Saturday, July 27, 2024
Homeदेश-समाजबिहार की जिस 'लखटकिया खेती' की चर्चा से बाजार गर्म, वह जमीन पर मिली...

बिहार की जिस ‘लखटकिया खेती’ की चर्चा से बाजार गर्म, वह जमीन पर मिली ही नहीं: रिपोर्ट

अमरेश की बात की पुष्टि के लिए जब वाराणसी के भारतीय सब्जी अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. जगदीश सिंह बात की गई, तो उन्‍होंने पूरी खबर को फर्जी बताया। वह बोले कि यहाँ न कोई डॉ. लाल हैं और न ही हॉप शूट्स नाम की दुनिया की सबसे महँगी सब्जी का बीज तैयार किया गया है।

बिहार के एक युवा किसान अमरेश सिंह पिछले कुछ दिनों से मीडिया में छाए हुए हैं। इसकी वजह विश्व की सबसे कीमती सब्जी की खेती है। अमरेश औरंगाबाद जिले के नवीनगर प्रखंड के करमडीह गाँव के निवासी हैं।

रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा था कि अमरेश सिंह ने बड़ी मेहनत के बाद लखटकिया सब्जी की खेती की है। इसका नाम हॉप शूट्स है और कीमत लगभग 1 लाख रुपए प्रति किलो है। 

खबरों में यह भी कहा गया कि अमरेश ने दो माह पहले हॉप शूट्स का पौधा हिमाचल प्रदेश से मँगवाया था, जो अब धीरे-धीरे बड़ा हो रहा है। अगर वह कामयाब हुए तो बिहार के किसान उम्मीद से ज्यादा कमाई कर अपनी किस्मत पलट सकते हैं।

दैनिक जागरण ने इस लखटकिया खेती को लेकर मीडिया में किए जा रहे सभी दावों को खारिज किया। पोर्टल पर प्रकाशित एक्सक्लूसिव खबर के अनुसार जागरण को जमीनी तहकीकात में न तो कोई खेत मिला और न ही ऐसी कोई सब्जी।

पूछने पर अमरेश ने कहा कि उन्होंने ट्रॉयल के तौर पर खेती शुरू की थी। लेकिन साथी के बीमार पड़ जाने के चलते वह उसकी देखरेख नहीं कर सके और फसल सूख गई। अब वे फिर से खेती करेंगे।

जागरण का कहना है कि विभिन्न समाचार माध्यमों से बताया जा रहा था कि खेती 60 फीसद सफल रही। लेकिन वास्तविकता में उन्हें हॉपशूट्स कहीं नजर नहीं आया। अमरेश ने काले चावल और काले गेंहूँ उगाए थे, जिसकी खेती बिहार में कई जगह हो रही है।

ग्रामीणों ने जताई खेती से अनभिज्ञता

ग्रामीणों ने भी ऐसी किसी खेती को लेकर अपनी अनभिज्ञता जाहिर की। परिजनों से बात करने पर उन्होंने अमरेश से फोन पर बात करवाई। जहाँ उन्होंने ये कह दिया कि वे नालंदा में खेती कर रहे हैं। जब नालंदा में जगह को लेकर पूछा गया तो उन्होंने कुछ नहीं बताया। बाद में नालंदा में भी पता किया गया तो ऐसी कोई खेती की सूचना नहीं मिली।

जागरण ने पड़ताल के दौरान जब अमरेश से पूछताछ की तो उन्होंने अपने बीमार होने का हवाला दिया। वह बोले कि उन्‍होंने उत्‍तर प्रदेश के गाेंडा में 20 एकड़ जमीन लीज पर ली है, जिसमें 5 कट्ठे में हॉप शूट्स की खेती कर रहे हैं। इस खेती के लिए वाराणसी में डॉ. लाल से प्रशिक्षण लिया है।

अमरेश की बात की पुष्टि के लिए जब वाराणसी के भारतीय सब्जी अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. जगदीश सिंह बात की गई, तो उन्‍होंने पूरी खबर को फर्जी बताया। वह बोले कि यहाँ न कोई डॉ. लाल हैं और न ही हॉप शूट्स नाम की दुनिया की सबसे महँगी सब्जी का बीज तैयार किया गया है।

फर्जी खेती का मामला निकला तो होगी कार्रवाई: उद्यान निदेशक

खबर के अनुसार, सहायक उद्यान निदेशक जितेंद्र कुमार ने बताया कि जब उन्होंने पड़ताल की तो पता चला कि ऐसी कोई खेती औरंगाबाद में नहीं की गई है। उद्यान निदेशक ने कहा कि अमरेश के दावे की उच्चस्तरीय जाँच की जा रही है। अगर फर्जी खेती का मामला निकला तो कार्रवाई भी की जाएगी। जिला कृषि कार्यालय के अधिकारी इस पर रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं।

हॉप शूट्स क्या है?

हॉप शूट्स एक ऐसी सब्जी है जिसके फूलों का प्रयोग बीयर बनाने में किया जाता है। इससे कैंसर समेत कई गंभीर बीमारियों की दवाएँ बनती हैं। इसकी टहनी खाई जाती है और आचार भी तैयार किया जाता है। सर्वप्रथम इसकी खेती जर्मनी ने शुरू की थी। बाद में यूरोपीय देशों में इसकी पैदावार होने लगी।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

बांग्लादेशियों के खिलाफ प्रदर्शन करने पर झारखंड पुलिस ने हॉस्टल में घुसकर छात्रों को पीटा: BJP नेता बाबू लाल मरांडी का आरोप, साझा की...

भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ प्रदर्शन करने पर हेमंत सरकार की पुलिस ने उन्हें बुरी तरह पीटा।

प्राइवेट सेक्टर में भी दलितों एवं पिछड़ों को मिले आरक्षण: लोकसभा में MP चंद्रशेखर रावण ने उठाई माँग, जानिए आगे क्या होंगे इसके परिणाम

नगीना से निर्दलीय सांसद चंद्रशेखर आजाद ने निजी क्षेत्रों में दलितों एवं पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू करने के लिए एक निजी बिल पेश किया।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -