गुजरात के राजकोट में 200 से अधिक राजपूत महिलाओं ने मंगलवार (19 अक्टूबर 2021) को तलवारबाजी कौशल का प्रदर्शन कर सबके दिलों को जीत लिया। राजकोट में पाँच दिवसीय ‘तलवार रास’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इसमें राजपूत महिलाओं ने न सिर्फ बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, बल्कि अपने तलवार कौशल का प्रदर्शन भी किया। समाचार एजेंसी एएनआई ने इसका एक वीडियो शेयर किया है। इसमें एक महिला अपनी आँखों पर पट्टी बाँधकर कुछ महिलाओं की पीठ पर चढ़कर तलवारबाजी करती दिख रही हैं।
‘तलवार रास’ में राजपूत महिलाएँ पारंपरिक कपड़े पहनती हैं। तलवार के साथ अपने कौशल का प्रदर्शन करते हुए पारंपरिक नृत्य करती हैं। राजकोट के शाही परिवार की राजकुमारी कादंबरी देवी ने कहा, “तलवार रास पिछले बारह वर्षों से आयोजित किया जा रहा है। हर साल एक नया समूह होता है और महिलाएँ पूरे उत्साह के साथ इस कार्यक्रम में भाग लेती हैं।”
#WATCH | Gujarat: Rajput women display their sword skills in Rajkot during an five day event of ‘Sword Raas’ yesterday pic.twitter.com/ORjbCwOBCp
— ANI (@ANI) October 20, 2021
कादंबरी देवी ने आगे कहा, “तलवार एक देवी की तरह है और इसलिए हम शस्त्र पूजा करते हैं।” यह आयोजन राजपूत महिला योद्धाओं के इतिहास को जीवित रखने और यह संदेश देने के लिए है कि आज की महिलाएँ उतनी ही शक्तिशाली हैं जितनी वे सालों पहले थीं।
तलवार रास की लिबरलों ने मुहर्रम से तुलना की
‘तलवार रास’ महिला सशक्तिकरण की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लिबरल को पसंद नहीं आया। उन्होंने इसकी तुलना मुहर्रम से करते हुए इसे ‘संघी आतंकवाद’ तक कह डाला।
सोशल मीडिया पर एक यूजर ने कहा, “यह मुश्किल हो सकता है। क्या इसे उच्च जाति का वर्चस्व कहें, या महिला सशक्तिकरण या केवल संघी आतंकवाद?”
This could be tricky. Whether call it Upper Caste Supremacy, or Women Empowerment or Simply Sanghi Terrorism?
— Wtf (@GahulRandhi4) October 20, 2021
सतीश पाटिल नाम के यूजर ने सवाल किया, “तलवार का युग चला गया, अब शिक्षा का युग है। डिग्री हासिल करने वाली राजपूत महिलाओं का प्रतिशत कितना है?”
Age of sword has gone, now is the Era of education. What is %of Rajput women who secured degrees?
— Satish Patil (@Satish01459893) October 20, 2021
वहीं, जितेश नाम के एक यूजर ने कहा, “मेरी किताब में बिना आँखों पर पट्टी बाँधे तलवार बाजी मुहर्रम के जुलूस के समान है।”
Similar to Muharram procession without blindfolds in my book.
— Jitesh R (@Jeetuism) October 20, 2021
मोहम्मद शाहिद ने पूछा, “यदि अन्य मजहब की महिलाओं यही कार्य करतीं तो क्या होता?”
यही कार्य अगर किसी दूसरे धर्म की महिलाएं करतीं तो फिर क्या होता? https://t.co/x5Pm2yJt6s
— Mohd Shahid (@BlyShahid) October 20, 2021
एक अन्य ट्विटर यूजर ने टिप्पणी की, “उन्हें कलम/किताबें चाहिए तलवार नहीं। वरना ऐसे ही घूँघट में जिंदगी कट जाएगी।”
They need Pens/Books not Swords.
— K.U.M.A.R. (@iamtrlk) October 20, 2021
Warna aise hi Ghunghat me jindagi kat jayegi. https://t.co/R6OUiqnLgN
विडंबना यह है कि इस कार्यक्रम की आलोचना करने वाले लोगों को विदेशी ‘आत्मरक्षा‘ तकनीकों को बढ़ावा देने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन पारंपरिक भारतीय कला और संस्कृति को देखकर वे भयभीत हो जाते हैं। बता दें कि गुजरात की लोक परंपराओं के विद्वान डॉ. उत्पल देसाई के अनुसार, तलवार रास राजपूत युद्ध नायकों की याद में बनाया गया था, जो भुचर मोरी (18 जुलाई, 1591) के ऐतिहासिक युद्ध में मारे गए थे।