Wednesday, November 20, 2024
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मुस्लिम लड़की ने मंत्री से मिलाया हाथ, मौलवी ने बताया- हराम, ज़िना, शरीयत का उल्लंघन: केरल हाई कोर्ट ने फटकारा, कहा- अपनी मजहबी मान्यता दूसरों पर न थोपे

कोर्ट ने नौशाद की याचिका खारिज करते हुए कहा कि मजहबी मान्यताएँ व्यक्तिगत होती हैं और इन्हें दूसरों पर थोपने का अधिकार किसी को नहीं है। कोर्ट ने कहा कि संविधान के तहत हर व्यक्ति को अपनी धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है और कोई भी इसे किसी पर थोप नहीं सकता।

केरल हाई कोर्ट ने मौलवी अब्दुल नौशाद को राहत नहीं दी। उसके खिलाफ केरल पुलिस की कार्यवाही पर से रोक लगाने से इनकार कर दिया। मौलवी अब्दुल नौशाद ने मुस्लिम लड़की के एक मंत्री से हाथ मिलाने पर उसे हराम, ज़िना (व्याभिचार) और शरियत का उल्लंघन बताया था। इस मामले में लड़की के परिजनों ने अब्दुल नौशाद पर केस किया था और अब केरल हाई कोर्ट ने नौशाद को राहत देने से इनकार कर दिया।

केरल हाई कोर्ट ने मौलवी नौशाद को फटकारते हुए कहा है कि वो अपनी मजहबी मान्यताएँ दूसरों पर नहीं थोप सकता है। गौरतलब है कि ये घटना 2016 में केरल के मार्कज़ लॉ कॉलेज में आयोजित एक इंटरएक्टिव सेशन के दौरान हुई थी। इस सत्र में कानून की छात्रा लड़की पुरस्कार लेते समय मंच पर जाकर उस समय केरल के वित्त मंत्री टी.एम. थॉमस इसाक से हाथ मिलाया। इसके बाद सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें अब्दुल नौशाद ने हाथ मिलाने की इस घटना को इस्लामी कानून का उल्लंघन बताया। नौशाद ने दावा किया कि इस्लाम में गैर-महरम (अजनबी) मर्द और औरत के बीच शारीरिक संपर्क हराम माना जाता है और यह शरियत कानून के खिलाफ है। नौशाद ने पोस्ट के जरिए लड़की पर ज़िना (व्याभिचार) के आरोप लगाए थे।

इस मामले में अब्दुल नौशाद के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 (दंगा भड़काने के इरादे से उकसाने) और केरल पुलिस अधिनियम की धारा 119 (किसी महिला की गरिमा को सार्वजनिक रूप से ठेस पहुँचाने) के तहत मामला दर्ज किया गया था। नौशाद ने कोर्ट से यह अनुरोध किया कि उसके खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया जाए, लेकिन कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, केरल हाई कोर्ट के जस्टिस पी.वी. कुन्हीकृष्णन की अध्यक्षता वाली बेंच ने अपने फैसले में कहा कि मजहबी विश्वास व्यक्तिगत होते हैं और उन्हें दूसरों पर थोपने का अधिकार किसी को नहीं है।

हाईकोर्ट ने कहा, “मजहबी मान्यताएँ व्यक्तिगत होती हैं। किसी व्यक्ति पर मजहबी विश्वासों को थोपने की कोई जरूरत नहीं, खासकर इस्लाम में। हर नागरिक को यह स्वतंत्रता है कि वह अपने मजहबी विश्वासों का पालन करे या न करे। भारत के संविधान का अनुच्छेद 25 कहता है कि सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए सभी व्यक्तियों को अपने धर्म की स्वतंत्रता है और वे अपनी मजहबी मान्यताओं को मानने और उनका प्रचार करने के लिए स्वतंत्र हैं।”

कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि कोई भी व्यक्ति अपनी मजहबी मान्यता को किसी अन्य व्यक्ति पर थोपने की कोशिश नहीं कर सकता। कोर्ट ने कहा, “धर्म का प्रचार करना यह नहीं है कि मजहबी प्रथाओं को दूसरों पर थोपा जाए। भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 किसी व्यक्ति को यह अधिकार नहीं देते कि वह अपनी मजहबी मान्यता को दूसरे पर थोपे।”

कोर्ट ने कुरान के कुछ आयतों का हवाला देते हुए कहा कि इस्लाम में भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का बहुत महत्व है। कोर्ट ने कहा, “इस्लाम में गैर-महरम पुरुष और महिला के बीच शारीरिक संपर्क जैसे हाथ मिलाना हराम माना जा सकता है, लेकिन यह व्यक्तिगत आस्था और चुनाव पर निर्भर है। कुरान की सूरह अल-बक़रह (2:256) में कहा गया है, ‘धर्म में कोई ज़बरदस्ती नहीं है’। इसके अलावा, सूरह अल-काफिरून (109:6) में भी कहा गया है, ‘तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म और मेरे लिए मेरा धर्म’।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि समाज और संविधान, दोनों का यह कर्तव्य है कि वे इस प्रकार के मामलों में संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करें। कोर्ट ने कहा, “एक बहादुर मुस्लिम लड़की ने अपने मजहबी विश्वास की स्वतंत्रता का दावा किया है। ऐसी स्थिति में हमारा संविधान उसकी रक्षा करेगा। इसके अलावा, यह समाज का भी दायित्व है कि वह उसका समर्थन करे।”

नौशाद ने वीडियो और सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए लड़की पर शरियत कानून का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था, जिससे लड़की और उसके परिवार की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँची। लड़की ने इस बारे में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद नौशाद पर आपराधिक मामला दर्ज किया गया। कोर्ट ने कहा कि अब्दुल नौशाद ने न तो अपने बयानों का खंडन किया और न ही इस मामले में कोई ठोस तर्क पेश किया। इसके चलते कोर्ट ने नौशाद की याचिका खारिज कर दी और निचली अदालत को इस मामले की जल्द से जल्द सुनवाई करने का निर्देश दिया।

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “कोई भी मजहबी विश्वास संविधान से ऊपर नहीं है। संविधान सर्वोच्च है।” इस टिप्पणी ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार किसी भी मजहबी कानून या मान्यता से ऊपर हैं। कोर्ट ने कहा कि लड़की को अपनी मजहबी स्वतंत्रता का अधिकार है और कोई भी उस पर मजहबी दबाव नहीं डाल सकता। ऐसे में, केरल हाई कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि नौशाद के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रहेगी, और मामले की सुनवाई जल्द से जल्द पूरी की जाएगी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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