आईआईटी बॉम्बे में इन दिनों एक खेल चल रहा है। एक ऐसा खेल, जिसके तहत उन छात्रों का ब्रेनवाश किया जा रहा है, जो राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखते। राजनीति से दूर रहने वाले प्रोफेसरों को बरगला कर उनका हस्ताक्षर ले लिया जा रहा है और उसे आईआईटी बॉम्बे का विचार बना कर पेश किया जा रहा है। मीडिया भी इसे हाथोंहाथ ले रही है। प्रोफेसरों और छात्रों का एक गुट लगातार संस्थान की छवि बदनाम करने में लगा हुआ है। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि वहाँ के कुछ छात्रों से ही बातचीत के दौरान ऑपइंडिया को ये बातें पता चली हैं।
ऑपइंडिया ने आईआईटी बॉम्बे के एक छात्र से बातचीत की, जिसने नाम न सार्वजनिक करने की शर्त पर सीएए और एनआरसी विरोध के नाम पर मुट्ठी भर प्रोफेसरों के प्रपंच को जाहिर किया। छात्र ने बताया कि चंद प्रोफेसरों ने ऐसे कई प्रोफेसरों को चुना, जिन्हें राजनीति से ख़ास मतलब नहीं। उन्हें बरगला कर वामपंथी प्रोफेसरों ने उनका हस्ताक्षर ले लिया। प्रोफेसरों से कहा गया कि वो हिंसा के विरोध में हस्ताक्षर करा रहे हैं। बाद में इसे सीएए और एनआरसी विरोधी बता कर पेश कर दिया गया।
उक्त छात्र ने बताया कि शाहीन बाग़ में शुरू हुए प्रदर्शन के बाद आईआईटी बॉम्बे के सोशियोलॉजी विभाग के छात्र केंद्र सरकार के विरोध में ज्यादा सक्रिय रहे। चूँकि इस विभाग में छात्रों के एडमिशन को लेकर प्रोफेसर ही इंटरव्यू लेते हैं, वामपंथी प्रोफेसरों की दया से यहाँ जेएनयू के छात्रों का एडमिशन हुआ है। ऑपइंडिया से बात करते हुए छात्र ने आरोप लगाया कि वामपंथी विचारधारा वाले छात्रों को उक्त विभाग में भरा जा रहा है। एमफिल और पीएचडी वालो कोर्स के लिए ऐसा किया जा रहा है। इन कोर्सेज के लिए अंतिम निर्णय प्रोफेसरों को ही लेना होता है।
सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ ‘सोम बिल्डिंग (स्कूल ऑफ मैनेजमेंट)’ में 25 जनवरी को विरोध-प्रदर्शन आयोजित किया गया। वहाँ विरोध प्रदर्शन के लिए ‘डीन ऑफ स्टूडेंट वेलफेयर (DSW)’ से अनुमति लेनी होती है। यहाँ छात्रों और प्रोफेसरों ने मिल कर एक ‘आंबेडकर-फुले-पेरियार स्टडी सर्कल’ समूह बनाया और इसके बैनर तले विरोध प्रदर्शन आयोजित किया। डीन से अनुमति न मिलने के बावजूद अनाधिकारिक रूप से विरोध-प्रदर्शन किया गया। इससे आईआईटी के अन्य छात्रों को काफ़ी परेशानी होने लगी। मुश्किल से 40-50 छात्र और 10-12 प्रोफेसरों ने आए दिन कैम्पस में उपद्रव शुरू कर दिया और अन्य छात्रों को दिक्कतें होने लगी।
इसके बाद छात्रों ने उपद्रवी छात्रों व प्रोफेसरों के ख़िलाफ़ संस्थान के प्रशासन से शिकायत की। एक और गौर करने वाली बात ये है कि यही मुट्ठी भर प्रोफेसर और छात्र ख़ुद को आईआईटी बॉम्बे का प्रतिनिधि बताते हैं। वामपंथी प्रोफेसर और छात्रों ने ‘हमें चाहिए आज़ादी’ के नारे लगाए। शिकायत के बाद डायरेक्टर ने प्रोफेसरों और छात्रों से बातचीत कर उन्हें समझाया। डायरेक्टर ने सलाह दी कि आईआईटी बॉम्बे तकनीकी क्षेत्र में देश का नंबर 1 संस्थान है, इसीलिए इसे राजनीति से दूर रखा जाए। साथ ही उपद्रवी छात्रों व प्रोफेसरों को उन छात्रों को परेशान न करने को कहा, जो इन सबसे कोई मतलब नहीं रखते।
वामपंथी प्रोफेसर और छात्र डायरेक्टर की इस सलाह के बाद भड़क गए। वो पूछने लगे कि अगर राजनीतिक वाद-विवाद नहीं होगा तो फिर यहाँ पॉलिसी डिपार्टमेंट होने का औचित्य क्या है? वामपंथियों से तंग आकर कुछ अन्य प्रोफेसरों व छात्रों ने 25 जनवरी को डीन से अनुमति लेकर सीएए के समर्थन में रैली निकाली। इसके बाद वामपंथी गुट ने एक लम्बे तिरंगे झंडे के साथ रैली की। मामला गणतंत्र दिवस के दिन बिगड़ गया। हॉस्टल 12, 13 व 14 जनवरी को वामपंथियों के गुट ने ‘कागज़ नहीं दिखाएँगे’ वाले वरुण ग्रोवर को चीफ गेस्ट बना कर इन्वाइट किया। साथ ही एक विरोध-प्रदर्शन रैली निकालने की योजना बनाई।
एक साज़िश के तहत ‘आंबेडकर-फूले-पेरियार स्टडी सर्कल’ के फेसबुक पेज का नाम बदल कर ‘जस्टिस फॉर आईआईटी बॉम्बे’ कर दिया गया। गणतंत्र दिवस के दिन संस्थान ने बाहरी व्यक्ति के कैम्पस में प्रवेश पर बैन लगा दिया। आशंका थी कि बाहरी लोग माहौल खराब कर सकते हैं। वरुण ग्रोवर की भी एंट्री रोक दी है। इसके बाद वामपंथी प्रोफेसरों की बीवियों व महिला वामपंथी प्रोफेसरों ने वरुण ग्रोवर को अपना गेस्ट बना कर अंदर एंट्री करा दी। इसके बाद कई वामपंथी छात्र पोस्टर-बैनर और डफली लेकर विरोध-प्रदर्शन करने लगे। इन छात्रों ने ‘लड़ कर लेंगे आज़ादी’ जैसे नारे भी लगाए।
अन्य छात्रों को फिर से परेशानी हुई। परेशान छात्र नारेबाजी व उपद्रव के कारण न तो पढ़ाई कर पा रहे थे और न ही ठीक से मेस में बैठ कर खाना खा पा रहे थे। उन्होंने सिक्योरिटी गार्ड्स से इसकी शिकायत की लेकिन रसूखदार वामपंथी प्रोफेसरों के आगे गार्ड्स की एक न चली। अंत में हार कर छात्रों ने इसकी शिकायत पुलिस से की। पुलिस ने आकर वरुण ग्रोवर को कैम्पस से बाहर निकाला और हिरासत में भी लिया। तब जाकर उस दिन मामला शांत हुआ। वामपंथी छात्र घूम-घूम कर नुक्कड़ नाटक भी कर रहे थे और अपने ही संस्थान पर निशाना साध रहे थे।
इसके बाद आईआईटी बॉम्बे प्रशासन ने एक नोटिस जारी कर किसी भी प्रकार की असामाजिक व देशद्रोही गतिविधि में शामिल न होने को कहा। बावजूद इसके शरजील इमाम के समर्थन में नारे लगाए गए। शरजील इमाम ने असम को भारत से अलग-थलग कर के टुकड़े करने की धमकी दी थी और लोगों को भड़काया था। डीएसडब्ल्यू ने छात्रों को स्पष्ट कर दिया कि शरजील इमाम का मामला देशद्रोह से जुड़ा है, इसीलिए इस मामले में उसका समर्थन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसके बावजूद रवीश कुमार व वामपंथी मीडिया ने डीएसडब्ल्यू को ‘तानाशाह’ करार दिया।
शरजील इमाम व उसके समर्थकों को बचाने के लिए रवीश कुमार ने भी अपने ‘प्राइम टाइम’ में कई फ़र्ज़ी दलीलें दी। आईआईटी बॉम्बे के छात्र ने ऑपइंडिया को बताया कि कैम्पस में हॉस्टल जनरल सेक्रेटरी का चुनाव होना है, जहाँ वामपंथियों को बिठाने का प्रयास किया जा रहा है। राजनीतिक रुझान न रखने वाले छात्रों को बरगलाया जा रहा है और उनका ब्रेनवाश किया जा रहा है। यहाँ इस सवाल का कोई तुक नहीं बनता कि आईआईटी में पढ़ने व पढ़ाने वाले को बरगलाया नहीं जा सकता, क्योंकि उनका ब्रेनवाश करने वाले भी से हैं और सारे दाँव-पेंच आजमा रहे हैं।
आईआईटी बॉम्बे के ई-सेल ने कॉलेज बिजनेस फेस्ट में अनुराग कश्यप जैसे गालीबाज को बुलावा भेजा है, जो हर बात में पीएम मोदी व गृह मंत्री अमित शाह को गालियाँ बकते हैं। हालाँकि, एंटरप्रेन्योरशिप समिट के नाम पर उन्हें क्यों बुलाया जा रहा है, ये वामपंथियों का एजेंडा स्पष्ट दिखता है।