केरल हाई कोर्ट के एक जज ने कहा है कि महात्मा गाँधी का दिया हुआ गाँव का आइडिया अब प्रासंगिक नहीं रहा है। उन्होंने कहा है कि इसे खत्म किए जाने की जरूरत है। उन्होंने व्यवस्था के केंद्रीकरण की भी वकालत की है। यह टिप्पणियाँ उन्होंने केरल सरकार के बनाए कानून को लेकर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए की हैं।
केरल हाई कोर्ट के जस्टिस ए मुहम्मद मुश्ताक ने सोमवार (17 फरवरी 2025) को कह़ा, “मेरा निजी विचार है कि गाँधी जी ने जिस तरह के गाँव की कल्पना की थी, जिसे अब संवैधानिक रूप दे दिया गया है। उसे खत्म कर देना चाहिए क्योंकि शासन में अब ज्यादा कठिनाइयाँ हैं।”
जस्टिस मुश्ताक ने कहा, “उस समय, केवल छोटी-छोटी चीजें किए जाने की जरूरत थी। लेकिन स्थानीय अधिकारियों के लिए चुनौती अब बहुत बड़ी है। शहरों की प्लानिंग एक बड़ी चुनौती है… कचरे का प्रबन्धन एक और बड़ी चुनौती है। इसे स्थानीय स्तर पर नहीं किया जा सकता। हमारे पास वह कानून है लेकिन इन सब मामलों के लिए एक केंद्रीकृत प्राधिकरण होना चाहिए।”
जस्टिस मुश्ताक ने कहा कि छोटी छोटी ग्राम पंचायतें सब काम करने में सक्षम नहीं हैं, ऐसे में केंद्रीकृत व्यवस्थाओं की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अब चुनौतियों को देखते हुए एक संस्था बननी चाहिए, जो पूरे जिले का प्रबन्धन करें। उन्होंने कहा कि अत्यधिक विकेंद्रीकरण से अब नुकसान हो रहा है।
जस्टिस मुश्ताक ने कहा, “उस समय गांधीजी ने ग्राम स्वराज के माध्यम से छोटे-छोटे मुद्दों को सुलझाने की परिकल्पना की थी। अब यह बदल चुका है, हमें इन चीजों को बदलने की जरूरत है। प्रशासन एक बड़ी चुनौती बन चुका है और देश के बाकी हिस्सों में भी सुधारों की जरूरत है।”
उन्होंने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि 1950 में जैसी चीजों की कल्पना की गई थी, उसे 2025 में भी वैसे ही किया जाए। जस्टिस मुश्ताक ने कहा कि इस पंचायती व्यवस्था के चलते राजस्व का संग्रह भी प्रभावित हो रहा है। यह सारी टिप्पणियाँ उन्होंने केरल सरकार की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए की।
केरल की सरकार ने नगर निकायों और पंचायतों को लेकर दो कानून बनाए थे, जिन्हें केरल हाई कोर्ट की एक बेंच ने 2024 में असंवैधानिक बता दिया था। इसके अलावा कोर्ट ने नगर निकायों के विस्तारीकरण को भी रद्द कर दिया था। इसके खिलाफ ही राज्य सरकार दोबारा हाई कोर्ट पहुँची थी।