस्सा नहीं है। चीफ जस्टिस ऋतु राज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की बेंच ने यह भी कहा था, “स्कूल यूनिफॉर्म अधिकारों का उल्लंघन नहीं है। यह संवैधानिक रूप से स्वीकार्य है जिस पर छात्र आपत्ति नहीं कर सकते हैं।”

यह फैसला सुनाने के बाद कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायाधीश को एक इस्लामी संगठन द्वारा मौत की धमकी दी गई थी। यह धमकी तमिलनाडु तौहीद जमात (TMTJ) नाम के संगठन ने मदुरै में एक आयोजन के दौरान 17 मार्च को दी थी। धमकी देने वाले आरोपित का नाम कोवाई आर रहमतुल्लाह बताया गया था।

इस वीडियो को इंदु मक्क्ल ने शेयर किया था। वीडियो में रहमतुल्लाह को धमकी देते सुना गया था, “अगर हिजाब मामले में जज की हत्या हो जाती है तो वो अपनी मौत के खुद जिम्मेदार होंगे। न्यायपालिका भाजपा के हाथों बिक चुकी है। अदालत का आदेश अवैध और गैरकानूनी है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने ये आदेश अमित शाह के इशारे पर दिया है। फैसला देने वाले जज को अपने फैसले पर शर्म आनी चाहिए। जजों के फैसले संविधान के आधार पर होने चाहिए न कि उनके व्यक्तिगत सोच पर।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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