Monday, June 17, 2024
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SFI के गुंडों के बीच अवैध संबंध, ड्रग्स बिजनेस… जिस महिला प्रिंसिपल ने उठाई आवाज, केरल सरकार ने उनका पैसा-पोस्ट सब छीना, हाई कोर्ट से राहत

इस मामले में केरल सरकार ने उन्हें शो-कॉज नोटिस भेजा था कि उन्होंने कॉलेज का नाम बदनाम किया है। हाई कोर्ट ने वामपंथी सरकार को फ्रीडम ऑफ स्पीच का पाठ भी पढ़ाया है।

केरल की वामपंथी सरकार ने एसएफआई के गुंडों के खिलाफ बयान देने पर एक कॉलेज की महिला प्रिंसिपल के खिलाफ तमाम कदम उठाए। उन्हें पद से हटा दिया और फिर सरकार के खिलाफ बोलने जैसे चार्ज लगाकर उनके रिटायरमेंट के समय उन पर जाँच बैठा दी। यही नहीं, उनका ट्रांसफर भी कर दिया। महिला प्रिंसिपल ने कॉलेज कैंपस में एसएफआई के गुंडों द्रावा ऑर्गनाइज क्राइम, नशा जैसे कामों में लिप्त रहने का आरोप लगाया था, जिसके बाद एसएफआई के गुंडों ने उन्हें घंटों तक कॉलेज परिसर में ही बंधक बना लिया था, लेकिन गुंडों पर कार्रवाई करने की जगह केरल की वामपंथी सरकार ने महिला प्रिंसिपल पर ही कर दी। हालाँकि अब केरल हाई कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई है।

ऑनमनोरमा की रिपोर्ट के मुताबिक, ये मामला केरल के कासरगोड स्थित सरकारी कॉलेज का है, जहाँ सीपीआई-एम की अगुवाई वाली वापमंथी सरकार ने एसएफआई के खिलाफ स्टैंड लेने वाली प्रिंसिपल डॉ रेमा एम. को प्रताड़ित किया। केरल सरकार ने कोशिश की, कि प्रिंसिपल को रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली स्कीम्स का फायदा भी न मिल पाए और वो कोर्ट कचहरी के ही चक्कर काटती रहें। लेकिन केरल हाई कोर्ट के जस्टिस ए मुहम्मद मुस्ताक और जस्टिस शोबा अन्नम्मा इआपेन की बेंच ने केरल सरकार के मंसूबों को नाकामयाब बनाते हुए प्रिंसिपल के खिलाफ बैठाई गई 2 इन्कवॉयरी को खत्म कर दिया। डॉ रेमा एम. 31 मार्च 2024 को रिटायर हो गईं, लेकिन उनके खिलाफ जारी विभागीय जाँच की वजह से उन्हें अब तक रिटायरमेंट का कोई भी लाभ नहीं मिल पाया था। कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के बाद 9 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे 21 मई 2024 को वेबसाइट पर अपलोड किया गया। इस मामले में केरल हाई कोर्ट ने ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ के मुद्दे पर भी अहम बात कही है।

क्या था मामला, जिसकी वजह से प्रिंसिपल की आई शामत?

केरल सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदू ने पहले तो कासरगोड गवर्नमेंट कॉलेज की प्रिंसिपल को पद से हटा दिया था, तो उसके बाद उच्च शिक्षा निदेशालय ने उनका ट्रांस 200 किमी दूर कोझीकोडे जिले में कर दिया था। ये सब तब हुआ, जब प्रिंसिपल ने एक ऑनलाइन पोर्टल को दिए इंटरव्यू में एसएफआई के गुंडों और छात्रों के एक गुट पर बाकी छात्रों पर अत्याचार करने, आपस में अवैध संबंध रखने और ड्रग्स के इस्तेमाल का आरोप लगाया था। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ‘अगर प्रिंसिपल ने एसएफआई के खास सदस्यों पर आरोप लगाए हैं, तो ये मामला एसएफआई के खिलाफ बोलने का है, सरकार के खिलाफ बोलने का नहीं। लेकिन सरकार ने बिना किसी स्वतंत्र जाँच के उनके खिलाफ विभागीत जाँच बैठा दी और कार्रवाई भी कर दी।’

इस मामले में केरल सरकार ने कॉलेजिएट एजुकेशन डिपार्टमेंट के डिप्टी डायरेक्टर सुनील जॉन, प्रो गीता ई और सीनियर क्लर्क श्यामलाल आईएस की सदस्यता वाली एक जाँच समिति बनाई थी, जिसने एसएफआई के कासरगोड यूनिट सेक्रेटरी अक्षय एमके द्वारा की गई शिकायत की जाँच की। इस कमेटी ने डॉ रेमा को किसी अन्य कॉलेज में ट्रांसफर किए जाने का सुझाव दिया, लेकिन एसएफआई के खिलाफ लगाए गए किसी भी आरोप की जाँच नहीं की। इस मामले में कोर्ट ने कहा, “ये जाँच कमेटी तो सिर्फ याचिकाकर्ता के खिलाफ एकतरफा जाँच के लिए बनाई गई लगी, न कि कॉलेज में चल रही समस्याओं को लेकर।” इस मामले में कोर्ट ने एक माह पहले ही उनके खिलाफ विभागीय जाँच हटा दी थी, लेकिन विस्तृत फैसला अब आया है।

प्रिंसिपल और एसएफआई का विवाद

इस मामले में 10 फरवरी 2023 को एसएफआई के सदस्यों ने डॉ रेमा से पीने के पानी को लेकर शिकायत की थी। उन्होंने उसी दिन कॉलेज के सुप्रीटेंडेंट को फिल्टर ठीक कराने एवं पानी की समस्या दूर करने का आदेश दे दिया था, लेकिन उसी दिन एसएफआई के नेता डॉ रेमा के चैंबर में पहुँचे और उन्होंने फिल्टर को लेकर सफाई देने की माँग की। इस मामले में 22 फरवरी को एसएफआई के गुंडों ने मीडिया में बयानबाजी की कि प्रिंसिपल ने छात्रों को गालियाँ दी है। उसी दिन एसएफआई से जुड़े करीब 60 गुंडों ने प्रिंसिपल को ही सुब 10.30 से लेकर दोपहर 2 बजे तक बंधक बनाए रखा। यहाँ तक कि उन्हें शौचालय तक इस्तेमाल नहीं करने दिया गया। यही नहीं, एसएफआई से जुड़ी छात्राओं ने उनके साथ हाथापाई भी की। उन्हें पुलिस ने आकर बचाया।

इस मामले के 2 दिन बाद 23 फरवरी 2023 को केरल की मंत्री आर बिंदू ने उन्हें प्रिंसिपल के पद से हटा दिया। इस दौरान एसएफआई के गुंडों ने ऐलान किया कि वो प्रिंसिपल को कॉलेज कैंपस में कदम तक नहीं रखने देंगे। इसके अगले दिन प्रिंसिपल का बयान न्यूज पोर्टल में छपा था, जिसमें उन्होंने एसएफआई के गुंडों की करतूतों को दुनिया के सामने रखा था।

कागरगोड कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ रेमा एम ने कहा था कि उन्होंने छात्र-छात्राओं को शारीरिक संबंध बनाते देखा है और वो कैंपस में ड्रग्स भी इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने एसएफआई के गुंडों पर अवैध गतिविधियों और अन्य छात्रों पर अत्याचार करने के भी आरोप लगाए। इस मामले में केरल सरकार ने उन्हें शो-कॉज नोटिस भेजा था कि उन्होंने कॉलेज का नाम बदनाम किया है। उन्होंने नोटिस के जवाब में कहा था कि ‘मैंने पूरे कॉलेज के खिलाफ कोई बात नहीं की, मैंने कुछ छात्रों के खिलाफ ही बात की, क्योंकि उसी कॉलेज में मेरी बेटी भी पढ़ती है।’ लेकिन उनके जवाब से असंतुष्ट केरल सरकार ने 3 सदस्यीय कमेटी बनाकर उनके खिलाफ जाँच बैठा दी।

15 2023 को कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें बताया गया कि डॉ रेमा एम ने सरकारी कर्मचारी नियमन 1960 से जुड़े रूल 62 और 63 को तोड़ा है। ऐसे में दंड स्वरूप उन्हें दूसरे कॉलेज ट्रांसफर किया जा सकता है। इसके बाद 9 जुलाई 2024 को उनका ट्रांसफर 200 किमी दूर कर दिया गया था। और फिर ये कानूनी लड़ाई शुरू हुई।

लगातार प्रताड़ना, सरकार और हाई कोर्ट

केरल सरकार के फैसले के खिलाफ प्रिंसिपल डॉ रेमा एम ने केरल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में अपील की। ट्रिब्यूनल ने सरकार से कहा कि वो रेखा एम को किसी नजदीकी कॉलेज में ट्रांसफर करे, न कि 200 किमी दूर। उनका रिटायरमेंट 31 मार्च 2024 को होना है, ऐसे में उन्हें राहत दी जाए। इसके बाद सरकार ने उन्हेंने दूसरे कॉलेज ट्रांसफर कर दिया, लेकिन ट्रिब्यूनल ने उन्हें प्रिंसिपल पद से हटाने के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं दिया था, ऐसे में उन्होंने हाई कोर्ट का रूख किया। हाई कोर्ट ने सर्विस कंडक्ट रूल 62 और 63 में की गई कार्रवाई को निरस्त कर दिया।

हाई कोर्ट ने कहा, “डॉ रेमा एम ने एसएफआई यूनिट और उसके सदस्यों के खिलाफ बोला था। न कि सरकार के खिलाफ या सरकार और छात्रों के बीच संबंधों पर।” रूल 62 कहना है कि कोई सरकारी कर्मचारी ऐसे बयान नहीं दे सकता, जिससे सरकार और आम जनता के बीच अविश्वास बढ़े। लेकिन अगर कोई कन्फ्यूजन है, तो रूल 63 के मुताबिक, किसी बयान को जारी करने से पहले सरकार की परमिशन लेनी पड़ती है। जजों ने देखा कि डॉ रेमा ने एसएफआई के गुंडों के खिलाफ अपनी बात रखी थी, साथ ही उन्होंने ऐसे पूर्व छात्रों के बारे में भी बात की थी, जो अब भी कॉलेज में आते हैं और अवैध गतिविधियों को अंजाम देते हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “याचिकाकर्ता इस देश की नागरिक है और वो अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत अपने विचार रखने को स्वतंत्र हैं।” इस मामले में 22 मार्च 2024 को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।

खास बात ये है कि एक तरफ केरल हाई कोर्ट ने इस मामले में 22 मार्च 2024 को फैसला सुरक्षित रख लिया था, तो दूसरी तरफ उसके 2 दिन बाद ही 24 मार्च 2024 को केरल सरकार ने उनके खिलाफ नया मेमो जारी कर दिया, जिसमें उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने अगस्त 2022 में एक छात्रा को एडमिशन लेने से रोक दिया थ, क्योंकि वो अपने पिता के साथ नहीं आई थी। उस छात्रा ने कन्नूर यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रा के सामने 23 अगस्त 2022 को ही शिकायत दर्ज करा दी थी। डॉ रेमा ने इसके जवाब में कहा कि ऐसा नियमों के चलते किया गया, क्योंकि एंटी-रैगिंग फोरस और एंटी डावरी फोरम के फॉर्म्स पर पिता के हस्ताक्षर अनिवार्य थे।

इस मामले में 19 अक्टूबर 2024 को यूनिवर्सिटी सिंडिकेट ने डॉ रेमा के खिलाफ पैनल एक्शन का सुझाव दिया था, जिसमें सिंडिकेट ने पाया था कि डॉ रेमा ने ‘अपनी सीमाओं का उल्लंघन किया’। लेकिन हाई कोर्ट ने साफ कर दिया है कि उनके खिलाफ पहली इन्क्वॉयरी ही इसलिए बैठाई गई थी, ताकि उन्हें रिटायरमेंट का लाभ न मिल सके और पेंशन से जुड़ी सुविधाओं से वंचित किया जा सके। दूसरे मेमो पर भी हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि दूसरा मेमो कुछ और नहीं, बल्कि पहले मेमो को ही आगे बढ़ाने का प्रयास है, ताकि प्रिंसिपल रेखा एम को पेंशन और अन्य सुविधाओं से वंचित किया जा सके।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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