नीरज प्रजापति आपको याद हैं? वही नीरज प्रजापति जो मूर्तियाँ बनाते थे। जिनकी मौत झारखंड के लोहरदगा में सीएए समर्थक रैली पर हुए हमले के दौरान आई चोटों से हुई थी। जिनके परिवार की मदद के लिए ऑपइंडिया ने पैसे जुटाए थे। हमारे कई पाठकों ने आगे आकर इस परिवार की मदद की थी। नीरज की मौत के दो साल बाद स्थानीय थाने के प्रभारी इस केस को भूल चुके हैं। झारखंड की सरकार से लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) तक हर जगह नीरज की विधवा को निराशा हाथ लगी है। परिवार की स्थिति ठीक नहीं है। उनका कहना है कि उस समय लोगों ने बड़े-बड़े वादे किए थे, समय बीतने के साथ सबने उसे भूला दिया।
नीरज प्रजापति के साथ क्या हुआ था?
झारखंड के लोहरदगा में 23 जनवरी 2020 को CAA के समर्थन में विशाल रैली निकली थी। मुस्लिम मोहल्ले में पहुँचते ही इस रैली पर पत्थरबाजी शुरू हो गई थी। भीड़ में शामिल हर किसी को निशाना बनाया गया। दुकानों में तोड़फोड़ और वाहनों में आगजनी की गई। हमलावर भीड़ ‘नारा ए तकबीर, पाकिस्तान जिंदाबाद’ जैसे नारे लगा रही थी। इसी हिंसा की चपेट में आए थे नीरज प्रजापति। पीछे से रॉड से हुए हमले से उन्हें ब्रेन हेमरेज हो गया था। 27 जनवरी 2020 को राँची के रिम्स में उनकी मृत्यु हो गई थी।
नीरज पर ही थी पूरे परिवार की जिम्मेदारी
नीरज मूर्ति बनाने का काम करते थे। उनके ऊपर पूरे परिवार की जिम्मेदारी थी। नीरज की पत्नी और दो बच्चे हैं। बेटी 11 साल की तो बेटा 5 साल का है। नीरज की पत्नी ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिख कर अपने पति की मौत में न्याय करने और परिवार के भरण-पोषण के लिए मुआवजा देने की माँग की थी।
टॉर्च की रोशनी में हुआ था अंतिम संस्कार
नीरज राम प्रजापति की अंतिम यात्रा में अधिकतम 35 लोगों के शामिल लोगों की संख्या प्रशासन ने तय की थी। बाहरी लोगों को भी शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई थी। रास्ते में मस्जिद पड़ने के चलते नीरज प्रजापति का अंतिम संस्कार गाँव के श्मशान में नहीं होने दिया गया था। जल्दी-जल्दी अंतिम संस्कार कराने के चक्कर में धार्मिक रीति-रिवाज भी पूरा नहीं करने दिया गया था। वीडियो रिकॉर्ड करने वाले एक स्थानीय पत्रकार के कैमरे को तोड़ने की धमकी मिली थी। साथ ही किसी को छत से भी नीरज की अंतिम यात्रा देखने की अनुमति नहीं थी। टॉर्च की रोशनी में रात में ही अंतिम संस्कार करवाया गया था।
ऑपइंडिया ने चलाया था आर्थिक मदद का अभियान
जनवरी 2020 में ऑपइंडिया ने नीरज के परिवार की आर्थिक मदद करने का बीड़ा उठाया था। इस दौरान जनता ने करीब 32.5 लाख रुपए का सहयोग किया था। इसमें से 11.4 लाख रुपए क्राउडकैश के जरिए जुटाए गए, जबकि बाकी धनराशि लोगों ने दिवंगत नीरज की पत्नी के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर किया था।
नीरज के भाँजे ने बताए वर्तमान हालात
ऑपइंडिया ने नीरज प्रजापति के भाँजे अभिषेक प्रजापति से बात की। अभिषेक ने बताया, “मामा (नीरज) की मृत्यु के लगभग 20 दिन बाद उनके पिता की भी मृत्यु हो गई थी। मौत की वजह बेटे का ग़म था। साथ ही नीरज की बीमार भाभी भी पिछले साल लम्बी बीमारी (ब्रेस्ट कैंसर) के चलते चल बसीं। पिता की मौत के बाद आने वाली पेंशन आधी हो गई। अब घर में सिर्फ नीरज की माता जी, उनका भाई, उनकी पत्नी और 2 बच्चे रह गए हैं। बेटी क्लास 3 में पढ़ती है, जबकि बेटे का अभी एडमिशन नहीं हुआ है। नीरज के भाई ही मूर्ति अदि बनाकर घर का खर्च उठा रहे हैं। यह सीजनल काम है, जिसमें पैसे बराबर नहीं मिल पाते। घर की आर्थिक स्थिति बस आप लोगों द्वारा करवाई गई मदद से जैसे-तैसे चल रही है। हेमंत सरकार से बस एक बार 20 हजार रुपए विधवा अनुदान के तौर पर मिले थे। यह मदद सबको होती है। हमारे लिए कोई अलग से नहीं की गई थी।”
नीरज की हत्या के केस में नहीं हुई है कोई अलग से गिरफ्तारी
अभिषेक प्रजापति ने आगे बताया, “मृत्यु के समय नीरज लगभग 32 साल के थे। उन पर हमला अंजुमन मोहल्ले में हुआ था। वह मुस्लिम बहुल मोहल्ला है जो नीरज के घर से लगभग आधे किलोमीटर दूर है। मामा की मौत के बाद से प्रशासनिक दबाव बनाया जा रहा था इसे बाथरूम में हुई मौत बताने का। उनकी हत्या के मामले में कोई अलग से गिरफ्तारी नहीं हुई। दंगो में जो लोग पकड़े गए थे, कार्रवाई के नाम पर बस वही भर है। उसमें भी हिन्दू और मुस्लिम दोनों पक्षों के लोगों को पकड़ा गया था। मुस्लिमों को उनकी जली दुकानों और वाहनों का मुआवजा भी दे दिया गया है। हिन्दू पक्ष में हम जैसों को कुछ भी नहीं मिल पाया। आज तक सरकार के किसी बड़े या सक्षम अधिकारी ने हमें सम्पर्क नहीं किया। हमले के बाद नीरज बुरी तरह से चोट खाए थे इसलिए वो किसी का नाम नहीं बता सके थे। 1 माह पहले पुलिस ने नीरज के जीजा जी से 2 साल पहले हुए बयान की कॉपी माँगी थी। हमने उसे दे दी थी। इसके अलावा कहीं से कोई भी कार्रवाई नहीं की गई है।”
नीरज की पत्नी ने बताया- आश्वासन मिला, पर किया कुछ नहीं
ऑपइंडिया ने दिवंगत नीरज की पत्नी दिव्या से बात की। दिव्या ने बताया, “मेरे पति घर की रीढ़ थे। वो टूट गई है। उनके ही दुःख में उनके पिता जी चल बसे। बाद में सितम्बर 2021 में बीमार भाभी भी चल बसीं। अब मेरे 2 और नीरज के बड़े भाई के 3 बच्चे मिला कर कुल 5 बच्चे हैं। कई लोगों उस समय बच्चो को पढ़ाने आदि जैसे बड़े-बड़े वादे किए थे। लेकिन अब कोई नहीं आता। वो वादा किया ही न जाए जो पूरा न हो। मैंने दिल्ली में इस पूरे मामले की शिकायत की थी, लेकिन वहाँ भी यह केस बंद कर दिया गया।”
नीरज की पत्नी द्वारा 2 मार्च 2020 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से लगाई गई गुहार को NHRC ने 1 दिसम्बर 2020 को ख़ारिज कर दिया था। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का जवाब था, “हिंसा किसी राज्य या पब्लिक अथॉरिटी द्वारा नहीं की गई है। इसलिए पीड़िता की याचिका विचार के योग्य नहीं है। सहानभूति के तौर पर आदेश की कॉपी लोहरदगा के डिप्टी कमिश्नर को भेजी जा रही है। वह ही इस पर नियमानुसार निर्णय लें।”
स्थानीय SHO को नहीं है केस की जानकारी
ऑपइंडिया ने इस केस की जानकारी के लिए लोहरदगा थाने के SHO से सम्पर्क किया। SHO ने बताया, “उस समय कोई और अधिकारी था। मैं तब यहाँ नहीं था। मुझे इस केस की जानकारी नहीं है।”